आज, पहले से कहीं ज़्यादा जागते रहो!
“हम औरों की नाईं सोते न रहें, पर जागते और सावधान रहें।”—1 थिस्सलुनीकियों 5:6.
1, 2. (क) पॉम्पे और हर्कलेनीअम कैसे शहर थे? (ख) पॉम्पे और हर्कलेनीअम के ज़्यादातर लोगों ने कौन-सी चेतावनी पर ध्यान नहीं दिया और अंजाम क्या हुआ?
पॉम्पे और हर्कलेनीअम, सामान्य युग की पहली सदी के दो समृद्ध शहर थे जो वॆसूवियस पर्वत के पास बसे थे। ये दोनों शहर, रोम के रईसों की मनपसंद जगह थीं जहाँ वे अपनी छुट्टियाँ मनाने आया करते थे। वहाँ पर बड़े-बड़े ऐम्फिथियेटर या स्टेडियम हुआ करते थे जहाँ एक-साथ हज़ार से ज़्यादा लोग बैठ सकते थे। पॉम्पे का एक ऐम्फिथियेटर तो इतना बड़ा था कि पूरा-का-पूरा शहर उसमें समा सकता था। पॉम्पे की खुदाई करनेवालों ने उस शहर में 118 शराबखाने खोज निकाले हैं। उनमें से कुछ, जुएबाज़ी और वेश्यावृत्ति के अड्डे हुआ करते थे। दीवार पर बनी तसवीरों और दूसरे अवशेषों से पता चलता है कि इस शहर में बदचलनी बढ़-चढ़कर होती थी और धन-दौलत के पीछे लोग मर-मिटते थे।
2 अगस्त 24, सा.यु. 79 को वॆसूवियस पर्वत पर एक ज्वालामुखी फूट पड़ा। ज्वालामुखी का अध्ययन करनेवालों का मानना है कि हालाँकि पहले विस्फोट में उन दोनों शहरों पर झाँवाँ और राख की बरसात हुई, फिर भी वहाँ के निवासियों के पास बच निकलने का शायद मौका था और कइयों ने इस मौके का फायदा भी उठाया। मगर बाकियों ने सोचा कि यह कोई बड़ा खतरा नहीं है इसलिए वे चेतावनी को अनसुना करके वहीं बसे रहे। फिर लगभग आधी रात को खौलती हुई गैस, झाँवें और पत्थर की आयी बाढ़ ने हर्कलेनीअम शहर के बचे हुए लोगों को अपने आगोश में ले लिया। और अगले दिन सुबह-सुबह इसी तरह की एक बाढ़ ने पॉम्पे वासियों को हमेशा की नींद सुला दिया। वाकई चेतावनियों पर ध्यान ना देने का क्या ही बुरा अंजाम!
यहूदी व्यवस्था का अंत
3. यरूशलेम के विनाश और पॉम्पे और हर्कलेनीअम शहरों की तबाही में कौन-सी समानता थी?
3 इस दर्दनाक हादसे के नौ साल पहले यरूशलेम की तबाही हुई थी और उसके सामने इन शहरों की तबाही तो कुछ भी नहीं थी। मगर यरूशलेम का विनाश इंसानों के हाथों हुआ, न कि प्राकृतिक शक्तियों से। इसे “इतिहास की सबसे खौफनाक घेराबंदी” कहा गया है क्योंकि रिपोर्ट के मुताबिक इसमें दस लाख से भी ज़्यादा यहूदियों को मौत के घाट उतार दिया गया। मगर हाँ, पॉम्पे और हर्कलेनीअम में हुई तबाही और यरूशलेम की तबाही में एक समानता यह थी कि पहले से लोगों को चेतावनी दी गयी थी।
4. भविष्यवाणी में यीशु ने अपने चेलों को एक व्यवस्था के अंत की चेतावनी देने के लिए क्या चिन्ह दिए और सबसे पहले ये बातें पहली सदी में कैसे पूरी हुईं?
4 यीशु मसीह ने यरूशलेम के विनाश की चेतावनी पहले से ही दे दी थी, और उसने भविष्यवाणी की कि विनाश से पहले युद्ध, अकाल, भूकंप और अधर्म जैसी दर्दनाक घटनाएँ घटेंगी। उसने यह भी बताया कि झूठे भविष्यवक्ता बड़े ज़ोर-शोर से विरोध करेंगे फिर भी सारी दुनिया में परमेश्वर के राज्य की खुशखबरी सुनाने का काम जारी रहेगा। (मत्ती 24:4-7, 11-14) यह सच है कि आज यीशु की बातें बड़े पैमाने पर पूरी हो रही हैं, मगर उन दिनों भी ये बातें एक छोटे पैमाने में पूरी हुईं। इतिहास बताता है कि यहूदा में एक ज़बरदस्त अकाल पड़ा था। (प्रेरितों 11:28) यहूदी इतिहासकार, जोसीफस रिपोर्ट करते हैं कि यरूशलेम के विनाश से कुछ ही समय पहले उस इलाके में एक भूकंप भी आया था। जैसे-जैसे यरूशलेम का विनाश करीब आ रहा था पूरे देश में यहाँ-वहाँ बगावत की आग भड़की हुई थी, यहूदी राजनीतिक गुटों के बीच लड़ाइयाँ चल रही थीं और जिन शहरों में यहूदी और अन्यजाति के लोग रहते थे वहाँ अंधाधुंध हत्याएँ हो रही थीं। इतना कुछ होने के बावजूद राज्य की खुशखबरी का प्रचार ‘आकाश के नीचे की सारी सृष्टि में किया जा रहा था।’—कुलुस्सियों 1:23.
5, 6. (क) सामान्य युग 66 में यीशु की कौन-सी भविष्यवाणी पूरी हुई? (ख) सामान्य युग 70 में यरूशलेम के नाश में इतने ज़्यादा लोगों की जानें क्यों गयीं?
5 आखिरकार सा.यु. 66 में यहूदियों ने रोम के खिलाफ बगावत की। जब सेस्टियस गैलस ने अपनी सेना के साथ पूरे यरूशलेम को आ घेरा तो यीशु के चेलों को ज़रूर उसकी यह चेतावनी याद आयी होगी: “जब तुम यरूशलेम को सेनाओं से घिरा हुआ देखो, तो जान लेना कि उसका उजड़ जाना निकट है। तब जो यहूदिया में हों वह पहाड़ों पर भाग जाएं, और जो यरूशलेम के भीतर हों वे बाहर निकल जाएं; और जो गांवों में हों वे उस में न जाएं।” (लूका 21:20, 21) यरूशलेम से भाग निकलने का वह सही वक्त था, मगर वे भागते कैसे? हुआ यह कि अचानक गैलस अपनी सेना के साथ वापस चला गया और इस तरह यरूशलेम और यहूदिया में रहनेवाले मसीहियों को यीशु की चेतावनी मानकर पहाड़ों पर भाग जाने का मौका मिला।—मत्ती 24:15, 16.
6 इसके चार साल बाद जनरल टाइटस के अधीन रोमी सेना वापस आयी। इस बार टाइटस ने ठान ली कि वह यहूदियों की बगावत को कुचल कर ही दम लेगा। तब फसह का पर्व करीब आ रहा था और युद्ध का खतरा रहने के बावजूद, पूरे रोमी साम्राज्य से यहूदी लोग फसह मनाने के लिए यरूशलेम आए हुए थे। मगर इस शहर में आने के बाद वे सब-के-सब यहाँ फँस गए क्योंकि रोमी सेना ने यरूशलेम के चारों ओर ‘मोर्चा बान्धकर उसे घेर लिया’ था। इसलिए एक भी इंसान का बच निकलना मुश्किल था। (लूका 19:43, 44) जोसीफस का कहना है कि रोमी हमले में ज़्यादातर वे घात किए गए जो पर्व मनाने के लिए दूसरी जगहों से यरूशलेम आए हुए थे।a आखिर में जब यरूशलेम का नाश किया गया तब रोमी साम्राज्य में रहनेवाली यहूदी आबादी का सातवाँ हिस्सा मार डाला गया। इस तरह यरूशलेम और उसके मंदिर के नाश से ना सिर्फ यहूदी राष्ट्र का बल्कि मूसा के नियम पर कायम रहनेवाली यहूदी धार्मिक व्यवस्था का भी अंत हो गया।b—मरकुस 13:1, 2.
7. वफादार मसीही, यरूशलेम के विनाश से क्यों बच गए?
7 सामान्य युग 70 में यहूदी मसीही अपनी जान गँवा सकते थे या यरूशलेम शहर के दूसरे लोगों के साथ उन्हें भी बंदी बनाया जा सकता था। लेकिन इतिहास बताता है कि उनके साथ ऐसा नहीं हुआ क्योंकि उन्होंने 37 साल पहले दी गयी यीशु की चेतावनी पर कान दिया। और उसके मुताबिक उन्होंने वह शहर छोड़ दिया और फिर वहाँ वापस नहीं लौटे।
सही वक्त पर दी गयीं प्रेरितों की चेतावनियाँ
8. पतरस ने किस बात की ज़रूरत समझी और मसीहियों को उकसाते समय उसे यीशु के कौन-से शब्द याद आए होंगे?
8 यरूशलेम के विनाश के छः साल पहले प्रेरित पतरस ने मसीहियों को वक्त के मुताबिक एक ज़रूरी सलाह दी: चौकस रहो! यही सलाह खासकर आज के मसीहियों के लिए भी ज़रूरी है क्योंकि एक ऐसा ही विनाश हमारे ऊपर मँडरा रहा है जो बहुत बड़े पैमाने पर होगा और इस संसार को रौंद डालेगा। पतरस ने इस बात को समझा कि मसीहियों को ‘ठीक-ठीक सोचने की काबिलीयत’ (NW) उभारने की ज़रूरत है जिससे कि वे ‘प्रभु [यीशु मसीह] की आज्ञा को न भूलें।’ (2 पतरस 3:1, 2) इन आयतों में पतरस ने जब चौकस रहने की चेतावनी दी तब शायद उसके मन में यीशु की यह बात रही होगी जो उसने अपनी मौत से पहले प्रेरितों से कही थी: “देखो, जागते और प्रार्थना करते रहो; क्योंकि तुम नहीं जानते कि वह समय कब आएगा।”—मरकुस 13:33.
9. (क) कुछ लोगों में कौन-सा खतरनाक रवैया पैदा हो सकता है? (ख) संदेह करने का रवैया खासकर खतरनाक क्यों है?
9 आज हमारा मज़ाक उड़ाने की गरज़ से कुछ लोग पूछते हैं: “उसके आने की प्रतिज्ञा कहां गई?” (2 पतरस 3:3, 4) ऐसे लोग यही सोचते हैं कि सृष्टि के समय से लेकर दुनिया के जो हालात हैं, वैसे ही रहेंगे। इस तरह का रवैया रखना और संदेह करना खतरनाक है। क्योंकि संदेह की वजह से हम वक्त की नज़ाकत भूल सकते हैं और अपनी अभिलाषाओं को पूरा करने में लग सकते हैं। (लूका 21:34) इसके अलावा, पतरस कहता है कि ठट्ठा करनेवाले ये लोग एक बात भूल रहे हैं कि नूह के दिनों में एक जलप्रलय आया था जिसमें उस वक्त का संसार पूरी तरह तबाह हो गया था। उस वक्त दुनिया सचमुच बदल गयी!—उत्पत्ति 6:13, 17; 2 पतरस 3:5, 6.
10. जिन लोगों को धीरज धरने में मुश्किल होती है, उनका हौसला बढ़ाने के लिए पतरस क्या कहता है?
10 पतरस ने अपनी चिट्ठी पढ़नेवालों को धीरज का गुण पैदा करने में मदद देने के लिए इस बात की ओर उनका ध्यान खींचा कि ज़्यादातर मामलों में परमेश्वर फौरन कार्यवाही क्यों नहीं करता। सबसे पहले पतरस ने यह बात बतायी: “प्रभु के यहां एक दिन हजार वर्ष के बराबर है, और हजार वर्ष एक दिन के बराबर हैं।” (2 पतरस 3:8) यहोवा अनंतकाल का परमेश्वर है इसलिए वह हरेक पहलू पर ध्यान से सोचता और फिर तय करता है कि कार्यवाही करने का कौन-सा समय सबसे बेहतर होगा। पतरस ने आगे बताया कि यहोवा चाहता है कि सब लोग मन फिराएँ। अगर परमेश्वर ने फौरन नाश करने की कार्यवाही की होती तो कई लोगों को उद्धार पाने का मौका नहीं मिलता और उनका नाश हो चुका होता। मगर परमेश्वर ने ऐसा नहीं किया बल्कि धीरज से काम लिया। (1 तीमुथियुस 2:3, 4; 2 पतरस 3:9) यहोवा के धीरज धरने का मतलब यह नहीं कि वह कार्यवाही करने के लिए कोई कदम नहीं उठाएगा। पतरस ने कहा: ‘यहोवा का दिन ज़रूर आएगा और चोर की नाईं आएगा।’—2 पतरस 3:10, NW.
11. क्या करने से एक मसीही आध्यात्मिक रूप से जागा रह सकता है और किस मायने में ऐसा करने से यहोवा का दिन ‘जल्द आएगा’?
11 पतरस ने यहाँ चोर की जो मिसाल दी, वह सचमुच गौरतलब है। चौकीदार के लिए चोर को पकड़ना इतना आसान नहीं होता, खासकर जब बीच-बीच में उसकी आँख लग जाती है। लेकिन अगर चौकीदार पूरी रात जागता रहे तो वह चोर को पकड़ सकता है। लेकिन एक चैकीदार कैसे जागा रह सकता है? सारी रात एक जगह बैठे रहने के बजाय इधर-उधर टहलते रहने से चौकस रहना उसके लिए आसान होगा। ठीक उसी तरह आध्यात्मिक कामों में लगे रहने से मसीहियों को जागते रहने में आसानी होगी। इसलिए पतरस हमें ‘पवित्र चालचलन और भक्ति के कामों’ में लगे रहने को उकसाता है। (2 पतरस 3:11) ऐसे कामों से हम ‘परमेश्वर के दिन के जल्द आने के लिये यत्न’ कर रहे होंगे। (2 पतरस 3:12) माना कि हम यहोवा के ठहराए समय को नहीं बदल सकते। उसका दिन ठहराए वक्त पर ही आएगा। लेकिन अगर हम यहोवा की सेवा में व्यस्त रहेंगे तो उस दिन के इंतज़ार का समय देखते-ही-देखते बीत जाएगा।—1 कुरिन्थियों 15:58.
12. यहोवा के धीरज धरने का हर मसीही कैसे फायदा उठा सकता है?
12 इसलिए हममें से किसी को अगर लगे कि यहोवा देर कर रहा है तो हमें पतरस की सलाह माननी चाहिए और धीरज धरते हुए यहोवा के ठहराए हुए समय का इंतज़ार करना चाहिए। परमेश्वर के धीरज धरने की वजह से हमारे पास अभी जो समय है उसका हम बुद्धिमानी से इस्तेमाल कर सकते हैं। मिसाल के लिए, हम अपने अंदर ज़रूरी मसीही गुण बढ़ा सकते हैं और ज़्यादा-से-ज़्यादा लोगों तक खुशखबरी पहुँचा सकते हैं, जो कि कम समय में ऐसा करना शायद मुमकिन ना हो। अगर हम जागते रहेंगे तो इस दुनिया के अंत के समय में यहोवा के सामने ‘शान्ति से निष्कलंक और निर्दोष ठहरेंगे।’ (2 पतरस 3:14, 15) यह वाकई कितनी बड़ी आशीष होगी!
13. थिस्सलुनीके के मसीहियों को दी गयी पौलुस की कौन-सी सलाह खासकर आज हमारे लिए मायने रखती है?
13 थिस्सलुनीके के मसीहियों को लिखी अपनी पहली पत्री में भी पौलुस ने बताया कि जागते रहना ज़रूरी है। उसने सलाह दी: “हम औरों की नाईं सोते न रहें, पर जागते और सावधान रहें।” (1 थिस्सलुनीकियों 5:2, 6) आज जब पूरे संसार का अंत करीब आ रहा है तो ऐसे वक्त में इस सलाह को मानना वाकई कितना ज़रूरी है! यहोवा के उपासक एक ऐसी दुनिया में जी रहे हैं जहाँ आध्यात्मिक बातों के लिए कोई दिलचस्पी नहीं दिखायी जाती और इसका असर यहोवा के उपासकों पर भी पड़ सकता है। इसलिए पौलुस ने सलाह दी: ‘हम विश्वास और प्रेम की झिलम पहिनकर और उद्धार की आशा का टोप पहिनकर सावधान रहें।’ (1 थिस्सलुनीकियों 5:8) परमेश्वर के वचन का नियमित अध्ययन करने और सभाओं में भाइयों के साथ लगातार मेल-जोल रखने से हम पौलुस की सलाह पर चल सकते हैं और समय की गंभीरता जान सकते हैं।—मत्ती 16:1-3.
लाखों लोग जागते रहे हैं
14. कौन-से आँकड़े दिखाते हैं कि कई लोग आज पतरस की सलाह को मानकर जागते रहे हैं?
14 चौकस रहने के लिए परमेश्वर ने जो प्रोत्साहन दिया है क्या आज उसे बहुत-से लोग मान रहे हैं? जी हाँ। सन् 2002 के सेवा साल के दौरान 63,04,645 प्रचारकों ने दूसरों को परमेश्वर के राज्य के बारे में बताने के लिए 1,20,23,81,302 घंटे बिताए और इससे साबित किया कि वे आध्यात्मिक रूप से चौकस हैं। प्रचारकों की संख्या में सन् 2001 के मुकाबले 3.1 प्रतिशत की बढ़ोतरी हुई है। वे इस काम को हल्का नहीं समझते बल्कि यह उनकी ज़िंदगी का एक खास हिस्सा है। वे इस काम को कितना ज़रूरी समझते हैं, यह एल साल्वाडोर की एडवार्डो और नोएमी की मिसाल से पता चलता है।
15. एल साल्वाडोर का कौन-सा अनुभव दिखाता है कि कई लोग आध्यात्मिक रूप से चौकस हैं?
15 कुछ साल पहले की बात है। एडवार्डो और नोएमी ने पौलुस की इस बात को गंभीरता से लिया: “इस संसार की रीति और व्यवहार बदलते जाते हैं।” (1 कुरिन्थियों 7:31) वे सादगी भरी ज़िंदगी जीने लगे और उन्होंने पायनियर सेवा शुरू की। जैसे-जैसे वक्त बीतता गया उनको कई आशीषें मिलीं, यहाँ तक कि उन्हें सर्किट और डिस्ट्रिक्ट काम में भी भाग लेने का सुअवसर मिला। समस्याओं के बावजूद, एडवार्डो और नोएमी को इस बात का बिलकुल भी अफसोस नहीं है कि उन्होंने दुनिया के ऐशो-आराम को छोड़कर पूरे समय की सेवा करने का फैसला किया। एल साल्वाडोर के 29,269 साक्षियों में से कई प्रचारक और 2,454 पायनियरों ने ऐसी ही त्याग की भावना दिखायी है। यही एक वजह है कि वहाँ प्रचारकों की संख्या में पिछले साल 2 प्रतिशत की बढ़ोतरी हुई है।
16. कोत दिवॉर में एक जवान भाई ने कैसा रवैया दिखाया?
16 कोत दिवॉर में रहनेवाले एक मसीही जवान ने भी ऐसा ही रवैया दिखाया। उसने वहाँ के शाखा दफ्तर को लिखा: “मैं एक सहायक सेवक हूँ। मगर मैं दूसरे भाइयों को पायनियरिंग करने का बढ़ावा नहीं दे पा रहा था क्योंकि इस मामले में मैं खुद एक अच्छी मिसाल नहीं था। इसलिए मैंने अपनी अच्छी-खासी नौकरी छोड़ दी और मैं खुद का कुछ रोज़गार कर रहा हूँ। इसकी वजह से मैं प्रचार के लिए ज़्यादा वक्त निकाल पा रहा हूँ।” यह जवान भाई अब कोत दिवॉर के 983 पायनियरों में से एक है। वहाँ पिछले साल 6,701 प्रचारक थे जो कि पहले के मुकाबले 5 प्रतिशत की बढ़ोतरी है।
17. बेलजियम की एक जवान साक्षी ने कैसे दिखाया कि वह यहोवा के साक्षियों के बारे में किए जानेवाले भेदभाव से नहीं डरी?
17 बेलजियम के 24,961 राज्य प्रचारकों को अभी भी अत्याचार, भेदभाव और पक्षपात जैसी समस्याओं का सामना करना पड़ता है। फिर भी वे हिम्मत के साथ और पूरे जोश से प्रचार काम कर रहे हैं। वहाँ रहनेवाली एक सोलह साल की साक्षी इस बात की एक मिसाल है। एक बार जब उसने देखा कि नीतिशास्त्र की क्लास में यहोवा के साक्षियों को एक पंथ के लोग कहा गया तो उसने साक्षियों के बारे में इस गलतफहमी को दूर करने की इजाज़त माँगी। यहोवा के साक्षी—इस नाम से जुड़ा संगठन (अँग्रेज़ी) वीडियो और ब्रोशर, यहोवा के साक्षी—वे कौन हैं? की मदद से उसने समझाया कि असल में साक्षी किस तरह के लोग हैं। साक्षियों के बारे में इस जानकारी की बहुत सराहना की गयी और उसके अगले हफ्ते विद्यार्थियों का एक इम्तहान हुआ जिसमें सभी सवाल, यहोवा के साक्षियों के धर्म के बारे में थे।
18. क्या सबूत है कि आर्थिक समस्याओं के बावजूद अर्जेंटाइना और मोज़म्बिक के प्रचारकों ने यहोवा की सेवा करनी नहीं छोड़ी?
18 इन अंतिम दिनों में ज़्यादातर मसीहियों को बद-से-बदतर हालात का सामना करना पड़ता है फिर भी वे सच्चाई के मार्ग में बने रहने की पूरी कोशिश करते हैं। यह तो सब जानते हैं कि अर्जेंटाइना आर्थिक समस्याओं से जूझ रहा है लेकिन इसके बावजूद पिछले साल वहाँ 1,26,709 प्रचारक थे जो कि एक नया शिखर है। मोज़म्बिक में गरीबी की समस्या आज भी फैली हुई है। मगर फिर भी रिपोर्ट के मुताबिक प्रचार काम में 37,563 प्रचारकों ने हिस्सा लिया जो 4 प्रतिशत बढ़ोतरी को दर्शाता है। अल्बेनिया के कई लोग बहुत-सी मुश्किलों का सामना कर रहे हैं मगर उस देश में 12 प्रतिशत की अच्छी बढ़ोतरी हुई है और 2,708 प्रचारकों का एक शिखर हासिल हुआ। इससे एकदम साफ ज़ाहिर होता है कि जब परमेश्वर के सेवक, राज्य के कामों को पहला स्थान देते हैं तो मुश्किल हालात भी परमेश्वर की आत्मा को काम करने से रोक नहीं सकते।—मत्ती 6:33.
19. (क) इस बात का क्या सबूत है कि आज भी ऐसे भेड़ समान लोग हैं जिनको बाइबल की सच्चाई जानने की भूख है? (ख) यहोवा के सेवकों की सालाना रिपोर्ट की और कौन-सी जानकारी दिखाती है कि वे आध्यात्मिक रूप से जागते रहे हैं? (पेज 12-15 में दिया गया चार्ट देखिए।)
19 पूरी दुनिया में पिछले साल हर महीने औसतन 53,09,289 बाइबल अध्ययन हुए जिससे पता चलता है कि दुनिया में और भी कई भेड़ समान लोग हैं जिन्हें बाइबल की सच्चाई जानने की भूख है। स्मारक में 1,55,97,746 लोग हाज़िर हुए जो कि एक नया शिखर था, मगर उनमें से ज़्यादातर लोगों ने अब तक यहोवा की सेवा शुरू नहीं की है। हम उम्मीद करते हैं कि वे परमेश्वर का ज्ञान लेना ज़ारी रखेंगे और यहोवा, साथ ही मसीही भाई-बहनों के लिए उनका प्यार और भी गहरा होगा। यह देखकर वाकई कितनी खुशी मिलती है कि ‘अन्य भेड़ों’ की एक “बड़ी भीड़” अपने आत्मा से अभिषिक्त भाइयों के साथ मिलकर सिरजनहार के “मन्दिर में दिन रात” उसकी सेवा कर रही है और इससे अच्छे नतीजे मिल रहे हैं।—यूहन्ना 10:16, NW; प्रकाशितवाक्य 7:9, 15.
लूत से एक सबक
20. लूत और उसकी पत्नी की मिसाल से हम क्या सीख सकते हैं?
20 यह सच है कि कभी-कभी परमेश्वर के वफादार सेवक भी कुछ पल के लिए वक्त की नज़ाकत को भूल जाते हैं। इब्राहीम के भतीजे, लूत की ही मिसाल लीजिए। उसके घर आए दो स्वर्गदूतों ने उसे बताया कि परमेश्वर बहुत जल्द सदोम और अमोरा का नाश करनेवाला है। इस खबर से लूत बिलकुल हैरान नहीं हुआ क्योंकि वह पहले ही वहाँ के “अधर्मियों के अशुद्ध चालचलन से बहुत दुखी था।” (2 पतरस 2:7) मगर जब वे दोनों स्वर्गदूत उसे सदोम से बाहर ले जाने के लिए आए तो वह “विलम्ब करता रहा।” स्वर्गदूतों को उसे और उसके परिवार को मानो खींचकर नगर के बाहर ले जाना पड़ा। बाद में लूत की पत्नी ने स्वर्गदूतों की चेतावनी को अनसुना करके पीछे मुड़कर देखा। अपनी इस लापरवाही की वजह से उसे जान गँवानी पड़ी। (उत्पत्ति 19:14-17, 26) यीशु ने चेतावनी दी: “लूत की पत्नी को स्मरण रखो।”—लूका 17:32.
21. आज पहले से भी ज़्यादा जागते रहने की ज़रूरत क्यों है?
21 पॉम्पे और हर्कलेनीअम का हादसा, यरूशलेम की तबाही से पहले हुई घटनाएँ, साथ ही नूह के दिनों का प्रलय और लूत की मिसाल एक ही बात को पुख्ता करती हैं कि चेतावनियों पर ध्यान देना ज़िंदगी और मौत का सवाल है। हम यहोवा के सेवक अंत के समय के चिन्ह को बखूबी पहचानते हैं। (मत्ती 24:3) हमने अपने आपको झूठे धर्म से अलग कर लिया है। (प्रकाशितवाक्य 18:4) पहली सदी के मसीहियों की तरह हमें भी ‘परमेश्वर के दिन के जल्द आने के लिए यत्न करना चाहिए।’ (2 पतरस 3:12) जी हाँ, आज हमें पहले से भी ज़्यादा जागते रहने की ज़रूरत है! जागते रहने के लिए हममें से हरेक को क्या कदम उठाने हैं और अपने अंदर कौन-से गुण बढ़ाना ज़रूरी है? इन बातों पर अगले लेख में चर्चा की जाएगी।
[फुटनोट]
a पहली सदी में यरूशलेम की आबादी 1,20,000 से ज़्यादा नहीं हो सकती थी। युसेबियस ने अनुमान लगाया कि सा.यु. 70 में पूरे यहूदा प्रांत से 3,00,000 यहूदी फसह मनाने के लिए यरूशलेम आए हुए थे। मारे गए बाकी लोग शायद रोमी साम्राज्य के दूसरे हिस्सों के रहनेवाले थे।
b यहोवा की नज़र में कई साल पहले ही यानी सा.यु. 33 में नयी वाचा ने मूसा की व्यवस्था की जगह ले ली।—इफिसियों 2:15.
आप कैसे जवाब देंगे?
• किस घटना की वजह से यहूदी मसीहियों को यरूशलेम के विनाश से बच निकलने का मौका मिला?
• प्रेरित पतरस और पौलुस की पत्रियों में दी गयी सलाह से हमें किस तरह जागते रहने का हौसला मिलता है?
• आज कौन दिखाते हैं कि वे पूरी तरह जागे हुए हैं?
• लूत और उसकी पत्नी के किस्से से हमें क्या सबक मिलता है?
[पेज 12-15 पर चार्ट]
संसार-भर में यहोवा के साक्षियों की 2002 सेवा वर्ष रिपोर्ट
(पत्रिका देखिए)
[पेज 9 पर तसवीर]
सामान्य युग 66 में यरूशलेम के मसीहियों ने यीशु की चेतावनी मानी
[पेज 10 पर तसवीरें]
आध्यात्मिक कामों में लगे रहने से मसीहियों को जागते रहने में मदद मिलती है