नीतिवचन
4 बुद्धि से कह, “तू मेरी बहन है,”
समझ से कह, “तू मेरी सगी है”
6 एक बार मैं अपने घर की खिड़की पर खड़ा,
जालीदार झरोखे से नीचे देख रहा था।
8 वह उस सड़क पर चला जा रहा था,
जिसके मोड़ पर वह औरत रहती थी,
वह तेज़ कदमों से उसके घर की तरफ बढ़ने लगा।
10 तभी मैंने देखा, एक औरत उस नौजवान से मिली,
उसके पैर घर पर नहीं टिकते थे,
13 उसने उस जवान को पकड़कर चूमा
और बेहयाई से कहने लगी,
14 “मैंने शांति-बलि चढ़ायी है,+
आज अपनी मन्नत पूरी की है,
15 इसलिए मैं तुझसे मिलने आयी हूँ,
मैं तुझे ही ढूँढ़ रही थी और तू मुझे मिल गया।
17 उस पर गंधरस, अगर और दालचीनी छिड़की है।+
18 आ! हम एक-दूसरे के प्यार में खो जाएँ,
सुबह तक प्यार का जाम पीते रहें।
19 मेरा पति भी घर पर नहीं है,
वह लंबे सफर पर गया है
20 और अपने साथ पैसों की थैली ले गया है,
पूरे चाँद के निकलने तक वह नहीं लौटेगा।”
21 वह अपनी लच्छेदार बातों में उसे फँसा लेती है,+
मीठी-मीठी बातों से उसे फुसला लेती है।
22 फिर क्या, वह नौजवान फौरन उसके पीछे चल देता है,
जैसे बैल हलाल होने जा रहा हो,
23 अंत में एक तीर उसके कलेजे को भेद देगा,
उसका हाल उस पक्षी जैसा होगा,
जो तेज़ी से जाल की तरफ उड़ता है
और नहीं जानता कि अपनी जान गँवा बैठेगा।+
24 इसलिए मेरे बेटो, मेरी सुनो,
मैं जो कह रहा हूँ, उस पर ध्यान दो।
25 तेरा दिल तुझे उस औरत के पीछे जाने के लिए बहका न दे,
तू भटककर उसकी राहों पर मत जाना।+
26 उसने कई लोगों को अपना शिकार बनाया है,+
उसके हाथों बेहिसाब लोग मारे गए।+
27 उसका घर कब्र में ले जाता है,
मौत की काल-कोठरी में पहुँचाता है।