क्या आप पवित्र चीज़ों के बारे में यहोवा का नज़रिया रखते हैं?
“ध्यान से देखते रहो, . . . ताकि कोई ऐसा न हो जो व्यभिचारी हो या पवित्र चीज़ों की कदर नहीं करता हो।”—इब्रानियों 12:15, 16, NW.
1. यहोवा के सेवक दुनिया का कौन-सा रवैया नहीं अपनाते हैं?
आज ज़्यादातर लोगों के दिल में पवित्र चीज़ों के लिए कदर धीरे-धीरे खत्म होती जा रही है। इस बारे में फ्रांस के एक समाजविज्ञानी, एडगार मोरन ने कहा: “ईश्वर, कुदरत, वतन, इतिहास और दलील—इन्हीं बुनियाद पर हमारे नैतिक उसूल बने हैं और इन पर पहले शक करने का सवाल ही पैदा नहीं होता था। मगर अब ये बुनियाद कमज़ोर पड़ती जा रही हैं। . . . और आज लोग अपने मन-मुताबिक चुनाव कर रहे हैं कि वे किन उसूलों पर चलेंगे।” लोगों का यह रवैया दिखाता है कि उनमें “संसार की आत्मा” है या ‘वह आत्मा जो अब आज्ञा न माननेवालों में कार्य्य करती है।’ (1 कुरिन्थियों 2:12; इफिसियों 2:2) लेकिन यहोवा की हुकूमत के अधीन रहनेवाले उसके समर्पित सेवक ऐसा रवैया नहीं दिखाते। (रोमियों 12:1, 2) इसके बजाय, वे जानते हैं कि पवित्रता, यहोवा की उपासना में बहुत मायने रखती है। हमें अपनी ज़िंदगी में किन चीज़ों को पवित्र मानना चाहिए? इस लेख में ऐसी पाँच चीज़ें बतायी गयी हैं जो परमेश्वर के सभी सेवकों के लिए पवित्र हैं। और अगले लेख में, मसीही सभाओं की पवित्रता के बारे में चर्चा की जाएगी। मगर सबसे पहले, आइए देखें कि “पवित्र” शब्द का असल में मतलब क्या है।
2, 3. (क) बाइबल, यहोवा की पवित्रता पर कैसे ज़ोर देती है? (ख) हम कैसे दिखाते हैं कि हम यहोवा के नाम को पवित्र मानते हैं?
2 शब्द “पवित्र,” बाइबल की इब्रानी भाषा के जिस शब्द से निकला है, उसका मतलब है, अलग। उपासना के मामले में, “पवित्र” उसे कहा जाता है, जो साधारण कामों में होनेवाले इस्तेमाल से अलग या पावन ठहराया गया हो। यहोवा सही मायनों में पवित्र है, उसके जैसा पवित्र और कोई नहीं। इसलिए उसे “परमपवित्र” कहा गया है। (नीतिवचन 9:10; 30:3) प्राचीन इस्राएल में, महायाजक अपनी पगड़ी पर सोने की एक पट्टिका पहनता था, जिस पर ये शब्द खुदे हुए थे: “पवित्रता यहोवा की है।” (NW) (निर्गमन 28:36, 37) बाइबल बताती है कि स्वर्ग में, यहोवा के सिंहासन के चारों तरफ खड़े करूब और साराप यह ऐलान करते हैं: “यहोवा पवित्र, पवित्र, पवित्र है।” (यशायाह 6:2, 3; प्रकाशितवाक्य 4:6-8) यहोवा को तीन बार पवित्र कहना, इस बात पर ज़ोर देता है कि वह सर्वोत्तम रूप से पवित्र, स्वच्छ और शुद्ध है। दरअसल, वही पवित्रता का स्रोत है।
3 यहोवा का नाम भी पवित्र है। भजनहार ने कहा: “वे तेरे महान और भययोग्य नाम का धन्यवाद करें! वह तो पवित्र है!” (भजन 99:3) यीशु ने हमें यह प्रार्थना करना सिखाया: “हे हमारे पिता, तू जो स्वर्ग में है; तेरा नाम पवित्र माना जाए।” (मत्ती 6:9) यीशु की माँ, मरियम ने कहा: “मेरा प्राण प्रभु की बड़ाई करता है। . . . उस शक्तिमान ने मेरे लिये बड़े बड़े काम किए हैं, और उसका नाम पवित्र है।” (लूका 1:46, 49) यहोवा के सेवक होने के नाते, हम भी उसके नाम को पवित्र मानते हैं और ऐसा कोई भी काम नहीं करते, जिससे उसके पवित्र नाम पर कलंक लगे। इसके अलावा, यहोवा जिन चीज़ों को पवित्र मानता है, उन्हें हम भी पवित्र मानते हैं। इस तरह हम पवित्रता के बारे में यहोवा का नज़रिया रखते हैं।—आमोस 5:14, 15.
हम क्यों यीशु के लिए गहरा आदर दिखाते हैं
4. बाइबल यीशु को “पवित्र जन” क्यों कहती है?
4 पवित्र परमेश्वर यहोवा का ‘एकलौता’ बेटा होने के नाते, यीशु को पवित्र सिरजा गया था। (यूहन्ना 1:14; कुलुस्सियों 1:15; इब्रानियों 1:1-3) इसलिए उसे “परमेश्वर का पवित्र जन” कहा गया है। (यूहन्ना 6:69) वह तब भी पवित्र बना रहा जब स्वर्ग से उसके जीवन को मरियम के गर्भ में डाला गया। मगर यह कैसे मुमकिन हुआ? पवित्र आत्मा की शक्ति से। यही बात यीशु के जन्म से पहले एक स्वर्गदूत ने मरियम से कही थी: ‘पवित्र आत्मा आप पर उतरेगा। इसलिए जो आप से उत्पन्न होगा, वह पवित्र होगा और ईश्वर का पुत्र कहलायेगा।’ (लूका 1:35, बुल्के बाइबिल) कई सालों बाद, यरूशलेम के मसीहियों ने जब यहोवा से प्रार्थना की, तो उन्होंने दो बार परमेश्वर के बेटे को ‘तेरा पवित्र सेवक यीशु’ कहा।—प्रेरितों 4:27, 30, NHT.
5. यीशु धरती पर कौन-सा पवित्र काम करने के लिए आया था, और उसका लहू क्यों बहुमूल्य है?
5 यीशु धरती पर एक पवित्र काम करने के लिए आया था। सामान्य युग 29 में अपने बपतिस्मे के वक्त, उसका अभिषेक हुआ और वह यहोवा के महान आत्मिक मंदिर का महायाजक बना। (लूका 3:21, 22; इब्रानियों 7:26; 8:1, 2) इसके अलावा, उसे अपनी जान की कुरबानी भी देनी थी। उसके बहाए लहू से छुड़ौती की कीमत अदा होती जिससे पापी इंसानों के लिए उद्धार पाना मुमकिन होता। (मत्ती 20:28; इब्रानियों 9:14) इसलिए हम यीशु के लहू को पवित्र और “बहुमूल्य” मानते हैं।—1 पतरस 1:19.
6. मसीह यीशु की तरफ हम कैसा रवैया दिखाते हैं, और क्यों?
6 हम अपने राजा और महायाजक, यीशु मसीह का गहरा आदर करते हैं। इस बात को समझाने के लिए प्रेरित पौलुस ने लिखा: “परमेश्वर ने [अपने बेटे को] अति महान भी किया, और उसको वह नाम दिया जो सब नामों में श्रेष्ठ है। कि जो स्वर्ग में और पृथ्वी पर और जो पृथ्वी के नीचे हैं; वे सब यीशु के नाम पर घुटना टेकें। और परमेश्वर पिता की महिमा के लिये हर एक जीभ अंगीकार कर ले कि यीशु मसीह ही प्रभु है।” (फिलिप्पियों 2:9-11) जी हाँ, जब हम खुशी-खुशी अपने अगुवे, राजा और मसीही कलीसिया के मुखिया, यीशु मसीह के अधीन रहते हैं, तो हम दिखाते हैं कि पवित्र चीज़ों के बारे में हम यहोवा का नज़रिया रखते हैं।—मत्ती 23:10; कुलुस्सियों 1:18.
7. हम मसीह को अधीनता कैसे दिखाते हैं?
7 मसीह के अधीन रहने का मतलब यह भी है कि हम उन पुरुषों के लिए सही आदर दिखाएँ जिन्हें वह अपने काम की अगुवाई करने के लिए इस्तेमाल करता है। हमें यह समझने की ज़रूरत है कि शासी निकाय में आत्मा से अभिषिक्त सदस्यों की ज़िम्मेदारी पवित्र है और वे जिन अध्यक्षों को शाखा दफ्तरों, ज़िलाओं, सर्किटों और कलीसियाओं में सेवा करने के लिए चुनते हैं, उनकी भी ज़िम्मेदारी पवित्र है। इसलिए यह ज़रूरी है कि हम इस इंतज़ाम के लिए गहरा आदर दिखाएँ और उसके अधीन रहें।—इब्रानियों 13:7, 17.
पवित्र लोग
8, 9. (क) इस्राएली किस मायने में पवित्र लोग थे? (ख) यहोवा ने इस्राएलियों के दिलो-दिमाग में पवित्रता का सिद्धांत कैसे बिठाया?
8 यहोवा ने इस्राएल जाति के साथ एक वाचा बाँधी। इस वाचा की बदौलत, इस नयी जाति को एक खास ओहदा मिला। उन्हें बाकी जातियों से पवित्र या अलग ठहराया गया। यहोवा ने खुद उनसे कहा: “तुम मेरे लिये पवित्र बने रहना; क्योंकि मैं यहोवा स्वयं पवित्र हूं, और मैं ने तुम को और देशों के लोगों से इसलिये अलग किया है कि तुम निरन्तर मेरे ही बने रहो।”—लैव्यव्यवस्था 19:2; 20:26.
9 यहोवा ने शुरू से ही इस नयी जाति के लोगों के दिलो-दिमाग में पवित्रता का सिद्धांत बिठा दिया था। वह कैसे? यहोवा ने उन्हें सीनै पर्वत को छूने से मना किया था, जिस पर उसने मूसा को दस नियम दिए थे और जो उस वक्त पवित्र माना जाता था। और अगर कोई इस आज्ञा को तोड़ता तो उसे उसी वक्त मौत दी जाती थी। (निर्गमन 19:12, 23) इसके अलावा, याजकवर्ग, निवासस्थान और उसकी सजावट की चीज़ों को भी पवित्र समझा जाना था। (निर्गमन 30:26-30) आज मसीही कलीसिया के बारे में क्या कहा जा सकता है?
10, 11. ऐसा क्यों कहा जा सकता है कि अभिषिक्त जनों से बनी मसीही कलीसिया पवित्र है, और ‘अन्य भेड़’ के लोग इस बात को किस नज़र से देखते हैं?
10 यहोवा की नज़र में अभिषिक्त जनों से बनी मसीही कलीसिया पवित्र है। (1 कुरिन्थियों 1:2) दरअसल, किसी भी वक्त धरती पर जीनेवाले अभिषिक्त मसीहियों के पूरे समूह को एक पवित्र मंदिर कहा जाता है। मगर यह मंदिर, यहोवा के महान आत्मिक मंदिर से अलग है। अपनी पवित्र आत्मा के ज़रिए यहोवा, अभिषिक्त मसीहियों के मंदिर में निवास करता है। प्रेरित पौलुस ने लिखा: “[मसीह यीशु] में सारी रचना एक साथ मिलकर प्रभु में एक पवित्र मन्दिर बनती जाती है। जिस में तुम भी आत्मा के द्वारा परमेश्वर का निवासस्थान होने के लिये एक साथ बनाए जाते हो।”—इफिसियों 2:21, 22; 1 पतरस 2:5, 9.
11 पौलुस ने अभिषिक्त मसीहियों को आगे लिखा: “क्या तुम नहीं जानते, कि तुम परमेश्वर का मन्दिर हो, और परमेश्वर का आत्मा तुम में बास करता है? . . . परमेश्वर का मन्दिर पवित्र है, और वह तुम हो।” (1 कुरिन्थियों 3:16, 17) अपनी आत्मा के ज़रिए यहोवा, अभिषिक्त मसीहियों में ‘बसता’ और ‘उन में चलता फिरता’ है। (2 कुरिन्थियों 6:16) वह लगातार अपने विश्वासयोग्य “दास” को राह दिखाता है। (मत्ती 24:45-47) इस “मंदिर” वर्ग के साथ संगति करने का सम्मान, ‘अन्य भेड़’ के लोगों को दिलो-जान से प्यारी है।—यूहन्ना 10:16, NW; मत्ती 25:37-40.
हमारी मसीही ज़िंदगी में पवित्र चीज़ें
12. हम अपनी ज़िंदगी में किन चीज़ों को पवित्र मानते हैं, और क्यों?
12 यह कोई ताज्जुब की बात नहीं कि मसीही कलीसिया के अभिषिक्त जनों और उनके साथियों की ज़िंदगी से जुड़ी बहुत-सी चीज़ों को पवित्र माना जाता है। उनमें से एक है, यहोवा के साथ हमारा रिश्ता। (1 इतिहास 28:9; भजन 36:7) यह रिश्ता हमें इतना अज़ीज़ है कि हम किसी भी चीज़ या इंसान को यहोवा और हमारे रिश्ते के बीच आने नहीं देते। (2 इतिहास 15:2; याकूब 4:7, 8) इस अटूट रिश्ते को बनाए रखने के लिए प्रार्थना एक अहम भूमिका निभाती है। भविष्यवक्ता दानिय्येल, रोज़ बिना नागा प्रार्थना किया करता था और यह उसके लिए इतनी पवित्र थी कि उसने तब भी प्रार्थना करना नहीं छोड़ा जब उसकी जान पर बन आयी थी। (दानिय्येल 6:7-11) ‘पवित्र लोगों [या अभिषिक्त मसीहियों] की प्रार्थनाओं’ को मंदिर में उपासना के लिए इस्तेमाल होनेवाले धूप के समान बताया गया है। (प्रकाशितवाक्य 5:8; 8:3, 4; लैव्यव्यवस्था 16:12, 13) यह तुलना दिखाती है कि प्रार्थना कितनी पवित्र है। वाकई, पूरे जहान के मालिक और महाराजाधिराज से बात करना क्या ही सम्मान की बात है! इसलिए हम प्रार्थना को पवित्र मानते हैं!
13. कौन-सी शक्ति पवित्र है, और हमें क्या करना चाहिए जिससे यह शक्ति हमारी ज़िंदगी में काम करती रहे?
13 अभिषिक्त मसीहियों और उनके साथियों की ज़िंदगी में एक शक्ति काम करती है, जिसे वे बहुत पवित्र मानते हैं। वह है, पवित्र आत्मा। यह आत्मा यहोवा की सक्रिय शक्ति है। यह हमेशा पवित्र परमेश्वर की मरज़ी के मुताबिक काम करती है, इसलिए इसे “पवित्र आत्मा” या “पवित्रता की आत्मा” कहना बिलकुल सही है। (यूहन्ना 14:26; रोमियों 1:4) इस पवित्र आत्मा के ज़रिए, यहोवा अपने सेवकों को सुसमाचार सुनाने की ताकत देता है। (प्रेरितों 1:8; 4:31) यहोवा अपनी आत्मा “उन्हें [देता] है, जो उस की आज्ञा मानते” और “आत्मा के अनुसार चल[ते]” हैं, ना कि उन्हें जो शरीर की लालसाओं को पूरा करने में लगे रहते हैं। (प्रेरितों 5:32; गलतियों 5:16, 25; रोमियों 8:5-8) इस ज़बरदस्त शक्ति से मसीही अपने अंदर ‘आत्मा के फल,’ यानी बढ़िया गुण पैदा कर पाते हैं। यह शक्ति उन्हें ‘पवित्र चालचलन रखने और भक्ति’ के काम करने के लिए भी उकसाती है। (गलतियों 5:22, 23; 2 पतरस 3:11) अगर हम पवित्र आत्मा को पावन मानते हैं, तो हम ऐसा कोई भी काम नहीं करेंगे जिससे यह शोकित हो जाए, या हमारी ज़िंदगी में काम करना बंद कर दे।—इफिसियों 4:30.
14. अभिषिक्त मसीही किस सम्मान को पवित्र मानते हैं, और अन्य भेड़ के लोग कैसे इस सम्मान के भागीदार हैं?
14 इसके अलावा, हमें पवित्र परमेश्वर, यहोवा के नाम की गवाही देने और उसके साक्षी होने का जो सम्मान मिला है, उसे भी हम पवित्र मानते हैं। (यशायाह 43:10-12, 15) यहोवा ने अभिषिक्त मसीहियों को “नई वाचा के सेवक होने” के लिए योग्य ठहराया है। (2 कुरिन्थियों 3:5, 6) सेवक होने के नाते, उन्हें ‘राज्य का सुसमाचार’ सुनाने और “सब जातियों के लोगों को चेला बना[ने]” का काम दिया गया है। (मत्ती 24:14; 28:19, 20) अभिषिक्त मसीही पूरी वफादारी से इस काम को पूरा कर रहे हैं। नतीजा, भेड़ सरीखे लाखों लोग उनके संदेश को कबूल कर रहे हैं और उनसे मानो कह रहे हैं: “हम तुम्हारे संग चलेंगे, क्योंकि हम ने सुना है कि परमेश्वर तुम्हारे साथ है।” (जकर्याह 8:23) ये नम्र लोग, आध्यात्मिक मायने में “हरवाहे और दाख की बारी के माली” बनकर ‘हमारे परमेश्वर के अभिषिक्त सेवकों’ की खातिर खुशी-खुशी सेवा करते हैं। इस तरह, अन्य भेड़ के लोग, दुनिया-भर में प्रचार का काम पूरा करने में अभिषिक्त मसीहियों की बहुत मदद करते हैं।—यशायाह 61:5, 6.
15. प्रेरित पौलुस ने किस काम को पवित्र माना था, और यही नज़रिया हम भी क्यों रखते हैं?
15 प्रेरित पौलुस एक ऐसी मिसाल है, जिसने अपने प्रचार के काम को पवित्र माना था। उसने अपने बारे में कहा: “मैं अन्यजातियों के लिये मसीह यीशु का सेवक होकर परमेश्वर के सुसमाचार की सेवा याजक की नाईं [“सुसमाचार की पवित्र सेवा,” NW] करूं।” (रोमियों 15:16) कुरिन्थुस के मसीहियों को लिखी अपनी पत्री में उसने अपनी सेवा को “खज़ाना” कहा। (2 कुरिन्थियों 4:1, 7, किताब-ए-मुकद्दस) हम प्रचार काम के ज़रिए, लोगों को “परमेश्वर का पवित्र वचन” सुनाते हैं। (1 पतरस 4:11, NW) इसलिए चाहे हम अभिषिक्त मसीहियों में से हों या अन्य भेड़ के लोगों में से, हम गवाही देने के इस काम को एक पवित्र सम्मान मानते हैं।
‘परमेश्वर का भय रखते हुए पवित्रता को सिद्ध करना’
16. क्या बात हमारी मदद करेगी ताकि हम उन लोगों की तरह न बनें जो ‘पवित्र चीज़ों की कदर नहीं करते’?
16 प्रेरित पौलुस ने अपने मसीही भाइयों को खबरदार किया था कि वे उन लोगों की तरह न बनें जो ‘पवित्र चीज़ों की कदर नहीं करते।’ (NW) इसके बजाय, उसने उन्हें “पवित्रता के खोजी” होने की सलाह दी। और यह भी कहा: “ध्यान से देखते रहो, ऐसा न हो, कि . . . कोई कड़वी जड़ फूटकर कष्ट दे, और उसके द्वारा बहुत से लोग अशुद्ध हो जाएं।” (इब्रानियों 12:14-16) शब्द “कड़वी जड़,” मसीही कलीसिया के उन गिने-चुने लोगों के लिए इस्तेमाल किया गया है, जो यहोवा के काम करने के तरीके में नुक्स निकालते हैं। मिसाल के लिए, वे यहोवा के इस नज़रिए से सहमत न हों कि शादी एक पवित्र बंधन है या एक इंसान को नैतिक रूप से शुद्ध रहना चाहिए। (1 थिस्सलुनीकियों 4:3-7; इब्रानियों 13:4) या फिर वे “अशुद्ध बकवाद” फैलाने में हिस्सा लें, जिनका बढ़ावा ऐसे लोग देते हैं जो “सत्य से भटक गए हैं।”—2 तीमुथियुस 2:16-18.
17. पवित्रता के बारे में यहोवा का नज़रिया बनाए रखने के लिए अभिषिक्त मसीहियों को क्यों लगातार मेहनत करनी चाहिए?
17 पौलुस ने अपने अभिषिक्त भाइयों को लिखा: “हे प्यारो . . . आओ, हम अपने आप को शरीर और आत्मा की सब मलिनता से शुद्ध करें, और परमेश्वर का भय रखते हुए पवित्रता को सिद्ध करें।” (2 कुरिन्थियों 7:1) यह आयत दिखाती है कि “स्वर्गीय बुलाहट में भागी,” अभिषिक्त मसीहियों को लगातार मेहनत करनी चाहिए, ताकि ज़िंदगी के हर दायरे में वे साबित कर सकें कि वे पवित्रता के बारे में यहोवा का नज़रिया रखते हैं। (इब्रानियों 3:1) उसी तरह, प्रेरित पतरस ने आत्मा से अभिषिक्त अपने भाइयों को उकसाया: “आज्ञाकारी बालकों की नाईं अपनी अज्ञानता के समय की पुरानी अभिलाषाओं के सदृश न बनो। पर जैसा तुम्हारा बुलानेवाला पवित्र है, वैसे ही तुम भी अपने सारे चालचलन में पवित्र बनो।”—1 पतरस 1:14, 15.
18, 19. (क) “बड़ी भीड़” के लोग कैसे दिखाते हैं कि वे पवित्र चीज़ों के बारे में यहोवा का नज़रिया रखते हैं? (ख) अगले लेख में मसीही ज़िंदगी से जुड़े कौन-से पवित्र पहलू पर चर्चा की जाएगी?
18 “बड़ी भीड़” के लोगों के बारे में क्या, जो आगे चलकर “बड़े क्लेश” से ज़िंदा बच निकलेंगे? उन्हें भी साबित करना होगा कि वे पवित्र चीज़ों के बारे में यहोवा का नज़रिया रखते हैं। प्रकाशितवाक्य की किताब कहती है कि वे यहोवा के आत्मिक मंदिर के आँगन में, यानी धरती पर उसकी “पवित्र सेवा” (NW) कर रहे हैं। उन्होंने मसीह के छुड़ौती बलिदान पर विश्वास किया है, यानी लाक्षणिक भाषा में कहें तो उन्होंने “अपने अपने वस्त्र मेम्ने के लोहू में धोकर श्वेत किए हैं।” (प्रकाशितवाक्य 7:9, 14, 15) ऐसा करके वे यहोवा के सामने शुद्ध ठहर सकते हैं। साथ ही, उनकी यह ज़िम्मेदारी बन जाती है कि वे “अपने आप को शरीर और आत्मा की सब मलिनता से शुद्ध करें, और परमेश्वर का भय रखते हुए पवित्रता को सिद्ध करें।”
19 अभिषिक्त मसीहियों और उनके साथियों की ज़िंदगी का एक अहम पहलू है, यहोवा की उपासना और उसके वचन का अध्ययन करने के लिए लगातार इकट्ठा होना। यहोवा अपने लोगों की इन सभाओं को पवित्र समझता है। अगले लेख में चर्चा की जाएगी कि इस अहम पहलू के बारे में हम यहोवा का नज़रिया कैसे रख सकते हैं, और क्यों? (w06 11/01)
दोहराने के लिए
• यहोवा के सेवक दुनिया का कौन-सा नज़रिया नहीं अपनाते हैं?
• यहोवा को ही पवित्रता का स्रोत क्यों कहा जाता है?
• हम कैसे दिखाते हैं कि हम मसीह की पवित्रता का आदर करते हैं?
• हमें अपनी ज़िंदगी में किन चीज़ों को पवित्र मानना चाहिए?
[पेज 25 पर तसवीर]
प्रचीन इस्राएल में, याजकवर्ग, निवासस्थान और उसकी सजावट की चीज़ों को पवित्र समझा जाना था
[पेज 27 पर तसवीरें]
प्रार्थना और प्रचार का काम हमारे लिए पवित्र सम्मान हैं