मसीही ज़िंदगी और सेवा सभा पुस्तिका के लिए हवाले
5-11 फरवरी
पाएँ बाइबल का खज़ाना | मत्ती 12-13
“गेहूँ और जंगली पौधों की मिसाल”
“देखो! मैं हमेशा तुम्हारे साथ हूँ”
2 इस मिसाल में बतायी घटनाएँ दिखाती हैं कि यीशु कब और कैसे इंसानों में से गेहूँ वर्ग को, यानी अभिषिक्त मसीहियों के पूरे समूह को इकट्ठा करेगा, जो उसके साथ स्वर्ग में राज करेंगे। यीशु ने गेहूँ के ये बीज ईसवी सन् 33 के पिन्तेकुस्त के दिन बोने शुरू किए। इस गेहूँ वर्ग का इकट्ठा किया जाना तब खत्म होगा, जब इस दुनिया की व्यवस्था के अंत के वक्त इस धरती पर बचे अभिषिक्त जनों पर आखिरी मुहर लगा दी जाएगी और आगे चलकर उन्हें स्वर्ग में उठा लिया जाएगा। (मत्ती 24:31; प्रका. 7:1-4) गेहूँ और जंगली पौधों की यह मिसाल हमें उन घटनाओं को और भी अच्छी तरह समझने में मदद देती है, जो करीब 2,000 साल के दौरान पूरी होतीं। आज हमें राज से जुड़ी किन घटनाओं के पूरा होने की समझ मिली है? यह मिसाल बीज बोने, बीज के बढ़ने और उनकी कटाई के समय के बारे में बताती है। इस लेख में खास तौर पर कटाई के समय के बारे में चर्चा की जाएगी।
यीशु की निगरानी में
3 ईसवी सन् दूसरी सदी की शुरूआत में, खेत में ‘जंगली पौधे दिखायी देने लगे,’ यानी इस दुनिया में नकली मसीही नज़र आने लगे। (मत्ती 13:26) चौथी सदी के आते-आते, इन नकली मसीहियों की गिनती अभिषिक्त मसीहियों से ज़्यादा हो गयी। याद कीजिए कि मिसाल में, दासों ने अपने मालिक से जंगली पौधों को उखाड़ने की इजाज़त माँगी। (मत्ती 13:28) मालिक ने उन्हें क्या जवाब दिया?
“देखो! मैं हमेशा तुम्हारे साथ हूँ”
4 गेहूँ और जंगली पौधों के बारे में मालिक ने, यानी यीशु ने कहा: “कटाई के वक्त तक दोनों को साथ-साथ बढ़ने दो।” यह आज्ञा दिखाती है कि पहली सदी से आज तक, इस धरती पर हमेशा कुछ गेहूँ-समान अभिषिक्त मसीही रहे हैं। यह इस बात से भी साबित होता है, जो यीशु ने बाद में अपने चेलों से कही थी: “मैं दुनिया की व्यवस्था के आखिरी वक्त तक हमेशा तुम्हारे साथ हूँ।” (मत्ती 28:20) इसका मतलब है कि यीशु अंत आने से पहले तक हमेशा अभिषिक्त मसीहियों की हिफाज़त करता। लेकिन क्योंकि जंगली पौधे समान नकली मसीहियों की गिनती ज़्यादा हो गयी थी, इसलिए हम पक्के तौर पर नहीं कह सकते कि उस लंबे समय के दौरान गेहूँ वर्ग का हिस्सा कौन थे। मगर कटाई का समय शुरू होने से करीब 40 साल पहले, गेहूँ वर्ग के सदस्यों को पहचानना दोबारा मुमकिन हो गया। यह कैसे हुआ?
“देखो! मैं हमेशा तुम्हारे साथ हूँ”
10 पहली, जंगली दाने के पौधे उखाड़ना। यीशु ने कहा: “कटाई के दिनों में मैं काटनेवालों से कहूँगा, पहले जंगली दाने के पौधे उखाड़ लो और उन्हें . . . गट्ठरों में बाँध दो।” सन् 1914 के बाद, स्वर्गदूतों ने जंगली दाने के पौधे ‘उखाड़ने’ शुरू कर दिए, यानी नकली मसीहियों को अभिषिक्त ‘राज के बेटों’ से अलग करने का काम शुरू किया।—मत्ती 13:30, 38, 41.
11 जैसे-जैसे जंगली दाने के पौधों को उखाड़ने का काम आगे बढ़ता गया, दोनों समूहों के बीच का अंतर और भी साफ होने लगा। (प्रका. 18:1, 4) सन् 1919 के आते-आते, यह बात साफ हो गयी कि महानगरी बैबिलोन गिर चुकी है, क्योंकि अब सच्चे मसीही उसके चंगुल से आज़ाद हो चुके थे। सच्चे मसीहियों को खास तौर से किस बात ने नकली मसीहियों से अलग साबित किया? प्रचार काम ने। ‘बाइबल विद्यार्थियों’ के बीच अगुवाई करनेवालों ने इस बात पर ज़ोर देना शुरू किया कि मंडली के हरेक सदस्य को राज का प्रचार करना चाहिए। उदाहरण के लिए, सन् 1919 में प्रकाशित पुस्तिका टू हूम द वर्क इज़ एनट्रस्टेड (जिन्हें यह काम सौंपा गया है) में सभी अभिषिक्त मसीहियों को घर-घर जाकर प्रचार करने के लिए उकसाया गया था। इसमें लिखा था: “यह काम बहुत बड़ा है, मगर यह काम प्रभु का है इसलिए हम उसकी मदद से इसे ज़रूर पूरा कर सकेंगे। और आपको इस काम में हिस्सा लेने का सम्मान मिला है।” इसका क्या नतीजा हुआ? सन् 1922 की प्रहरीदुर्ग बताती है कि उस समय से ‘बाइबल विद्यार्थियों’ ने प्रचार काम करने की अपनी रफ्तार तेज़ कर दी। कुछ ही समय में, घर-घर का प्रचार करना उन वफादार मसीहियों की पहचान बन गया और आज भी वफादार मसीहियों की यही पहचान है।
12 दूसरी घटना है, गेहूँ को जमा करना। यीशु ने अपने स्वर्गदूतों को आज्ञा दी थी: “जाकर . . . गेहूँ को मेरे गोदाम में जमा करो।” (मत्ती 13:30) अभिषिक्त जनों को सन् 1919 से शुद्ध की गयी मसीही मंडली में इकट्ठा किया जा रहा है। जो अभिषिक्त मसीही दुनिया की व्यवस्था के अंत के वक्त इस धरती पर रह जाएँगे, उन्हें आखिरी बार तब इकट्ठा किया जाएगा जब वे स्वर्ग में अपना इनाम पाएँगे।—दानि. 7:18, 22, 27.
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अ.बाइ. मत 12:20 अध्ययन नोट
टिमटिमाती बाती: आम-तौर पर घरों में मिट्टी के दीए होते थे। इनमें जैतून का तेल डाला जाता था और इनकी बाती अलसी के सन से बनी होती थी। “टिमटिमाती बाती” के लिए जो यूनानी शब्द इस्तेमाल किए गए हैं उनका मतलब एक ऐसी बाती हो सकती है जो बस बुझनेवाली है या बुझ गयी है, लेकिन उसमें से अब भी धुआँ निकल रहा है। यश 42:3 में यीशु की करुणा के बारे में भविष्यवाणी की गयी है और बताया गया है कि वह दीन और कुचले हुए लोगों में उम्मीद की जो आखिरी लौ जल रही है, उसे नहीं बुझाएगा।
क्या आप जानते थे?
क्या पुराने ज़माने में वाकई ऐसा होता था कि एक आदमी दूसरे आदमी के खेत में जंगली बीज बो देता था?
मत्ती 13:24-26 में यीशु ने कहा, “स्वर्ग का राज एक ऐसे आदमी की तरह है, जिसने अपने खेत में बढ़िया बीज बोया। लेकिन जब लोग रात को सो रहे थे, तो उसका दुश्मन आया और गेहूँ के बीच जंगली पौधे के बीज बोकर चला गया। जब पौधे बड़े हुए और उनमें बालें आयीं, तो जंगली पौधे भी दिखायी देने लगे।” कुछ लेखकों ने इस उदाहरण की सच्चाई पर सवाल उठाया है कि क्या वाकई ऐसा होता था। लेकिन पुराने ज़माने के रोम के कानूनी लेखों से पता चलता है कि ऐसा सचमुच होता था।
एक बाइबल शब्दकोश बताता है कि रोमी कानून के तहत, किसी से बदला लेने के लिए उसके खेत में जंगली बीज बोना एक जुर्म था। इस बारे में एक कानून का होना दिखाता है कि ऐसी घटनाएँ होती थीं। कानून के एक विद्वान एलस्टर कैर समझाते हैं कि ईसवी सन् 533 में रोमी सम्राट जस्टीनियन ने डाइजेस्ट नाम की एक किताब निकाली। इस किताब में रोमी कानून का सारांश और ईसवी सन् 100 से 250 के दौरान जीनेवाले कानून के जानकारों के हवाले दिए गए थे। डाइजेस्ट के मुताबिक, कानून के एक जानकार उलप्यान ने दूसरी सदी के एक मामले का ज़िक्र किया, जिसमें एक आदमी के खेत में जंगली बीज बो दिए गए थे और इस वजह से उसकी सारी फसल बरबाद हो गयी। डाइजेस्ट में यह भी बताया गया कि ऐसे में एक किसान किस तरह अपराधी पर मुकदमा करके उससे मुआवज़ा ले सकता था ताकि उसके नुकसान की भरपाई हो सके।
रोमी साम्राज्य में ऐसी घटनाएँ होती थीं। यह दिखाता है कि यीशु का उदाहरण सच्ची घटना पर आधारित था।
12-18 फरवरी
पाएँ बाइबल का खज़ाना | मत्ती 14-15
“थोड़े-से आदमियों के हाथों बहुतों को खिलाने का प्रबंध”
थोड़े-से लोगों के हाथों, बहुतों को खिलाना
2 भीड़ को देखकर यीशु तड़प उठता है। इसलिए वह भीड़ में मौजूद बीमार लोगों को चंगा करता है और लोगों को परमेश्वर के राज के बारे में बहुत-सी बातें सिखाता है। जब काफी देर होने लगती है तो यीशु के चेले उससे कहते हैं कि वह भीड़ से कहे कि वे आस-पास के गाँवों में जाकर अपने लिए कुछ खाना खरीद लें। मगर यीशु अपने चेलों से कहता है: “तुम्हीं उन्हें कुछ खाने को दो।” यीशु के ये शब्द सुनकर वे शायद हैरान रह गए हों, क्योंकि खाने के नाम पर चेलों के पास बस पाँच रोटियाँ और दो छोटी मछलियाँ ही हैं!
थोड़े-से लोगों के हाथों, बहुतों को खिलाना
3 करुणा से भरकर यीशु एक चमत्कार करता है। यही एक ऐसा चमत्कार है, जिसे खुशखबरी की किताबों के चारों लेखकों ने दर्ज़ किया है। (मर. 6:35-44; लूका 9:10-17; यूह. 6:1-13) यीशु चेलों से कहता है कि लोग हरी घास पर पचास-पचास और सौ-सौ की टोलियों में बैठ जाएँ। फिर प्रार्थना में धन्यवाद देकर वह सबके लिए रोटियाँ तोड़ने और मछलियाँ बाँटने लगता है। इसके बाद, लोगों को खुद खाना देने के बजाय, यीशु रोटियाँ और मछलियाँ ‘चेलों में बाँट देता है, और चेले उन्हें भीड़ में बाँट देते हैं।’ सबको पेट-भर खाना मिलता है! ज़रा सोचिए: यीशु थोड़े-से लोगों के हाथों, सिर्फ अपने चेलों के हाथों, हज़ारों को खाना खिलाता है।
अ.बाइ. मत 14:21 अध्ययन नोट
उनके अलावा औरतें और बच्चे भी थे: इस चमत्कार के बारे में बताते समय सिर्फ मत्ती ने औरतों और बच्चों का ज़िक्र किया। मुमकिन है कि चमत्कार से जिन लोगों को खाना खिलाया गया उनकी गिनती 15,000 से ज़्यादा रही होगी।
थोड़े-से लोगों के हाथों, बहुतों को खिलाना
ज़रा इस दृश्य की कल्पना कीजिए। (मत्ती 14:14-21 पढ़िए।) यह ईसवी सन् 32 के फसह के त्योहार से बस कुछ ही वक्त पहले की बात है। एक भीड़ जमा है जिसमें करीब 5,000 पुरुष और उनके अलावा स्त्रियाँ और छोटे बच्चे हैं। ये लोग यीशु और उसके चेलों के साथ गलील सागर के उत्तरी तट पर बसे बैतसैदा गाँव के पास एक सुनसान इलाके में इकट्ठा हैं।
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अ.बाइ. मत 15:7 अध्ययन नोट
कपटियो: यूनानी शब्द हिपोक्रिटस पहले यूनान के (और बाद में रोम के) रंगमंच के अभिनेताओं के लिए इस्तेमाल होता था। ये अभिनेता ऐसे बड़े-बड़े मुखौटे पहनते थे जिससे उनकी आवाज़ दूर तक सुनायी दे। आगे चलकर यह शब्द उन लोगों के लिए इस्तेमाल होने लगा जो अपने असली इरादे या अपनी शख्सियत छिपाने के लिए ढोंग या दिखावा करते हैं। यहाँ यीशु ने यहूदी धर्म गुरुओं को “कपटी” कहा।—मत 6:5, 16.
अ.बाइ. मत 15:26 अध्ययन नोट
बच्चों . . . पिल्लों: मूसा के कानून के मुताबिक ‘कुत्तों’ को अशुद्ध माना जाता था, इसलिए बाइबल में अकसर यह शब्द नैतिक तौर से गिरे हुए लोगों के लिए इस्तेमाल हुआ है। (लैव 11:27; मत 7:6; फिल 3:2, फु.; प्रक 22:15) लेकिन मरकुस (7:27) और मत्ती ने जब यीशु की यह बातचीत लिखी तो उन्होंने कुत्तों के लिए अल्पार्थक संज्ञा इस्तेमाल की, जिसका मतलब है “पिल्ला” या “घर का कुत्ता।” इस तरह तुलना करने से किसी को ठेस नहीं पहुँचती। शायद इसका मतलब यह है कि यीशु ने वह शब्द इस्तेमाल किया जो गैर-यहूदी अपने पालतू जानवरों को प्यार से बुलाने के लिए करते थे। यीशु इसराएलियों की तुलना “बच्चों” से और गैर-यहूदियों की तुलना “पिल्लों” से करके शायद यह बताना चाहता था कि पहले किन लोगों पर ध्यान दिया जाना चाहिए। जब एक घर में बच्चे और कुत्ते दोनों होते हैं, तो पहले बच्चों को खाना खिलाया जाता है।
19-25 फरवरी
पाएँ बाइबल का खज़ाना | मत्ती 16-17
आपकी सोच किसके जैसी है?
पतियो—मसीह के मुखियापन को कबूल कीजिए और उसके जैसे बनिए
17 एक दूसरे मौके पर, यीशु ने अपने प्रेरितों को समझाया कि उसका यरूशलेम जाना ज़रूरी है जहाँ उसे “पुरनियों और महायाजकों और शास्त्रियों के हा[थों]” ज़ुल्म सहने पड़ेंगे, फिर उसे ‘मार डाला जाएगा और तीसरे दिन वह जी उठेगा।’ तब पतरस, यीशु को एक तरफ ले गया और उसे झिड़कने लगा: “हे प्रभु, परमेश्वर न करे [“अपने साथ इतनी ज़्यादती न कर,” NW]; तुझ पर ऐसा कभी न होगा।” ज़ाहिर है कि पतरस ने अपने जज़्बातों में बहकर यह बात कही थी। इसलिए उसे ताड़ना की ज़रूरत थी। तभी यीशु ने उसे फटकारा: “हे शैतान, मेरे साम्हने से दूर हो: तू मेरे लिये ठोकर का कारण है; क्योंकि तू परमेश्वर की बातें नहीं, पर मनुष्यों की बातों पर मन लगाता है।”—मत्ती 16:21-23.
चौकन्ने रहिए—शैतान आपको निगल जाना चाहता है!
16 शैतान, यहोवा के जोशीले सेवकों को भी धोखा दे सकता है। उदाहरण के लिए, गौर कीजिए कि जब यीशु ने अपने चेलों से कहा कि उसे मार डाला जाएगा, तो क्या हुआ। प्रेषित पतरस उसे अलग ले गया और उससे कहा, “प्रभु, खुद पर दया कर; तेरे साथ ऐसा नहीं होगा।” बेशक, पतरस का इरादा नेक था। फिर भी यीशु ने उससे कड़े शब्दों में कहा, “अरे शैतान, मेरे सामने से दूर हो जा!” (मत्ती 16:22, 23) यीशु ने पतरस को “शैतान” क्यों कहा? यीशु जानता था कि उसके साथ क्या होनेवाला है। अब वह घड़ी आ गयी थी कि वह अपनी जान देकर फिरौती बलिदान दे और शैतान को झूठा साबित करे। पूरे इंसानी इतिहास में यह सबसे मुश्किल घड़ी थी। यह वक्त यीशु के लिए “खुद पर दया” करने का नहीं था। इस नाज़ुक वक्त में अगर यीशु हथियार डाल देता, तो वही होता जो शैतान उससे करवाना चाहता था।
17 जैसे-जैसे इस दुनिया का अंत करीब आ रहा है, हमारे लिए भी वक्त बहुत मुश्किल होता जा रहा है। शैतान चाहता है कि हम अपने हथियार डाल दें, हम “खुद पर दया” करें यानी इस दुनिया में आराम की ज़िंदगी जीएँ। वह चाहता है कि हम भूल जाएँ कि हम आखिरी दिनों में जी रहे हैं और हम चौकस रहना छोड़ दें। मगर अपने साथ ऐसा मत होने दीजिए! इसके बजाय, ‘जागते रहिए।’ (मत्ती 24:42) शैतान हमें इस धोखे में रखना चाहता है कि इस दुनिया का अंत अभी बहुत दूर है, या ऐसा कभी होगा ही नहीं। इस झूठ पर कभी यकीन मत कीजिए।
‘जाकर लोगों को चेला बनाओ और उन्हें बपतिस्मा दो’
9 यीशु के नक्शेकदम पर चलते हुए परमेश्वर की मरज़ी पूरी करने में क्या शामिल है? यीशु ने अपने चेलों को बताया था: “यदि कोई मेरे पीछे आना चाहे, तो अपने आप का इन्कार करे और अपना क्रूस उठाए, और मेरे पीछे हो ले।” (मत्ती 16:24) इस आयत में यीशु ने साफ-साफ बताया है कि हमें तीन काम करने की ज़रूरत है। पहला, हमें खुद से “इन्कार” करना होगा। दूसरे शब्दों में, अपने स्वार्थ और अपनी पापी इच्छाओं को ठुकराना होगा और यहोवा की सलाह और उसके निर्देशों को मानना होगा। दूसरा, हमें “अपना क्रूस” यानी यातना स्तंभ उठाना होगा। यीशु के ज़माने में यातना स्तंभ को बेइज़्ज़ती और ज़ुल्म सहने की निशानी माना जाता था। यातना स्तंभ उठाने का मतलब है, इस बात को कबूल करना कि मसीही होने के नाते खुशखबरी की खातिर हमें कभी-कभी मुश्किलें सहनी पड़ सकती हैं। (2 तीमुथियुस 1:8) लेकिन दुनिया चाहे हमारी खिल्ली उड़ाए या हमारी निंदा करे, मगर हम मसीह की तरह ‘लज्जा की कुछ चिन्ता नहीं करते,’ क्योंकि हम जानते हैं कि ये सारे ज़ुल्म सहकर हम परमेश्वर को खुश कर रहे हैं। (इब्रानियों 12:2) तीसरा, हमें यीशु के ‘पीछे हो लेना’ है, यानी लगातार उसके नक्शेकदम पर चलना है।—भजन 73:26; 119:44; 145:2.
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अ.बाइ. मत 16:18 अध्ययन नोट
तू पतरस है। और इस चट्टान पर: यूनानी शब्द पेट्रोस पुल्लिंग है और इसका मतलब है, “चट्टान का टुकड़ा; पत्थर।” यहाँ यह एक नाम (पतरस) के रूप में इस्तेमाल हुआ है जो यीशु ने शमौन को दिया था। (यूह 1:42) यूनानी शब्द पेट्रा स्त्रीलिंग है और उसका अनुवाद “चट्टान” किया गया है। इसका मतलब मिट्टी के नीचे चट्टान, या एक खड़ी चट्टान या फिर एक विशाल चट्टान हो सकता है। यह शब्द मत 7:24, 25; 27:60; लूक 6:48; 8:6; रोम 9:33; 1कुर 10:4; 1पत 2:8 में भी आता है। ज़ाहिर है कि पतरस ने खुद को वह चट्टान नहीं समझा जिस पर यीशु अपनी मंडली खड़ी करता। उसने 1पत 2:4-8 में लिखा कि यीशु ही ‘नींव में डाला जानेवाला कोने का पत्थर है,’ जिसके बारे में बरसों पहले भविष्यवाणी की गयी थी और जिसे खुद परमेश्वर ने चुना था। उसी तरह प्रेषित पौलुस ने यीशु को “नींव” और ‘परमेश्वर की चट्टान’ कहा। (1कुर 3:11; 10:4) इसलिए ज़ाहिर है कि यहाँ यीशु के कहने का मतलब था, ‘मैंने तुझे पतरस यानी चट्टान का टुकड़ा कहा और तूने मसीह यानी “इस चट्टान” को सही तरह से पहचाना जो मसीही मंडली की नींव बनेगी।’
मंडली: यूनानी शब्द एकलीसीया यहाँ पहली बार आया है। यह दो यूनानी शब्दों से मिलकर बना है, पहला है एक जिसका मतलब है “बाहर” और दूसरा है कलीयो जिसका मतलब है “बुलाना।” इसलिए एकलीसीया का मतलब है, ऐसे लोगों का समूह जिन्हें किसी खास मकसद या काम के लिए बुलाया या इकट्ठा किया गया है। (शब्दावली देखें।) इस संदर्भ में यीशु ने भविष्यवाणी की कि आगे चलकर मसीही मंडली की शुरूआत होगी जो अभिषिक्त मसीहियों से मिलकर बनेगी। उनके बारे में कहा गया है कि वे “जीवित पत्थर” हैं और “पवित्र शक्ति से एक भवन के रूप में [उनका] निर्माण किया जा रहा है।” (1पत 2:4, 5) सेप्टुआजेंट में शब्द एकलीसीया उस इब्रानी शब्द के लिए बहुत बार इस्तेमाल हुआ है जिसका अनुवाद “मंडली” किया गया है और जो अकसर परमेश्वर के लोगों के पूरे राष्ट्र के लिए इस्तेमाल हुआ है। (व्य 23:3; 31:30) जिन इसराएलियों को मिस्र से बाहर बुलाया या छुड़ाया गया था उन्हें प्रेष 7:38 में “मंडली” कहा गया है। उसी तरह, जिन मसीहियों को ‘अंधकार से निकालकर रौशनी में बुलाया’ गया और “दुनिया से चुन लिया” गया है, उनसे ‘परमेश्वर की मंडली’ बनी है।—1पत 2:9; यूह 15:19; 1कुर 1:2.
अ.बाइ. मत 16:19 अध्ययन नोट
स्वर्ग के राज की चाबियाँ: बाइबल में जिन लोगों को सचमुच की या लाक्षणिक चाबियाँ दी गयीं, उन्हें कुछ अधिकार दिए गए थे। (1इत 9:26, 27; यश 22:20-22) इसलिए शब्द “चाबी” अधिकार और ज़िम्मेदारी की निशानी बन गया। पतरस को जो चाबियाँ दी गयी थीं उनका उसने यहूदियों (प्रेष 2:22-41), सामरियों (8:14-17) और गैर-यहूदियों (10:34-38) के लिए इस्तेमाल किया ताकि वे परमेश्वर की पवित्र शक्ति पा सकें और स्वर्ग के राज में दाखिल हो सकें।
26 फरवरी–4 मार्च
पाएँ बाइबल का खज़ाना | मत्ती 18-19
“ध्यान रखिए कि न खुद ठोकर खाएँ, न दूसरों को ठोकर खिलाएँ”
अ.बाइ. मत 18:6, 7 अध्ययन नोट
चक्की का वह पाट . . . जिसे गधा घुमाता है: या “बड़ी चक्की का पाट।” शा., “गधे का चक्की का पाट।” चक्की के इस पाट का व्यास शायद 4-5 फुट (1.2-1.5 मी.) होता था। यह इतना भारी होता था कि इसे घुमाने का काम गधे से करवाया जाता था।
राह में बाधाएँ: या “ठोकर के पत्थर।” माना जाता है कि इनके यूनानी शब्द स्कानडेलॉन का मूल मतलब था, एक फंदा। कुछ लोगों का मानना है कि इस फंदे में एक छड़ी लगी होती थी जिसमें चारा लगाया जाता था। इसलिए यह शब्द ऐसी बाधा के लिए इस्तेमाल होने लगा जिससे कोई ठोकर खाकर गिर सकता था। लाक्षणिक तौर पर इसका मतलब है, ऐसा कोई काम या ऐसे हालात जिनमें फँसकर एक इंसान गलत रास्ता अपना सकता है, या नैतिक तौर पर ठोकर खा सकता है, या पाप कर सकता है। इसी शब्द से जुड़ी यूनानी क्रिया स्कानडेलाइज़ो का अनुवाद मत 18:8, 9 में ‘पाप करवाता है’ (फु. में “ठोकर खिलाता है”) किया गया है। इस क्रिया का अनुवाद यह भी किया जा सकता है, “फंदा बन जाता है।”
अ.बाइ. मत 18:6 तसवीर
चक्की का पाट
चक्की के पाट से अनाज पीसा जाता था और जैतून के फलों को पीसकर तेल निकाला जाता था। छोटे चक्की के पाटों को हाथ से घुमा लिया जाता था, लेकिन जो पाट बहुत बड़े होते थे, उन्हें घुमाने के लिए जानवर काम में लगाए जाते थे। पलिश्तियों ने शिमशोन से जो चक्की पिसवायी थी, उसके पाट शायद बहुत बड़े थे। हो सकता है कि वे यहाँ तसवीर में दिखाए पाट जैसे रहे होंगे। (न्या 16:21) जानवरों की मदद से चलानेवाले चक्की के पाट न सिर्फ इसराएल देश में, बल्कि रोमी साम्राज्य के बहुत-से इलाकों में आम थे।
चक्की का ऊपरवाला और नीचेवाला पाट
तसवीर में जिस तरह के बड़े चक्की के पाट दिखाए गए हैं, उन्हें घुमाने के लिए गधे जैसे पालतू जानवरों को लगाया जाता था। इन पाटों से अनाज या जैतून के फल पीसे जाते थे। चक्की के ऊपरवाले पाट का व्यास शायद 5 फुट (1.5 मी.) चौड़ा होता था और उसे नीचेवाले पाट में रखकर घुमाया जाता था, जो उससे भी बड़ा होता था।
अ.बाइ. मत 18:9 अध्ययन नोट
गेहन्ना: यह इब्रानी शब्दों गेह हिन्नोम से निकला है जिनका मतलब है, “हिन्नोम घाटी।” यह घाटी प्राचीन यरूशलेम के पश्चिम और दक्षिण में थी। (अति. ख12, “यरूशलेम और उसके आस-पास का इलाका” नक्शा देखें।) यीशु के दिनों तक यह घाटी कूड़ा-करकट जलाने की जगह बन गयी थी। इसलिए हमेशा का विनाश बताने के लिए “गेहन्ना” शब्द एकदम सही था।
अ.बाइ. मत 18:9 शब्दावली
गेहन्ना
हिन्नोम घाटी का यूनानी नाम। यह घाटी प्राचीन यरूशलेम के दक्षिण-पश्चिम की तरफ थी। (यिर्म 7:31) भविष्यवाणियों में इसे ऐसी जगह बताया गया था जहाँ लाशें फेंकी जातीं। (यिर्म 7:32; 19:6) इस बात का कोई सबूत नहीं कि गेहन्ना में जानवरों और इंसानों को फेंका जाता था ताकि उन्हें ज़िंदा जलाया या तड़पाया जाए। इसलिए गेहन्ना ऐसी अनदेखी जगह नहीं हो सकता, जहाँ इंसानों को मरने के बाद हमेशा-हमेशा के लिए सचमुच की आग में तड़पाया जाता है। इसके बजाय, जब यीशु और उसके चेलों ने गेहन्ना की बात की तो उनका मतलब था, “दूसरी मौत” यानी हमेशा का विनाश।—प्रक 20:14; मत 5:22; 10:28.
अ.बाइ. मत 18:10 अध्ययन नोट
मेरे पिता के सामने मौजूद रहते हैं: शा., “मेरे पिता का मुँह देखते हैं।” स्वर्गदूत परमेश्वर के सामने मौजूद रहते हैं, इसलिए सिर्फ वे ही उसका मुँह देख सकते हैं।—निर्ग 33:20.
स्वर्गदूतों का हमारी ज़िंदगी पर क्या असर होता है?
यीशु ने खुलासा किया कि स्वर्गदूतों को परमेश्वर के सेवकों की मदद करने की ज़िम्मेदारी दी गयी है, ताकि इन सेवकों का परमेश्वर के साथ मज़बूत रिश्ता बना रहे। इसलिए जब यीशु ने अपने चेलों को चिताया कि वे दूसरों के लिए ठोकर का कारण न बनें, तो उसने कहा, “ध्यान रहे कि तुम इन छोटों में से किसी को भी तुच्छ न समझो; इसलिए कि मैं तुमसे कहता हूँ कि स्वर्ग में इनके स्वर्गदूत हमेशा मेरे स्वर्गीय पिता के मुख के सामने रहते हैं।” (मत्ती 18:10) यीशु के कहने का मतलब यह नहीं था कि उसके हरेक चेले की हिफाज़त के लिए एक खास स्वर्गदूत ठहराया गया है। मगर हाँ, यीशु की कही बात दिखाती है कि स्वर्गदूत परमेश्वर के साथ-साथ काम करते हैं और उन्हें मसीही मंडली के हर सदस्य की फिक्र है।
ढूँढ़ें अनमोल रत्न
अ.बाइ. मत 18:22 अध्ययन नोट
77 बार: शा., “सात बार के सत्तर गुने तक।” इनके यूनानी शब्द का मतलब या तो “70 और 7” (77 बार) हो सकता है, या “70 गुना 7” (490 बार)। सेप्टुआजेंट में यही शब्द उत 4:24 में उस इब्रानी शब्द के लिए इस्तेमाल हुए हैं, जिनका अनुवाद “77 गुना” किया गया है। इससे पता चलता है कि यहाँ “77 बार” कहना सही है। इन शब्दों को जैसे भी समझा जाए, दो बार 7 के आने का मतलब है, “सदा” या “असीमित।” जब यीशु ने पतरस से कहा कि वह 7 बार नहीं बल्कि 77 बार माफ करे, तो वह अपने चेलों को सिखा रहा था कि वे माफ करने के मामले में कोई हद न ठहराएँ। लेकिन बैबिलोनी तलमूद (योमा 86ख) में कहा गया है, “अगर कोई पहली बार, दूसरी बार या तीसरी बार गलती करे तो उसे माफ कर दिया जाए, लेकिन चौथी बार माफ न किया जाए।”
अ.बाइ. मत 19:7 अध्ययन नोट
तलाकनामा: कानून में एक नियम था कि अगर कोई आदमी अपनी पत्नी को तलाक देना चाहता है, तो उसे कानूनी दस्तावेज़ तैयार करना था और शायद उसे मुखियाओं से सलाह लेनी थी। इस तरह यह नियम उसे इस गंभीर फैसले पर दोबारा सोचने का काफी वक्त देता था। ज़ाहिर है कि यह नियम इसराएलियों को जल्दबाज़ी में तलाक लेने से रोकता था और औरतों के हक की हिफाज़त करता था। (व्य 24:1) मगर यीशु के दिनों में धर्म गुरुओं ने छोटी-मोटी बातों पर तलाक देने की छूट दे दी थी। पहली सदी के इतिहासकार जोसीफस ने, जो खुद एक तलाकशुदा फरीसी था, कहा कि तलाक “किसी भी वजह से दिया जा सकता है (और आदमियों के पास तलाक देने की कई वजह हैं)।”
अ.बाइ. मत 19:7 तसवीर
तलाकनामा
अरामी भाषा में लिखा यह तलाकनामा ईसवी सन् 71 या 72 का है। यह तलाकनामा यहूदिया के वीराने में एक सूखी नदी के तल में मिला था, जो वादी मुरब्बात के उत्तर की तरफ है। इसमें लिखा है कि यहूदियों के विद्रोह के छठे साल में मसाडा शहर के रहनेवाले नकसन के बेटे यूसुफ ने मिरियम को तलाक दे दिया, जो योनातान की बेटी थी।