यीशु की तरह प्यार से सिखाइए
“आज तक किसी भी इंसान ने इस तरह बात नहीं की जिस तरह वह करता है।”—यूह. 7:46.
1. यीशु की बातों का उसके सुननेवालों पर क्या असर हुआ?
मान लीजिए कि यीशु लोगों को सिखा रहा है और आप भी वहाँ बैठे हैं। उसकी बातें सुनकर क्या आप रोमांचित नहीं हो उठेंगे? बाइबल में हम पढ़ते हैं कि उसके सुननेवालों पर उसकी बातों का क्या असर हुआ। जैसे, खुशखबरी का लेखक लूका बताता है कि यीशु के अपने नगर के लोग “उसकी दिल जीतनेवाली बातों पर ताज्जुब करने” लगे। मत्ती कहता है कि जब यीशु ने अपना पहाड़ी उपदेश दिया, तो लोग “उसका सिखाने का तरीका देखकर दंग रह” गए। और यूहन्ना लिखता है कि यीशु को गिरफ्तार करने के लिए जिन पहरेदारों को भेजा गया, वे खाली हाथ लौट आए। उनका कहना था: “आज तक किसी भी इंसान ने इस तरह बात नहीं की जिस तरह वह करता है।”—लूका 4:22; मत्ती 7:28; यूह. 7:46.
2. यीशु किस तरह सिखाता था?
2 उन पहरेदारों ने जो कहा, वह सौ-फीसदी सच था। धरती पर जितने भी शिक्षक हुए हैं, उनमें यीशु सबसे महान शिक्षक है। वह साफ और सरल तरीके से सिखाता था और ऐसे तर्क देता जिसे कोई नहीं काट सकता था। वह मिसालों और सवालों का इस्तेमाल करने में कुशल था। उसके सुननेवाले चाहे गरीब और मामूली हों या ऊँचे तबके के, वह अपनी बातों को उनके हिसाब से ढालना जानता था। यीशु ने जो सच्चाइयाँ सिखायीं, वे समझने में आसान ज़रूर थीं मगर उनमें गहरा अर्थ छिपा था। लेकिन एक और अहम बात थी, जिस वजह से यीशु एक महान शिक्षक साबित हुआ।
सबसे अहम गुण है, प्यार
3. एक शिक्षक के नाते यीशु अपने दिनों के धर्म-गुरुओं से किस तरह अलग था?
3 इसमें कोई शक नहीं कि उस समय के शास्त्री और फरीसी भी शास्त्र का अच्छा ज्ञान रखते थे और सिखाने में हुनरमंद थे। तो फिर एक शिक्षक के नाते यीशु इन धर्म-गुरुओं से किस तरह अलग था? इन अगुवों में आम लोगों के लिए रत्ती-भर भी प्यार नहीं था। उलटा, वे उनसे घृणा करते और उन्हें “शापित लोग” समझते थे। (यूह. 7:49) मगर यीशु कोमल, करुणामय और कृपालु था। वह लोगों का हाल देखकर तड़प उठता था क्योंकि “वे उन भेड़ों की तरह थे जिनकी खाल खींच ली गयी हो और जिन्हें बिन चरवाहे के यहाँ-वहाँ भटकने के लिए छोड़ दिया गया हो।” (मत्ती 9:36) धर्म-गुरुओं में लोगों के लिए प्यार न होने के अलावा परमेश्वर के लिए भी सच्चा प्यार नहीं था। (यूह. 5:42) लेकिन यीशु अपने पिता से प्यार करता था और उसकी मरज़ी पूरी करने में उसे खुशी मिलती थी। धर्म-गुरु अपना उल्लू सीधा करने के लिए परमेश्वर के वचन को तोड़-मरोड़कर सिखाते थे, जबकि यीशु ‘परमेश्वर के वचन’ से प्यार करता था। वह उस वचन से सिखाता, समझाता और उसकी पैरवी करता था और उसमें बताए उसूलों पर चलता था। (लूका 11:28) जी हाँ, प्यार यीशु की रग-रग में बसा था और यह उसकी शिक्षाओं, सिखाने के तरीकों और व्यवहार में साफ नज़र आता था।
4, 5. (क) प्यार से सिखाना क्यों अहमियत रखता है? (ख) प्यार के अलावा, ज्ञान और हुनर होना भी क्यों ज़रूरी है?
4 हमारे बारे में क्या कहा जा सकता है? मसीह के चेले होने के नाते हम भी अपनी ज़िंदगी और प्रचार के काम में उसके नक्शेकदम पर चलना चाहते हैं। (1 पत. 2:21) इसलिए हमारा मकसद सिर्फ बाइबल का ज्ञान बाँटना ही नहीं बल्कि यहोवा के गुण, खासकर उसके प्रेम का गुण दिखाना है। चाहे हमारे पास बहुत ज्ञान हो या न हो, हम सिखाने में बहुत हुनरमंद हों या न हों, लेकिन अगर हममें प्यार है तो हम प्रचार में लोगों के दिल तक पहुँच पाएँगे। चेला बनाने के काम में अच्छे नतीजे पाने के लिए बेहद ज़रूरी है कि हम यीशु की तरह प्यार से लोगों को सिखाएँ।
5 इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता कि एक अच्छा शिक्षक बनने के लिए ज्ञान और हुनर का होना ज़रूरी है। यीशु ने अपने चेलों को ये दोनों चीज़ें पाने में मदद दी। और आज यहोवा अपने संगठन के ज़रिए ज्ञान और हुनर हासिल करने में हमारी मदद करता है। (यशायाह 54:13; लूका 12:42 पढ़िए।) लेकिन हमें सिर्फ ज्ञान और हुनर के बलबूते पर नहीं बल्कि प्यार से लोगों को सिखाना चाहिए। जब हममें ये तीनों चीज़ें होंगी, तब हम बढ़िया-से-बढ़िया नतीजे पा सकेंगे। अब सवाल है कि सिखाते वक्त हम किन तरीकों से प्यार दिखा सकते हैं? और ऐसा करने में यीशु और उसके चेलों ने क्या मिसाल रखी? आइए देखें।
हमें यहोवा से प्यार करना चाहिए
6. जो व्यक्ति हमारे दिल के करीब होता है, उसके बारे में हम किस तरह बात करते हैं?
6 हमारी ज़िंदगी में जो बातें अहमियत रखती हैं, अकसर हम उनके बारे में बात करना पसंद करते हैं। और उस वक्त हमारे चेहरे पर जो खुशी खिलती है और हमारे हाव-भाव में जो जोश नज़र आता है, उसे दूसरे साफ देख पाते हैं। यह बात तब भी सच होती है जब हम उस व्यक्ति के बारे में बात करते हैं जो हमारे दिल के करीब हो। आम तौर पर हम उसके बारे में दूसरों को बताने के लिए बेताब रहते हैं। हम उसकी तारीफ करते नहीं थकते, उसे सम्मान देते हैं और अगर कोई उसके खिलाफ कुछ कहता है, तो हम फौरन उसकी पैरवी करते हैं। हम ऐसा इसलिए करते हैं ताकि दूसरे भी उसे और उसके गुणों को पसंद करें।
7. परमेश्वर के लिए प्यार ने यीशु को क्या करने के लिए उकसाया?
7 इससे पहले कि हम दूसरों में यहोवा के लिए प्यार जगाएँ, हमें खुद यहोवा को जानना और उससे प्यार करना होगा। यह सही भी है क्योंकि यहोवा से प्यार किए बगैर हम उसकी उपासना नहीं कर सकते। (मत्ती 22:36-38) इस मामले में यीशु ने एक उम्दा मिसाल रखी। उसने यहोवा से अपने पूरे दिल, पूरी जान, पूरे दिमाग और पूरी ताकत से प्यार किया। वह स्वर्ग में अपने पिता के साथ अरबों-खरबों सालों तक रहा जिस वजह से वह पिता को बहुत करीबी से जानता था। इसलिए वह कह सका: “मैं पिता से प्यार करता हूँ।” (यूह. 14:31) यीशु की हर बात और हर काम में यह प्यार नज़र आया। इस प्यार की वजह से उसने हमेशा वही काम किए जिससे परमेश्वर खुश होता। (यूह. 8:29) यहोवा के लिए प्यार ने उसे उन धर्म-गुरुओं को धिक्कारने के लिए उभारा जो परमेश्वर के नुमाइंदे होने का झूठा दावा कर रहे थे। इस प्यार की वजह से यीशु ने दूसरों को परमेश्वर के बारे में बताया और उन्हें यहोवा के करीब आने और उससे प्यार करने में मदद दी।
8. परमेश्वर से प्यार होने की वजह से यीशु के चेलों ने क्या किया?
8 यीशु की तरह पहली सदी के चेले भी यहोवा से प्यार करते थे। इसी प्यार ने उन्हें उकसाया कि वे हिम्मत और जोश के साथ खुशखबरी सुनाएँ। बड़े-बड़े धर्म-गुरुओं के विरोध के बावजूद उन्होंने सारे यरूशलेम को अपनी शिक्षाओं से भर दिया था। चेलों के लिए यह नामुमकिन था कि वे उन बातों के बारे में बोलना छोड़ दें जो उन्होंने देखी और सुनी थीं। (प्रेषि. 4:20; 5:28) वे जानते थे कि यहोवा उनके साथ है और उन्हें आशीष देगा। क्या यहोवा ने उन्हें आशीष दी? बिलकुल दी। यीशु की मौत को 30 साल भी नहीं हुए थे जब प्रेषित पौलुस ने लिखा कि खुशखबरी का प्रचार “दुनिया के कोने-कोने में किया जा चुका है।”—कुलु. 1:23.
9. हम परमेश्वर के लिए अपना प्यार कैसे बढ़ा सकते हैं?
9 अगर हम कुशल शिक्षक बनना चाहते हैं, तो हमें भी परमेश्वर के लिए अपना प्यार बढ़ाते जाना चाहिए। हम यह कैसे कर सकते हैं? प्रार्थना में अकसर यहोवा से बात करने के ज़रिए। इसके अलावा, बाइबल का अध्ययन करने, बाइबल की समझ देनेवाले साहित्य पढ़ने और मसीही सभाओं में हाज़िर होने के ज़रिए भी हम यहोवा के लिए अपना प्यार मज़बूत कर सकते हैं। जैसे-जैसे हम परमेश्वर के बारे में सीखते जाते हैं, हमारे दिल में उसके लिए प्यार बढ़ता जाता है। और जब हम अपनी बातों और कामों से उसके लिए प्यार जताते हैं, तो देखनेवाले शायद यहोवा की ओर खिंचे चले आएँ।—भजन 104:33, 34 पढ़िए।
हम जो सिखाते हैं, उसे अनमोल समझिए
10. एक अच्छा शिक्षक किसे कहते हैं?
10 एक अच्छा शिक्षक वह होता है जिसे पूरा यकीन हो कि वह जो सिखा रहा है, सही और ज़रूरी है और उसके विद्यार्थी के लिए फायदेमंद है। अगर एक शिक्षक को अपने विषय से प्यार है, तो वह पूरे जोश और उत्साह के साथ सिखाएगा और विद्यार्थी पर इसका ज़बरदस्त असर होगा। दूसरी तरफ, अगर उसे अपने विषय में दिलचस्पी नहीं, तो क्या उसका विद्यार्थी सीखी बातों की कदर करेगा? परमेश्वर के वचन के शिक्षक होने के नाते आप पर भी यह बात लागू होती है। आप जैसी मिसाल रखते हैं, उसका आपके विद्यार्थी पर गहरा असर होता है। इस बात को कभी मत भूलिए! यीशु ने कहा था: “हर [विद्यार्थी] जिसे पूरी तरह सिखाया जाता है, वह अपने गुरु जैसा होगा।”—लूका 6:40.
11. यीशु को उन बातों से लगाव क्यों था जो वह सिखाता था?
11 यीशु को उन बातों से गहरा लगाव था जो वह सिखाता था। वह अच्छी तरह जानता था कि उसके पास जो जानकारी है यानी परमेश्वर के बारे में सच्चाई, “परमेश्वर की बातें” और “हमेशा की ज़िंदगी की बातें,” वह बहुत बेशकीमती है। (यूह. 3:34; 6:68) यीशु ने जो सच्चाइयाँ सिखायीं, वे तेज़ रोशनी की तरह थीं जिसने बुरी बातों का परदाफाश कर अच्छी बातों को उजागर किया। इन सच्चाइयों से उन नम्र लोगों को आशा और दिलासा मिला जो धर्म-गुरुओं के छलावे में आ गए थे और शैतान के सताए हुए थे। (प्रेषि. 10:38) सच्चाई के लिए यीशु का प्यार न सिर्फ उसकी शिक्षाओं में बल्कि उसके हर काम में झलकता था।
12. खुशखबरी सुनाने के बारे में प्रेषित पौलुस कैसा महसूस करता था?
12 यीशु की तरह उसके चेले भी सच्चाई से प्यार करते थे। वे यहोवा और मसीह के बारे में जो सच्चाई जानते थे उसे इतना अनमोल समझते थे कि विरोधी भी उन्हें प्रचार करने से न रोक सके। पौलुस ने रोम के अपने संगी मसीहियों को लिखा: “मैं . . . खुशखबरी सुनाने के लिए बेताब हूँ। मुझे खुशखबरी सुनाने में कोई शर्म महसूस नहीं होती। दरअसल, यह विश्वास करनेवाले हर किसी के . . . उद्धार पाने के लिए परमेश्वर की शक्ति है।” (रोमि. 1:15, 16) पौलुस ने सच्चाई का ऐलान करना एक सम्मान समझा। उसने कहा: “मुझ जैसे आदमी को . . . यह महा-कृपा दी गयी कि मैं दूसरी जातियों को मसीह के बारे में उस बेशुमार दौलत की खुशखबरी सुनाऊँ जिसका अंदाज़ा नहीं लगाया जा सकता।” (इफि. 3:8) यह समझना मुश्किल नहीं कि पौलुस ने दूसरों को यहोवा और उसके उद्देश्यों के बारे में सिखाते वक्त कितना जोश दिखाया होगा।
13. किन वजहों से खुशखबरी हमारे लिए अनमोल है?
13 परमेश्वर के वचन में दी खुशखबरी ने हमें सृष्टिकर्ता को जानने और उसके साथ एक प्यार-भरा रिश्ता बनाने में मदद दी है। इसी की बदौलत हमें जीवन के कई अहम सवालों के जवाब मिले हैं, हमारी कायापलट हुई है, हमें आशा मिली है और संकट के समय हमारी हिम्मत बँधी है। इतना ही नहीं, खुशखबरी ने हमें एक मकसद-भरी ज़िंदगी जीने का रास्ता दिखाया है, एक ऐसी ज़िंदगी जो कभी खत्म नहीं होगी। वाकई, खुशखबरी से बढ़कर दूसरा कोई ज्ञान नहीं! यह हमारे लिए एक नायाब तोहफा है और इससे हमें बेइंतिहा खुशी मिलती है। जब हम यह तोहफा दूसरों के साथ बाँटते हैं, तो हमारी खुशी दुगुनी हो जाती है।—प्रेषि. 20:35.
14. हम खुशखबरी के लिए अपना प्यार कैसे मज़बूत कर सकते हैं?
14 खुशखबरी के लिए आप अपना प्यार और कैसे मज़बूत कर सकते हैं? परमेश्वर का वचन पढ़ते वक्त उस पर मनन कीजिए। उदाहरण के लिए, जब आप बाइबल में यीशु की सेवा या प्रेषित पौलुस की मिशनरी यात्रा के बारे में पढ़ते हैं तो कल्पना कीजिए कि आप भी उनके साथ जगह-जगह जा रहे हैं। मन की आँखों से खुद को नयी दुनिया में देखिए और अंदाज़ा लगाइए कि उस वक्त ज़िंदगी कितनी अलग होगी। गहराई से सोचिए कि खुशखबरी के मुताबिक चलने से आपको क्या-क्या आशीषें मिली हैं। अगर आप खुशखबरी के लिए अपना प्यार बनाए रखेंगे, तो आपके विद्यार्थी वह प्यार महसूस कर पाएँगे। इसलिए यह बेहद ज़रूरी है कि हम सीखी बातों पर गहराई से सोचें और अपनी शिक्षा पर ध्यान दें।—1 तीमुथियुस 4:15, 16 पढ़िए।
हमें लोगों से प्यार करना चाहिए
15. एक शिक्षक में अपने विद्यार्थी के लिए प्यार होना क्यों ज़रूरी है?
15 एक अच्छा शिक्षक अपने विद्यार्थी के लिए खुशनुमा माहौल बनाता है ताकि विद्यार्थी सीखने के लिए उत्सुक हो और खुशी-खुशी अपने विचार ज़ाहिर कर सके। एक प्यार करनेवाला शिक्षक इसलिए ज्ञान बाँटता है क्योंकि उसे अपने विद्यार्थी की सच्ची परवाह होती है। वह सिखाते वक्त उसकी ज़रूरत का खयाल रखता है और उतनी ही जानकारी देता है जितनी वह समझ सके। वह अपने विद्यार्थी की काबिलीयतों और हालात को ध्यान में रखता है। जब एक शिक्षक में इस तरह का प्यार होगा, तब उसका विद्यार्थी इसे महसूस कर पाएगा। नतीजा यह होगा कि शिक्षक को सिखाने में और विद्यार्थी को सीखने में मज़ा आएगा।
16. यीशु ने किन तरीकों से लोगों के लिए प्यार दिखाया?
16 यीशु में ऐसा ही प्यार था। इस प्यार का महान सबूत उसने तब दिया जब इंसानों की खातिर उसने अपना सिद्ध जीवन कुरबान कर दिया। (यूह. 15:13) धरती पर रहते वक्त यीशु लोगों की मदद करने और उन्हें पिता के बारे में सिखाने के लिए हरदम तैयार रहता था। यीशु ने यह उम्मीद नहीं की कि लोग उसके पास आएँगे, बल्कि वह खुद हज़ारों मील चलकर उनके पास जाता था और उन्हें खुशखबरी सुनाता था। (मत्ती 4:23-25; लूका 8:1) वह सब्र से काम लेता और हमदर्दी दिखाता था। जब उसके चेले गलती करते, तो वह उन्हें प्यार से ताड़ना देता था। (मर. 9:33-37) उसने अपने चेलों पर भरोसा जताया कि वे खुशखबरी के कुशल प्रचारक बनेंगे और इस तरह उनका हौसला बढ़ाया। यीशु के जैसा प्यार करनेवाला शिक्षक आज तक पैदा नहीं हुआ है। यीशु के चेलों ने उसके प्यार का बदला प्यार से दिया और उसकी आज्ञाओं का पालन किया।—यूहन्ना 14:15 पढ़िए।
17. यीशु के चेलों ने दूसरों के लिए प्यार कैसे दिखाया?
17 यीशु की तरह उसके चेलों ने भी उन लोगों के लिए गहरा प्यार दिखाया जिनको उन्होंने प्रचार किया। उन्होंने ज़ुल्म सहकर और अपनी जान जोखिम में डालकर दूसरों की सेवा की और उन्हें खुशखबरी सुनायी। जिन लोगों ने खुशखबरी कबूल की, उनके लिए चेलों के दिल में कैसा प्यार था, इसका अंदाज़ा हम पौलुस के दिल छू लेनेवाले इन शब्दों से लगा सकते हैं: “जैसे एक दूध पिलानेवाली माँ अपने नन्हे-मुन्नों से दुलार करती है वैसे ही हम तुम्हारे बीच रहते हुए बड़ी नर्मी से पेश आए। हमें तुमसे इतना गहरा लगाव हो गया कि हमने तुम्हें न सिर्फ परमेश्वर की खुशखबरी सुनायी बल्कि तुम्हारे लिए अपनी जान तक देने को तैयार थे, क्योंकि तुम हमारे प्यारे हो गए थे।”—1 थिस्स. 2:7, 8.
18, 19. (क) हम प्रचार का काम खुशी-खुशी क्यों करते हैं? (ख) उदाहरण देकर बताइए कि कैसे दूसरे भी हमारा प्यार साफ देख पाते हैं।
18 आज दुनिया-भर में हम यहोवा के साक्षी भी प्रचार करते हैं और ऐसे लोगों को ढूँढ़ते हैं जो परमेश्वर के बारे में जानने और उसकी सेवा करने की इच्छा रखते हैं। दरअसल पिछले 17 सालों से हम लगातार हर साल एक अरब से ज़्यादा घंटे प्रचार और चेला बनाने के काम में बिताते आए हैं। और इस काम में धीमे पड़ने का हमारा कोई इरादा नहीं है! हालाँकि इसमें हिस्सा लेने के लिए हमें अपना समय, ताकत और साधन लगाना होता है, फिर भी हम यह काम खुशी-खुशी करते हैं। यीशु की तरह हम जानते हैं कि यहोवा की यह इच्छा है कि लोग वह ज्ञान हासिल करें जो हमेशा की ज़िंदगी दिला सकता है। (यूह. 17:3; 1 तीमु. 2:3, 4) प्यार हमें उकसाता है कि हम नेकदिल लोगों की मदद करें ताकि वे यहोवा को जान सकें और उससे प्यार कर सकें, ठीक जैसे हम करते हैं।
19 हमारा यह प्यार दूसरे भी साफ देख पाते हैं। यह बात एक उदाहरण से साबित होती है। अमरीका में एक पायनियर बहन उन लोगों को चिट्ठी लिखकर दिलासा देती है, जिनके अज़ीज़ों की मौत हो चुकी है। एक आदमी ने उसकी चिट्ठी के जवाब में लिखा: “जब मुझे आपका खत मिला तो एक पल के लिए मुझे यकीन ही नहीं हुआ कि कोई इतनी मेहनत करके किसी अजनबी को खत लिखेगा और दुख की घड़ी में उसे दिलासा देगा। बहुत सोचने के बाद मैं इस नतीजे पर पहुँचा कि आपने यह खत इसलिए लिखा क्योंकि आप लोगों से और उस परमेश्वर से प्यार करती हैं जो हमें राह दिखाता है।”
20. प्यार से सिखाने पर हमें क्या आशीषें मिलेंगी?
20 कहा जाता है कि जहाँ प्यार और हुनर का मेल होता है, वहाँ एक बेमिसाल रचना तैयार होती है। हम भी अपने सिखाने के काम में प्यार और हुनर का इस्तेमाल करना चाहते हैं। हम अपने विद्यार्थियों की मदद करना चाहते हैं ताकि वे न सिर्फ यहोवा को जानें, बल्कि उससे प्यार करना भी सीखें। जी हाँ, एक अच्छा शिक्षक बनने के लिए हममें परमेश्वर के लिए, सच्चाई के लिए और लोगों के लिए प्यार होना चाहिए। जब हम अपने अंदर ऐसा प्यार बढ़ाएँगे और उसे अपनी सेवा में दिखाएँगे, तो हमें उस खुशी का एहसास होगा जो देने से मिलती है। साथ ही हमें इस बात का भी इत्मीनान होगा कि हम यीशु के नक्शेकदम पर चल रहे हैं और यहोवा को खुश कर रहे हैं।
आप क्या जवाब देंगे?
• खुशखबरी सुनाते वक्त . . .
हमारे अंदर परमेश्वर के लिए प्यार होना क्यों ज़रूरी है?
उन बातों को अनमोल समझना क्यों ज़रूरी है, जो हम सिखाते हैं?
लोगों के लिए प्यार होना क्यों ज़रूरी है?
[पेज 15 पर तसवीर]
यीशु का सिखाने का तरीका शास्त्रियों और फरीसियों से अलग क्यों था?
[पेज 18 पर तसवीर]
अच्छी तरह सिखाने में ज्ञान, हुनर और सबसे बढ़कर प्यार होना ज़रूरी है