अध्याय 6
विनाशकारी शक्ति—“यहोवा योद्धा है”
1-3. (क) इस्राएलियों को मिस्रियों से क्या खतरा था? (ख) यहोवा अपने लोगों के लिए कैसे लड़ा?
इस्राएली बुरी तरह फँस चुके थे। उनके एक तरफ दुर्गम, ऊँची पहाड़ियाँ थीं और दूसरी तरफ हिलोरें मारता सागर, जिसे पार करना नामुमकिन था। मिस्र की सेना वहशियों की तरह उनका पीछा कर रही थी और उसने मानो इस्राएलियों का नामो-निशान मिटाने की कसम खा ली थी।a फिर भी, मूसा ने परमेश्वर के लोगों से उम्मीद न खोने की बिनती की। उसने उन्हें यकीन दिलाया: “यहोवा आप ही तुम्हारे लिये लड़ेगा।”—निर्गमन 14:14.
2 फिर भी, मूसा मदद के लिए यहोवा को पुकारने लगा और परमेश्वर ने उससे कहा: “तू क्यों मेरी दोहाई दे रहा है? . . . तू अपनी लाठी उठाकर अपना हाथ समुद्र के ऊपर बढ़ा, और वह दो भाग हो जाएगा।” (निर्गमन 14:15, 16) उसके बाद जो हुआ उस नज़ारे की कल्पना कीजिए। यहोवा ने फौरन अपने दूत को आज्ञा दी और बादल का खंभा उठकर इस्राएलियों के पीछे चला गया और एक दीवार की तरह फैल गया। मिस्रियों की बढ़ती सेना वहीं रुक गयी, और इस दीवार को पार ना कर सकी। (निर्गमन 14:19, 20; भजन 105:39) तब मूसा ने समुद्र की तरफ अपना हाथ बढ़ाया। एक ज़बरदस्त हवा चलने लगी जिसने समुद्र को दो भागों में बाँटकर बीच में से रास्ता बना दिया। इसके दोनों तरफ पानी एक दीवार की तरह जमकर खड़ा रहा। समुद्र के बीच का रास्ता इतना चौड़ा था कि पूरी इस्राएली जाति आराम से इसमें से होकर पार निकल सकती थी!—निर्गमन 14:21; 15:8.
3 अपनी आँखों से परमेश्वर की शक्ति का ऐसा ज़बरदस्त नज़ारा देखने के बाद फिरौन को अपनी फौजों को वापस मिस्र लौट चलने का हुक्म देना चाहिए था। लेकिन मगरूर फिरौन को यह हरगिज़ मंज़ूर नहीं था, इसलिए उसने इस्राएलियों पर हमला बोलने का आदेश दिया। (निर्गमन 14:23) मिस्री फौजें तूफान की तरह सीधे समुद्र के बीच घुस गयीं, लेकिन उनके रथों के पहिए निकल-निकलकर गिरने लगे और सेना के बीच हा-हाकार मचने लगा। दूसरी तरफ, जैसे ही इस्राएली सही-सलामत किनारे पर पहुँचे, यहोवा ने मूसा को यह आज्ञा दी: “अपना हाथ समुद्र के ऊपर बढ़ा, कि जल मिस्रियों, और उनके रथों, और सवारों पर फिर बहने लगे।” समुद्र के बीच पानी की दीवारें टूटने लगीं और फिरौन और उसकी सारी सेना उसमें डूब मरी!—निर्गमन 14:24-28; भजन 136:15.
लाल सागर पर यहोवा ने खुद को एक “योद्धा” साबित किया
4. (क) लाल सागर पर यहोवा ने खुद को क्या साबित किया? (ख) यहोवा को इस रूप में देखकर कुछ लोग शायद कैसा महसूस करें?
4 लाल सागर पर इस्राएलियों का छुटकारा, इंसान के साथ परमेश्वर के व्यवहार की एक यादगार घटना थी। वहाँ यहोवा ने साबित कर दिखाया था कि वह एक “योद्धा है।” (निर्गमन 15:3) लेकिन यहोवा को एक योद्धा के रूप में देखकर आपको कैसा लगता है? सच पूछिए तो युद्धों ने लोगों को दुःख और पीड़ाओं के सिवा और कुछ नहीं दिया। क्या परमेश्वर की इन विनाशकारी शक्तियों को देखकर आप उसके करीब आने के बजाय उससे दूरी बनाए रखना चाहते हैं?
परमेश्वर के युद्ध और इंसानी लड़ाइयाँ
5, 6. (क) यहोवा को ‘सेनाओं का यहोवा’ कहना सही क्यों है? (ख) परमेश्वर के युद्धों में और इंसानी लड़ाइयों में क्या फर्क है?
5 बाइबल की मूल भाषाओं में, इब्रानी शास्त्र में करीब तीन सौ बार और मसीही यूनानी शास्त्र में दो बार परमेश्वर को ‘सेनाओं का यहोवा’ कहा गया है। (1 शमूएल 1:11) इस पूरे जहान के महाराजाधिराज, यहोवा के पास अनगिनित स्वर्गदूतों की बड़ी सेना है। (यहोशू 5:13-15; 1 राजा 22:19) और ये सेनाएँ इतना विनाश करने के काबिल हैं जिसका कोई हिसाब नहीं। (यशायाह 37:36) इनके हाथों इंसानों का विनाश सोचना अच्छा नहीं लगता। लेकिन हमें याद रखना चाहिए कि परमेश्वर के युद्ध, इंसानों की लड़ाइयों जैसे नहीं जो छोटी-छोटी बात पर दूसरों को बर्बाद कर देते हैं। चाहे दुनिया के सेनापति और नेता अपने युद्धों को इंसानियत की खातिर लड़ी जानेवाली जंग का दर्जा क्यों ना दें, लेकिन इंसान की हर लड़ाई के पीछे उसका लालच और स्वार्थ छिपा होता है।
6 मगर, यहोवा जज़्बात से काम नहीं लेता। व्यवस्थाविवरण 32:4 ऐलान करता है: “वह चट्टान है, उसका काम खरा है; और उसकी सारी गति न्याय की है। वह सच्चा ईश्वर है, उस में कुटिलता नहीं, वह धर्मी और सीधा है।” खुद परमेश्वर का वचन क्रोध से बेकाबू होने, क्रूरता और हिंसा करने की सख्त निंदा करता है। (उत्पत्ति 49:7; भजन 11:5) इसलिए यहोवा कभी-भी बेवजह कोई कदम नहीं उठाता। वह अपनी विनाशकारी शक्ति को बहुत कम इस्तेमाल करता है और वह भी तब जब दूसरा कोई चारा न बचा हो। जैसा उसने भविष्यवक्ता यहेजकेल के ज़रिए कहा: “प्रभु यहोवा की यह वाणी है, क्या मैं दुष्ट के मरने से कुछ भी प्रसन्न होता हूं? क्या मैं इस से प्रसन्न नहीं होता कि वह अपने मार्ग से फिरकर जीवित रहे?”—यहेजकेल 18:23.
7, 8. (क) जब अय्यूब को ज़ुल्म सहना पड़ा तो वह कैसे गलत सोचने लगा? (ख) इस मामले में एलीहू ने अय्यूब की सोच को कैसे सुधारा? (ग) अय्यूब के अनुभव से हम क्या सबक सीख सकते हैं?
7 तो फिर, यहोवा अपनी विनाशकारी शक्ति का इस्तेमाल करता ही क्यों है? जवाब देने से पहले, आइए हम अय्यूब को याद करें जो एक धर्मी पुरुष था। शैतान ने उसके बारे में और दरअसल हर इंसान के बारे में यह सवाल उठाया कि परीक्षाओं में वह अपनी खराई बनाए नहीं रख सकेगा। शैतान के इस सवाल का जवाब देने के लिए यहोवा ने उसे अय्यूब की खराई का इम्तिहान लेने की इजाज़त दे दी। शैतान ने अय्यूब पर ज़ुल्म ढाना शुरू कर दिया, उसे बीमार कर दिया, उसकी सारी धन-दौलत छीन ली, यहाँ तक कि उसके बच्चों को मार डाला। (अय्यूब 1:1–2:8) अय्यूब इस बात से बेखबर था कि उसकी परीक्षा क्यों हो रही है, इसलिए वह सोचने लगा कि परमेश्वर उसे बिन बात के सज़ा दे रहा है। अय्यूब ने परमेश्वर से पूछा कि उसने क्यों उसे अपना “निशाना,” अपना “शत्रु” बना लिया है।—अय्यूब 7:20; 13:24.
8 वहाँ मौजूद एलीहू नाम के एक नौजवान ने अय्यूब की गलत सोच को उजागर करते हुए कहा: “तू दावा करता है कि तेरा धर्म ईश्वर के धर्म से अधिक है।” (अय्यूब 35:2) जी हाँ, यह सोचना सरासर मूर्खता है कि हमें परमेश्वर से ज़्यादा मालूम है या उसने हमारे साथ नाइंसाफी की है। एलीहू ने यह ऐलान किया: “यह सम्भव नहीं कि ईश्वर दुष्टता का काम करे, और सर्वशक्तिमान बुराई करे।” उसने आगे कहा: “सर्वशक्तिमान जो अति सामर्थी है, और जिसका भेद हम पा नहीं सकते, वह न्याय और पूर्ण धर्म को छोड़ अत्याचार नहीं कर सकता।” (अय्यूब 34:10; 36:22, 23; 37:23) इसलिए हम यकीन रख सकते हैं कि जब परमेश्वर युद्ध करता है तो उसके पीछे एक वाजिब कारण होता है। इसी बात को ध्यान में रखते हुए आइए चर्चा करें कि क्यों शांति के परमेश्वर को कभी-कभी एक योद्धा का रूप लेना पड़ता है।—1 कुरिन्थियों 14:33.
शांति के परमेश्वर को युद्ध क्यों करना पड़ता है
9. शांति का परमेश्वर युद्ध क्यों करता है?
9 परमेश्वर को “योद्धा” कहकर उसकी महिमा करने के बाद, मूसा ने आगे कहा: “हे यहोवा, देवताओं में तेरे तुल्य कौन है? तू तो पवित्रता के कारण महाप्रतापी . . . है।” (निर्गमन 15:11) यही बात हबक्कूक ने भी लिखी: “तेरी आंखें ऐसी शुद्ध हैं कि तू बुराई को देख ही नहीं सकता, और उत्पात को देखकर चुप नहीं रह सकता।” (हबक्कूक 1:13) जी हाँ, यहोवा प्रेम का परमेश्वर तो है ही, साथ ही वह पवित्रता, धार्मिकता और न्याय का भी परमेश्वर है। कई बार, उसके यही गुण उसे अपनी विनाशकारी शक्ति का इस्तेमाल करने के लिए उकसाते हैं। (यशायाह 59:15-19; लूका 18:7) तो फिर, जब परमेश्वर युद्ध करता है तो उसकी पवित्रता पर दाग नहीं लगता, बल्कि वह इसीलिए युद्ध करता है क्योंकि वह पवित्र है।—लैव्यव्यवस्था 19:2.
10. (क) परमेश्वर को युद्ध लड़ने की ज़रूरत पहली बार कब और कैसे पड़ी? (ख) उत्पत्ति 3:15 में जिस दुश्मनी का ज़िक्र है उसे खत्म करने का एकमात्र तरीका क्या हो सकता था, और इससे धर्मी इंसानों को क्या आशीषें मिलेंगी?
10 ज़रा गौर कीजिए कि जब पहले इंसानी जोड़े, आदम और हव्वा ने परमेश्वर के खिलाफ बगावत की तब कैसे हालात पैदा हो गए थे। (उत्पत्ति 3:1-6) अगर यहोवा ने उनके अधर्म के इस काम के खिलाफ कार्यवाही न की होती, तो यह पूरे विश्व के महाराजाधिराज की हैसियत से अपने पद को कमज़ोर करना होता। इसलिए धर्मी परमेश्वर होने के नाते, उन्हें मौत की सज़ा देना ज़रूरी था। (रोमियों 6:23) बाइबल की पहली भविष्यवाणी में उसने यह कह दिया था कि उसके सेवकों और “सांप” यानी शैतान के सेवकों के बीच बैर होगा। (प्रकाशितवाक्य 12:9; उत्पत्ति 3:15) आखिरकार इस दुश्मनी का अंत तभी होता जब शैतान को कुचल दिया जाता। (रोमियों 16:20) परमेश्वर की तरफ से न्याय की यह कार्यवाही इंसानों के लिए एक बड़ी आशीष साबित होगी। दुनिया को बहकाने के लिए फिर शैतान नहीं होगा और पूरी दुनिया को फिरदौस बनाने की तरफ यह पहला कदम होगा। (मत्ती 19:28) लेकिन इस बीच, वे सभी जो शैतान के हिमायती हैं, परमेश्वर के लोगों के लिए शारीरिक और आध्यात्मिक खतरा बने रहेंगे। और इस दौरान यहोवा को कई बार दखल देना होगा।
परमेश्वर बुराई को मिटाने के लिए कदम उठाता है
11. परमेश्वर के लिए पूरी धरती पर जलप्रलय लाना क्यों ज़रूरी हो गया?
11 नूह के दिनों में आया जलप्रलय बुराई को मिटाने की परमेश्वर की ऐसी ही एक कार्यवाही थी। उत्पत्ति 6:11, 12 कहता है: “उस समय पृथ्वी परमेश्वर की दृष्टि में बिगड़ गई थी, और उपद्रव से भर गई थी। और परमेश्वर ने पृथ्वी पर जो दृष्टि की तो क्या देखा, कि वह बिगड़ी हुई है; क्योंकि सब प्राणियों ने पृथ्वी पर अपनी अपनी चाल चलन बिगाड़ ली थी।” क्या परमेश्वर दुष्टों को इतनी छूट देता कि वे धरती से अच्छाई का नामो-निशान मिटा दें? बिलकुल नहीं। जो लोग इस धरती को हिंसा और अनैतिकता से भर रहे थे, उन्हें धरती से मिटाने के लिए यह ज़रूरी हो गया कि यहोवा एक जलप्रलय लाए।
12. (क) यहोवा ने इब्राहीम के “वंश” के बारे में क्या भविष्यवाणी की थी? (ख) अमोरियों का विनाश क्यों होना था?
12 कनान देश के खिलाफ परमेश्वर का न्यायदंड भी बुराई के खिलाफ उसका एक कदम था। यहोवा ने ज़ाहिर किया था कि इब्राहीम से एक “वंश” निकलेगा और पृथ्वी की सारी जातियाँ उस वंश के द्वारा खुद को आशीष दिलाएँगी। अपने इस मकसद के मुताबिक परमेश्वर ने ऐलान किया कि कनान देश इब्राहीम के वंशजों को मिलेगा। इस देश में एमोरी लोग रहते थे। लेकिन इन लोगों को ज़बरदस्ती देश से निकालना परमेश्वर का इंसाफ कैसे होता? यहोवा ने भविष्यवाणी की कि उन्हें करीब 400 साल तक यानी जब तक “एमोरियों का अधर्म पूरा नहीं” हो जाता, तब तक नहीं निकाला जाएगा।b (उत्पत्ति 12:1-3; 13:14, 15; 15:13, 16; 22:18) इस दौरान अमोरी लोग गंदे-से-गंदे अनैतिक कामों में गिरते चले गए। सारा कनान देश मूर्तिपूजा, खून-खराबे और घिनौने लैंगिक कामों का अड्डा बन गया। (निर्गमन 23:24; 34:12, 13; गिनती 33:52) वहाँ रहनेवाले लोग अपने बच्चों को आग में बलि चढ़ाते थे। क्या एक पवित्र परमेश्वर अपने लोगों को इतनी दुष्टता के बीच रहने देता? हरगिज़ नहीं। उसने यह फैसला सुनाया: “उनका देश . . . अशुद्ध हो गया है, इस कारण मैं उस पर उसके अधर्म का दण्ड देता हूं, और वह देश अपने निवासियों को उगल देता है।” (लैव्यव्यवस्था 18:21-25) यहोवा ने उन लोगों को अँधाधुंध मारना शुरू नहीं किया। राहाब और गिबोनियों जैसे अच्छे दिल के कनानियों को बख्श दिया गया।—यहोशू 6:25; 9:3-27.
अपने नाम की खातिर युद्ध लड़ना
13, 14. (क) क्यों यह ज़रूरी हो गया कि यहोवा अपने नाम को पवित्र करे? (ख) इस्राएलियों के मामले में, यहोवा ने अपने नाम की बदनामी को कैसे दूर किया?
13 यहोवा पवित्र है, इसलिए उसका नाम भी पवित्र है। (लैव्यव्यवस्था 22:32) यीशु ने अपने चेलों को यह प्रार्थना करना सिखाया था: “तेरा नाम पवित्र माना जाए।” (मत्ती 6:9) अदन की वाटिका में परमेश्वर के नाम पर कलंक लगाया गया, परमेश्वर की इज़्ज़त पर कीचड़ उछाला गया और उसके राज करने के तरीके को गलत बताया गया। यहोवा ऐसे घिनौने झूठ और बगावत को कतई बर्दाश्त नहीं कर सकता था। यह ज़रूरी हो गया कि वह अपने नाम पर लगे इस कलंक को मिटाए।—यशायाह 48:11.
14 एक बार फिर इस्राएलियों के बारे में सोचिए। जब तक वे मिस्र में गुलाम थे तब तक इब्राहीम से परमेश्वर का यह वादा एकदम खोखला लगता था कि उसके वंश से दुनिया की सारी जातियाँ खुद को आशीष दिलाएँगी। लेकिन उन्हें मिस्र से छुटकारा दिलाकर और जाति बनाकर यहोवा ने अपने नाम से इस बदनामी को दूर किया। इसलिए भविष्यवक्ता दानिय्येल ने इसे याद करते हुए प्रार्थना की: ‘हमारे परमेश्वर, हे प्रभु, तू ने अपनी प्रजा को मिस्र देश से, बली हाथ के द्वारा निकाल लाकर अपना नाम बड़ा किया है।’—दानिय्येल 9:15.
15. यहोवा ने बाबुल की कैद में पड़े यहूदियों को क्यों छुड़ाया?
15 दिलचस्पी की बात यह है कि दानिय्येल ने यह प्रार्थना उस वक्त की थी जब यहूदी संकट में थे और चाहते थे कि यहोवा अपने नाम की खातिर एक बार फिर कुछ कार्यवाही करे। इस बार, आज्ञा न माननेवाले ये यहूदी बाबुल की कैद में थे। उनकी राजधानी यरूशलेम उजाड़ पड़ी थी। दानिय्येल अच्छी तरह जानता था कि अगर यहूदियों का वतन बहाल हो जाए, तो इससे यहोवा के नाम की महिमा होगी। इसलिए उसने प्रार्थना की: “हे प्रभु, पाप क्षमा कर; हे प्रभु, ध्यान देकर जो करना है उसे कर, विलम्ब न कर; हे मेरे परमेश्वर, तेरा नगर और तेरी प्रजा तेरी ही कहलाती है; इसलिये अपने नाम के निमित्त ऐसा ही कर।”—तिरछे टाइप हमारे; दानिय्येल 9:18, 19.
अपने लोगों की खातिर युद्ध लड़ना
16. समझाइए कि कैसे अपने नाम की खातिर लड़ने का यह मतलब नहीं कि यहोवा को सिर्फ अपनी चिंता है और वह स्वार्थी है।
16 क्या इसका मतलब यह है कि यहोवा अपने नाम की रक्षा इसलिए करता है क्योंकि उसे दूसरों की नहीं बल्कि सिर्फ अपनी चिंता है और वह स्वार्थी है? बिलकुल नहीं, बल्कि अपनी पवित्रता और इंसाफ के लिए प्यार की वजह से जब वह कार्यवाही करता है, तो इससे उसके लोगों की हिफाज़त होती है। ज़रा उत्पत्ति के अध्याय 14 पर ध्यान दीजिए। वहाँ हम चार हमलावर राजाओं का ज़िक्र पाते हैं, जो इब्राहीम के भतीजे लूत और उसके परिवार को बँधुआ बनाकर ले गए थे। परमेश्वर की मदद से इब्राहीम ने उन राजाओं की शक्तिशाली फौज को इतनी बुरी तरह हराया कि वे देखते रह गए! यह किस्सा शायद “यहोवा के संग्राम नाम पुस्तक” में लिखा पहला युद्ध था। ज़ाहिर है कि यह वह किताब है जिसमें उन लड़ाइयों की चर्चा भी होगी जिनका ज़िक्र बाइबल में नहीं पाया जाता। (गिनती 21:14) इसके बाद कई जीत और हासिल होनी थीं।
17. इस बात के क्या सबूत हैं कि इस्राएलियों के कनान देश में दाखिल होने के बाद यहोवा अपने लोगों के लिए लड़ा? मिसालें दीजिए।
17 इस्राएलियों के कनान देश में दाखिल होने से कुछ ही समय पहले, मूसा ने उनकी हिम्मत बँधाते हुए उनसे कहा था: “तुम्हारा परमेश्वर यहोवा जो तुम्हारे आगे आगे चलता है वह आप तुम्हारी ओर से लड़ेगा, जैसे कि उस ने मिस्र में . . . तुम्हारे लिये किया।” (व्यवस्थाविवरण 1:30; 20:1) मूसा के बाद इस्राएल के अगुवे यहोशू के समय से लेकर, न्यायियों और यहूदा के वफादार राजाओं के समय तक यहोवा कई बार वाकई अपने लोगों के लिए लड़ा और उसने उन्हें दुश्मनों पर शानदार जीत दिलायी।—यहोशू 10:1-14; न्यायियों 4:12-17; 2 शमूएल 5:17-21.
18. (क) हम क्यों एहसानमंद हो सकते हैं कि यहोवा आज तक नहीं बदला? (ख) जब उत्पत्ति 3:15 में बतायी दुश्मनी अपने अंजाम पर पहुँचेगी तब क्या होगा?
18 यहोवा बदला नहीं; ना ही इस धरती को फिरदौस बनाने का उसका मकसद बदला है। (उत्पत्ति 1:27, 28) आज भी परमेश्वर दुष्टता से नफरत करता है। साथ ही, वह अपने लोगों से बेहद प्यार करता है और बहुत जल्द उन्हें बचाने के लिए एक बड़ा कदम उठाएगा। (भजन 11:7) सच तो यह है कि जिस दुश्मनी का ज़िक्र उत्पत्ति 3:15 में किया गया है, बहुत जल्द वह एक खतरनाक अंजाम पर पहुँचनेवाली है। अपने नाम को पवित्र ठहराने और अपने लोगों को बचाने के लिए यहोवा एक बार फिर “योद्धा” का रूप धारण करेगा!—जकर्याह 14:3; प्रकाशितवाक्य 16:14, 16.
19. (क) उदाहरण देकर समझाइए कि परमेश्वर की विनाशकारी शक्ति का इस्तेमाल हमें उसके और करीब कैसे ला सकता है। (ख) परमेश्वर हमारी खातिर लड़ने को तैयार है, इस बात का हम पर क्या असर होना चाहिए?
19 एक मिसाल पर गौर कीजिए: मान लीजिए कि एक आदमी के परिवार पर एक खूँखार जानवर हमला कर देता है और वह आदमी उस जानवर से लड़ने के लिए मैदान में कूद पड़ता है और उसे मार डालता है। तो क्या इस काम से उसकी पत्नी और बच्चे उससे नफरत करेंगे? नहीं, बल्कि अपनी जान खतरे में डालकर उसने अपने परिवार के लिए जो प्यार दिखाया, वह देखकर उनका दिल भी प्यार से उमड़ पड़ेगा। इसी तरह जब परमेश्वर अपनी विनाशकारी शक्ति का इस्तेमाल करता है, तो उसे देखकर हमें परमेश्वर से दूर नहीं भागना चाहिए। इसके बजाय, यह देखकर कि वह हमें बचाने के लिए हमारी खातिर लड़ने को तैयार है उसके लिए हमारा प्यार और बढ़ना चाहिए। साथ ही, उसकी अपार शक्ति के लिए हमारी इज़्ज़त भी बढ़नी चाहिए। अगर ऐसा होगा तब हम “भक्ति, और भय सहित, परमेश्वर की ऐसी आराधना कर सकते हैं जिस से वह प्रसन्न होता है।”—इब्रानियों 12:28.
“योद्धा” के करीब आओ
20. जब हमें बाइबल में दर्ज़ कई घटनाएँ समझ नहीं आतीं, तो हमें क्या करना चाहिए, और क्यों?
20 यह सही है कि बाइबल हर घटना के साथ, विस्तार से यह नहीं बताती कि यहोवा ने किन बातों को ध्यान में रखते हुए युद्ध करने का फैसला किया। लेकिन हम इस बात के बारे में निश्चिंत हो सकते हैं: यहोवा कभी-भी अपनी विनाशकारी शक्ति, अन्याय करने, बेवजह अत्याचार करने और क्रूरता के लिए इस्तेमाल नहीं करता। कई बार, बाइबल में दी गयी घटनाओं की पूरी जानकारी पढ़ने से हमें समझ आता है कि यहोवा ने यह कदम क्यों उठाया। (नीतिवचन 18:13) लेकिन जब हमारे पास पूरी जानकारी ना भी हो, तब भी यहोवा के बारे में ज़्यादा सीखने और उसके अनमोल गुणों पर मनन करने से हम अपने मन में आनेवाला कोई भी शक या शुबहा दूर कर सकते हैं। जब हम ऐसा करते हैं तो यह साफ देख पाते हैं कि हमें अपने परमेश्वर यहोवा पर भरोसा करने की कई वजह हैं।—अय्यूब 34:12.
21. हालाँकि कभी-कभी यहोवा एक “योद्धा” का रूप धारण करता है, लेकिन वह असल में कैसा है?
21 हालाँकि हालात जब माँग करते हैं तब यहोवा परमेश्वर एक “योद्धा” बन जाता है, लेकिन इसका मतलब यह नहीं कि वह कठोर और पत्थरदिल है। यहेजकेल ने दर्शन में देखा था कि यहोवा अपने दिव्य रथ पर सवार है और अपने दुश्मनों से युद्ध करने को तैयार है। लेकिन यहेजकेल ने यह भी देखा कि यहोवा के चारों तरफ एक मेघधनुष है जो शांति का प्रतीक है। (उत्पत्ति 9:13; यहेजकेल 1:28; प्रकाशितवाक्य 4:3) इससे साफ पता लगता है कि यहोवा विनम्र और शांति चाहनेवाला परमेश्वर है। प्रेरित यूहन्ना ने लिखा: “परमेश्वर प्रेम है।” (1 यूहन्ना 4:8) यहोवा का हर गुण उसमें पूर्णता से विराजमान है। इसलिए हम क्या ही धन्य हैं कि हमें ऐसे परमेश्वर के करीब आने का मौका मिला है, जो शक्तिशाली होने के साथ-साथ प्यार करनेवाला परमेश्वर है!
a यहूदी इतिहासकार जोसीफस के मुताबिक, इस्राएलियों का “पीछा करनेवाली सेना में 600 रथ, 50,000 घुड़सवार और 2,00,000 पैदल सैनिक थे, जो हथियारों से पूरी तरह लैस थे।”—जूइश एन्टिक्विटीस्, II, 324 [15, 3]।
b ज़ाहिर है कि शब्द “अमोरी” में कनान देश के रहनेवाले सभी लोग शामिल हैं।—व्यवस्थाविवरण 1:6-8, 19-21, 27; यहोशू 24:15, 18.