अध्याय 14
“मंदिर का नियम यही है”
अध्याय किस बारे में है: मंदिर के दर्शन से यहेजकेल के दिनों में लोगों को क्या सीख मिली और हमें क्या सीख मिलती है
1, 2. (क) पिछले अध्याय में हमने मंदिर के दर्शन के बारे में क्या सीखा था? (ख) इस अध्याय में हम किन सवालों पर चर्चा करेंगे?
यहेजकेल ने दर्शन में जो मंदिर देखा, वह महान लाक्षणिक मंदिर नहीं था जिसकी चर्चा प्रेषित पौलुस ने सदियों बाद की थी। इस बारे में हमने पिछले अध्याय में सीखा था। हमने यह भी सीखा कि वह दर्शन इसलिए दिया गया ताकि यहोवा के लोग जानें कि शुद्ध उपासना के बारे में उसके स्तरों को मानना क्यों ज़रूरी है। इन स्तरों को मानने से ही वे उसके साथ दोबारा एक अच्छा रिश्ता कायम कर पाते। यही वजह है कि यहोवा ने एक ही आयत में यह बात दो बार कही: ‘मंदिर का नियम यही है।’—यहेजकेल 43:12 पढ़िए।
2 अब हम इस बारे में दो सवालों पर गौर करेंगे। पहला, मंदिर के दर्शन से उस ज़माने के यहूदी शुद्ध उपासना के बारे में यहोवा के कौन-से स्तर जान पाए? दूसरा, इन आखिरी दिनों में इस दर्शन से हमें क्या सीख मिलती है? जब हम पहले सवाल का जवाब जानेंगे, तो हमें दूसरे सवाल का भी जवाब मिल जाएगा।
दर्शन से पुराने ज़माने के लोगों को क्या सीख मिली?
3. यह जानकर कि मंदिर एक ऊँचे पहाड़ पर है, लोगों ने क्यों शर्मिंदा महसूस किया होगा?
3 पहले सवाल का जवाब जानने के लिए आइए दर्शन की कुछ ऐसी बातों पर गौर करें जो खास तौर से हमारा ध्यान खींचती हैं। ऊँचा पहाड़। यहेजकेल ने देखा कि मंदिर एक ऊँचे पहाड़ पर है। इससे लोगों को बहाली की एक और भविष्यवाणी याद आयी होगी जो यशायाह ने की थी। उसमें भी बताया गया है कि यहोवा का भवन एक ऊँचे पहाड़ पर है। (यशा. 2:2) इससे लोगों ने क्या सीखा? यही कि शुद्ध उपासना को बुलंद किया जाना चाहिए यानी उन्हें अपनी ज़िंदगी में उसे सबसे ज़्यादा अहमियत देनी चाहिए। यह सच है कि शुद्ध उपासना अपने आप में बुलंद है क्योंकि शुद्ध उपासना का इंतज़ाम यहोवा ने किया है जो “सभी देवताओं से कहीं ज़्यादा ऊँचा” है। (भज. 97:9) लेकिन लोगों ने इसे बुलंद करने में अपनी ज़िम्मेदारी नहीं निभायी थी। सदियों तक बार-बार वे शुद्ध उपासना के नाम पर घिनौने काम करते रहे, उसे दूषित करते रहे और नज़रअंदाज़ करते रहे। मगर अब नेकदिल वालों को पता चला कि दर्शन में यहोवा का पवित्र भवन एक ऊँची जगह पर है यानी शुद्ध उपासना को उतनी अहमियत दी जा रही है जितनी उसे मिलनी चाहिए। यह जानकर उन्हें खुद पर शर्म आयी होगी कि उन्होंने अपनी ज़िम्मेदारी नहीं निभायी थी।
4, 5. ऊँचे दरवाज़ों पर मनन करने से लोगों को क्या सीख मिली होगी?
4 ऊँचे-ऊँचे दरवाज़े। दर्शन की शुरूआत में यहेजकेल देखता है कि स्वर्गदूत दरवाज़ों को नाप रहा है। हर दरवाज़े की ऊँचाई करीब सौ फुट थी। (यहे. 40:14) ये प्रवेश-द्वार थे और उनके अंदर पहरेदारों के खाने थे। जिन लोगों ने मंदिर के ऊँचे दरवाज़ों और खानों के बारे में गहराई से सोचा होगा, उन्हें क्या सीख मिली होगी? जवाब के लिए गौर कीजिए कि यहोवा ने यहेजकेल से कहा था, ‘पवित्र-स्थान के प्रवेश को तू ध्यान से देखना।’ यहोवा ने ऐसा क्यों कहा? एक समय ऐसा था जब लोग यहोवा के पवित्र भवन में ऐसे लोगों को ले आते थे जो “तन और मन से खतनारहित” थे। इसलिए यहोवा ने कहा था कि “वे मेरे मंदिर को दूषित कर देते हैं।”—यहे. 44:5, 7.
5 जो ‘तन से खतनारहित’ थे, उन्होंने यहोवा की वह आज्ञा नहीं मानी थी जो अब्राहम के दिनों से लागू थी। (उत्प. 17:9, 10; लैव्य. 12:1-3) लेकिन जो “मन से खतनारहित” थे, वे तो उनसे भी बदतर थे। वे मन से ढीठ थे। उन्होंने मानो कसम खा ली थी कि वे यहोवा के निर्देशों को हरगिज़ नहीं मानेंगे। ऐसे लोगों को यहोवा के पवित्र भवन में कदम रखने की इजाज़त नहीं दी जानी चाहिए थी। यहोवा कपट से नफरत करता है मगर उसके लोगों ने उसके पवित्र भवन में ही कपट को बढ़ावा दिया था। मगर अब यहेजकेल के दिनों के लोगों को मंदिर के ऊँचे दरवाज़ों और पहरेदारों के खानों से यह सीख मिली कि अब से यहोवा के भवन में ऐसी मनमानी नहीं चलेगी। उसके भवन में सिर्फ उन्हीं को कदम रखने दिया जाएगा जो उसके ऊँचे स्तरों को मानेंगे। तभी यहोवा उनकी उपासना पर आशीष देगा।
6, 7. (क) मंदिर के चारों तरफ की खुली जगह और दीवार दिखाकर यहोवा लोगों को क्या बताना चाह रहा था? (ख) यहोवा के लोगों ने उसके भवन को कैसे दूषित कर दिया था? (फुटनोट देखें।)
6 मंदिर के चारों तरफ की दीवार। मंदिर के चारों तरफ की दीवार भी देखने लायक थी। हर तरफ दीवार की लंबाई 500 माप-छड़ थी यानी 5,100 फुट। (यहे. 42:15-20) लेकिन मंदिर की इमारतें और आँगन चौकोर थे और हर तरफ की लंबाई बस 500 हाथ यानी 850 फुट थी। (यहे. 45:2) मंदिर के चारों तरफ बहुत बड़ी खुली जगह थी और वह जगह एक बाहरी दीवार से घिरी हुई थी।a यह सब किसलिए था?
7 यहोवा ने इसकी यह वजह बतायी, “अब वे मेरे साथ और विश्वासघात न करें और अपने राजाओं की लाशें मुझसे दूर कर दें। तब मैं उनके बीच सदा के लिए निवास करूँगा।” (यहे. 43:9) ‘राजाओं की लाशों’ का मतलब शायद मूर्तियाँ है। यहोवा उस मंदिर के चारों तरफ खुली जगह और दीवार दिखाकर मानो कह रहा था, “हर तरह की गंदगी मुझसे दूर रखना। मेरे पास बिलकुल नहीं आने देना।” अगर लोग इस बात का ध्यान रखते कि उनकी उपासना शुद्ध रहे, तो यहोवा उनके बीच निवास करता।
8, 9. ज़िम्मेदारी के पद पर ठहराए गए पुरुषों को जो फटकार सुनायी गयी, उससे लोगों ने क्या सीखा होगा?
8 ज़िम्मेदारी के पद पर ठहराए गए पुरुषों को फटकार। यहोवा ने उन पुरुषों को फटकार सुनायी जिन्हें बहुत भारी ज़िम्मेदारी सौंपी गयी थी। उसने लेवियों को कड़े शब्दों में सलाह दी, क्योंकि जब लोग मूर्तिपूजा करने लगे तो लेवी भी यहोवा से दूर चले गए। मगर यहोवा ने सादोक के वंशजों की तारीफ की, क्योंकि ‘वे तब भी उसके पवित्र-स्थान में अपनी ज़िम्मेदारियाँ निभाते रहे जब इसराएली यहोवा से दूर चले गए थे।’ यहोवा लेवियों और सादोक के वंशजों के साथ उनके कामों के हिसाब से न्याय और दया से पेश आया। (यहे. 44:10, 12-16) उसने इसराएल के प्रधानों को भी कड़े शब्दों में फटकार सुनायी।—यहे. 45:9.
9 इस तरह यहोवा ने साफ ज़ाहिर किया कि जिन पुरुषों को अधिकार और निगरानी का पद सौंपा गया था, उन्हें यहोवा को लेखा देना पड़ा कि उन्होंने अपनी ज़िम्मेदारी कैसे निभायी। उन्हें भी सलाह और फटकार की ज़रूरत पड़ी। उन्हें यहोवा की सलाह मानकर उसके स्तरों पर चलने में अच्छी मिसाल रखनी थी!
10, 11. किन बातों से पता चलता है कि बँधुआई से लौटने के बाद कुछ लोगों ने दर्शन से मिली सीख पर अमल किया?
10 बँधुआई से लौटने के बाद क्या यहूदियों ने यहेजकेल के दर्शन से मिलनेवाली सीख पर अमल किया? हम यह तो ठीक-ठीक नहीं जानते कि उस ज़माने के वफादार लोगों ने उस अनोखे दर्शन के बारे में क्या सोचा होगा। लेकिन परमेश्वर का वचन यह ज़रूर बताता है कि उन्होंने अपने देश लौटने के बाद क्या किया और यहोवा की शुद्ध उपासना के बारे में कैसा नज़रिया अपनाया। दर्शन से उन्हें जो सीख मिली, क्या उन्होंने उस पर अमल किया? कुछ हद तक ज़रूर किया। बँधुआई से पहले उनके पुरखों ने जो बगावत की थी, उसके मुकाबले इन लोगों ने काफी अच्छा रवैया दिखाया।
11 कुछ वफादार पुरुषों ने लोगों को वे सारे सिद्धांत सिखाए जो यहेजकेल के दर्शन से साफ ज़ाहिर हुए थे। जैसे, भविष्यवक्ता हाग्गै और जकरयाह, याजक और नकल-नवीस एज्रा और राज्यपाल नहेमायाह ने। (एज्रा 5:1, 2) उन्होंने कड़ी मेहनत करके लोगों को सिखाया कि वे शुद्ध उपासना को बुलंद करें और दौलत कमाने और स्वार्थ के कामों में लगने के बजाय शुद्ध उपासना को पहली जगह दें। (हाग्गै 1:3, 4) उन्होंने इस बात पर भी ज़ोर दिया कि शुद्ध उपासना के स्तरों को मानना ज़रूरी है। मिसाल के लिए, एज्रा और नहेमायाह ने लोगों को सख्ती से बताया कि वे अपनी परदेसी औरतों को वापस भेज दें। इन औरतों की वजह से वे यहोवा की आज्ञा मानने में ढीले पड़ गए थे। (एज्रा 10:10, 11 पढ़िए; नहे. 13:23-27, 30) मूर्तिपूजा के मामले में इसराएलियों ने कैसा रवैया दिखाया? ऐसा मालूम पड़ता है कि बँधुआई के बाद इसराएल राष्ट्र को मूर्तिपूजा से नफरत हो गयी थी, जबकि इससे पहले सदियों तक वे इसमें बार-बार आसानी से फँस जाते थे। दर्शन से पता चलता है कि यहोवा ने याजकों, प्रधानों और हाकिमों को भी कड़ी सलाह और फटकार दी। (नहे. 13:22, 28) उन्होंने कैसा रवैया दिखाया? उनमें से कइयों ने नम्रता से यहोवा की सलाह मानी।—एज्रा 10:7-9, 12-14; नहे. 9:1-3, 38.
12. यहोवा ने बँधुआई से लौटे यहूदियों को क्या-क्या आशीषें दीं?
12 लोगों में यह बदलाव देखकर यहोवा ने उन्हें आशीष दी। यहोवा के साथ उनका रिश्ता अच्छा रहा, उन्होंने बढ़िया सेहत का आनंद उठाया और समाज में अच्छी व्यवस्था बनी रही, जो कि एक लंबे अरसे से उनके देश में नहीं थी। (एज्रा 6:19-22; नहे. 8:9-12; 12:27-30, 43) लोगों को ये सारी आशीषें क्यों मिलीं? क्योंकि वे शुद्ध उपासना के बारे में यहोवा के नेक स्तरों को मानने लगे थे। कई लोगों ने दर्शन से मिलनेवाली सीख अपने दिल में अच्छी तरह बिठा ली थी। चंद शब्दों में कहें तो यहेजकेल के दर्शन से यहूदियों को दो खास बातें पता चलीं। (1) उन्होंने सीखा कि उन्हें शुद्ध उपासना के बारे में यहोवा के स्तरों पर कैसे चलना चाहिए। (2) इस दर्शन से उन्हें यकीन हुआ कि शुद्ध उपासना बहाल की जाएगी और जब तक लोग शुद्ध उपासना करेंगे तब तक यहोवा उन्हें आशीष देता रहेगा। लेकिन अब एक और सवाल उठता है कि क्या दर्शन की वह भविष्यवाणी आज भी पूरी हो रही है?
यहेजकेल के दर्शन से आज हमें क्या सीख मिलती है?
13, 14. (क) हम कैसे जानते हैं कि मंदिर की भविष्यवाणी आखिरी दिनों में भी पूरी हो रही है? (ख) दर्शन से हमें कौन-सी दो बातें पता चलती हैं? (बक्स 13क भी देखें: “दो अलग मंदिर—उनसे मिलनेवाली सीख।”)
13 क्या हम पक्के तौर पर कह सकते हैं कि मंदिर के दर्शन से आज हम भी कुछ सीख सकते हैं? ज़रूर! याद कीजिए कि यहेजकेल ने दर्शन में जो देखा, कुछ ऐसी ही बात यशायाह ने भी अपनी भविष्यवाणी में बतायी थी। यहेजकेल ने देखा था कि परमेश्वर का पवित्र भवन एक “बहुत ऊँचे पहाड़ पर” है। यशायाह ने भी भविष्यवाणी की थी कि “यहोवा के भवन का पर्वत, सब पहाड़ों के ऊपर बुलंद किया जाएगा।” यशायाह ने साफ बताया कि उसकी भविष्यवाणी “आखिरी दिनों में” पूरी होगी। (यहे. 40:2; यशा. 2:2-4; कृपया मीका 4:1-4 भी देखें।) ये भविष्यवाणियाँ आखिरी दिनों में 1919 से पूरी होने लगीं।b तब से शुद्ध उपासना बहाल हो रही है, मानो एक ऊँचे पहाड़ पर बुलंद की जा रही है।
14 तो फिर हम पक्के तौर पर कह सकते हैं कि मंदिर के दर्शन से हम भी कुछ सीख सकते हैं। पुराने ज़माने के यहूदियों की तरह हमें भी इस दर्शन से दो बातें पता चलती हैं। (1) हम सीखते हैं कि हमें शुद्ध उपासना के बारे में यहोवा के स्तरों पर कैसे चलना चाहिए। (2) इस दर्शन से हमें यकीन होता है कि शुद्ध उपासना पूरी तरह बहाल होगी और हमें यहोवा से आशीषें मिलेंगी।
आज शुद्ध उपासना के क्या स्तर हैं
15. दर्शन के मंदिर पर गौर करते वक्त हमें क्या याद रखना चाहिए?
15 आइए यहेजकेल के दर्शन के कुछ खास पहलुओं पर ध्यान दें और जानें कि उनसे हमें क्या सीख मिलती है। कल्पना कीजिए कि हम यहेजकेल के साथ मिलकर उस दर्शन में मंदिर का दौरा कर रहे हैं। मगर याद रखिए कि हम महान लाक्षणिक मंदिर का दौरा नहीं कर रहे हैं। हम बस यह जानने की कोशिश कर रहे हैं कि मंदिर के दर्शन से उपासना के बारे में हमें क्या सीख मिलती है। आइए जानें कि उस दर्शन से हम कौन-सी कुछ बातें सीख सकते हैं।
16. मंदिर की नाप की बारीक जानकारी से हम क्या सीख सकते हैं? (शुरूआती तसवीर देखें।)
16 इतना कुछ क्यों नापा गया? यहेजकेल जब मंदिर को देख रहा होता है, तो एक स्वर्गदूत जिसका रूप ताँबे जैसा है, मंदिर की कई चीज़ों को नापने लगता है। जैसे दीवारों, दरवाज़ों, पहरेदारों के खानों, आँगनों और वेदी को। उसने जो-जो नापा था उसकी इतनी बारीक जानकारी दी गयी है कि उसे समझना हमें मुश्किल लग सकता है। (यहे. 40:1–42:20; 43:13, 14) मगर इस बारीक जानकारी से हम कुछ खास मुद्दे सीख सकते हैं। एक तो यह कि यहोवा यह बात हमारे दिलो-दिमाग में बिठाना चाहता है कि उसके स्तरों को मानना बेहद ज़रूरी है। कुछ लोग दावे के साथ कहते हैं कि परमेश्वर की उपासना जैसे चाहें करें, कोई फर्क नहीं पड़ता। मगर वे बड़ी गलतफहमी में हैं। हमारे लिए स्तर ठहराने का हक यहोवा को है, न कि किसी इंसान को। दूसरी बात, हम यह सीखते हैं कि यहोवा ने मंदिर को सही-सही नपवाकर हमें यकीन दिलाया है कि शुद्ध उपासना ज़रूर बहाल होगी। जैसे मंदिर की नाप पक्की है, उसी तरह यह बात भी पक्की है कि परमेश्वर के वादे पूरे होंगे। मंदिर की नाप की सटीक जानकारी देकर यहेजकेल इस बात को पुख्ता करता है कि आखिरी दिनों में शुद्ध उपासना बहाल होकर ही रहेगी!
17. मंदिर के चारों तरफ की दीवार हमें किस बात की याद दिलाती है?
17 चारों तरफ की दीवार। जैसे हमने पहले भी चर्चा की थी, यहेजकेल ने मंदिर के चारों तरफ एक दीवार देखी थी। उस दीवार से परमेश्वर के लोगों को कड़ी चेतावनी मिली थी कि उन्हें शुद्ध उपासना को झूठे धर्मों के अशुद्ध कामों से कोसों दूर रखना चाहिए और परमेश्वर के भवन को कभी दूषित नहीं करना चाहिए। (यहेजकेल 43:7-9 पढ़िए।) आज हमें भी यह सलाह माननी चाहिए। परमेश्वर के लोग सदियों तक महानगरी बैबिलोन की बँधुआई में थे, मगर 1919 में वे छूट गए और उस साल मसीह ने विश्वासयोग्य दास को ठहराया। खासकर तब से परमेश्वर के लोग झूठी शिक्षाओं और ऐसे कामों से नाता तोड़ने लगे जिनका संबंध मूर्तिपूजा और गैर-ईसाई रिवाज़ों से है। हम पूरी सावधानी बरतते हैं कि शुद्ध उपासना में अशुद्ध कामों की मिलावट न हो। इतना ही नहीं, हम राज-घरों में बिज़नेस से जुड़ा कोई काम नहीं करते क्योंकि हम जानते हैं कि रोज़मर्रा की बातों को शुद्ध उपासना से दूर रखना चाहिए।—मर. 11:15, 16.
18, 19. (क) मंदिर के ऊँचे दरवाज़ों से हमें क्या सीख मिलती है? (ख) अगर कोई हमें यहोवा के ऊँचे स्तरों से गुमराह करने की कोशिश करे, तो हमें क्या करना चाहिए? एक मिसाल दीजिए।
18 ऊँचे-ऊँचे दरवाज़े। उन ऊँचे-ऊँचे दरवाज़ों पर मनन करने से हमें क्या सीख मिलती है? उनके बारे में सोचने से यहूदियों को ज़रूर यह सीख मिली होगी कि यहोवा के नैतिक स्तर बहुत ऊँचे हैं। आज हम यहोवा के महान लाक्षणिक मंदिर में उसकी उपासना करते हैं। आज पहले से कहीं ज़्यादा हमें ध्यान रखना है कि हमारा चालचलन सही हो और हममें कपट न हो। (रोमि. 12:9; 1 पत. 1:14, 15) इन आखिरी दिनों में यहोवा अपने लोगों को उसके नैतिक स्तरों को सख्ती से मानने का निर्देश देता रहा है।c इसका एक सबूत यह है कि जो लोग पाप करने के बाद पश्चाताप नहीं करते, उन्हें मंडली से बहिष्कृत कर दिया जाता है। (1 कुरिं. 5:11-13) दरवाज़ों में जो पहरेदारों के खाने हैं, वे आज हमें किस बात की याद दिलाते हैं? यही कि जब शुद्ध उपासना की बात आती है, तो लाक्षणिक मंदिर में ऐसा कोई भी इंसान कदम नहीं रख सकता जिसे परमेश्वर ने मंज़ूर नहीं किया है। हालाँकि दोहरी ज़िंदगी जीनेवाले भी राज-घर के अंदर आ सकते हैं, मगर उन्हें यहोवा की मंज़ूरी तब तक नहीं मिल सकती जब तक कि वे अपना चालचलन नहीं बदलते और यहोवा के स्तरों पर नहीं चलते। (याकू. 4:8) आज दुनिया में जहाँ बदचलनी और नीच काम बहुत आम हो गए हैं, यहोवा शुद्ध उपासना को दूषित होने से वाकई बचा रहा है।
19 बाइबल में पहले ही बताया गया था कि आखिरी दिनों में बदचलनी और नीच काम बढ़ते जाएँगे। इसमें लिखा है, “दुष्ट और फरेबी बद-से-बदतर होते चले जाएँगे। वे खुद तो गुमराह होंगे, साथ ही दूसरों को भी गुमराह करते जाएँगे।” (2 तीमु. 3:13) आज ज़्यादातर लोगों को यह मानने के लिए गुमराह किया जा रहा है कि यहोवा के स्तर बहुत पुराने हैं, कुछ ज़्यादा ही सख्त हैं या फिर गलत हैं। क्या आप भी गुमराह हो जाएँगे? जैसे, अगर कोई आपको यकीन दिलाने की कोशिश करे कि समलैंगिकता के बारे में यहोवा के स्तर गलत हैं, तो क्या आप उससे सहमत हो जाएँगे? या फिर आप यहोवा से सहमत होंगे? यहोवा ने साफ बताया है कि समलैंगिक संबंध रखना “अश्लील काम” है। उसने साफ बताया है कि अनैतिक कामों को सही ठहराना तक गलत है। (रोमि. 1:24-27, 32) अगर कोई हमें यहोवा के स्तरों से गुमराह करने की कोशिश करे, तो हमें मंदिर के ऊँचे दरवाज़ों को याद करना चाहिए। हमें ध्यान रखना चाहिए कि यहोवा अपने ऊँचे स्तरों से कभी समझौता नहीं करता, फिर चाहे दुनिया बुरे कामों को सही क्यों न ठहराए। क्या हम अपने पिता यहोवा से सहमत होंगे और वही करेंगे जो सही है?
जब हम शुद्ध उपासना करते हैं, तो हम ‘तारीफ के बलिदान’ चढ़ा रहे होते हैं
20. दर्शन में देखी गयी किस बात से “बड़ी भीड़” के लोगों को हौसला मिलता है?
20 आँगन। यहेजकेल ने देखा कि मंदिर के बाहर एक बहुत बड़ा आँगन है। उस बाहरी आँगन को देखकर उसे बहुत खुशी हुई होगी, क्योंकि वह कल्पना कर सकता था कि उस आँगन में बड़ी तादाद में लोग इकट्ठा होकर यहोवा की उपासना करेंगे। आज सच्चे मसीही महान लाक्षणिक मंदिर में उपासना करते हैं। “बड़ी भीड़” के लोग इस मंदिर के बाहरी आँगन में उपासना करते हैं। यहेजकेल मंदिर के बाहरी आँगन में कुछ ऐसी बात देखता है जिससे आज बड़ी भीड़ को काफी हौसला मिलता है। (प्रका. 7:9, 10, 14, 15) उस आँगन में कई भोजन के कमरे एक कतार में हैं। लोग जो शांति-बलियाँ अर्पित करते, उनका कुछ हिस्सा वे उन कमरों में बैठकर खा सकते थे। (यहे. 40:17) ऐसा करके वे मानो यहोवा के साथ मिलकर भोज का आनंद ले सकते थे। यह इस बात की निशानी होती कि उनका यहोवा के साथ एक अच्छा रिश्ता है। आज हम वैसे बलिदान नहीं चढ़ाते जैसे यहूदी लोग मूसा के कानून के मुताबिक चढ़ाते थे। हम यहोवा के लिए ‘तारीफ के बलिदान’ चढ़ाते हैं। (इब्रा. 13:15) कैसे? जब हम सभाओं में जवाब देकर और प्रचार में दूसरों को गवाही देकर अपने विश्वास का ऐलान करते हैं, तो हमारे बोल एक तरह से बलिदान जैसे होते हैं। इसके अलावा, यहोवा हमें आज सच्चाई का जो ज्ञान देता है, वह भोजन की तरह है जिससे हमें ताकत मिलती है। हम भी कोरह के वंशजों की तरह यह महसूस करते हैं: “तेरे आँगनों में एक दिन बिताना, कहीं और हज़ार दिन बिताने से कहीं बेहतर है!”—भज. 84:10.
21. दर्शन में बताए याजकों के दल से अभिषिक्त मसीही क्या सीख सकते हैं?
21 याजकों का दल। यहेजकेल ने देखा कि याजक और लेवी जिन दरवाज़ों से भीतरी आँगन में जा सकते थे, उनका आकार उन दरवाज़ों जैसा ही था जिनसे दूसरे गोत्रों के लोग बाहरी आँगन में जा सकते थे। उन दरवाज़ों का होना याजकों को इस बात का एहसास दिलाता था कि उन्हें भी शुद्ध उपासना के बारे में यहोवा के स्तरों को मानना चाहिए। यह सच है कि आज यहोवा के लोगों में कोई खानदानी याजक नहीं हैं। फिर भी इस जानकारी से आज खासकर अभिषिक्त मसीहियों को सीख मिलती है। उनसे यह कहा गया है कि ‘तुम एक चुनी हुई जाति और शाही याजकों का दल हो।’ (1 पत. 2:9) पुराने ज़माने में इसराएल के याजक एक अलग आँगन में यहोवा की उपासना करते थे। आज अभिषिक्त मसीही किसी अलग जगह पर यहोवा की उपासना नहीं करते बल्कि यहोवा के सभी लोगों के साथ मिलकर उपासना करते हैं। और वे यहोवा के गोद लिए हुए बच्चों के नाते उसके साथ एक खास रिश्ते का आनंद ले रहे हैं। (गला. 4:4-6) लेकिन अभिषिक्त मसीही भी यहेजकेल के दर्शन से मिलनेवाली चेतावनी पर ध्यान देते हैं। वे याद रखते हैं कि पुराने ज़माने के याजकों की तरह उन्हें भी सुधार करने के लिए सलाह की ज़रूरत पड़ सकती है। चाहे हम अभिषिक्त मसीही हों या दूसरी भेड़ें, हमें याद रखना चाहिए कि हम सब “एक झुंड” के लोग हैं और हम ‘एक चरवाहे’ के अधीन रहकर सेवा करते हैं।—यूहन्ना 10:16 पढ़िए।
22, 23. (क) प्रधान से आज प्राचीन क्या सीख सकते हैं? (ख) भविष्य के बारे में हम क्या उम्मीद कर सकते हैं?
22 प्रधान। यहेजकेल के दर्शन में प्रधान एक खास किरदार था। वह याजकों के गोत्र से नहीं था और शायद मंदिर में याजकों के अधीन रहकर काम करता था। वह परमेश्वर के लोगों की निगरानी करता था और बलिदानों का इंतज़ाम करने में उनकी मदद करता था। (यहे. 44:2, 3; 45:16, 17; 46:2) प्रधान उन भाइयों के लिए एक अच्छी मिसाल है जो आज मंडली में ज़िम्मेदारियाँ निभाते हैं। वह इसलिए क्योंकि सभी प्राचीनों को, जिनमें सफरी निगरान भी शामिल हैं, विश्वासयोग्य दास के अधीन रहकर काम करना होता है। (इब्रा. 13:17) जैसे प्रधान बलिदानों के मामले में लोगों की मदद करता था, वैसे ही आज प्राचीन भाई-बहनों की खातिर कड़ी मेहनत करते हैं ताकि वे सभाओं में और प्रचार में तारीफ के बलिदान चढ़ा सकें। (इफि. 4:11, 12) प्राचीन इस बात को भी याद रखते हैं कि यहोवा ने कैसे इसराएल के उन प्रधानों को फटकारा जिन्होंने अपने अधिकार का गलत इस्तेमाल किया था। (यहे. 45:9) इसलिए प्राचीन ऐसा नहीं सोचते कि वे कभी गलती नहीं करेंगे और उन्हें सलाह की ज़रूरत नहीं पड़ेगी। इसके बजाय जब यहोवा उनकी सोच सुधारता है, तो वे खुश होते हैं कि यहोवा उन्हें चरवाहे और निगरान की ज़िम्मेदारी अच्छी तरह निभाना सिखा रहा है।—1 पतरस 5:1-3 पढ़िए।
23 आनेवाले फिरदौस में भी यहोवा अपने लोगों के लिए काबिल चरवाहों का इंतज़ाम करेगा ताकि वे प्यार से उनकी देखभाल करें। दरअसल प्राचीनों को अभी से अच्छा प्रशिक्षण दिया जा रहा है ताकि वे चरवाहों के नाते परमेश्वर के लोगों की अच्छी देखभाल करें। इनमें से कई भाइयों को नयी दुनिया में भी यह ज़िम्मेदारी दी जाएगी। (भज. 45:16) आज हमें यह सोचकर कितनी खुशी होती है कि नयी दुनिया में भी ऐसे काबिल भाइयों के होने से परमेश्वर के लोगों को बहुत-सी आशीषें मिलेंगी। बहाली की दूसरी भविष्यवाणियों की तरह शायद यहेजकेल के दर्शन के बारे में भी यहोवा हमें भविष्य में और अच्छी समझ दे सकता है। हो सकता है हमें इस दर्शन से और भी कुछ सीखने को मिले और इसकी भविष्यवाणी किसी और मायने में भी पूरी हो। आज हम उन बातों का अंदाज़ा तक नहीं लगा सकते। हमें यहोवा के वक्त का इंतज़ार करना होगा।
शुद्ध उपासना पर यहोवा की आशीष
24, 25. यहेजकेल के दर्शन में यहोवा की आशीषों की एक झलक कैसे दी गयी है?
24 आखिर में आइए उस खास घटना को याद करें जो यहेजकेल ने दर्शन में देखी थी। वह है, मंदिर में यहोवा का प्रवेश। यहोवा मंदिर में आता है और अपने लोगों से वादा करता है कि वह मंदिर में तब तक निवास करेगा जब तक कि वे शुद्ध उपासना के स्तरों को सख्ती से मानते रहेंगे। (यहे. 43:4-9) मंदिर में यहोवा के मौजूद रहने से लोगों को और उनके देश को क्या-क्या आशीषें मिलतीं?
25 दर्शन की इस भविष्यवाणी में यहोवा की आशीषों की एक झलक देने के लिए दो चीज़ें दिखायी गयी हैं: (1) मंदिर के पवित्र-स्थान से एक नदी बह रही है जो पूरे देश में जीवन लाती है और ज़मीन को उपजाऊ बना देती है। (2) देश की ज़मीन का एक व्यवस्थित तरीके से और सही-सही बँटवारा किया गया है और देश के बीच में मंदिर है और उसके आस-पास खुली जगह है। आज इन दो बातों का क्या मतलब है? इन बातों को समझना हमारे लिए बहुत ज़रूरी है, क्योंकि हम ऐसे समय में जी रहे हैं जब यहोवा अपने महान लाक्षणिक मंदिर में प्रवेश कर चुका है, उसे शुद्ध कर चुका है और उसे मंज़ूर कर चुका है। (मला. 3:1-4) भविष्यवाणी की इन दो बातों का क्या मतलब है, यह हम इस किताब के अध्याय 19 से 21 में देखेंगे।
a इस तरह यहोवा बता रहा था कि पहले उसके लोगों ने उसके पवित्र भवन को जिस तरह अशुद्ध किया था, वैसा अब नहीं होगा। यहोवा बताता है कि पहले क्या होता था, “उन्होंने मेरे मंदिर की दहलीज़ से सटाकर अपनी [यानी झूठे देवताओं की] दहलीज़ बनायी और मेरे मंदिर के खंभे के पास अपना [यानी झूठे देवताओं का] खंभा लगा दिया, जिससे उनके और मेरे बीच सिर्फ एक दीवार की आड़ रह गयी। इस तरह उन्होंने घिनौने काम करके मेरे पवित्र नाम का अपमान किया।” (यहे. 43:8) प्राचीन यरूशलेम में यहोवा के मंदिर और लोगों के घरों के बीच सिर्फ एक दीवार थी। जब लोग यहोवा के नेक स्तरों के खिलाफ काम करते थे, तो वे दरअसल यहोवा के मंदिर के पास में ही अशुद्ध काम और मूर्तिपूजा करते थे, क्योंकि उनके घर मंदिर के पास ही थे। यह यहोवा की बरदाश्त से बाहर था।
b यहेजकेल ने मंदिर का जो दर्शन देखा, वह बहाली की दूसरी भविष्यवाणियों से मेल खाता है जो आखिरी दिनों में पूरी हो रही हैं। मिसाल के लिए, गौर कीजिए कि यहेजकेल 43:1-9 और मलाकी 3:1-5 के बीच और यहेजकेल 47:1-12 और योएल 3:18 के बीच क्या समानताएँ हैं।
c लाक्षणिक मंदिर ई. 29 में वजूद में आया, जब यीशु का बपतिस्मा हुआ और उसने महायाजक के नाते सेवा करनी शुरू की थी। लेकिन यीशु के प्रेषितों की मौत के बाद धरती पर सदियों तक शुद्ध उपासना को नज़रअंदाज़ किया गया। फिर खासकर 1919 से शुद्ध उपासना बुलंद की जाने लगी और उसे उतनी अहमियत दी जाने लगी जितनी मिलनी चाहिए।