अध्याय 2
स्वर्ग में राज की शुरूआत
1, 2. (क) दुनिया में अब तक हुई सबसे बड़ी घटना क्या है? (ख) यह क्यों ताज्जुब की बात नहीं कि इंसानों ने वह घटना नहीं देखी?
इतिहास में ऐसी बड़ी-बड़ी घटनाएँ हुई हैं जिनका लाखों लोगों की ज़िंदगी पर असर हुआ है। लेकिन बहुत कम लोगों ने उन घटनाओं को अपनी आँखों से देखा है। क्यों? क्योंकि जिन घटनाओं से बड़े-बड़े बदलाव हुए हैं, जैसे सरकारों का टूटना, वे अकसर आम लोगों की नज़रों से दूर बंद कमरों में हुई हैं। वे घटनाएँ कभी किसी महल के दीवान-ए-खास में हुईं, तो कभी संसद-भवनों में या सरकारी दफ्तरों में।
2 दुनिया में हुई अब तक की सबसे बड़ी घटना भी लोगों की नज़रों से दूर घटी थी। इसका भी लाखों लोगों की ज़िंदगी पर असर हुआ है। जी हाँ, हम बात कर रहे हैं, स्वर्ग में परमेश्वर के राज की शुरूआत की जिसका राजा मसीहा है। इस राज के बारे में बहुत पहले से वादा किया गया था और यह जल्द ही इस पूरी दुनिया का अंत कर देगा। (दानियेल 2:34, 35, 44, 45 पढ़िए।) अब क्योंकि किसी भी इंसान ने वह खास घटना नहीं देखी थी तो क्या यह कहना सही होगा कि यहोवा ने उस घटना को इंसानों से छिपाए रखा? या क्या उसने अपने वफादार लोगों को उसके लिए पहले से तैयार किया? आइए देखें।
‘मेरा दूत मेरे आगे-आगे जाकर रास्ता तैयार करेगा’
3-5. (क) मलाकी 3:1 में बताया ‘करार का दूत’ कौन था? (ख) मंदिर में दूत के आने से पहले क्या होता?
3 यहोवा ने बहुत पहले ही तय किया था कि वह अपने लोगों को मसीहा के राज की हुकूमत की शुरूआत के लिए तैयार करेगा। मिसाल के लिए, मलाकी 3:1 की भविष्यवाणी पर ध्यान दीजिए: “देखो, मैं अपना दूत भेज रहा हूँ और वह मेरे आगे-आगे जाकर रास्ता तैयार करेगा। फिर सच्चा प्रभु जिसे तुम ढूँढ़ रहे हो, अचानक अपने मंदिर में आएगा। करार का वह दूत भी आएगा जिसकी तुम खुशी-खुशी आस लगाए हो।”
4 जब यह भविष्यवाणी हमारे दिनों में पूरी हुई तो “सच्चा प्रभु” यहोवा कब उन लोगों की जाँच करने आया, जो उसके लाक्षणिक मंदिर के आँगन यानी धरती पर सेवा कर रहे थे? भविष्यवाणी बताती है कि यहोवा ‘करार के दूत’ के साथ आएगा। यह दूत कौन था? कोई और नहीं बल्कि परमेश्वर के राज का राजा यीशु मसीह! (लूका 1:68-73) राजा बनते ही वह धरती पर परमेश्वर के लोगों की जाँच करता और उन्हें शुद्ध करता।—1 पत. 4:17.
5 मलाकी 3:1 में बताया पहला “दूत” कौन था? यह दूत परमेश्वर के राज के राजा की मौजूदगी से बहुत पहले आता। सन् 1914 से पहले के सालों में क्या किसी ने राजा के आने से पहले “रास्ता तैयार” किया था?
6. भविष्यवाणी में बताया पहला “दूत” कौन था जिसने परमेश्वर के लोगों को आगे की घटनाओं के लिए तैयार किया?
6 इस किताब में जब हम आज के ज़माने के यहोवा के लोगों के रोमांचक इतिहास पर गौर करेंगे तो ऐसे सवालों के जवाब पाएँगे। उनका इतिहास दिखाता है कि 1870 के बाद के सालों में, जब नकली मसीहियों की गिनती बेहिसाब थी, नेकदिल लोगों का एक छोटा समूह उभरने लगा। सिर्फ वे ही सच्चे मसीही थे। वे बाइबल विद्यार्थी कहलाए। उनकी अगुवाई भाई चार्ल्स टी. रसल और उनके कुछ करीबी साथी कर रहे थे। उन्होंने भविष्यवाणी में बताए “दूत” की भूमिका निभायी, क्योंकि उन्होंने परमेश्वर के लोगों को मार्गदर्शन दिया और आगे होनेवाली घटनाओं के लिए तैयार किया। आइए देखें कि उस “दूत” ने किन चार तरीकों से ऐसा किया।
उन्होंने सच्चाई से उपासना की
7, 8. (क) सन् 1800 और 1900 के बीच, कौन अमर आत्मा की झूठी शिक्षा का परदाफाश करने लगे? (ख) भाई रसल और उनके करीबी साथियों ने और किन झूठी शिक्षाओं का परदाफाश किया?
7 बाइबल विद्यार्थी बाइबल का अध्ययन करते वक्त यहोवा से मार्गदर्शन माँगते थे। वे उन शिक्षाओं पर सहमत होते जो बाइबल से साफ पता चलती हैं, उन सारी शिक्षाओं को इकट्ठा करते और प्रकाशित करते थे। ईसाईजगत के चर्च, सदियों से अँधेरे में थे क्योंकि उन्हें बाइबल की सही समझ नहीं थी। उनकी बहुत-सी शिक्षाएँ गैर-ईसाई धर्मों से निकली थीं। इसकी एक बड़ी मिसाल है, अमर आत्मा की शिक्षा। मगर करीब 1850 में बाइबल का सच्चे दिल से अध्ययन करनेवाले कुछ लोगों ने इस शिक्षा को जाँचा और पाया कि यह शिक्षा परमेश्वर के वचन से नहीं है। उनमें से कुछ थे हैनरी ग्रू, जॉर्ज स्टेटसन और जॉर्ज स्टॉर्ज़। उन्होंने शैतान के फैलाए उस झूठ का परदाफाश करने के लिए उसके बारे में लेख लिखे और हिम्मत से उसके बारे में भाषण दिए।a उनके लेखों का भाई रसल और उनके साथियों पर गहरा असर हुआ।
8 बाइबल विद्यार्थियों के उस छोटे समूह ने पाया कि अमर आत्मा से जुड़ी दूसरी शिक्षाएँ भी झूठी हैं और उलझन में डाल देती हैं। जैसे, यह शिक्षा कि अच्छे लोग स्वर्ग जाते हैं और दुष्टों की आत्माओं को परमेश्वर नरक की आग में हमेशा तड़पाता है। भाई रसल और उनके करीबी साथियों ने हिम्मत से इन झूठी शिक्षाओं का परदाफाश किया। उन्होंने कई लेखों, किताबों और परचों में ऐसा किया। इन विषयों पर दिए भाषणों को उन्होंने अखबारों में भी प्रकाशित करवाया।
9. प्रहरीदुर्ग ने त्रिएक की झूठी शिक्षा का कैसे परदाफाश किया?
9 बाइबल विद्यार्थियों ने त्रिएक की शिक्षा का भी परदाफाश किया जिसे दुनिया-भर में बहुत माना जाता है। सन् 1887 की एक प्रहरीदुर्गb में यह लिखा था: “शास्त्र में यह बात स्पष्ट है कि यहोवा पिता है और हमारा प्रभु यीशु पुत्र है और वे दोनों एक-दूसरे से अलग हैं।” फिर लेख ने कहा कि यह हैरानी की बात है कि “त्रिएक देवता की धारणा कैसे प्रसिद्ध हो गयी और पूरे संसार ने स्वीकार कर लिया कि तीन परमेश्वर मिलकर एक है और एक परमेश्वर में तीन परमेश्वर हैं। इससे स्पष्ट है कि जब शत्रु, चर्च को झूठी शिक्षाओं के बंधनों में बाँध रहा था तो चर्च गहरी नींद सो रहा था।”
10. प्रहरीदुर्ग में कैसे समझाया गया कि 1914 एक खास साल होगा?
10 उस समय प्रहरीदुर्ग का पूरा नाम था, सिय्योन का प्रहरीदुर्ग और मसीह की उपस्थिति का उद्घोषक (ज़ायन्स वॉच टावर एंड हेरल्ड ऑफ क्राइस्ट्स प्रेज़ेंस )। इस नाम से ही पता चलता है कि इस पत्रिका में मसीह की मौजूदगी से जुड़ी भविष्यवाणियों पर खास ध्यान दिया गया था। जो वफादार अभिषिक्त मसीही उस पत्रिका के लेख लिखते थे, वे समझ गए कि “सात काल” के बारे में दानियेल की भविष्यवाणी दिखाती है कि मसीहा के राज से जुड़ा परमेश्वर का मकसद कब पूरा होगा। सन् 1876 में ही उन्होंने बता दिया था कि वे सात काल 1914 में खत्म होंगे। (दानि. 4:25; लूका 21:24) हालाँकि उस ज़माने में हमारे भाइयों को पूरी समझ नहीं थी कि वह साल कितना खास होगा, फिर भी उन्हें जो जानकारी थी उसे उन्होंने दूर-दूर तक फैलाया। इसका असर हम आज तक देख सकते हैं।
11, 12. (क) भाई रसल जो सिखाते थे उसका श्रेय उन्होंने किसको दिया? (ख) भाई रसल और उनके साथियों ने 1914 से पहले जो काम किया, वह क्यों ज़रूरी था?
11 लेकिन न तो भाई रसल ने और न ही उनके करीबी साथियों ने कभी दावा किया कि ये सारी अहम सच्चाइयाँ सबसे पहले उन्होंने पता लगायीं और समझीं। भाई रसल ने इसका श्रेय उन लोगों को दिया जो उनसे पहले थे। इससे भी बढ़कर, भाई ने यहोवा परमेश्वर को श्रेय दिया, जो अपने लोगों को उन बातों की समझ देता है जो उनके लिए ज़रूरी हैं और वह भी सही समय पर। यह साफ है कि यहोवा ने भाई रसल और उनके करीबी साथियों की मेहनत पर आशीष दी, जो सच्चाई को झूठ से अलग कर रहे थे। जैसे-जैसे साल गुज़रते गए, वे ईसाईजगत से और भी दूर होते गए और एकदम अलग नज़र आने लगे।
12 सन् 1914 से पहले के सालों में उन वफादार आदमियों ने बाइबल की सच्चाई की पैरवी करने में जो मेहनत की, वह सचमुच हैरान कर देनेवाली बात है! उस समय के बारे में बाद में 1 नवंबर, 1917 की प्रहरीदुर्ग ने कहा, “आज लाखों लोग उस भय से स्वतंत्र हो गए हैं, जो नरक-अग्नि की शिक्षा और दूसरी झूठी शिक्षाएँ मानने के कारण उनके मन में बैठ गया था। . . . सच्चाई की जो लहर 40 साल पहले उठनी शुरू हुई थी, अब लगातार ऊँची उठ रही है और यह तब तक उठती रहेगी जब तक कि सारी धरती पर फैल न जाए। इसके शत्रु चाहे कितना भी प्रयास कर लें वे सच्चाई को पूरे संसार में फैलने से नहीं रोक सकते, ठीक जैसे एक झाड़ू से विशाल महासागर की लहरों को रोकना असंभव है।”
13, 14. (क) “दूत” ने परमेश्वर के राज के राजा के लिए रास्ता कैसे तैयार किया? (ख) हम सौ साल पहले के भाइयों से क्या सीखते हैं?
13 ज़रा सोचिए, अगर परमेश्वर के लोग यह समझ नहीं पाते कि यीशु अपने पिता यहोवा से अलग है तो क्या वे मसीह की मौजूदगी के लिए तैयार हो पाते? बेशक नहीं! उसी तरह, अगर वे मानते कि मरने के बाद सब लोग अमर हो जाते हैं और अमरता एक अनमोल तोहफा नहीं है जो मसीह के कुछ चेलों को ही मिलता है, या अगर वे मानते कि परमेश्वर लोगों को नरक की आग में हमेशा तड़पाता है तो वे मसीह की मौजूदगी के लिए तैयार नहीं हो पाते! इसमें कोई शक नहीं कि “दूत” ने परमेश्वर के राज के राजा के लिए रास्ता तैयार किया था!
14 आज हम उन भाइयों से क्या सीख सकते हैं जो सौ साल पहले जीए थे? यही कि हमें भी उनकी तरह बड़ी उत्सुकता से परमेश्वर का वचन पढ़ना और उसका अध्ययन करना चाहिए। (यूह. 17:3) दौलत के पीछे भागनेवाली इस दुनिया के लोगों को परमेश्वर का ज्ञान नहीं है, इसलिए दिनों-दिन उनकी हालत खराब होती जा रही है। मगर ऐसा हो कि परमेश्वर के वचन से सीखने के लिए हमारी भूख बढ़ती जाए!—1 तीमुथियुस 4:15 पढ़िए।
“मेरे लोगो, उसमें से बाहर निकल आओ”
15. बाइबल विद्यार्थी समय के गुज़रते क्या बात समझ गए? (फुटनोट भी देखें।)
15 बाइबल विद्यार्थी सिखाते थे कि चर्चों से नाता तोड़ लेना ज़रूरी है। सन् 1879 की एक प्रहरीदुर्ग में “बैबिलोन के चर्च” का ज़िक्र किया गया था। क्या इसका मतलब रोमन कैथोलिक चर्च था? सदियों से प्रोटेस्टेंट चर्च मानते थे कि बाइबल की भविष्यवाणी में बताया बैबिलोन, कैथोलिक चर्च को दर्शाता है। मगर समय के गुज़रते बाइबल विद्यार्थी समझ गए कि आज के ज़माने का “बैबिलोन” ईसाईजगत के सभी चर्चों को दर्शाता है। क्यों? क्योंकि वे सभी ऐसी झूठी शिक्षाएँ सिखाते हैं जिनके बारे में अब तक चर्चा की गयी है।c कुछ समय बाद हमारे प्रकाशनों में और भी खुलकर बताया जाने लगा कि बैबिलोन के चर्चों में फँसे नेकदिल लोगों को क्या करना चाहिए।
16, 17. (क) हज़ार वर्षीय राज का उदय किताब और प्रहरीदुर्ग ने कैसे लोगों को झूठे धर्म से नाता तोड़ने का बढ़ावा दिया? (ख) शुरू में उन चेतावनियों को अनसुना करने की एक वजह क्या थी? (फुटनोट देखें।)
16 मिसाल के लिए, 1891 में हज़ार वर्षीय राज का उदय (मिलेनियल डॉन ) किताब के तीसरे खंड में समझाया गया कि परमेश्वर ने उन चर्चों को ठुकरा दिया है जो आज के बैबिलोन का हिस्सा हैं। किताब में यह भी कहा गया कि जो-जो “उसकी झूठी शिक्षाओं और प्रथाओं से सहमत नहीं हैं, उन्हें उससे नाता तोड़ लेना चाहिए।”
17 जनवरी 1900 की प्रहरीदुर्ग के एक लेख में उन लोगों को सलाह दी गयी, जिन्होंने अब भी चर्चों से अपना नाम नहीं कटवाया था और जो खुद को सही ठहराने के लिए यह सफाई दे रहे थे, “मैं सच्चाई से पूरी तरह सहमत हूँ और दूसरे चर्चों की सभाओं में कभी-कभार ही जाता हूँ।” लेख ने ऐसे लोगों से पूछा, “क्या एक पैर बैबिलोन के अंदर और दूसरा पैर बाहर रखना उचित है? क्या इसी को आज्ञा मानना कहते हैं? . . . क्या इससे परमेश्वर प्रसन्न होता है और वह इसे स्वीकार करता है? बिलकुल नहीं। जब एक व्यक्ति चर्च का सदस्य बनता है तो वह सार्वजनिक तौर पर उसके साथ एक वाचा में बँध जाता है। और जब तक वह सार्वजनिक तौर पर अपनी सदस्यता रद्द नहीं करता तब तक उसे वाचा की सभी शर्तों को मानना पड़ता है।” बाद के सालों में यह संदेश और भी कड़े शब्दों में दिया गया।d यहोवा के सेवकों को झूठे धर्म से पूरी तरह नाता तोड़ लेना था।
18. लोगों के लिए महानगरी बैबिलोन से बाहर निकलना क्यों ज़रूरी था?
18 अगर महानगरी बैबिलोन से बाहर निकलने की चेतावनी इस तरह बार-बार नहीं दी जाती तो क्या मसीह के राजा बनने के बाद उसके लिए धरती पर अभिषिक्त सेवकों का एक समूह तैयार रहता? नहीं, क्योंकि सिर्फ वे मसीही “पवित्र शक्ति और सच्चाई से” यहोवा की उपासना कर सकते हैं जो बैबिलोन के चंगुल से आज़ाद हैं। (यूह. 4:24) क्या आज हमने भी ठान लिया है कि हम झूठे धर्म से कोई नाता नहीं रखेंगे? आइए हम इस आज्ञा को मानते रहें: “मेरे लोगो, उसमें से बाहर निकल आओ”!—प्रकाशितवाक्य 18:4 पढ़िए।
वे उपासना के लिए इकट्ठा हुए
19, 20. प्रहरीदुर्ग ने कैसे परमेश्वर के लोगों को उपासना के लिए इकट्ठा होने का बढ़ावा दिया?
19 बाइबल विद्यार्थी सिखाते थे कि जहाँ मुमकिन है वहाँ सभी मसीहियों को उपासना के लिए इकट्ठा होना चाहिए। सच्चे मसीहियों के लिए झूठे धर्म से बाहर निकलना काफी नहीं है। उन्हें शुद्ध उपासना भी करनी चाहिए। प्रहरीदुर्ग शुरू से ही इसके पढ़नेवालों को बढ़ावा देती रही कि वे उपासना के लिए इकट्ठा हुआ करें। मिसाल के लिए, जुलाई 1880 की प्रहरीदुर्ग में भाई रसल ने बताया कि जब वे जगह-जगह भाषण देने गए तो सभाओं से लोगों को कितना हौसला मिला। फिर उन्होंने प्रहरीदुर्ग पढ़नेवालों को बढ़ावा दिया कि वे अपनी तरक्की के बारे में पोस्टकार्ड में लिखकर भेजें और कहा कि उनमें से कुछ रिपोर्टें पत्रिका में छापी जाएँगी। क्यों? भाई ने कहा, “हम जानना चाहते हैं कि . . . प्रभु आप लोगों को क्या आशीषें दे रहा है और क्या आप उन लोगों के साथ सभाओं में इकट्ठा हो रहे हैं जिनमें आपके जैसा अनमोल विश्वास है।”
20 सन् 1882 की एक प्रहरीदुर्ग में एक लेख छपा था जिसका शीर्षक था, “साथ इकट्ठा हों।” लेख ने मसीहियों को बढ़ावा दिया कि वे सभाएँ रखें “ताकि एक-दूसरे से सीखें, हिम्मत और मज़बूती पाएँ।” लेख में यह भी बताया गया, “यह कोई महत्त्व नहीं रखता कि आपके बीच कोई जानकार या कुशल है या नहीं। हर कोई अपनी बाइबल, कागज़ और पेंसिल लाए और अगर संभव हो . . . तो बाइबल के शब्द-भंडार की किताब (कौनकौर्डन्स) भी ले आए। एक विषय चुनिए और उसे समझने के लिए पवित्र शक्ति का मार्गदर्शन माँगिए। फिर बाइबल के वचन पढ़िए, उनके बारे में सोचिए और दूसरे वचनों से उनकी तुलना कीजिए। तब पवित्र शक्ति सच्चाई जानने में निश्चय आपकी सहायता करेगी।”
21. अलेगेनी की मंडली ने सभाएँ रखने और अपने सदस्यों की देखभाल करने में क्या मिसाल रखी?
21 बाइबल विद्यार्थियों का मुख्यालय, अमरीकी राज्य पेन्सिलवेनिया के अलेगेनी शहर में था। वहाँ वे इकट्ठा होने में अच्छी मिसाल रखते थे। इस तरह वे इब्रानियों 10:24, 25 में परमेश्वर की प्रेरणा से लिखी आज्ञा मानते थे। (पढ़िए।) कई साल बाद चार्ल्स केपन नाम के एक बुज़ुर्ग भाई ने अपना बचपन याद करते हुए बताया कि उन दिनों सभाएँ कैसी होती थीं। उन्होंने लिखा, “आज भी मुझे एक वचन याद है जो संस्था के सम्मेलन भवन की एक दीवार पर लिखा था। वह था, ‘तुम्हारा एक ही गुरु है, मसीह और तुम सब भाई हो।’ वह वचन आज भी मेरे मन में ताज़ा है, जिसका अर्थ है कि यहोवा के लोगों में पादरियों और आम लोग जैसा कोई वर्ग नहीं होता।” (मत्ती 23:8) भाई केपन ने यह भी बताया कि उन सभाओं से कैसे सबमें जोश भर आता था, सबको प्यार और हौसला मिलता था और भाई रसल कैसे चरवाहे की तरह बड़ी मेहनत से मंडली के हर सदस्य की देखभाल करते थे।
22. (क) जब सभाओं में आने का बढ़ावा दिया गया तो वफादार मसीहियों ने क्या किया? (ख) हम उनसे क्या सीखते हैं?
22 अमरीका के दूसरे राज्यों के वफादार मसीही, मुख्यालय के भाइयों की इस अच्छी मिसाल पर चले और उनकी हिदायतें मानीं। ओहायो और मिशिगन जैसे राज्यों में मंडलियाँ बन गयीं। फिर पूरे उत्तरी अमरीका में और दूसरे देशों में भी मंडलियाँ बन गयीं। ज़रा सोचिए: अगर उन वफादार मसीहियों को सिखाया नहीं जाता कि वे उपासना के लिए इकट्ठा होने की सलाह मानें तो क्या वे मसीह की मौजूदगी के लिए तैयार होते? हरगिज़ नहीं! इससे हम क्या सीखते हैं? हमें भी ठान लेना चाहिए कि हम सभी मसीही सभाओं में जाएँगे और साथ मिलकर उपासना करने और एक-दूसरे का हौसला बढ़ाने का कोई भी मौका नहीं छोड़ेंगे।
उन्होंने जोश से प्रचार किया
23. प्रहरीदुर्ग में कैसे साफ बताया गया कि सभी अभिषिक्त मसीहियों को सच्चाई के प्रचारक होना चाहिए?
23 बाइबल विद्यार्थी सिखाते थे कि सभी अभिषिक्त जनों को सच्चाई का प्रचार करना चाहिए। सन् 1885 की एक प्रहरीदुर्ग में लिखा था, “हमें नहीं भूलना चाहिए कि हर अभिषिक्त जन का इसलिए अभिषेक किया गया है कि वह प्रचार करे, सेवा करे। (यशा. 61:1)” सन् 1888 की एक प्रहरीदुर्ग में कहा गया, “यह स्पष्ट है कि हमें क्या काम दिया गया है . . . अगर हम इसे अनदेखा करें और बहाने बनाएँ तो हम निस्संदेह आलसी सेवक हैं और हम साबित कर रहे होंगे कि हम उस ऊँचे पद के योग्य नहीं जिसके लिए हमें बुलाया गया है।”
24, 25. (क) भाई रसल और उनके करीबी साथियों ने प्रचार करने का बढ़ावा देने के अलावा और क्या किया? (ख) पुराने ज़माने में जब “गाड़ियाँ बहुत कम हुआ करती थीं” तब एक कोलपोर्टर कैसे प्रचार करता था?
24 भाई रसल और उनके करीबी साथियों ने लोगों को प्रचार करने का बढ़ावा देने के अलावा और भी बहुत कुछ किया। वे बाइबल विद्यार्थियों के परचे (बाइबल स्टूडेंट्स ट्रैक्ट्स ) प्रकाशित करने लगे जिन्हें बाद में प्राचीन धर्म-विज्ञान तिमाही (ओल्ड थियॉलजी क्वॉर्टर्ली ) भी कहा जाता था। प्रहरीदुर्ग पढ़नेवालों को ये परचे भेजे जाते थे ताकि वे मुफ्त में लोगों को दें।
हमें खुद से पूछना चाहिए, ‘क्या मैं प्रचार काम को ज़िंदगी में सबसे ज़्यादा अहमियत देता हूँ?’
25 जो लोग पूरे समय प्रचार करते थे उन्हें कोलपोर्टर (पायनियर) कहा जाता था। भाई केपन भी एक कोलपोर्टर थे। उन्होंने बीते दिनों के बारे में एक बार बताया था, “अमरीका के भू-विज्ञान सर्वे के मानचित्रों की सहायता से मैं पेन्सिलवेनिया के पूरे प्रांत में प्रचार कर पाया। उन मानचित्रों में सारी सड़कें दिखायी गयी थीं। इसलिए मैं पैदल चलकर हर प्रांत के कोने-कोने तक जा पाया। कभी-कभी मैं तीन दिन यात्रा करके पूरे देहात में जाता और पूछता कि किस-किसको शास्त्र का अध्ययन (स्टडीज़ इन द स्क्रिप्चर्स ) किताब के खंड चाहिए। फिर मैं एक घोड़ा-गाड़ी किराए पर लेता ताकि ये किताबें उन लोगों तक पहुँचा सकूँ। मैं अकसर किसानों के यहाँ रात गुज़ारता था। उन दिनों गाड़ियाँ बहुत कम हुआ करती थीं।”
26. (क) मसीह की हुकूमत के लिए तैयार होने के लिए परमेश्वर के लोगों को क्यों प्रचार काम करना था? (ख) हमें खुद से क्या सवाल पूछने चाहिए?
26 उस ज़माने में प्रचार करने के लिए वाकई हिम्मत और जोश की ज़रूरत थी। अगर सच्चे मसीहियों को सिखाया नहीं जाता कि प्रचार काम कितना ज़रूरी है तो क्या वे मसीह के राज के लिए तैयार होते? बेशक नहीं! उन्हें प्रचार काम की अहमियत सिखाना ज़रूरी था क्योंकि यह काम मसीह की मौजूदगी की निशानी का एक खास पहलू होता। (मत्ती 24:14) परमेश्वर के लोगों को तैयार किया जाना था ताकि वे जान बचाने के इस काम को सबसे ज़्यादा अहमियत दें। आज हमें खुद से पूछना चाहिए, ‘क्या मैं प्रचार काम को ज़िंदगी में सबसे ज़्यादा अहमियत देता हूँ? क्या मैं इसमें पूरा हिस्सा लेने के लिए त्याग करता हूँ?’
परमेश्वर के राज की हुकूमत शुरू हो गयी!
27, 28. (क) प्रेषित यूहन्ना ने दर्शन में क्या देखा? (ख) जब राज की शुरूआत हुई तो शैतान और उसके दुष्ट स्वर्गदूतों ने क्या किया?
27 आखिरकार, वह खास साल 1914 आ गया! जैसे हमने इस अध्याय की शुरूआत में चर्चा की, किसी भी इंसान ने वे अहम घटनाएँ नहीं देखीं जो स्वर्ग में हुई थीं। मगर प्रेषित यूहन्ना को दर्शन में वे घटनाएँ निशानियों के तौर पर दिखायी गयी थीं। कल्पना कीजिए: यूहन्ना स्वर्ग में “एक बड़ी निशानी” देखता है। परमेश्वर की “औरत,” यानी स्वर्गदूतों से बना संगठन, गर्भवती है और एक लड़के को जन्म देती है। दर्शन में बताया जाता है कि वह लड़का बहुत जल्द “चरवाहे की तरह सब राष्ट्रों को लोहे के छड़ से हाँकेगा।” मगर जब वह पैदा होता है तो उसे “छीनकर परमेश्वर और उसकी राजगद्दी के पास ले जाया” जाता है। फिर स्वर्ग से एक ज़ोरदार आवाज़ कहती है, “हमारे परमेश्वर की तरफ से उद्धार और उसकी शक्ति और उसका राज और उसके मसीह का अधिकार अब ज़ाहिर हुआ है।”—प्रका. 12:1, 5, 10.
28 इसमें कोई शक नहीं कि यूहन्ना ने उस दर्शन में मसीहा के राज को शुरू होते हुए देखा था। वह एक बेहद खास घटना थी, मगर इससे हर कोई खुश नहीं था। शैतान और उसके दुष्ट स्वर्गदूतों ने उन वफादार स्वर्गदूतों से लड़ाई की, जिनका अगुवा मीकाएल या मसीह था। नतीजा? बाइबल कहती है, “वह बड़ा भयानक अजगर, वही पुराना साँप, जो इबलीस और शैतान कहलाता है और जो सारे जगत को गुमराह करता है, वह नीचे धरती पर फेंक दिया गया और उसके दुष्ट स्वर्गदूत भी उसके साथ फेंक दिए गए।”—प्रका. 12:7, 9.
29, 30. (क) जब स्वर्ग में मसीहा का राज शुरू हुआ तो धरती पर हालात कैसे बदल गए? (ख) स्वर्ग में हालात कैसे बदल गए?
29 सन् 1914 से कई साल पहले, बाइबल विद्यार्थियों ने बताया था कि उस साल मुसीबतों का एक दौर शुरू होगा। मगर उन्हें भी अंदाज़ा नहीं था कि उनकी बात कितनी सच निकलेगी। तब से शैतान इंसानों के समाज पर और भी बुरा असर करता, ठीक जैसे यूहन्ना के दर्शन में बताया गया था: “हे धरती और समुंदर, तुम पर बड़ी मुसीबत टूट पड़ी है क्योंकि शैतान तुम्हारे पास नीचे आ गया है और बड़े क्रोध में है, क्योंकि वह जानता है कि उसका बहुत कम वक्त बाकी रह गया है।” (प्रका. 12:12) सन् 1914 में पहला विश्व युद्ध छिड़ गया और पूरी दुनिया में इस बात की निशानी साफ नज़र आने लगी कि राजा की हैसियत से मसीह की मौजूदगी शुरू हो चुकी है। तब से इस दुनिया के ‘आखिरी दिन’ शुरू हो गए।—2 तीमु. 3:1.
30 मगर स्वर्ग में खुशियाँ मनायी गयीं। शैतान और दुष्ट स्वर्गदूतों को वहाँ से हमेशा के लिए निकाल दिया गया था। यूहन्ना का ब्यौरा कहता है, “हे स्वर्ग और उसमें रहनेवालो, खुशियाँ मनाओ!” (प्रका. 12:12) जब स्वर्ग को शुद्ध किया गया और यीशु राजा बना, तो उसके बाद मसीहा का राज धरती पर उसके लोगों की खातिर कदम उठाने के लिए तैयार था। उस राज ने क्या किया? जैसे हमने इस अध्याय की शुरूआत में देखा, ‘करार के दूत’ मसीह ने सबसे पहले धरती पर परमेश्वर के सेवकों को शुद्ध किया। इसका क्या मतलब था?
परीक्षा की घड़ी
31. (क) मलाकी ने परमेश्वर के लोगों को शुद्ध करने के समय के बारे में क्या भविष्यवाणी की? (ख) यह भविष्यवाणी कैसे पूरी होने लगी? (फुटनोट भी देखें।)
31 मलाकी ने भविष्यवाणी की थी कि जब परमेश्वर के लोगों को शुद्ध किया जाएगा तो यह उनके लिए आसान नहीं होगा: “जिस दिन वह आएगा, कौन उसका सामना कर सकेगा? जब वह प्रकट होगा, तब कौन उसके सामने खड़ा रह सकेगा? वह शुद्ध करनेवाले की आग के समान और धोबी की सज्जी के समान होगा।” (मला. 3:2) यह बात कितनी सच साबित हुई! सन् 1914 से धरती पर परमेश्वर के लोगों ने एक-के-बाद-एक बड़ी-बड़ी परीक्षाओं और मुसीबतों का सामना किया। जब पहला विश्व युद्ध ज़ोर पकड़ने लगा तो बहुत-से बाइबल विद्यार्थियों को बुरी तरह सताया गया और जेल में डाला गया।e
32. सन् 1916 के बाद परमेश्वर के लोगों के बीच कैसी खलबली मच गयी?
32 संगठन के अंदर भी खलबली मच गयी। सन् 1916 में जब भाई रसल की मौत हो गयी, जो सिर्फ 64 साल के थे, तो परमेश्वर के कई लोगों को सदमा पहुँचा। उनकी मौत से खुलासा हो गया कि कुछ लोग भाई रसल को, जो एक अच्छी मिसाल थे, कुछ ज़्यादा ही अहमियत देते थे। वे उनकी भक्ति करते थे, जबकि भाई ने ऐसा कभी नहीं चाहा था। उनकी मौत के बाद कइयों ने सोचा कि अब सच्चाई की नयी समझ मिलनी बंद हो जाएगी और कुछ लोगों ने आगे तरक्की करने के लिए की जानेवाली कोशिशों का कड़ा विरोध किया। इससे सच्ची उपासना के खिलाफ बगावत शुरू हो गयी और संगठन में फूट पड़ गयी।
33. परमेश्वर के लोगों की उम्मीदें पूरी न होने की वजह से कैसे उनकी परीक्षा हुई?
33 उम्मीदों का पूरा न होना, एक और परीक्षा थी। प्रहरीदुर्ग में यह तो सही-सही बताया गया था कि अन्य-जातियों का समय 1914 में खत्म हो जाएगा, मगर उस साल ठीक क्या होगा इसकी सही समझ भाइयों को तब तक नहीं थी। (लूका 21:24) उन्हें लगा कि 1914 में मसीह अपनी दुल्हन वर्ग के अभिषिक्त मसीहियों को स्वर्ग ले जाएगा ताकि वे उसके साथ वहाँ राज करें। मगर उनकी उम्मीदें पूरी नहीं हुईं। सन् 1917 में एक प्रहरीदुर्ग में बताया गया कि 40 साल का कटाई का दौर 1918 के वसंत में खत्म हो जाएगा। मगर उस वक्त प्रचार काम खत्म नहीं हुआ। उसके बाद भी उस काम में अच्छी कामयाबी मिलती रही। प्रहरीदुर्ग में बताया गया कि कटाई का काम खत्म हो चुका है, मगर बीनने का समय बचा है। फिर भी कई लोगों ने निराश होकर यहोवा की सेवा करनी छोड़ दी।
34. (क) 1918 में कौन-सी बड़ी परीक्षा हुई? (ख) ईसाईजगत ने क्यों सोचा कि परमेश्वर के लोगों की “मौत” हो गयी है?
34 सन् 1918 में एक बहुत बड़ी परीक्षा हुई। भाई जे. एफ. रदरफर्ड को, जो भाई रसल की मौत के बाद परमेश्वर के लोगों की अगुवाई करते थे, और ज़िम्मेदारी सँभालनेवाले सात और भाइयों को गिरफ्तार कर लिया गया। उन सबको गलत इलज़ाम पर लंबी कैद की सज़ा सुनायी गयी और अमरीकी राज्य जॉर्जिया के एटलांटा शहर की जेल में डाल दिया गया। कुछ समय तक ऐसा लगा कि परमेश्वर के लोगों का काम ठप्प पड़ गया है। ईसाईजगत के कई पादरी खुश हो गए। उन्होंने सोचा कि एक तरह से उन बाइबल विद्यार्थियों की “मौत” हो गयी है, उनसे पीछा छूट गया है क्योंकि उनके “नेता” जेल में हैं, ब्रुकलिन में उनका मुख्यालय बंद कर दिया गया है और अमरीका और यूरोप में उनके प्रचार काम का विरोध किया जा रहा है। (प्रका. 11:3, 7-10) मगर यह उनकी गलतफहमी थी!
वे फिर से ज़िंदा हो गए!
35. (क) यीशु ने क्यों अपने चेलों पर मुश्किलें आने दीं? (ख) यीशु ने उनकी मदद करने के लिए क्या किया?
35 सच्चाई के दुश्मनों को ज़रा भी खबर नहीं थी कि यीशु ने अपने चेलों पर ये मुश्किलें इसलिए आने दीं क्योंकि उस वक्त यहोवा अपने लोगों को शुद्ध कर रहा था, ठीक जैसे एक “शुद्ध करनेवाला चाँदी गलाता है और उसमें से मैल दूर करके उसे शुद्ध करता है।” (मला. 3:3) यहोवा और उसके बेटे को पूरा यकीन था कि वफादार लोग आग जैसी परीक्षाओं को पार कर लेंगे और वे शुद्ध और पवित्र किए जाएँगे और राजा की सेवा के लिए पहले से ज़्यादा काबिल होंगे। सन् 1919 की शुरूआत में ही परमेश्वर की पवित्र शक्ति ने उसके लोगों की खातिर वह काम कर दिखाया जो दुश्मनों को नामुमकिन लगा। वफादार लोग फिर से ज़िंदा हो गए! (प्रका. 11:11) उस वक्त मसीह ने एक ऐसा काम किया जो आखिरी दिनों की निशानी का एक खास पहलू था। उसने “विश्वासयोग्य और बुद्धिमान दास” को ठहराया। यह अभिषिक्त भाइयों से बना एक छोटा-सा समूह था जो परमेश्वर के लोगों की अगुवाई करता और उन्हें सही समय पर खाना देता यानी बाइबल की सच्चाई सिखाता।—मत्ती 24:45-47.
36. किन बातों से पता चला कि परमेश्वर के लोग फिर से ज़िंदा हो रहे थे?
36 भाई रदरफर्ड और उनके साथियों को 26 मार्च, 1919 को रिहा कर दिया गया। फौरन एक अधिवेशन का इंतज़ाम किया गया जो सितंबर में होता। एक और पत्रिका प्रकाशित करने की तैयारियाँ शुरू हो गयीं जिसे स्वर्ण युग कहा जाता। यह पत्रिका इस तरह तैयार की गयी कि इसे प्रहरीदुर्ग के साथ प्रचार में बाँटा जाता।f उसी साल बुलेटिन नाम के प्रकाशन का पहला अंक प्रकाशित किया गया। इसे आज हमारी मसीही ज़िंदगी और सेवा की सभा-पुस्तिका कहा जाता है। शुरू से ही इस प्रकाशन ने प्रचार काम के लिए सबका जोश बढ़ाया है। इसमें कोई शक नहीं कि 1919 से घर-घर के प्रचार काम पर ज़ोर दिया जाने लगा।
37. सन् 1919 के बाद के सालों में कुछ लोगों ने, जो संगठन के वफादार नहीं थे, क्या किया?
37 प्रचार काम की वजह से मसीह के सेवक और भी शुद्ध होते गए। उनमें से जो घमंडी थे उन्हें यह काम करना मंज़ूर नहीं था क्योंकि इसके लिए नम्रता की ज़रूरत थी। जो लोग यह काम नहीं करना चाहते थे, उन्होंने वफादार लोगों के साथ मेल-जोल रखना बंद कर दिया। सन् 1919 के बाद के सालों में कुछ लोग, जो संगठन के वफादार नहीं थे, कड़वाहट से भर गए और उन्होंने संगठन को बदनाम करने के लिए झूठी बातें फैलायीं और अखबारों में भी छाप दीं। और वे उन लोगों के साथ मिल गए जो यहोवा के सेवकों पर ज़ुल्म ढा रहे थे।
38. मसीह के चेलों की कामयाबियाँ और जीत किस बात का सबूत है?
38 ऐसे हमलों के बावजूद, मसीह के चेले कामयाब होते गए और तरक्की करते गए। उनकी हर कामयाबी और हर जीत इस बात का पक्का सबूत है कि परमेश्वर का राज हुकूमत कर रहा है! हालाँकि वे अपूर्ण हैं और गिनती में बहुत कम हैं फिर भी वे शैतान और उसके दुष्ट संसार पर लगातार जीत हासिल कर रहे हैं, क्योंकि परमेश्वर अपने राज और अपने बेटे के ज़रिए उनकी मदद करता है और उन्हें आशीष देता है!—यशायाह 54:17 पढ़िए।
39, 40. (क) इस किताब की कुछ खासियतें क्या हैं? (ख) इस किताब का अध्ययन करने से आपको कैसे फायदा होगा?
39 आगे के अध्यायों में हम देखेंगे कि परमेश्वर के राज ने पिछले सौ सालों में धरती पर क्या-क्या हासिल किया है। उन अध्यायों को अलग-अलग भागों में बाँटा गया है। हर भाग में इसके एक पहलू पर ध्यान दिया जाएगा। हर अध्याय के आखिर में दोबारा विचार करने के लिए सवाल दिए गए हैं। उन पर गौर करने से हम खुद की जाँच कर पाएँगे कि परमेश्वर का राज हमारे लिए कितना असली है। आखिरी कुछ अध्यायों में हम देखेंगे कि बहुत जल्द जब परमेश्वर का राज दुष्टों का नाश करने और धरती को फिरदौस बनाने आएगा तब क्या-क्या घटनाएँ होंगी। इस किताब का अध्ययन करने से आपको क्या फायदा होगा?
40 शैतान, परमेश्वर के राज पर से आपका विश्वास मिटा देना चाहता है। मगर यहोवा आपका विश्वास बढ़ाना चाहता है ताकि यह आपकी हिफाज़त करे और आपको मज़बूत बनाए रखे। (इफि. 6:16) इसलिए हम आपको बढ़ावा देते हैं कि आप इस किताब का मन लगाकर अध्ययन करें। खुद से पूछते रहिए, ‘क्या मैं मानता हूँ कि परमेश्वर का राज सचमुच हुकूमत कर रहा है?’ अगर आपका विश्वास मज़बूत होगा तो कोई भी चीज़ उसे मिटा नहीं सकेगी और आप वह दिन देख सकेंगे जब धरती पर हर इंसान देखेगा कि परमेश्वर का राज असली है और हुकूमत कर रहा है। यही नहीं, आप उस वक्त राज का वफादारी से और ज़ोर-शोर से साथ दे रहे होंगे!
a ग्रू, स्टेटसन और स्टॉर्ज़ के बारे में ज़्यादा जानने के लिए यहोवा के साक्षी—परमेश्वर के राज के प्रचारक (अँग्रेज़ी) किताब के पेज 45-46 देखें।
b हिंदी में प्रहरीदुर्ग 1966 से प्रकाशित की जाने लगी। अँग्रेज़ी में 1879 से यह पत्रिका प्रकाशित की जाने लगी और बीते सालों के दौरान कई बार इसका नाम बदला है। मगर इस किताब में इस पत्रिका का ज़िक्र प्रहरीदुर्ग नाम से किया गया है।
c हालाँकि बाइबल विद्यार्थी समझ गए थे कि उन्हें ऐसे धार्मिक संगठनों से नाता तोड़ लेना चाहिए जो दुनिया से दोस्ती करते हैं, फिर भी वे कई सालों तक ऐसे लोगों को मसीही भाई मानते थे जो बाइबल विद्यार्थी न होते हुए भी फिरौती पर विश्वास करने और परमेश्वर के समर्पित होने का दावा करते थे।
d शुरू में ऐसी चेतावनियों को अनसुना करने की एक वजह यह थी कि उन्हें लगा कि ये चेतावनियाँ खासकर मसीह के छोटे झुंड यानी 1,44,000 जनों के लिए हैं। अध्याय 5 में हम देखेंगे कि 1935 से पहले माना जाता था कि प्रकाशितवाक्य 7:9, 10 में बतायी “बड़ी भीड़” में ईसाईजगत के चर्चों के बेहिसाब लोग होंगे और वे स्वर्ग जानेवाले दूसरे दर्जे के लोग होंगे। उन्हें स्वर्ग जाने का इनाम इसलिए दिया जाएगा क्योंकि वे एकदम आखिर में मसीह की तरफ हो जाएँगे।
e सितंबर 1920 में स्वर्ण युग (अब सजग होइए! ) का एक खास अंक प्रकाशित किया गया जिसमें कई वाकए बताए गए कि कैसे युद्ध के दौरान परमेश्वर के लोगों को सताया गया था। ये वाकए अमरीका, इंग्लैंड, कनाडा और जर्मनी में हुए थे। उनमें से कुछ वारदातें रोंगटे खड़ी कर देती हैं। मगर पहले विश्व युद्ध से पहले के सालों में इस तरह का ज़ुल्म बहुत कम हुआ था।
f कई साल तक प्रहरीदुर्ग के लेख खासकर छोटे झुंड के सदस्यों के लिए होते थे।