यशायाह
2 हर हाकिम मानो आँधी से छिपने की जगह होगा,
तेज़ बारिश में मिलनेवाली पनाह होगा,
सूखे देश में पानी की धारा होगा+
और तपते देश में बड़ी चट्टान की छाया होगा।
3 तब देखनेवालों की आँखें फिर कभी बंद नहीं होंगी
और सुननेवालों के कान ध्यान से सुनेंगे।
4 उतावली करनेवाला मन ज्ञान की बातों पर गहराई से सोचेगा
और हकलानेवाली ज़बान बिना लड़खड़ाए साफ-साफ बोलेगी।+
5 मूर्ख को अब से दरियादिल नहीं कहा जाएगा
और जो उसूलों पर नहीं चलता उसे भला नहीं कहा जाएगा।
6 मूर्ख बेकार की बातें करता है
और अपने मन में साज़िशें रचता है,+
ताकि दूसरों को यहोवा के खिलाफ कर दे,* उसके बारे में झूठी बातें कहे,
ताकि भूखा भूखे पेट रह जाए
और प्यासा पानी के लिए तरस जाए।
7 जो आदमी उसूलों पर नहीं चलता, उसके तरीके बुरे होते हैं।+
वह शर्मनाक काम को बढ़ावा देता है,
अपनी झूठी बातों से दुखियारों को बरबाद कर देता है,+
उस गरीब को भी जो सच बोलता है।
9 “हे बेफिक्र औरतो, उठो! मेरी बात सुनो!
हे मस्ती में डूबी बेटियो,+ मेरी बातों पर ध्यान दो!
10 तुम जो आज बेफिक्र बैठी हो, साल-भर बाद काँपने लगोगी,
क्योंकि अंगूर की कटाई खत्म हो जाएगी और तुम्हारे हाथ कुछ नहीं लगेगा।+
11 हे बेफिक्र औरतो, डर के मारे काँपो!
हे मस्ती में डूबी बेटियो, थर-थर काँपो!
अपने कपड़े उतारो और कमर पर टाट बाँध लो।+
12 छाती पीट-पीटकर शोक मनाओ!
लहलहाते खेतों और अंगूरों के फलते-फूलते बागों को देखकर शोक मनाओ,
13 क्योंकि मेरे लोगों की ज़मीन काँटों और कँटीली झाड़ियों से भर जाएगी,
जिन घरों में खुशियाँ मनायी जाती थीं,
हाँ, खुशियों के उस शहर में झाड़ियाँ उग आएँगी।+
ओपेल+ और पहरे की मीनार हमेशा के लिए वीरान हो जाएगी,
जंगली गधे यहाँ मज़े करेंगे
और भेड़-बकरियाँ यहाँ चरेंगी।+
15 लेकिन फिर परमेश्वर हम पर अपनी पवित्र शक्ति उँडेलेगा+
और वीराना, फलों का बाग बन जाएगा,
फिर यह बाग हरा-भरा जंगल बन जाएगा।+
17 सच्ची नेकी की बदौलत हर तरफ शांति होगी,+
सच्ची नेकी से सुकून और हिफाज़त मिलेगी जो कभी नहीं मिटेगी।+
19 मगर ओले गिरने से जंगल का नाश हो जाएगा
और शहर पूरी तरह खाक में मिल जाएगा।