यहोवा पर भरोसा विकसित करें उसका वचन अध्यवसाय से अध्ययन करने के द्वारा
“जितनी बातें मैं आज तुम से चिताकर कहता हूँ, उन सब पर अपना अपना दिल लगाओ, क्योंकि यह तुम्हारे लिए कोई व्यर्थ काम नहीं, परन्तु तुम्हारा जीवन ही है।”—व्यवस्थाविवरण ३२:४६, ४७, न्यू.व.
१, २. (अ) जब इस्राएल मोआब की समतल भूमि पर डेरा डाले हुए थे, तब उनके सम्मुख कौनसी प्रत्याशा थी? (ब) मूसा ने जाति को कैसा प्रोत्साहन दिया?
उनका लंबा वीराने का निवास ख़त्म होने को आया था। अब सिर्फ़ घूमती हुई यरदन नदी उस जाति और बहुत देर से प्रतीक्षित प्रतिज्ञात भूमि के बीच थी। परन्तु, मूसा, उस जाति के अगुवा के लिए उस देश में प्रवेश करने की संभावना गंभीर मनन का कारण बनी। वह याद कर सकता था कि एक बार पहले यहोवा पर भरोसे की कमी की वजह से जाति ने ठोकर खायी थी और इस प्रकार उन्हें कनान देश में प्रवेश करना मना किया गया था।—गिनती १३:२५-१४:३०.
२ इसलिए मूसा ने जाति को मोआब की लहरदार समतल भूमि पर इकट्ठा बुला लिया। उनके राष्ट्रीय इतिहास का पुनरवलोकन करने और परमेश्वर के नियम को दोहराने के बाद, मूसा ने वह रचना पेश की जो उसकी अत्युत्तम रचना कहलाती है। सर्वोत्तम काव्यात्मकता शैली में, उसने इस्राएल को यहोवा पर, जो कि “सच्चा ईश्वर है, उस में कुटिलता नहीं, वह धर्मी और सीधा है,” भरोसा रखने और उसका आज्ञापालन करने के लिए प्रोत्साहित किया। अंत में, मूसा ने प्रेरित किया: “जितनी बातें मैं आज तुम्हें चिताकर कहता हूँ उन सब पर अपना अपना दिल लगाओ, और उनके अर्थात् इस व्यवस्था की सारी बातों के मानने में चौकसी करने की आज्ञा अपने लड़केबालों को दो। क्योंकि यह तुम्हारे लिए व्यर्थ काम नहीं, परन्तु तुम्हारा जीवन ही है।”—व्यवस्थाविवरण ३२:४, ४६, ४७, न्यू.व.
परमेश्वर के वचन पर ‘अपना दिल लगाना’
३, ४. (अ) इस्राएलियों को किस पर ‘अपना दिल लगाना’ था, और इस में क्या समाविष्ट था? (ब) बादवाली पीढ़ियों ने मूसा का उपदेश किस तरह लागू किया?
३ मूसा ने इस्राएलियों को न केवल उसके उत्तेजक गीत पर लेकिन सारे पवित्र लेखन पर ‘अपना दिल लगाने’ के लिए चेतावनी दी। उन्हें परमेश्वर के नियम की ओर “अच्छा ध्यान देना” था (नॉक्स), उसकी “आज्ञा अवश्य माननी थी” (टुडेज़ इंग्लिश वर्शन), या उस पर “मनन करना था” (द लिविंग बाइबल)। व्यवस्था से पूरी तरह परिचित होने के द्वारा ही वे ‘इस की सारी बातों के मानने में चौकसी करने की आज्ञा अपने लड़केबालों को दे सकते थे।’ व्यवस्थाविवरण ६:६-८ [न्यू.व.] में, मूसा ने लिखा: “और ये आज्ञाएँ जो मैं आज तुझ को सुनाता हूँ वे तेरे दिल में बनी रहें; और तू इन्हें अपने बालबच्चों को समझाकर सिखाया करना . . . और इन्हें अपने हाथ पर चिह्नानी करके बान्धना, और ये तेरी आँखों के बीच टीके का काम दें।”
४ बाइबल टीकाकार डब्ल्यू. एच. डेवी बताता है कि बाद वाले समयों में, इन शब्दों का किस तरह “यहूदियों ने वास्तविक अर्थ निकाला, और उन में अंतर्विष्ट आदेशों को अन्धविश्वासी उपयोग के लिए बदला गया। कुछ आयत . . . चर्मपत्र पर लिखे गए थे, और प्रार्थना के समय बाँह और माथे पर पहने जाते थे। यीशु के समय में विस्तृत शास्त्रों को समाविष्ट करनेवाले केस या तावीज़ पहने जाते थे और आज भी कुछ यहूदी संप्रदायों द्वारा इस्तेमाल किए जाते हैं। (मत्ती २३:५) लेकिन, डेवी आगे कहता है: “अपनी भूल में लोग अपनी ज़िंदगी में व्यवस्था में समाविष्ट आदेश का पालन दिखाने के बजाय, खुद को अपने साथ के मात्र शब्द की प्रति लेकर घूमते फिरते थे।”
५. व्यवस्थाविवरण ६:६-८ में मूसा के शब्दों का सही अर्थ क्या था?
५ नहीं, परमेश्वर का नियम उनके वास्तविक हाथ या माथों पर नहीं बल्कि ‘उनके दिल में बने रहने’ वाले थे। उसके विषय न केवल ज्ञान प्राप्त करने बल्कि उसका गहरा मूल्यांकन करने से, वह नियम हर समय नज़रों के सामने रखा जा सकता था, मानो वह उनकी आँखों के सामने या उनके हाथों पर बाँधे एक पट्टी पर लिखा गया हो।
परमेश्वर का नियम सीखने के प्रबंध
६, ७. (अ) इस्राएलियों को मूसा की व्यवस्था से परिचित कराने के लिए यहोवा ने कौनसे प्रबन्ध किए? (ब) प्राचीन काल में परमेश्वर के लोगों को उसके वचन में उपदेश प्राप्त करना और कौनसी रीति से संभव हुआ होगा?
६ परन्तु, इस्राएली लोग व्यवस्था के कुछ ६०० नियम किस तरह सीख सकते थे? पहले पहले उसकी प्रतियाँ असाधारण थीं। इस्राएल के भावी राजा को ‘इसी व्यवस्था की पुस्तक की नकल अपने लिए कर लेनी थी और जीवन भर उसको पढ़ना था जिस से कि वह अपने परमेश्वर यहोवा का भय मानता, और इस व्यवस्था की सारी बातें मानना सीखता।’ (व्यवस्थाविवरण १७:१८, १९) परमेश्वर ने हर सातवें वर्ष झोंपड़ियों के पर्ब्ब के अवसर पर व्यवस्था पढ़ने का प्रबंध किया। (व्यवस्थाविवरण ३१:१०-१३) जब कि ऐसा मौका बेशक उन्नतिकारक था, यह विस्तृत ज्ञान प्रदान करने के लिए बहुत ही विरल था।
७ यहोवा ने लेवी की जाति को ‘याकूब को परमेश्वर के नियम, और इस्राएल को परमेश्वर की व्यवस्था सिखाने’ का प्रबंध किया। (व्यवस्थाविवरण ३३:८, १०; मलाकी २:७ से तुलना करें।) कुछ अवसरों पर, लेवियों ने ऐसे शैक्षणिक अभियान चलाए जिन से सारी जाति की आवश्यकता पूरी की। (२ इतिहास १७:७-९; नहेमायाह ८:७-९) ऐसे प्रतीत होता है कि आख़िरकार परमेश्वर के वचन के कम-से-कम कुछेक हिस्से आम जनता के लिए भी उपलब्ध था।a इसलिए भजनकार लिख सकता था: “क्या ही धन्य है वह पुरुष . . . [जो] यहोवा की व्यवस्था से प्रसन्न रहता; और उसकी व्यवस्था पर रात दिन ध्यान करता रहता है।” (भजन १:१, २) इस प्रकार मूसा का ‘अपने दिल परमेश्वर के वचन पर लगाने’ का प्रबोधन बाइबल का एक अध्यवसायी अध्ययन करने के आदेश के बराबर था।
आज परमेश्वर के वचन पर ‘अपना दिल लगाना’
८. इस्राएल ने किस हद तक मूसा का प्रबोधन माना, और नतीजा क्या था?
८ इस्राएल मूसा का प्रबोधन मानने से रह गए। जब जाति ने आख़िरकार अपना राजतन्त्र स्थापित किया, प्रत्यक्ष रूप से उसके अधिकांश राजा व्यवस्था की पुस्तक की नकल करने और उसे अपने जीवन भर पढ़ने’ से रह गए। सामान्य युग पूर्व सातवीं सदी तक, राजा योशिय्याह के दिनों में, “व्यवस्था की पुस्तक” लगभग गुम हो चुकी थी। (२ राजा २२:८-१३) बेशक उस जाति के अगुवाओं के बुरे मिसाल ने धर्मत्याग की अवस्था में जाति के अवनमन को आगे धकेला होगा। मूसा की चेतावनी के अनुसार, सा.यु.पू. ६०७ में राष्ट्रीय विपत्ति घटी।—व्यवस्थाविवरण २८:१५-३७; ३२:२३-३५.
९. आज के मसीहियों की स्थिति किस तरह प्राचीन इस्राएलियों के समान है?
९ प्राचीन इस्राएलियों की तरह, आज मसीही प्रतिज्ञान देश—परमेश्वर की धार्मिक नयी दुनिया की सीमा पर खड़े हैं। (२ पतरस ३:१३) क्षितिज पर चौंकानेवाली घटनाएँ हैं: “शान्ति और सुरक्षा” की घोषणा, “बड़ी बाबेलोन” का पतन, ‘मागोग देश के गोग’ का हमला। ये घटनाएँ यहोवा पर हमारे भरोसे की परीक्षा लेंगी। तो फिर, यह अत्यावश्यक है कि हम अब ‘परमेश्वर के वचन पर अपना दिल लगाएँ’!—१ थिस्सलुनीकियों ५:३; प्रकाशितवाक्य, अध्याय १८; यहेजकेल, अध्याय ३८.
१०. कुछेक निजी अध्ययन में क्यों ढीले पड़ जाएँगे?
१० परन्तु, ऐसा करना इन ‘अन्तिम दिनों के कठिन समय’ में, ‘जिनसे निपटना मुश्किल है,’ एक वास्तविक चुनौती हो सकता है। (२ तीमुथियुस ३:१) सांसारिक रोज़गारी, बाल पालन-पोषण, पाठशाला, और मण्डली की ज़िम्मेदारियाँ, सभी हमारे समय पर भारी माँग डालती हैं। इसके परिणामस्वरूप, हम खुद के लिए बहाना बनाकर हमारे बाइबल अध्ययन में धीमे हो सकते हैं, यह तर्क करके कि ‘काम चलाने के लिए जो कर रहा हूँ, वह काफ़ी है।’ फिर भी, बाइबल मसीहियों को प्रोत्साहित करती है: “उन बातों को सोचता रह और उन्हीं में अपना ध्यान लगाए रह।” (१ तीमुथियुस ४:१५, १६) अब आइए, हम ऐसा करने के लिए कुछ प्रभावशाली कारणों पर ग़ौर करें।
परमेश्वर से हमारा रिश्ता मज़बूत करना
११, १२. (अ) परमेश्वर के बारे में एक अधिक नज़दीक़ी ज्ञान ने अय्यूब को किस तरह प्रभावित किया? (ब) अय्यूब के समय की तुलना में परमेश्वर के विषय हमारा नज़रिया अधिक स्पष्ट क्यों हो सकता है?
११ अय्यूब एक ऐसा आदमी था जो “परमेश्वर का भय मानता और बुराई से परे रहता था।” लेकिन एक आँधी में यहोवा के खुद को और आगे प्रकट करने के बाद, अय्यूब कह सका: “मैं ने कानों से तेरा समाचार सुना था, परन्तु अब मेरी आँखें तुझे देखती हैं।” (अय्यूब १:१; ४२:५) क्या हम आज परमेश्वर को “देख” सकते हैं, यानी, जान-पहचान मात्र के परे जाना, उसके व्यक्तित्व के अनेक पहलुओं को नज़दीकी से जान सकते हैं? बिल्कुल जान सकते हैं! बाइबल के पन्नों के ज़रिए, यहोवा ने अपने बारे में अय्यूब को भी जितना मालूम था उस से ज़्यादा प्रकट किया है।
१२ हमें परमेश्वर के प्रेम की गहराई का और भी स्पष्ट दृष्टिकोण मिलता है, यह जानते हुए कि उसने “जगत से ऐसा प्रेम रखा कि उस ने अपना एकलौता पुत्र दे दिया।” (यूहन्ना ३:१६) बाइबल भविष्यद्वाणियों के ज़रिए, हमें परमेश्वर के कार्यकलाप की रूपरेखा मिलती है—सहस्राब्दी के अंत तक! (प्रकाशितवाक्य, अध्याय १८-२२) हमारे पास मसीही मण्डली के साथ परमेश्वर के व्यवहार का वृत्तांत है: उसका अन्यजातियों को अन्दर लाना, अपने लोगों को संपोषित करने के लिए एक “विश्वासयोग्य और बुद्धिमान दास” को नियुक्त करना, उसका पृथ्वी पर परादीस में अनन्त काल तक जीने की आशा देकर “बड़ी भीड़” को सामने बुला लाना। (मत्ती २४:४५; प्रकाशितवाक्य ७:९, १४-१७; इफिसियों ३:३-६) परमेश्वर की अथाह बातों पर ध्यान देने और हमारे पक्ष में उसके अद्भुत कार्यों पर मनन करने के बाद, हम यह बोल उठने के सिवाय और कुछ नहीं कर सकते: “ओह! परमेश्वर का धन और बुद्धि और ज्ञान क्या ही गहन हैं!”—रोमियों ११:३३. न्यू.व.
१३. हम किस तरह ‘परमेश्वर को खोज’ सकते हैं, और ऐसा करने के फ़ायदे क्या हैं?
१३ भजनकार ने कहा: “मैं पूरे दिल से तेरी खोज में लगा हूँ।” शास्त्रीय बातों पर प्रतिदिन सोच-विचार करने से हम वही कर सकते हैं; यह यहोवा से हमारा बंधन मज़बूत बनाने में बहुत सहायक है। गंभीर अध्ययन ‘परमेश्वर की विधियों को मानने के लिए अपनी चालचलन दृढ़’ बनाने में भी सहायक है।—भजन ११९:५, १०, न्यू.व.
अध्ययन हमें अपने विश्वास की रक्षा करने की मदद करता है
१४. अपनी मसीही आशा के लिए ‘उत्तर देने के लिए सर्वदा तैयार रहने’ के महत्त्व का दृष्टान्त दें।
१४ “मैं तुम गवाहों को अपने घर में नहीं चाहता,” घाना देश के एक आदमी ने उन दोनों से कहा जिन्होंने उसके घर भेंट दी। और उसने उन गवाहों को “रक्ताधान न लेने और राष्ट्रीय ध्वज को प्रणाम न करने” के लिए डाँटा। क्षेत्र सेवकाई में ऐसी आपत्तियों से अक़्सर सामना करना पड़ता है। यह कैसी बदनामी—और अवमानना—होगी अगर हम “जो कोई हम से हमारी आशा के विषय में कुछ पूछे, और उसे उत्तर न दे” सकें! (१ पतरस ३:१५) खुशी से, ये गवाह रक्त पर उचित दृष्टिकोण और एक मसीही राष्ट्रीय प्रतीकों के लिए आदर और मूर्तिपूजा से परिहार में संतुलन किस तरह रखता है, समझाने के लिए बाइबल को प्रभावकारी रूप से इस्तेमाल कर सके। नतीजा? वह आदमी उनके सीधे जवाबों से प्रभावित हुआ। आज, वह और उसकी पत्नी, दोनों बपतिस्मा-प्राप्त गवाह हैं।
१५. निजी अध्ययन हमें अपनी सेवकाई के लिए किस तरह लैस करता है?
१५ पौलुस प्रोत्साहित करता है: “अपने आप को परमेश्वर का ग्रहणयोग्य और ऐसा काम करनेवाला ठहराने का प्रयत्न कर, जो लज्जित होने न पाए, और जो सत्य के वचन को ठीक रीति से काम में लाता हो।” निजी अध्ययन न केवल हमें जीवन के पथ पर रहने की मदद करेगा, लेकिन दूसरों को ऐसा करने की मदद करने के लिए भी “पूरी तरह से सक्षम, और हर एक भले काम के लिए लैस” करेगा।—२ तीमुथियुस २:१५; ३:१७, न्यू.व.
शैतान के फंदों का प्रतिरोध करना
१६. यहोवा के लोगों के सम्मुख शैतान के कुछ फंदे क्या हैं?
१६ आज, विज्ञापन हम पर ‘शरीर की अभिलाषाओं और आँखों की अभिलाषाओं और जीविका के घमण्ड” के आकर्षणों की बौछार करता है। (१ यूहन्ना २:१६) संचार साधन लैंगिक अनैतिकता को शोभनीय बनाते हैं और अक़्सर सह-कार्यकर्ता और सहपाठी इसे उत्सुकता से बढ़ाते हैं। उत्तेजनशील धर्मत्यागी साहित्य शायद हमारे पते पर अयाचित रूप से भेजा जाएगा। उनके जगाए गए कुतूहल की वजह से, कुछ भाइयों ने ऐसा दूषित करनेवाला साहित्य पढ़ा है—जिस से उनका विश्वास तबाह हुआ। और वह स्वार्थी, शारीरिक “आत्मा” भी है “जो अब आज्ञा न माननेवालों में कार्य्य करता है।” उस से प्रभावित होना और एक नकारात्मक, छिद्रान्वेषी मनोवृत्ति विकसित करना कितना आसान है!—इफिसियों २:२.
१७, १८. निजी अध्ययन हमें ‘बहकने’ से कैसे रोक सकता है?
१७ बेशक, बहुत कम लोग जानबूझकर शैतान के फंदों में फँसते हैं। उलटा, निजी अध्ययन की उपेक्षा करके, अपने लंगर-स्थल से छूटे गए एक नौका के जैसे, वे आहिस्ता आहिस्ता ‘बहकर दूर चले जाते’ हैं और शैतान के आक्रमण का प्रमुख निशाना बनते हैं। (इब्रानियों २:१) उदाहरणार्थ, एक तरुण भाई पाठशाला में एक तरुणी के साथ अनैतिक रूप से फँस गया। वह याद करता है, “मैंने पाया कि इसका प्रमुख कारण यह तथ्य था कि मैं आत्मिक रूप से भूखा था। इसीलिए मैं उस प्रलोभन का सामना न कर सका।” परन्तु, निजी अध्ययन की एक योजना से उस भाई की आत्मिक रूप से सशक्त बनने की मदद मिली।
१८ परमेश्वर के जितने लोगों का विनाश कर सकता है, उतनों का विनाश करने के लिए शैतान दृढ़निश्चित है। परमेश्वर के वचन और उसके विश्वासयोग्य प्रबन्धक से आनेवाली अच्छी बातों से अपने दिमाग़ को सतत पोषित करने के ज़रिए, हम फँस जाने से बचे रह सकते हैं। (फिलिप्पियों ४:८) बाइबल और वॉच टावर सोसाइटी के प्रकाशन दोनों में भौतिकवाद, लैंगिक अनैतिकता, धर्मत्यागी विचारणा, और एक नकारात्मक मनोवृत्ति से दूर रहने के बहुत सारे तक़ाज़े हैं। अगर हम वास्तव में सामान्य से ज़्यादा ध्यान देंगे, तो हम कभी बहक न जाएँगे।
हमारी मदद के लिए यहोवा के संगठन से प्रबन्ध
१९. कूशी खोजा आत्मिक मार्गदर्शन की हमारी ज़रूरत के बारे में क्या दृष्टान्त देता है?
१९ अध्ययन कड़ा परिश्रम है। इसलिए हम आभारी हो सकते हैं कि यहोवा का संगठन हमें बहुत सहायता देता है। हाल के वर्षों में कुछ लोगों ने माँगा है कि व्यक्तियों को बाइबल की व्याख्या खुद करने देना चाहिए। परन्तु, कूशी खोजा ने आध्यात्मिक मार्गदर्शन के लिए अपनी ज़रूरत को निःसंकोच क़बूल किया। एक ख़तना किए गए धर्मान्तरित व्यक्ति के नाते, उसे बेशक पहले ही बाइबल का काफ़ी ज्ञान रहा होगा। यही वास्तविकता कि वह यशायाह ५३ जैसी गहन भविष्यवाणी की जाँच करने की कोशिश करता इस बात को सूचित करती है। फिर भी, जब उसे पूछा गया कि जो वह पढ़ रहा था, क्या वह उसे समझ सकता था, तब उसने मान लिया: “जब तक कोई मुझे न समझाए तो मैं क्योंकर समझूँ?”—प्रेरितों के काम ८:२६-३३.
२०. (अ) बाइबल के अपने निजी अध्ययन में हमारी मदद के लिए यहोवा के संगठन ने कौनसे प्रबन्ध किए हैं? (ब) ऐसे प्रबन्धों के बारे में आप क्या महसूस करते हैं?
२० उसी तरह आज यहोवा के लोगों को आध्यात्मिक मार्गदर्शन की ज़रूरत है। जहाँ तक आध्यात्मिक बातों का सवाल है, चूँकि वे ‘एक ही बात कहना’ चाहते हैं, वे यहोवा के संगठन के ज़रिए दी मदद का स्वागत करते हैं—और वह कितनी शानदार मदद है! (१ कुरिन्थियों १:१०) प्रहरीदुर्ग और अवेक! पत्रिकाओं के ज़रिए हमें जानकारी का एक निरन्तर प्रवाह मिलता है। हमारे पास विस्तृत रूप से विभिन्न बाइबल विषयों पर अनेक किताबें हैं। अँग्रेज़ी बोलनेवाले पाठकों को वॉच टावर पब्लिकेशनस् १९३०-८५ नामक अनुक्रमणिका प्राप्त होना विशेष रूप से आशीर्वाद है, एक ऐसा औज़ार जो किसी व्यक्ति को ‘बुद्धि के लिए चाँदी के जैसे और गुप्त धन के जैसे ढूँढ़ने’ की मदद कर सकता है।—नीतिवचन २:२-४.
२१. (अ) प्रेरित पौलुस ने निजी अध्ययन में दिलचस्पी कैसे दिखायी? (ब) निजी अध्ययन सुलभ बनाने के लिए कुछ सुझाव क्या हैं?
२१ क्या आप सोसाइटी के प्रकाशनों को अध्ययन और खोज के लिए इस्तेमाल करने के ज़रिए उनका पूरा फ़ायदा उठाते हैं? या क्या ऐसे प्रकाशनों का काम शेल्फ़ पर रखे आभूषण होने के सिवाय और कुछ नहीं? दिलचस्प रूप से, प्रेरित पौलुस ने एक बार तीमुथियुस को रोम में उसके पास “पुस्तकें विशेष करके चर्मपत्रों को लेते” आने का आदेश दिया; प्रत्यक्ष रूप से, पौलुस इब्रानी शास्त्रों के हिस्सों का ज़िक्र कर रहा था। (२ तीमुथियुस ४:१३) बेशक वह अध्ययन और खोज सुसाध्य बनाने के उद्देश्य से उन्हें पास रखना चाहता था। अगर आपने पहले ही ऐसा नहीं किया हो, तो क्यों न आप धार्मिक प्रकाशनों की अपनी खुद की लाइब्रेरी बनाएँ ताकि आप भी खोज कर सकेंगे? ऐसे प्रकाशन सुगम्य, क्रम में, सुव्यवस्थित और साफ़-सुथरे रखें। अध्ययन करने के लिए एक ऐसी जगह रखें जो शान्त हो और जहाँ अच्छी रोशनी हो। निजी अध्ययन के लिए नियमित समय की योजना बनाएँ।
२२. आज ‘परमेश्वर के वचन की ओर अपना दिल लगाना’ पहले से कहीं ज़्यादा महत्त्वपूर्ण क्यों है?
२२ मोआब के ऊर्वर समतल भूमि पर छावनी में रह रहे इस्राएलियों के जैसे, हम नयी दुनिया के किनारे पर खड़े हैं। पहले से कहीं ज़्यादा, हमें, शायद अन्य रुचि, जैसे कि टेलिविशन देखना, त्यागते हुए, परमेश्वर का वचन अध्यवसाय से पढ़ने और अध्ययन के लिए ‘अवसर को बहुमोल समझकर समय निकालने’ की ज़रूरत है। (इफिसियों ५:१६) “निर्मल आत्मिक दूध की लालसा करो,” पतरस प्रोत्साहित करता है, “ताकि उसके द्वारा” न सिर्फ़ परिपक्वता तक, लेकिन “उद्धार पाने के लिए बढ़ते जाओ।” (१ पतरस २:२; इब्रानियों ५:१२-१४ से तुलना करें।) हमारे जीवन ही अन्तर्ग्रस्त हैं। तो निजी अध्ययन में ढीला पड़ जाने की कोई भी प्रवृत्ति का प्रतिरोध करें। उसे परमेश्वर के लिए अपने प्रेम और उस पर अपना भरोसा और अधिक गहरा करने का एक साधन के तौर से उपयोग करें; यह उस संगठन के लिए अपना मूल्यांकन बढ़ाने का तरीक़ा भी है, जो वह हमारी सहायता करने के लिए इस्तेमाल कर रहा है। जी हाँ, परमेश्वर के वचन की ओर अध्यवसाय से, और नियमित रूप से ‘दिल लगाएँ।’ “यह तुम्हारे लिए व्यर्थ काम नहीं, परन्तु तुम्हारा जीवन ही है।”
[फुटनोट]
a बाइबल के समय में लिखने का एक सस्ते फलक के तौर से मिट्टी के बरतनों के टूटे टुकड़े, या ठीकरी, इस्तेमाल किए जाते थे। दी इंटरनॅशनल स्टॅन्डर्ड बाइबल एन्साइक्लोपीडिया (१९८६) कहती है: “ठीकरी सबसे ग़रीब वर्गों द्वारा भी इस्तेमाल की जा सकती थी, जो लिखने के लिए और किसी चीज़ के लिए ख़र्च नहीं कर सकते थे।” इस्राएलियों ने बाइबल शास्त्रपद लिख लेने के लिए किस हद तक ठीकरी का इस्तेमाल किया, यह मालूम नहीं। यद्यपि, दिलचस्प रूप से, सामान्य युग सातवीं सदी की ठीकरी, जिन पर बाइबल शास्त्रपद लिखे थे, मिस्र में खोज निकाली गयी हैं, यह सुझाव देते हुए कि यह सामान्य लोगों को बाइबल के हिस्से प्राप्त होने का एक साधन था।
पुनर्विचार के लिए प्रश्न
◻ मूसा ने इस्राएलियों को ‘परमेश्वर के वचन पर दिल लगाने’ के लिए क्यों प्रबोधित किया, और उन्हें ऐसा किस तरह करना था?
◻ निजी अध्ययन परमेश्वर के साथ हमारे रिश्ते को मज़बूत करने और अपने विश्वास की रक्षा करने में हमारी मदद किस तरह करता है?
◻ शैतान के फंदों का प्रतिरोध करने में निजी अध्ययन की क्या भूमिका है?
◻ परमेश्वर के वचन का हमारा अध्ययन सुगम्य करने के लिए यहोवा के संगठन ने कौनसे प्रबन्ध किए हैं?
[पेज 11 पर तसवीरें]
परमेश्वर की व्यवस्था अपने दिल में लिखने के बजाय, यहूदियों ने शास्त्र-समाविष्ट करनेवाले केस बाँध लिए