मसीही ज़िंदगी और सेवा सभा पुस्तिका के लिए हवाले
© 2023 Watch Tower Bible and Tract Society of Pennsylvania
6-12 नवंबर
पाएँ बाइबल का खज़ाना | अय्यूब 13-14
“अगर एक इंसान मर जाए, तो क्या वह फिर ज़िंदा हो सकता है?”
लंबी ज़िंदगी की तलाश
आज से 3,500 साल पहले यह बात कही गई थी और आज भी बहुत-से लोग मानते हैं कि इंसान की ज़िंदगी बस पल-दो-पल की है। इंसान को यह दुःख हमेशा कचोटता रहता है कि उसने जवानी के चंद लम्हे बिताए ही थे कि बुढ़ापे ने उसे आ घेरा और अब वह मौत के मुँह में जा रहा है। इसलिए पुराने ज़माने से ही इंसान ने ज़िंदगी को बढ़ाने की लाखों कोशिशें की हैं।
अय्यूब के ज़माने में मिस्र देश के लोग दोबारा जवान होने के लिए जानवरों के लैंगिक अंग खाया करते थे मगर उनकी उम्मीद पूरी नहीं हुई। मध्य युगों के दौरान विज्ञान का एक खास लक्ष्य था, एक ऐसा अमृत तैयार करना जिसे पीने पर इंसान की उम्र लंबी हो जाए। कई वैज्ञानिक मानते थे कि नकली सोने से अमर ज़िंदगी हासिल हो सकती है और सोने की थालियों में भोजन करनेवाले ज़्यादा साल जी सकते हैं। पुराने ज़माने में चीन के दाओ धर्म के गुरू मानते थे कि मनन-ध्यान के ज़रिए, सांस-साधने के ज़रिए और कुछ तरह के खान-पान के ज़रिए वे इंसान के शरीर की अंदरूनी रचना में फेर-बदल करके उन्हें अमर बना सकते हैं।
स्पेन के एक खोजकर्ता, योआन पॉन्ट्स दे लीऑन ने ऐसा अमृत खोज निकालने की कोशिश की जिसे पीने से लोग दोबारा जवान हो जाएँ लेकिन वह नाकाम रहा। अठारहवीं सदी के एक डॉक्टर ने अपनी किताब, हरमिप्पस रेडिविवस में कहा कि वंसत ऋतु के समय अगर जवान कुँवारियों को एक छोटे-से कमरे में बंद करके उनके मुँह से निकलनेवाली साँस को बोतलों में भर दिया जाए और फिर उसे पिया जाए तो उम्र लंबी हो सकती है। कहने की ज़रूरत नहीं कि उम्र बढ़ाने की ये सारी तरकीबें नाकाम रहीं।
क्या एक कटा हुआ पेड़ फिर से बढ़ सकता है?
इसमें कोई दो राय नहीं कि लेबनान का देवदार पेड़ देखने में बहुत सुंदर लगता है। इसकी तुलना में जैतून का पेड़ उतना सुंदर नहीं लगता। क्योंकि यह झुका हुआ और टेढ़ा-मेढ़ा-सा होता है। मगर इस पेड़ की एक खासियत है, वह यह कि मुश्किल-से-मुश्किल हालात में भी यह पेड़ ज़िंदा रह सकता है। कुछ जैतून के पेड़ तो 1,000 साल पुराने हैं। इस पेड़ की जड़ें ज़मीन के नीचे गहराई तक जाती हैं। इसलिए अगर पेड़ का तना ऊपर से काट भी दिया जाए तो वह पेड़ फिर से बढ़ सकता है। जब तक उसकी जड़े हैं वह दोबारा बढ़ेगा।
वफादार सेवक अय्यूब को इस बात का पक्का यकीन था कि अगर उसकी मौत हो जाए तो वह फिर से ज़िंदा किया जाएगा। (अय्यू. 14:13-15) उसने अपना यकीन ज़ाहिर करने के लिए एक पेड़ की मिसाल दी। हो सकता है यह जैतून का पेड़ हो। अय्यूब ने कहा, “वृक्ष की तो आशा रहती है कि चाहे वह काट डाला भी जाए, तौभी फिर पनपेगा और उस से नर्म नर्म डालियां निकलती ही रहेंगी। चाहे उसकी जड़ भूमि में पुरानी भी हो जाए, और उसका ठूंठ मिट्टी में सूख भी जाए, तौभी वर्षा की गन्ध पाकर वह फिर पनपेगा, और पौधे की नाईं उस से शाखाएं फूटेंगी।”—अय्यू. 14:7-9.
तुझे अपने “काम की अभिलाषा होती” है
अय्यूब के शब्द दिखाते हैं कि यहोवा के दिल में इंसानों के लिए कितना प्यार है: वह उन लोगों को अपने दिल के करीब रखता है जो अय्यूब की तरह खुद को उसके हाथों में सौंप देते हैं, यानी जो चाहते हैं कि यहोवा उन्हें ढालकर ऐसा बना दे कि वे उसकी नज़रों में अनमोल हो जाएँ। (यशायाह 64:8) यहोवा अपने वफादार उपासकों को बहुत खास समझता है। उसे अपने उन सच्चे सेवकों के लिए “अभिलाषा होती” है, जिनकी मौत हो चुकी है। अभिलाषा के लिए इब्रानी में जो शब्द इस्तेमाल किया गया है, एक विद्वान के मुताबिक वह “दिल की सबसे गहरी इच्छा को ज़ाहिर करता है।” जी हाँ, यहोवा अपने उपासकों को सिर्फ याद ही नहीं रखता, बल्कि उन्हें फिर से ज़िंदा करने के लिए बेताब है।
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इंसाइट-1 पेज 191
राख
शब्द “राख” यह बताने के लिए भी इस्तेमाल किया जाता था कि किसी चीज़ या व्यक्ति की ज़्यादा अहमियत नहीं है या वह बेकार है। उदाहरण के लिए, अब्राहम ने नम्र होकर यहोवा परमेश्वर से कहा, “मैं तो बस मिट्टी और राख हूँ।” (उत 18:27. यश 44:20; अय 30:19 भी देखें।) और अय्यूब ने अपने झूठे दोस्तों से कहा कि उनके नीतिवचन “राख जैसे भुरभुरे हैं।”—अय 13:12.
13-19 नवंबर
पाएँ बाइबल का खज़ाना | अय्यूब 15-17
“एलीपज की तरह दूसरों की हिम्मत मत तोड़िए”
गलत सोच का विरोध कीजिए!
अपने तीनों भाषणों में एलीपज ने यह विचार पेश किया कि परमेश्वर जल्लाद है और उसके सेवक चाहे जितना भी जतन कर लें, वे कभी उसे खुश नहीं कर पाएँगे। एलीपज ने अय्यूब से कहा: “देख, वह अपने सेवकों पर भरोसा नहीं रखता, और अपने स्वर्गदूतों को मूर्ख ठहराता है।” (अय्यूब 4:18) उसने परमेश्वर के बारे में बाद में कहा: “वह अपने पवित्रों पर भी विश्वास नहीं करता, और स्वर्ग भी उसकी दृष्टि में निर्मल नहीं है।” (अय्यूब 15:15) उसने पूछा: “क्या तेरे धर्मी होने से सर्वशक्तिमान सुख पा सकता है?” (अय्यूब 22:3) एलीपज के इस विचार से बिलदद भी सहमत था, तभी उसने कहा: “देख, [परमेश्वर की] दृष्टि में चन्द्रमा भी अन्धेरा ठहरता, और तारे भी निर्मल नहीं ठहरते।”—अय्यूब 25:5.
हमें खबरदार रहना होगा कि कहीं हम इस तरह की सोच रखने न लगें। वरना हमें यह लगेगा कि परमेश्वर हमसे हद-से-ज़्यादा की माँग करता है। ऐसी सोच यहोवा के साथ हमारे रिश्ते को खतरे में डाल सकती है। इसके अलावा, ज़रा सोचिए अगर हम ऐसी सोच को अपना लेते हैं तो अनुशासन मिलने पर हम कैसा रवैया दिखाएँगे? हम नम्रता से अनुशासन कबूल करने के बजाय शायद मन-ही-मन “यहोवा से चिढ़ने” लगें और उसके लिए अपने दिल में नाराज़गी पालें। (नीतिवचन 19:3) इससे परमेश्वर के साथ हमारा रिश्ता टूट सकता है!
यीशु की तरह नम्रता और कोमलता दिखाइए
16 हमारे कोमल शब्द। हमारी कोमल भावनाएँ हमें उभारती हैं कि “जो मायूस हैं, उन्हें [हम] अपनी बातों से तसल्ली” दें। (1 थिस्स. 5:14) हम उनका हौसला बढ़ाने के लिए क्या कह सकते हैं? हम उन्हें बता सकते हैं कि हमें उनकी कितनी परवाह है। हम उनकी सच्चे दिल से तारीफ कर सकते हैं और इस तरह उन्हें यह देखने में मदद दे सकते हैं कि उनमें क्या-क्या गुण और खूबियाँ हैं। हम उन्हें याद दिला सकते हैं कि अगर यहोवा ने उन्हें सच्चाई ढूँढ़ने में मदद दी है, तो बेशक वे उसकी नज़र में बहुत अनमोल होंगे। (यूह. 6:44) हम उन्हें इस बात का यकीन दिला सकते हैं कि यहोवा अपने उन सेवकों की बहुत परवाह करता है, जो ‘टूटे मनवाले’ या ‘पिसे हुए’ हैं। (भज. 34:18) हमारे कोमल शब्द उन लोगों को ताज़गी पहुँचा सकते हैं, जिन्हें दिलासे की ज़रूरत है।—नीति. 16:24.
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अय्यूब किताब की झलकियाँ
7:9, 10; 10:21; 16:22—क्या ये वचन इस बात का इशारा करते हैं कि अय्यूब को पुनरुत्थान की आशा पर विश्वास नहीं था? जी नहीं, ऐसा बिलकुल नहीं था। इन आयतों में अय्यूब यह कह रहा था कि उसकी ज़िंदगी में आगे क्या होनेवाला है। तो फिर उसके कहने का क्या मतलब था? एक तो यह हो सकता है कि उसकी मौत के बाद उसके ज़माने का कोई भी इंसान उसे देख नहीं पाएगा। उनकी नज़र में, अय्यूब अपने घर तब तक लौटकर नहीं आएगा, न ही उसका कोई वजूद रहेगा जब तक कि उसके लिए परमेश्वर का ठहराया समय नहीं आ जाता। अय्यूब के कहने का यह भी मतलब हो सकता है कि कोई भी इंसान मरने के बाद, खुद-ब-खुद शिओल से वापस नहीं आ सकता। उसे भविष्य में होनेवाले पुनरुत्थान पर पूरा विश्वास था, यह अय्यूब 14:13-15 से साफ दिखायी देता है।
20-26 नवंबर
पाएँ बाइबल का खज़ाना | अय्यूब 18-19
“अपने भाई-बहनों का साथ कभी मत छोड़िए”
यीशु के आँसू भी बहुत कुछ सिखा गए!
9 आप शोक मनानेवालों को सहारा दे सकते हैं। यीशु न सिर्फ मारथा और मरियम के साथ रोया, बल्कि उसने उनकी सुनी और उनसे प्यार से बात की, उनकी हिम्मत बँधायी। हम भी शोक मनानेवालों को सहारा दे सकते हैं। ऑस्ट्रेलिया में रहनेवाला डैन नाम का प्राचीन बताता है, “जब मेरी पत्नी की मौत हुई, तो मुझे सहारे की बहुत ज़रूरत थी। कई भाई और उनकी पत्नियाँ सुबह-शाम मुझसे मिलने आते थे और मेरी ध्यान से सुनते थे। उन्होंने मुझे रोने से नहीं रोका, न ही मुझे रोता देखकर उन्हें अजीब लगा। कई बार जब मुझसे घर के काम नहीं हो पाते थे, तो वे मेरी मदद करते थे। जैसे, वे मेरी गाड़ी धोते थे, खरीदारी करते थे और मेरे लिए खाना बनाते थे। वे मेरे साथ बार-बार प्रार्थना करते थे। वे मेरे सच्चे दोस्त थे और ‘मुसीबत की घड़ी में भाई बन गए थे।’”—नीति. 17:17.
जब हमारा कोई अपना यहोवा को छोड़ देता है
16 बहिष्कृत व्यक्ति के परिवारवालों की मदद करते रहिए। कई बार देखा गया है कि मंडली के भाई-बहन बहिष्कृत व्यक्ति के साथ-साथ उसके परिवारवालों से भी बातचीत करना बंद कर देते हैं। हमें ऐसा नहीं करना चाहिए। इस वक्त उन्हें हमारे प्यार और हौसले की सबसे ज़्यादा ज़रूरत है। (इब्रा. 10:24, 25) खास तौर पर उन बच्चों को, जिनकी मम्मी या पापा ने सच्चाई छोड़ दी है। हमें उनका हौसला बढ़ाना चाहिए और उनकी तारीफ करनी चाहिए। जब मारिया के पति का बहिष्कार हुआ और उसने अपने बीवी-बच्चों को छोड़ दिया, तब मारिया को भाई-बहनों से बहुत मदद मिली। वह कहती है, “कुछ भाई-बहन घर आकर हमारे लिए खाना पकाते थे और बच्चों का अध्ययन कराने में मेरी मदद करते थे। वे मेरी तकलीफ समझते थे और मेरे साथ रोते थे। जब लोग मेरे बारे में झूठी बातें फैलाते थे, तो वे मेरी तरफ से बोलते थे। सच में, उन्होंने मेरा बहुत हौसला बढ़ाया।”—रोमि. 12:13, 15.
क्या आप प्रयत्न कर रहें हैं?
20 प्राचीनों के समूह को यह समझना चाहिए कि पद से हटाया जाना एक भूतपूर्व अध्यक्ष या सेवकाई सेवक में दबाव उत्पन्न कर सकता है, तब भी जब वह अपना विशेषाधिकार स्वेच्छा से त्याग देता है। अगर उसे बहिष्कार नहीं किया गया और प्राचीन यह देख रहे हैं कि वह भाई दुःखी है, उन्हें प्रेममय आध्यात्मिक सहायता प्रदान करनी चाहिए। (1 थिस्सलुनीकियों 5:14) उसे यह समझने में उन्हें मदद देनी चाहिए कि मण्डली में उसकी ज़रूरत है। तब भी जब सलाह की ज़रूरत हुई है, अधिक समय बीतने से पहले ही एक नम्र और कृतज्ञपूर्ण पुरुष दोबारा मण्डली में सेवकाई के विशेषाधिकार प्राप्त करेगा।
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प्र94 10/1 पेज 32, अँग्रेज़ी
अच्छी बातें कहिए, दूसरों का हौसला बढ़ाइए
अय्यूब एक मुश्किल दौर से गुज़र रहा था और उसे हौसले की सख्त ज़रूरत थी। पर उसके दोस्तों ने उसे हौसला देने के बजाय उस पर कई इलज़ाम लगाए। उन्होंने कहा कि उसने ज़रूर कुछ बुरा किया होगा, इसलिए उस पर मुसीबत आयी है। (अय्यूब 4:8) इंटरप्रेटर्स बाइबल किताब में लिखा है, “अय्यूब चाहता था कि कोई उसे समझे, दिल से उसकी परवाह करे। पर जैसा वह चाहता था वैसा नहीं हुआ। इसके बजाय उसे धर्म की बातें सुनायी गयीं और नैतिकता का पाठ पढ़ाया गया। यह सब अपने आप में सही था, पर उस वक्त उसके लिए कोई फायदे का नहीं था।” अय्यूब अपने दोस्तों की बातें सुनकर इतना दुखी हो गया कि उसने कहा, “तुम कब तक मेरी जान खाते रहोगे? अपने शब्दों से मुझे कुचलते रहोगे?”—अय्यूब 19:2.
हमें कभी-भी भाई-बहनों से बिना सोचे-समझे बात नहीं करनी चाहिए और न ही उनसे कड़वी बातें कहनी चाहिए, जिससे वे दुखी होकर परमेश्वर की दोहाई देने लगें। (व्यवस्थाविवरण 24:15 से तुलना करें।) बाइबल में एक चेतावनी दी गयी है, “ज़िंदगी और मौत ज़बान के बस में है, एक इंसान जैसी बातें करना पसंद करता है, उसे वैसा ही फल मिलता है।”—नीतिवचन 18:21.
27 नवंबर–3 दिसंबर
पाएँ बाइबल का खज़ाना | अय्यूब 20-21
“नेकी का अमीरी-गरीबी से कोई लेना-देना नहीं”
क्या आप “परमेश्वर की दृष्टि में धनी” हैं?
12 लूका 12:21 में दर्ज़ यीशु की बात दिखाती है कि परमेश्वर की दृष्टि में धनी होना, अपने लिए धन बटोरने या अमीर बनने के उलट है। इस तरह, उसने ज़ाहिर किया कि हमें अपनी ज़िंदगी में धन-दौलत कमाने या ऐशो-आराम की चीज़ों का मज़ा लूटने को ज़्यादा अहमियत नहीं देनी चाहिए। इसके बजाय, हमें अपने साधनों का इस्तेमाल इस तरह से करना चाहिए जिससे कि यहोवा के साथ हमारा रिश्ता मज़बूत हो। नतीजा, हम परमेश्वर की दृष्टि में धनी होंगे। यह हम इतने पक्के यकीन के साथ कैसे कह सकते हैं? अगर हम परमेश्वर के साथ एक मज़बूत रिश्ता बनाए रखेंगे, तो वह हम पर आशीषों की बौछार करेगा। और बाइबल कहती है: “प्रभु [यहोवा] की आशीष से मनुष्य धनवान बनता है, प्रभु धन के साथ उसको दुःख नहीं देता।”—नीतिवचन 10:22, नयी हिन्दी बाइबिल।
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शैतान और उसके कार्यों पर विजयी होना
19 यह दिलचस्पी की बात है कि परमेश्वर के सेवक अय्यूब को उन “अशान्त विचारों” से संघर्ष करना पड़ा जो शैतान ने एलीपज और सोपर के द्वारा व्यक्त किए। (अय्यूब 4:13-18, NHT; 20:2, 3) अतः अय्यूब ने “पीड़ा” सही, जिसके कारण उसके मन को पीड़ित कर रहे “आतंक” के बारे में उसने “उतावली” में बातें कीं। (अय्यूब 6:2-4, NHT; 30:15, 16) एलीहू ने चुपचाप अय्यूब की बात सुनी और निष्कपटता से उसे बातों के बारे में यहोवा का सर्व-बुद्धिमान दृष्टिकोण देखने में मदद दी। उसी तरह आज, सहानुभूतिपूर्ण प्राचीन पीड़ित जनों पर और “बोझ” न डालने के द्वारा दिखाते हैं कि वे उनकी परवाह करते हैं। बल्कि, एलीहू की तरह, वे धैर्य से उनकी बात सुनते हैं और फिर परमेश्वर के वचन का शामक तेल लगाते हैं। (अय्यूब 33:1-3, 7; याकूब 5:13-15) अतः जिस किसी की भावनाएँ असली या काल्पनिक सदमों के कारण परेशान हैं, या जो अय्यूब की तरह “स्वप्नों . . . और दर्शनों से भयभीत” है, कलीसिया के अन्दर शामक शास्त्रीय सांत्वना पा सकता है।—अय्यूब 7:14; याकूब 4:7.
4-10 दिसंबर
पाएँ बाइबल का खज़ाना | अय्यूब 22-24
“परमेश्वर की नज़र में इंसान का क्या मोल?”
गलत सोच का विरोध कीजिए!
परमेश्वर बहुत कठोर है, इस विचार से मिलता-जुलता एक और विचार यह है कि वह हम इंसानों को बिलकुल बेकार समझता है। एलीपज अपने तीसरे भाषण में यह सवाल करता है: “क्या पुरुष से ईश्वर को लाभ पहुंच सकता है? जो बुद्धिमान है, वह अपने ही लाभ का कारण होता है।” (अय्यूब 22:2) एलीपज के कहने का मतलब था कि परमेश्वर की नज़र में इंसान किसी लायक नहीं है। उसी तरह बिलदद ने यह दलील पेश की: “मनुष्य ईश्वर की दृष्टि में धर्मी क्योंकर ठहर सकता है? और जो स्त्री से उत्पन्न हुआ है वह क्योंकर निर्मल हो सकता है?” (अय्यूब 25:4) उनके कहने का यह मतलब था कि एक मामूली-सा इंसान अय्यूब, परमेश्वर की नज़रों में धर्मी ठहरने की सोच भी कैसे सकता था?
निराश करनेवाली भावनाएँ आज कुछ लोगों को आ घेरती हैं। इसके लिए कई बातें ज़िम्मेदार हो सकती हैं जैसे, उनकी परवरिश, ज़िंदगी के तनाव, या जाति-भेद का शिकार होना। इसके अलावा, शैतान और उसकी दुष्टात्माएँ भी इंसान के आत्म-सम्मान को कुचलने की कोशिश करती हैं, क्योंकि ऐसा करने में उन्हें मज़ा आता है। अगर वे किसी इंसान को यकीन दिला दें कि सर्वशक्तिमान परमेश्वर को खुश करना नामुमकिन है, तो वह निराश होकर बड़ी आसानी से हार मान सकता है। देखते-ही-देखते ऐसा इंसान सच्चाई से बहक सकता है, और यह भी हो सकता है कि वह अपने आपको जीवित परमेश्वर से दूर कर ले।—इब्रानियों 2:1; 3:12.
ढलती उम्र और खराब सेहत की वजह से हम राज्य की सेवा में शायद उतना न कर पाएँ जितना हम अपनी जवानी में करते थे। यह समझना हमारे लिए बेहद ज़रूरी है कि शैतान और उसकी दुष्टात्माएँ हमें यह महसूस कराना चाहती हैं कि हम यहोवा की सेवा में जो भी करते हैं, उससे वह खुश नहीं होता। हमें इस तरह की सोच का विरोध करना चाहिए।
समस्याओं के निपटारे के लिए एक सबक़
अय्यूब के तीन साथियों ने ईश्वरीय बुद्धि के बजाय व्यक्तिगत विचार व्यक्त करने के द्वारा अय्यूब को और हताश कर दिया। एलीपज इतना कहने की हद तक गया कि ‘परमेश्वर अपने सेवकों पर भरोसा नहीं रखता’ और कि यहोवा को इसकी परवाह नहीं थी कि अय्यूब धर्मी है या नहीं। (अय्यूब 4:18; 22:2, 3) इससे और ज़्यादा निरुत्साहित करनेवाली—या ज़्यादा झूठी—टिप्पणी की कल्पना करना मुश्किल है! इसमें आश्चर्य नहीं कि यहोवा ने बाद में एलीपज और उसके साथियों को इस ईशनिन्दा के लिए फटकारा। ‘तुम लोगों ने मेरे विषय में ठीक बात नहीं कही,’ उसने कहा। (अय्यूब 42:7) लेकिन सबसे ज़्यादा चोट पहुँचानेवाला दावा अब भी आना बाक़ी था।
जवान, जो यहोवा का मन आनंदित करते हैं
10 बाइबल के इस वृत्तांत से पता चलता है कि शैतान न सिर्फ अय्यूब की बल्कि यहोवा के सभी सेवकों की वफादारी पर उँगली उठाता है। जी हाँ, आपकी वफादारी पर भी। दरअसल शैतान ने सभी इंसानों पर यह आरोप लगाते हुए यहोवा से कहा: “प्राण के बदले [सिर्फ अय्यूब ही नहीं, कोई भी] मनुष्य अपना सब कुछ दे देता है।” (अय्यूब 2:4) तो क्या आप समझ पा रहे हैं कि इस अहम वाद-विषय में आपकी क्या भूमिका है? जैसा कि नीतिवचन 27:11 से ज़ाहिर होता है, यहोवा कह रहा है कि आप उसे ज़रूर कुछ दे सकते हैं। और वह है, एक ऐसा आधार ताकि यहोवा निंदा करनेवाले शैतान को उत्तर दे सके। ज़रा सोचिए, इस सारे जहान का महाराजा, दुनिया के सबसे बड़े वाद-विषय का जवाब देने में आपका साथ माँग रहा है। तो आप पर क्या ही अनोखी और बड़ी ज़िम्मेदारी है! यहोवा जो आपसे माँग रहा है, क्या आप वह दे सकते हैं? अय्यूब ने दिया। (अय्यूब 2:9, 10) यीशु ने भी दिया और सदियों से अनगिनत लोगों ने जिसमें नौजवान भी शामिल थे, दिया है। (फिलिप्पियों 2:8; प्रकाशितवाक्य 6:9) आप भी दे सकते हैं। लेकिन इस गलतफहमी में मत रहिए कि आप निष्पक्ष रहकर इस मामले में पड़ने से बच सकते हैं। दरअसल अपने काम से आप दिखाएँगे कि आप या तो निंदा करने में शैतान का साथ दे रहे हैं या शैतान को जवाब देने में यहोवा का। आप किसका साथ देना चाहेंगे?
यहोवा आपकी परवाह करता है!
11 आप चाहे जो चुनाव करें क्या इससे यहोवा को कोई फर्क पड़ता है? क्या अब तक बहुत-से लोगों ने यहोवा का वफादार रहकर उसे यह मौका नहीं दे दिया है कि वह शैतान को मुँह-तोड़ जवाब दे? यह सच है कि शैतान का दावा कि कोई भी इंसान प्रेम की वजह से यहोवा की सेवा नहीं करता, अब झूठा साबित हो चुका है। लेकिन फिर भी यहोवा चाहता है कि इस वाद-विषय में आप उसका साथ दें क्योंकि उसको सचमुच आपकी परवाह है। यीशु ने कहा: “तुम्हारे पिता की जो स्वर्ग में है यह इच्छा नहीं, कि इन छोटों में से एक भी नाश हो।”—मत्ती 18:14.
12 इससे ज़ाहिर होता है कि आपके चुनाव में यहोवा को दिलचस्पी है। और सबसे अहम बात यह कि आपके चुनाव से यहोवा को फर्क पड़ता है। बाइबल यह साफ दिखाती है कि यहोवा में गहरी भावनाएँ हैं जिनकी वजह से इंसानों के अच्छे-बुरे कामों से या तो वह खुश होता है या दुःखी। मसलन, जब इस्राएलियों ने बार-बार बगावत की तो यहोवा का मन “खेदित” हुआ। (भजन 78:40, 41) नूह के दिनों में जलप्रलय आने से पहले जब “मनुष्यों की बुराई . . . बढ़ गई” थी, तो यहोवा “मन में अति खेदित हुआ।” (उत्पत्ति 6:5, 6) ज़रा सोचिए, इसका मतलब क्या है। अगर आप गलत रास्ता इख्तियार करते हैं, तो आप अपने सृष्टिकर्ता के दिल को दुःखी करते हैं। इसका अर्थ यह नहीं कि परमेश्वर कमज़ोर या जज़्बाती है बल्कि वह आपसे प्यार करता है और आपकी भलाई चाहता है। दूसरी तरफ जब आप सही काम करते हैं तो यहोवा खुश होता है। वह सिर्फ इसलिए खुश नहीं होता कि अब वह शैतान को एक और जवाब दे सकता है बल्कि इसलिए भी कि वह आपको प्रतिफल दे सकता है। और ऐसा करने की उसकी बड़ी इच्छा भी है। (इब्रानियों 11:6) वाकई यहोवा परमेश्वर ऐसा पिता है, जो हमसे बेइंतिहा प्यार करता है!
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आध्यात्मिक लक्ष्य रखने के ज़रिए अपने सिरजनहार की महिमा कीजिए
गौर कीजिए कि यहोवा ने विश्व की सृष्टि कैसे पूरी की। “सांझ हुई फिर भोर हुआ,” इन शब्दों से यहोवा ने सृष्टि की एक-के-बाद-एक आयी समय-अवधियों को अलग-अलग किया। (उत्पत्ति 1:5, 8, 13, 19, 23, 31) सृष्टि की हर समय-अवधि की शुरूआत में, वह अच्छी तरह जानता था कि उस दिन के लिए उसका क्या लक्ष्य या मकसद है। इस तरह परमेश्वर ने चीज़ों की सृष्टि करने का अपना मकसद पूरा किया। (प्रकाशितवाक्य 4:11) कुलपिता अय्यूब ने कहा: “जो कुछ [यहोवा का] जी चाहता है वही वह करता है।” (अय्यूब 23:13) जब यहोवा ने “जो कुछ बनाया था” उन सबको देखकर यह ऐलान किया कि “वह बहुत ही अच्छा है,” तो उसे क्या ही संतोष महसूस हुआ होगा!—उत्पत्ति 1:31.
अगर हम अपने लक्ष्य तक पहुँचना चाहते हैं, तो हमारे अंदर भी उसे हासिल करने की ज़बरदस्त इच्छा होनी चाहिए। ऐसी इच्छा पैदा करने में क्या बात हमारी मदद करेगी? जब यह धरती बेडौल और सुनसान थी, यहोवा तब भी दूर भविष्य में देख सकता था कि इसकी सृष्टि पूरी होने के बाद कैसे यह अंतरिक्ष में एक नगीने की तरह चमकेगी जिससे उसकी महिमा और आदर होगा। इसी तरह, हम जो करने की ठान लेते हैं उसे पूरा करने की दिल में गहरी इच्छा पैदा की जा सकती है, अगर हम उसके नतीजों और होनेवाले फायदों पर मनन करें। यही अनुभव 19 साल के टोनी का रहा है। पश्चिमी यूरोप में यहोवा के साक्षियों के एक शाखा दफ्तर के दौरे को वह कभी भुला नहीं सका। वहाँ से आने के बाद टोनी के मन में यह सवाल घर कर गया, ‘ऐसी जगह काम करना और रहना कैसा होता होगा?’ शाखा दफ्तर में सेवा करना उसकी ज़िंदगी का लक्ष्य बन गया और उस तक पहुँचने के लिए वह लगातार मेहनत करता रहा। वह कितना खुश हुआ होगा जब कई साल बाद, शाखा दफ्तर में सेवा करने की उसकी अर्ज़ी मंज़ूर कर ली गयी!
11-17 दिसंबर
पाएँ बाइबल का खज़ाना | अय्यूब 25-27
“निर्दोष बने रहने के लिए परिपूर्ण होना ज़रूरी नहीं है”
इंसाइट-1 पेज 1210 पै 4
निर्दोष
अय्यूब: अय्यूब के बारे में लिखा है, “वह एक सीधा-सच्चा इंसान था जिसमें कोई दोष नहीं था। वह परमेश्वर का डर मानता और बुराई से दूर रहता था।” (अय 1:1) पर शैतान ने अय्यूब पर इलज़ाम लगाया कि वह अपने मतलब के लिए परमेश्वर की सेवा करता है, उसकी भक्ति एक ढोंग है। परमेश्वर ने शैतान को अय्यूब की परीक्षा लेने की इजाज़त दी। शैतान ने अय्यूब की सारी संपत्ति छीन ली और उसके बच्चों को मरवा डाला। फिर भी अय्यूब निर्दोष बना रहा। (अय 1:6–2:3) इसके बाद शैतान ने अय्यूब पर यह इलज़ाम लगाया कि वह खुद को बचाने के लिए कुछ भी कर सकता है। (अय 2:4, 5) अय्यूब को सिर से पाँव तक एक दर्दनाक बीमारी हो गयी। उसकी पत्नी ने उसे चुभनेवाली बात कही। और उसके दोस्तों ने उसे ताने मारे और परमेश्वर के स्तरों के बारे में गलत बातें कहीं। इतना सब सहने के बाद भी अय्यूब निर्दोष बना रहा। उसने कहा, “मैंने ठान लिया है, मैं मरते दम तक निर्दोष बना रहूँगा। मैं अपनी नेकी को थामे रहूँगा, उसे कभी नहीं छोड़ूँगा, जब तक मैं ज़िंदा हूँ मेरा मन मुझे नहीं धिक्कारेगा।” (अय 27:5, 6) अय्यूब आखिर तक निर्दोष बना रहा और इससे साफ हो गया कि शैतान झूठा है।
निर्दोष बने रहिए!
3 परमेश्वर के सेवक किस तरह निर्दोष रह सकते हैं? पूरे दिल से यहोवा से प्यार करके और हर हाल में उसके वफादार रहकर। इससे हम हमेशा वही काम करेंगे, जिससे यहोवा को खुशी हो। आइए देखें कि बाइबल में शब्द “निर्दोष” किस तरह इस्तेमाल हुआ है। जिस इब्रानी शब्द का अनुवाद “निर्दोष” किया गया है, उसका बुनियादी मतलब है, “पूरा, जिसमें कोई खोट या दोष न हो।” उदाहरण के लिए, इसराएली यहोवा को जानवरों का बलिदान चढ़ाते थे। कानून में बताया गया था कि बलिदान के जानवरों में कोई दोष नहीं होना चाहिए। (लैव्य. 22:21, 22) परमेश्वर के लोगों को ऐसा जानवर नहीं चढ़ाना था, जो लँगड़ा या बीमार हो या फिर जिसकी एक आँख या एक कान न हो। यहोवा के लिए यह बात बहुत मायने रखती थी कि जानवर स्वस्थ हो, उसमें कोई दोष न हो। (मला. 1:6-9) हम यहोवा की भावनाएँ समझ सकते हैं, क्योंकि जब हम कोई चीज़ खरीदते हैं, तो सबसे पहले देखते हैं कि कहीं उसमें कोई दोष तो नहीं या उसके कुछ हिस्से गायब तो नहीं, फिर चाहे वह किताब हो या औज़ार या कोई फल। हम ऐसी चीज़ चाहते हैं, जो पूरी हो और जिसमें कोई दोष न हो। यहोवा भी चाहता है कि उसके लिए हमारा प्यार और वफादारी पूर्ण हो, उनमें कोई कमी या दोष न हो।
4 निर्दोष रहने के लिए क्या हमें परिपूर्ण होना चाहिए? शायद हम सोचें कि हममें कई दोष हैं और हम तो बहुत-सी गलतियाँ करते हैं, फिर हम निर्दोष कैसे रह सकते हैं। लेकिन ध्यान दीजिए कि निर्दोष रहने का यह मतलब नहीं है कि हम परिपूर्ण हों। इसके दो कारण हैं। पहला, यहोवा का पूरा ध्यान हमारी खामियों पर नहीं रहता। उसका वचन बताता है, “हे याह, अगर तू हमारे गुनाहों पर ही नज़र रखता, तो हे यहोवा, तेरे सामने कौन खड़ा रह सकता?” (भज. 130:3) यहोवा जानता है कि हम अपरिपूर्ण और पापी हैं। वह दिल खोलकर हमें माफ करता है। (भज. 86:5) दूसरा कारण है, यहोवा हमारी सीमाएँ जानता है और हम जितना कर सकते हैं, उससे ज़्यादा की उम्मीद नहीं करता। (भजन 103:12-14 पढ़िए।) फिर सवाल है कि हम यहोवा की नज़र में निर्दोष कैसे रह सकते हैं?
5 निर्दोष बने रहने के लिए प्यार होना ज़रूरी है। हमें यहोवा से प्यार करना चाहिए और उसके वफादार रहना चाहिए। इस प्यार में कोई कमी या दोष नहीं होना चाहिए। अगर परीक्षाएँ आने पर भी हमारा प्यार ऐसा ही रहे, तो हम यहोवा की नज़र में निर्दोष बने रहेंगे। (1 इति. 28:9; मत्ती 22:37) ज़रा लेख की शुरूआत में बताए उन तीन साक्षियों के बारे में एक बार फिर सोचिए। क्या उस बहन को लोगों के साथ मिलकर खुशियाँ मनाना पसंद नहीं था? या क्या वह जवान भाई चाहता था कि प्रचार में उसका मज़ाक उड़ाया जाए? या फिर क्या वह मुखिया अपनी नौकरी गँवाना चाहता था? बिलकुल नहीं! तो फिर उन्होंने जो किया, उसके पीछे क्या वजह थी? उन्हें यहोवा से प्यार है और यह प्यार उन्हें उभारता है कि वे हमेशा उसके नेक स्तरों पर चलें और ऐसे फैसले करें, जिनसे यहोवा खुश हो। इस तरह वे दिखाते हैं कि वे निर्दोष हैं और यहोवा के वफादार हैं।
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परमेश्वर की किताब में दिए निर्देश के मुताबिक संगठित
3 सृष्टि से साफ पता चलता है कि सब चीज़ों को संगठित करने और कायदे से चलाने में परमेश्वर जैसा कोई नहीं। बाइबल बताती है, “यहोवा ने पृथ्वी की नींव बुद्धि ही से डाली; और स्वर्ग को समझ ही के द्वारा स्थिर किया।” (नीति. 3:19) सृष्टि से हम परमेश्वर के कामों के बारे में जो जानते हैं वह उसके कामों के किनारे को छूने जैसा है और उसकी फुसफुसाहट सुनने जैसा है। (अय्यू. 26:14) हम ग्रहों, तारों और मंदाकिनियों के बारे में बहुत कम जानते हैं, मगर जितना जानते हैं वह हमें कायल कर देता है कि ये सभी चीज़ें लाजवाब तरीके से संगठित की गयी हैं। (भज. 8:3, 4) मंदाकिनियों में अरबों-खरबों तारे हैं और ये सभी अंतरिक्ष में बहुत व्यवस्थित तरीके से घूम रहे हैं। देखा जाए तो हमारे सौर-मंडल में सारे ग्रह सूरज के चारों ओर ऐसे चक्कर काटते हैं मानो वे ट्रैफिक के नियम को मानते हों। सचमुच यह देखकर हम चकरा जाते हैं कि पूरे विश्व में सबकुछ कितने कायदे से चल रहा है। ये बातें हमें यकीन दिलाती हैं कि यहोवा जिसने “अपनी बुद्धि से आकाश” और पृथ्वी को बनाया है वह हमारी तारीफ, वफादारी और उपासना का हकदार है।—भज. 136:1, 5-9.
18-24 दिसंबर
पाएँ बाइबल का खज़ाना | अय्यूब 28-29
“क्या आपने अय्यूब की तरह अच्छा नाम कमाया है?”
ज़रूरतमंदों को निरंतर प्रेम-कृपा दिखाइए
19 बाइबल के जिन कहानियों पर हमने चर्चा की है उनसे एक और सच्चाई ज़ाहिर होती है कि निरंतर प्रेम-कृपा ऐसे ज़रूरतमंदों को दिखायी जाती है जो खुद अपनी ज़रूरत पूरी नहीं कर सकते। इब्राहीम को अपना वंश बढ़ाने के लिए बतूएल का सहयोग चाहिए था। याकूब, यूसुफ पर ही निर्भर था कि उसके मरने के बाद यूसुफ उसके शव को कनान ले जाए। और नाओमी को वारिस पैदा के लिए रूत की मदद चाहिए थी। बगैर इन लोगों की मदद के ना तो इब्राहीम, याकूब और ना ही नाओमी अपनी ज़रूरत पूरी कर सकते थे। आज भी, निरंतर प्रेम-कृपा खासकर ज़रूरतमंदों को दिखायी जानी चाहिए। (नीतिवचन 19:17) इस मामले में हमें कुलपिता अय्यूब की मिसाल पर चलना चाहिए जिसने “दोहाई देनेवाले दीन जन को, और असहाय अनाथ को” साथ ही “जो नाश होने पर था” उसकी मदद की। इतना ही नहीं, उसने ‘विधवा को आनन्दित किया’ और “अन्धों के लिये आंखें, और लंगड़ों के लिये पांव” का काम किया।—अय्यूब 29:12-15.
इंसाइट-1 पेज 655 पै 10
कपड़ा, पहनावा
बाइबल में कई बार कपड़ों या पहनावों का इस्तेमाल एक व्यक्ति की पहचान और उसके कामों को दर्शाने के लिए किया गया है। उदाहरण के लिए, आज किसी की यूनिफॉर्म, वर्दी या खास तरह के कपड़ों से पता चलता है कि वह किस संगठन का है या किस आंदोलन का हिस्सा है। उसी तरह, बाइबल में जब पहनावों या कपड़ों की बात की जाती है, तो वे एक व्यक्ति की पहचान, उसकी सोच और उसके कामों को दर्शाते हैं।—मत 22:11, 12; प्रक 16:14, 15.
प्र09 2/1 पेज 15 पै 3-4, अँग्रेज़ी
नाम में क्या रखा है?
जब हम पैदा होते हैं तो हम अपना नाम खुद नहीं रख सकते। पर आगे चलकर हम कैसा नाम बनाएँगे, यह हमारे हाथ में होता है। (नीतिवचन 20:11) ज़रा सोचिए, ‘अगर यीशु या उसके प्रेषित होते, तो वे मुझे क्या नाम देते? मेरे लिए कौन-सा नाम बिलकुल सही होता जिससे पता चलता कि मेरा खास गुण क्या है या मैं किस बात के लिए जाना जाता हूँ?’
इस बारे में सोचना ज़रूरी है क्योंकि बुद्धिमान राजा सुलैमान ने लिखा, “एक अच्छा नाम बेशुमार दौलत से बढ़कर है।” (नीतिवचन 22:1) समाज में एक अच्छा नाम होना फायदेमंद है। मगर परमेश्वर की नज़र में एक अच्छा नाम कमाना और भी ज़रूरी है, क्योंकि यह नाम हमेशा के लिए बना रहेगा। परमेश्वर ने वादा किया है कि जो लोग उसका डर मानते हैं, वह “उन्हें याद रखने के लिए” उनका नाम “एक किताब” में लिखेगा। और वह आगे चलकर उन्हें हमेशा की ज़िंदगी देगा।—मलाकी 3:16; प्रकाशितवाक्य 3:5; 20:12-15.
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मुस्कराइए—दिल की खुशी पाइए!
क्या मुस्कराने से वाकई बहुत फर्क पड़ता है? क्या आपको वह घड़ी याद है जब किसी की मुस्कान को देखकर आपने राहत की साँस ली और आपकी चिंता दूर हो गयी? या फिर किसी का फूला हुआ मुँह देखकर आपको घबराहट होने लगी और आप निराश हो गए? जी हाँ, मुस्कराहट से वाकई बहुत फर्क पड़ता है। इसका असर न सिर्फ मुस्करानेवाले पर होता है बल्कि उस पर भी होता है जिसे देखकर मुस्कराया जाए। मिसाल के तौर पर, बाइबल में बताए अय्यूब ने अपने बैरियों के बारे में कहा था: “जब मैं . . . मुस्कराता था, तो उन्हें इसका यकीन नहीं होता था। फिर मेरा प्रसन्न मुख दुःखी जन को सुख देता था।”—अय्यूब 29:24, ईज़ी-टू-रीड वर्शन।
25-31 दिसंबर
पाएँ बाइबल का खज़ाना | अय्यूब 30-31
“अय्यूब ने अपना चालचलन शुद्ध कैसे बनाए रखा?”
व्यर्थ की चीज़ों से अपनी आँखें हटा दो!
8 सच्चे मसीही भी आँखों और शरीर की ख्वाहिशों के असर से अछूते नहीं हैं। इसलिए परमेश्वर का वचन हमें इस मामले में खुद को अनुशासित करने का बढ़ावा देता है कि हम अपनी आँखों से क्या देखते हैं और कैसी बातों की चाहत रखते हैं। (1 कुरिं. 9:25, 27; 1 यूहन्ना 2:15-17 पढ़िए।) अय्यूब, जो एक खरा इंसान था, वह अच्छी तरह जानता था कि हमारी आँखों का दिल से गहरा संबंध है, यानी जब कोई चीज़ हमारी आँखों को भा जाती है तो उसे पाने की चाहत दिल में ज़ोर पकड़ने लगती है। इसलिए अय्यूब ने कहा: “मैं ने अपनी आंखों के विषय वाचा बान्धी है, फिर मैं किसी कुंवारी पर क्योंकर आंखें लगाऊं?” (अय्यू. 31:1) अय्यूब ने किसी स्त्री को गलत इरादे से कभी नहीं छुआ, उसने तो यहाँ तक ठान लिया था कि वह अपने मन में ऐसा खयाल तक पनपने नहीं देगा। यीशु ने ज़ोर देकर बताया कि अपने मन को शुद्ध रखने के लिए ज़रूरी है कि हम अनैतिक विचारों को कोई जगह न दें। उसने कहा: “हर वह आदमी जो किसी स्त्री को ऐसी नज़र से देखता रहता है जिससे उसके मन में स्त्री के लिए वासना पैदा हो, वह अपने दिल में उस स्त्री के साथ व्यभिचार कर चुका।”—मत्ती 5:28.
“अन्त” के बारे में पहले से सोचिए
बदचलनी के रास्ते पर कदम रखने से पहले ही अपने आप से पूछिए, ‘यह मुझे कहाँ ले जाएगा?’ अगर हम कुछ पल रुककर इसके “अन्त” के बारे में सोचें, तो यही हमें उस रास्ते पर जाने से रोक लेगा, जिसका अंजाम भयानक हो सकता है। जो परमेश्वर की चेतावनियों को नज़रअंदाज़ करते हैं, वे अपने रास्ते में खुद ही काँटे बो लेते हैं। उन्हें एड्स और दूसरी लैंगिक बीमारियाँ, अनचाहा गर्भ, गर्भपात, टूटे रिश्ते, या कचोटता ज़मीर ही हाथ लगता है। जो बदचलनी की राह पर चलते हैं उनके अंजाम के बारे में प्रेरित पौलुस ने साफ बताया कि वे ‘परमेश्वर के राज्य के वारिस न होंगे।’—1 कुरिन्थियों 6:9, 10.
जवानो—परमेश्वर के वचन के मार्गदर्शन में चलो
15 आपके हिसाब से, परमेश्वर के लिए आपकी वफादारी की सबसे बड़ी परीक्षा कब हो सकती है—जब आप लोगों के बीच होते हैं तब, या जब आप अकेले होते हैं? जब आप स्कूल में या काम पर होते हैं, तो आप आध्यात्मिक तौर पर सचेत रहते हैं। आप हर उस बात से सावधान रहते हैं जो परमेश्वर के साथ आपके रिश्ते को बिगाड़ सकती है। मगर जब आप अकेले होते हैं तब आप उतने सतर्क नहीं रहते और ऐसे में आपकी नैतिकता पर आसानी से हमला हो सकता है।
16 आपको अकेले में भी क्यों यहोवा की आज्ञा माननी चाहिए? याद रखिए: अकेले में आप जो करते हैं, उससे या तो आप यहोवा का दिल दुखा सकते हैं या उसे खुश कर सकते हैं। (उत्प. 6:5, 6; नीति. 27:11) यहोवा को “तुम्हारी परवाह है” इसीलिए आपके हरेक काम का असर उस पर होता है। (1 पत. 5:7) वह चाहता है कि आप उसकी सुनें, क्योंकि वह जानता है कि उससे आपको फायदा होगा। (यशा. 48:17, 18) जब प्राचीन इसराएल में यहोवा के कुछ सेवकों ने उसकी सलाह पर कान नहीं दिए, तो यहोवा को बड़ा दुख पहुँचा। (भज. 78:40, 41) दूसरी तरफ यहोवा को भविष्यवक्ता दानिय्येल से खास लगाव था और एक स्वर्गदूत ने उसे “अति प्रिय पुरुष” कहा। (दानि. 10:11) क्यों? क्योंकि दानिय्येल ने अपनी वफादारी न सिर्फ लोगों के सामने बल्कि अकेले में भी दिखायी।—दानिय्येल 6:10 पढ़िए।
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प्यार से सुनने की कला
अय्यूब के दोस्तों ने कम-से-कम दस बार उसकी बात काफी देर तक सुनी थी। फिर भी अय्यूब ने अपने दिल का दर्द ज़ाहिर करते हुए कहा: “भला होता कि मेरा कोई सुननेवाला होता!” (अय्यूब 31:35) अय्यूब ने ऐसा क्यों कहा? क्योंकि उन दोस्तों का सुनना और न सुनना एक बराबर था, अय्यूब को उनसे कोई तसल्ली नहीं मिली। उन्होंने अय्यूब की भावनाओं का बिलकुल लिहाज़ नहीं किया, ना ही उन्हें समझने की कोशिश की। बेशक, उनके दिल में अय्यूब के लिए ज़रा भी हमदर्दी नहीं थी। मगर प्रेरित पतरस हमें सलाह देता है: “सब के सब एक मन और कृपामय [“हमदर्द,” हिन्दुस्तानी बाइबल] और भाईचारे की प्रीति रखनेवाले, और करुणामय, और नम्र बनो।” (1 पतरस 3:8) हम दूसरों के साथ हमदर्दी कैसे दिखा सकते हैं? एक तरीका है, उनकी भावनाओं का लिहाज़ करना और उन्हें समझने की कोशिश करना। उनकी खातिर अपनी परवाह ज़ाहिर करने के लिए हम कुछ ऐसा कह सकते हैं, जैसे “इस बात से ज़रूर आपको बहुत दुःख हुआ होगा” या “इस गलतफहमी से ज़रूर आपको बुरा लगा होगा।” अपनी परवाह दिखाने का एक और तरीका है, उनकी बात को अपने शब्दों में दोहराना। ऐसा करना दिखाएगा कि हम उनकी बात समझ रहे हैं। तो प्यार से सुनने का मतलब न सिर्फ सामनेवाले के शब्दों पर ध्यान देना है, बल्कि शब्दों के पीछे छिपी भावनाओं को भी समझना है।