क्या आपकी योजनाएँ परमेश्वर के मकसद से मेल खाती हैं
उत्तर अमरीका के पश्चिमी जंगलों में स्लेटी-सफेद रंग की एक छोटी-सी चिड़िया को इधर-उधर उड़ते हुए देखा जा सकता है। इस चिड़िया को क्लार्क्स नटक्रेकर के नाम से जाना जाता है। यह एक साल में 33,000 तक दाने इकट्ठा करके गाड़ देती है। यह उन्हें करीब 2,500 अलग-अलग जगहों में जमा करके रखती है, ताकि जिन महीनों में कड़ाके की ठंड पड़ती है, तब इनका इस्तेमाल कर सके। बेशक जिस तरह से यह छुटकी आनेवाले समय के लिए दाने जमा करती है, उससे हम कह सकते हैं कि यह “अत्यन्त बुद्धिमान” है।—नीतिवचन 30:24.
लेकिन इंसानों में जो काबिलीयत है, उसका तो जवाब ही नहीं। इस धरती पर यहोवा ने जितनी भी सृष्टि की है, उनमें इंसान ही ऐसा है, जिसके पास अपने तजुर्बे से सीखने और फिर उसके आधार पर आनेवाले कल की योजना बनाने की काबिलीयत है। बुद्धिमान राजा सुलैमान ने भी कहा: “मनुष्य के मन में बहुत सी कल्पनाएं [“योजनाएं,” NHT] होती हैं।”—नीतिवचन 19:21.
फिर भी इंसान की एक सीमा है, वह सिर्फ अनुमानों के आधार पर ही अपने भविष्य की योजना बना सकता है। उदाहरण के लिए, आप अगले दिन के काम की योजना यह अनुमान लगाकर बनाते हैं कि कल सूरज निकलेगा और आप ज़िंदा रहेंगे। आपका पहला अनुमान तो सबूतों पर आधारित है, जो बिलकुल सही है; मगर दूसरे पर इतना भरोसा नहीं किया जा सकता। बाइबल के एक लेखक याकूब ने भी इस हकीकत को इस तरह बयान किया: ‘तुम यह नहीं जानते कि कल क्या होगा।’—याकूब 4:13, 14.
मगर इंसानों की तरह यहोवा परमेश्वर की कोई सीमा नहीं है। वह तो “अन्त की बात आदि से” जानता है। वह जो कहता है वह पत्थर की लकीर है। वह कहता है, “मेरी युक्ति स्थिर रहेगी और मैं अपनी इच्छा को पूरी करूंगा।” (यशायाह 46:10) लेकिन जब एक इंसान परमेश्वर के मकसद को ताक पर रखकर अपनी योजनाओं को अंजाम देने की कोशिश करता है तो उसका क्या हश्र होता है?
जब इंसानी योजनाओं से परमेश्वर का अपमान होता है
करीब 4,000 साल पहले सभी जातियों को एक ही जगह पर बसाने के मंसूबे से, कुछ लोगों ने बाबुल का गुम्मट खड़ा करने की योजना बनायी। गुम्मट बनानेवालों ने कहा: “आओ, हम एक नगर और एक गुम्मट बना लें, जिसकी चोटी आकाश से बातें करे, इस प्रकार से हम अपना नाम करें ऐसा न हो कि हम को सारी पृथ्वी पर फैलना पड़े।”—उत्पत्ति 11:4.
लेकिन धरती के लिए परमेश्वर का मकसद तो कुछ और ही था। उसने नूह और उसके बेटों को आज्ञा दी थी: “फूलो-फलो, और बढ़ो, और पृथ्वी में भर जाओ।” (उत्पत्ति 9:1) तो फिर बाबुल के विद्रोही लोगों के मंसूबे के खिलाफ यहोवा ने क्या कार्रवाई की? यहोवा ने उनकी भाषा में गड़बड़ी डाल दी जिसकी वजह से उनका एक-दूसरे की बात समझना मुश्किल हो गया। इसका क्या नतीजा हुआ? “यहोवा ने उनको, वहां से सारी पृथ्वी के ऊपर फैला दिया।” (उत्पत्ति 11:5-8) बाबुल का गुम्मट बनानेवालों को मुँह की खानी पड़ी। जब इंसान की योजनाओं और यहोवा के मकसद में टकराव होता है, तो जो “युक्ति यहोवा करता है, वही स्थिर रहती है।” (नीतिवचन 19:21) पुराने ज़माने में लोगों के साथ जो हुआ, क्या उससे आप कोई सबक सीखते हैं?
एक धनी आदमी की बेवकूफी
बेशक आप बाबुल का गुम्मट खड़ा करने की तो नहीं सोचेंगे। मगर हो सकता है आप बैंक में ढेर सारा पैसा जमा करने और खूब सारी चीज़ें इकट्ठी करने की योजना बनाएँ, ताकि रिटायर होने पर आप आराम की ज़िंदगी गुज़ार सकें। ऐसा सोचना लाज़िमी है क्योंकि हर इंसान अपनी मेहनत की कमाई का मज़ा लेना चाहता है। और राजा सुलैमान ने भी लिखा: “यह भी परमेश्वर का दान है कि मनुष्य खाए-पीए और अपने सब परिश्रम में सुखी रहे।”—सभोपदेशक 3:13.
मगर हम यहोवा के दिए इस दान का जिस तरह इस्तेमाल करते हैं उसका हिसाब हमें यहोवा को देना होगा। करीब 2,000 हज़ार साल पहले, इसी बात ज़ोर देते हुए यीशु ने अपने चेलों को एक दृष्टांत दिया। उसने कहा: “किसी धनवान की भूमि में बड़ी उपज हुई। तब वह अपने मन में विचार करने लगा, कि मैं क्या करूं, क्योंकि मेरे यहां जगह नहीं, जहां अपनी उपज इत्यादि रखूं। और उस ने कहा; मैं यह करूंगा: मैं अपनी बखारियां तोड़ कर उन से बड़ी बनाऊंगा; और वहां अपना सब अन्न और संपत्ति रखूंगा: और अपने प्राण से कहूंगा, कि प्राण, तेरे पास बहुत वर्षों के लिये बहुत संपत्ति रखी है; चैन कर, खा, पी, सुख से रह।” (लूका 12:16-19) भविष्य के लिए यह धनी आदमी जो योजनाएँ बना रहा था, उसमें कोई खराबी तो नहीं लगती। आप क्या सोचते हैं? लेख की शुरूआत में बतायी क्लार्क्स नटक्रेकर चिड़िया की तरह लगता है कि यह आदमी भी अपने भविष्य के लिए इंतज़ाम कर रहा था।
लेकिन फिर भी इस आदमी की सोच में कुछ गड़बड़ थी। यीशु अपनी बात को जारी रखते हुए कहता है: “परमेश्वर ने उस से कहा; हे मूर्ख, इसी रात तेरा प्राण तुझ से ले लिया जाएगा: तब जो कुछ तू ने इकट्ठा किया है, वह किस का होगा?” (लूका 12:20) तो क्या यीशु राजा सुलैमान की बात को काट रहा था जिसने कहा कि काम और अच्छी चीज़ें परमेश्वर की तरफ से दान हैं? नहीं ऐसी बात नहीं है। तो फिर यीशु के कहने का मतलब क्या था? वह कह रहा था: “वह मनुष्य भी है जो अपने लिये धन बटोरता है, परन्तु परमेश्वर की दृष्टि में धनी नहीं।”—लूका 12:21.
यीशु अपने सुननेवालों को सिखा रहा था कि हमें यहोवा परमेश्वर के मकसद को ध्यान में रखते हुए अपनी योजनाएँ बनानी चाहिए। वह धनी मनुष्य परमेश्वर के साथ मज़बूत रिश्ता बनाकर, बुद्धिमान होकर और प्यार में उन्नति करके परमेश्वर की नज़र में अमीर बन सकता था। लेकिन उस धनी मनुष्य की बातों से साफ ज़ाहिर होता है कि उसे इनमें कोई दिलचस्पी नहीं थी। ना ही वह गरीबों के लिए अपने खेत में कुछ अनाज छोड़ना चाहता था और ना ही वह यहोवा को कोई बलिदान चढ़ाना चाहता था। परमेश्वर और दूसरों के लिए कुछ कर दिखाने का जज़्बा उस इंसान की ज़िंदगी में कोई मायने नहीं रखता था। उसकी सारी योजनाएँ सिर्फ अपनी तृप्ति और अपने आराम के लिए थीं।
क्या आपने अपने चारों तरफ कभी गौर किया है कि आज बहुत-से लोग यीशु के दृष्टांत में बताए उस धनी मनुष्य की तरह हैं? चाहे हम अमीर हों या गरीब, बड़ी आसानी से हम सभी पर पैसा कमाने का जुनून सवार हो सकता है। और इस तरह हम रोज़मर्रा की ज़रूरतों और इच्छाओं को ज़्यादा तवज्जह देकर परमेश्वर के साथ अपने रिश्ते को ताक पर रख देते हैं। इस फँदे से बचने के लिए आप क्या कर सकते हैं?
एक “आम” ज़िंदगी की योजनाएँ
यीशु के दृष्टांत में बताए उस धनी आदमी के उलट आपको शायद पैसा कमाने के लिए काफी मेहनत करनी पड़ती हो। मगर फिर भी, अगर आप शादी-शुदा हैं तो आपने ज़रूर अपने परिवार के भरण-पोषण और अपने बच्चों को अच्छी शिक्षा देने की कुछ योजनाएँ बनायी होंगी। अगर आप कुँवारे हैं तो आप शायद यह सोच रहे होंगे कि मुझे एक अच्छी नौकरी कैसे मिल सकती है। और अगर आप कहीं नौकरी कर रहे हैं, तो आप उसे बरकरार रखने की सोच रहे होंगे। हाँ, आपकी ये योजनाएँ बहुत अच्छी हैं।—2 थिस्सलुनीकियों 3:10-12; 1 तीमुथियुस 5:8.
लोगों की नज़र में ऐसी ज़िंदगी एक आम ज़िंदगी है। मगर ऐसी ज़िंदगी जीने के बावजूद एक इंसान परमेश्वर की मरज़ी के खिलाफ जा सकता है। कैसे? यीशु ने कहा: “जैसे नूह के दिन थे, वैसा ही मनुष्य के पुत्र का आना भी होगा। क्योंकि जैसे जल-प्रलय से पहिले के दिनों में, जिस दिन तक कि नूह जहाज पर न चढ़ा, उस दिन तक लोग खाते-पीते थे, और उन में ब्याह शादी होती थी। और जब तक जल-प्रलय आकर उन सब को बहा न ले गया, तब तक उन को कुछ भी मालूम न पड़ा [“कोई ध्यान नहीं दिया,” NW]; वैसे ही मनुष्य के पुत्र का आना भी होगा।”—मत्ती 24:37-39.
जलप्रलय से पहले लोग जिस तरह की ज़िंदगी का मज़ा ले रहे थे, उनकी नज़र में वह एक आम ज़िंदगी थी। लेकिन उनकी समस्या यह थी कि उन्होंने परमेश्वर के इस मकसद पर “कोई ध्यान नहीं दिया” कि वह उनके समय की दुष्ट दुनिया को जलप्रलय के ज़रिए नाश कर देगा। उन्हें तो नूह के जीने का तरीका अजीब लगा होगा। लेकिन जब जलप्रलय आया तब नूह और उसके परिवार के जीने का तरीका ही बुद्धिमानी भरा साबित हुआ।
आज सारे सबूत डंके की चोट पर कह रहे हैं कि हम अंतिम दिनों में जी रहे हैं। (मत्ती 24:3-12; 2 तीमुथियुस 3:1-5) जल्द ही, परमेश्वर का राज्य इस दुनिया की व्यवस्था को “चूर चूर करेगा, और उनका अन्त कर डालेगा।” (दानिय्येल 2:44) परमेश्वर के राज्य में इस धरती को खूबसूरत बगीचे में तबदील कर दिया जाएगा। परमेश्वर का राज्य बीमारी और मौत को खत्म कर देगा। (यशायाह 33:24; प्रकाशितवाक्य 21:3-5) उस वक्त कोई भूखा नहीं रहेगा और क्या इंसान, क्या जानवर सभी मिल-जुलकर रहेंगे।—भजन 72:16; यशायाह 11:6-9.
लेकिन इससे पहले कि यहोवा कोई कदम उठाए, उसकी इच्छा है कि राज्य का सुसमाचार ‘सारे जगत में प्रचार किया जाए।’ (मत्ती 24:14) परमेश्वर की इच्छा के मुताबिक दुनिया के 236 देशों में करीब 70 लाख यहोवा के साक्षी 400 से भी ज़्यादा भाषाओं में खुशखबरी सुना रहे हैं।
कुछ मामलों में दुनिया के लोगों को यहोवा के साक्षियों के जीने का तरीका शायद अजीब लगे, यहाँ तक कि वे उनकी खिल्ली भी उड़ाएँ। (2 पतरस 3:3, 4) जलप्रलय से पहले के लोगों की तरह आज भी ज़्यादातर लोग अपने रोज़मर्रा के कामों में लगे हुए हैं। इसलिए जो लोग समाज के रंग में नहीं रंगना चाहते उनका जीवन शायद दूसरों को सामान्य या आम ना लगे। लेकिन जो परमेश्वर के वादों पर भरोसा रखते हैं, उनके नज़रिए से आम ज़िंदगी वही है, जिसमें परमेश्वर की सेवा को पहली जगह दी जाती है।
इसलिए चाहे आप ऐशो-आराम से जी रहे हों, जैसे-तैसे गुज़र-बसर कर रहे हों या तंगहाली में हों, बुद्धिमानी इसी में है कि आप समय-समय पर अपने भविष्य की योजनाओं पर गौर करते रहें। ऐसा करते वक्त अपने आप से पूछिए, ‘क्या मेरी योजनाएँ परमेश्वर के मकसद से मेल खाती हैं?’ (w08 7/1)
[पेज 9 पर तसवीर]
जब इंसान की योजनाओं और परमेश्वर के मकसद में टकराव होता है तो यहोवा की युक्ति ही स्थिर रहती है
[पेज 10 पर तसवीर]
अपनी योजनाएँ बनाते समय यीशु के दृष्टांत में बताए धनी मनुष्य ने परमेश्वर के मकसद पर ध्यान नहीं दिया