अध्ययन लेख 28
जब रोक लगी हो, तब भी यहोवा की उपासना करते रहिए
“हम उन बातों के बारे में बोलना नहीं छोड़ सकते जो हमने देखी और सुनी हैं।”—प्रेषि. 4:19, 20.
गीत 122 अटल रहें!
लेख की एक झलकa
1-2. (क) अगर हमारी उपासना पर रोक लगा दी जाए, तो हमें हैरान क्यों नहीं होना चाहिए? (ख) इस लेख में हम क्या चर्चा करेंगे?
सन् 2018 की रिपोर्ट के मुताबिक 2,23,000 से भी ज़्यादा प्रचारक ऐसे देशों में रहते हैं, जहाँ हमारे काम पर सख्त पाबंदियाँ लगी हैं या फिर पूरी तरह रोक लगी है। यह कोई हैरानी की बात नहीं है। जैसे हमने पिछले लेख में देखा, सच्चे मसीही जानते हैं कि एक-न-एक दिन उन पर ज़ुल्म ढाए जाएँगे। (2 तीमु. 3:12) हम चाहे किसी भी देश या इलाके में रहते हों, सरकारी अधिकारी कभी-भी हमारी उपासना पर रोक लगा सकते हैं।
2 अगर आपके देश में ऐसा कुछ होता है, तो शायद आपके मन में तरह-तरह के सवाल आएँ। जैसे, ‘क्या हम पर इसलिए ज़ुल्म ढाए जा रहे हैं कि यहोवा हमसे खुश नहीं है? क्या रोक लगने से हम उसकी उपासना बिलकुल नहीं कर पाएँगे? क्या हमें किसी ऐसे देश में चले जाना चाहिए, जहाँ यहोवा की उपासना करने पर कोई रोक-टोक नहीं है?’ इन सवालों के जवाब इस लेख में दिए जाएँगे। हम यह भी जानेंगे कि ऐसे हालात में भी हम कैसे यहोवा की उपासना कर सकते हैं और हमें किन बातों से खबरदार रहना चाहिए।
क्या ज़ुल्म ढाए जाने का मतलब है कि यहोवा हमसे खुश नहीं है?
3. (क) 2 कुरिंथियों 11:23-27 के मुताबिक पौलुस जैसे वफादार प्रेषित पर किस तरह के ज़ुल्म ढाए गए? (ख) पौलुस के अनुभव से क्या पता चलता है?
3 अगर सरकार हमारी उपासना पर रोक लगा दे, तो शायद हम यह मान बैठें कि अब हम पर यहोवा की आशीष नहीं है। लेकिन याद रखिए, ज़ुल्म ढाए जाने का मतलब यह नहीं होता कि यहोवा हमसे खुश नहीं है। ज़रा प्रेषित पौलुस के उदाहरण पर ध्यान दीजिए। इसमें कोई शक नहीं कि परमेश्वर उससे खुश था। उसे ऐसी 14 चिट्ठियाँ लिखने का सम्मान मिला, जो मसीही यूनानी शास्त्र का हिस्सा हैं और वह गैर-यहूदी राष्ट्रों के लिए प्रेषित था। इसके बावजूद उसे बहुत ज़ुल्म सहने पड़े। (2 कुरिंथियों 11:23-27 पढ़िए।) प्रेषित पौलुस के अनुभव से पता चलता है कि यहोवा अपने वफादार सेवकों पर भी ज़ुल्म होने देता है।
4. दुनिया हमसे नफरत क्यों करती है?
4 यीशु ने पहले से ही बता दिया था कि हमारा विरोध किया जाएगा। उसने कहा कि हम इस दुनिया के नहीं हैं, इसलिए लोग हमसे नफरत करेंगे। (यूह. 15:18, 19) जब हम पर ज़ुल्म ढाए जाते हैं, तो इसका मतलब यह नहीं कि यहोवा हमसे नाखुश है। इसके बजाय इससे यह ज़ाहिर होता है कि हम एकदम सही काम कर रहे हैं!
क्या रोक लगने से हम यहोवा की उपासना नहीं कर पाएँगे?
5. क्या अदना इंसान यहोवा की उपासना बंद करवा सकता है? समझाइए।
5 अदना इंसान में इतनी ताकत नहीं कि वह सर्वशक्तिमान परमेश्वर यहोवा की उपासना पूरी तरह बंद करवा दे। बहुतों ने ऐसा करने की कोशिश की, मगर नाकाम रहे। ध्यान दीजिए कि दूसरे विश्व युद्ध के दौरान क्या हुआ। कई देशों में सरकारों ने परमेश्वर के लोगों को बेरहमी से सताया। जर्मनी में नात्ज़ी सरकार ने यहोवा के साक्षियों के काम पर रोक लगा दी। ऑस्ट्रेलिया, कनाडा और दूसरे देशों में भी ऐसा ही हुआ। फिर भी गौर कीजिए कि नतीजा क्या हुआ। सन् 1939 में जब युद्ध छिड़ा था, तब पूरी दुनिया में 72,475 प्रचारक थे। लेकिन रिपोर्ट से पता चलता है कि 1945 में युद्ध के खत्म होते-होते प्रचारकों की गिनती 1,56,299 हो गयी। वाकई, यहोवा की आशीष से प्रचारकों की गिनती दो गुना से भी ज़्यादा हो गयी!
6. विरोध और ज़ुल्म हमें डराने के बजाय क्या कर सकते हैं? उदाहरण दीजिए।
6 विरोध और ज़ुल्म हमें डराने के बजाय यहोवा की सेवा और भी अच्छी तरह करने के लिए उभार सकते हैं। एक परिवार का उदाहरण लीजिए, जिसमें पति-पत्नी और उनका एक छोटा बच्चा है। वे ऐसे देश में रहते थे, जहाँ सरकार ने साक्षियों के काम पर रोक लगाने का फैसला किया था। डर के मारे यहोवा की सेवा में पीछे हटने के बजाय पति-पत्नी ने पायनियर सेवा शुरू कर दी, यहाँ तक कि इसके लिए पत्नी ने अपनी अच्छी-खासी नौकरी भी छोड़ दी। पति का कहना है कि हमारे काम पर रोक लगने से लोगों के मन में यहोवा के साक्षियों को लेकर सवाल उठने लगे। इस वजह से वह भाई कई लोगों के साथ बाइबल अध्ययन शुरू कर पाया। सरकार की तरफ से लगी रोक का दूसरे भाई-बहनों पर भी अच्छा असर हुआ। उसी देश का एक प्राचीन कहता है कि जो यहोवा की सेवा में ढीले पड़ गए थे, उनमें से कई फिर से सभाओं में आने लगे और प्रचार में हिस्सा लेने लगे।
7. (क) लैव्यव्यवस्था 26:36, 37 से हम क्या सीखते हैं? (ख) अगर यहोवा की उपासना पर रोक लगा दी जाए, तो आप क्या करेंगे?
7 जब दुश्मन हमारे काम पर रोक लगाते हैं, तो वे चाहते हैं कि हम डरकर यहोवा की सेवा करना छोड़ दें। इसके अलावा शायद वे हमारे बारे में झूठी अफवाहें फैलाएँ, हमारे घरों की तलाशी लेने के लिए अधिकारियों को भेजें, हमें अदालतों में ले जाएँ, यहाँ तक कि कुछ भाई-बहनों को जेल में डलवा दें। उन्हें लगता है कि हम अपने भाई-बहनों को जेल में देखकर डर जाएँगे। अगर दुश्मनों की वजह से हमारे दिल में डर बैठ जाए, तो हो सकता है कि हम खुद अपनी उपासना पर “रोक” लगा दें। हम उन लोगों की तरह नहीं होना चाहते, जिनके बारे में लैव्यव्यवस्था 26:36, 37 में बताया गया है। (पढ़िए।) हम ऐसा कभी नहीं चाहेंगे कि डर के मारे यहोवा की सेवा करना बंद कर दें या उसमें ढीले पड़ जाएँ। हमें यहोवा पर पूरा भरोसा है और हम किसी बात से नहीं घबराते। (यशा. 28:16) हम यहोवा से प्रार्थना करते हैं और उसका मार्गदर्शन लेते हैं। हम जानते हैं कि जब यहोवा हमारे साथ है, तो उसकी उपासना करने से हमें कोई नहीं रोक सकता, सबसे ताकतवर इंसानी सरकार भी नहीं।—इब्रा. 13:6.
क्या मुझे दूसरे देश चले जाना चाहिए?
8-9. (क) हर मसीही को अपने या अपने परिवार के लिए कौन-सा फैसला लेना है? (ख) सही फैसला लेने में क्या बात एक मसीही की मदद करेगी?
8 अगर आपके देश की सरकार साक्षियों के काम पर रोक लगा दे, तो शायद आप सोचें, ‘क्या मुझे ऐसे देश में चले जाना चाहिए, जहाँ यहोवा की उपासना करने की पूरी आज़ादी है?’ यह आपका निजी फैसला है, कोई और आपके लिए यह फैसला नहीं कर सकता। लेकिन यह फैसला लेने से पहले शायद कुछ भाई-बहन गौर करें कि जब पहली सदी के मसीहियों पर ज़ुल्म ढाए गए, तो उन्होंने क्या किया। जब दुश्मनों ने स्तिफनुस को पत्थरों से मार डाला, तो यरूशलेम में रहनेवाले चेले यहूदिया और सामरिया के इलाकों में चले गए। कुछ लोग तो फीनीके, कुप्रुस और अंताकिया जैसे दूर-दूर के इलाकों में भी जा बसे। (मत्ती 10:23; प्रेषि. 8:1; 11:19) वहीं कुछ भाई-बहन शायद गौर करें कि जब दूसरी बार पहली सदी के मसीहियों पर ज़ुल्म ढाए गए, तो पौलुस ने तय किया कि वह उन इलाकों में ही रहेगा, जहाँ प्रचार काम का विरोध किया जा रहा था। उसने उन इलाकों में खुशखबरी सुनाने और भाइयों का हौसला बढ़ाने के लिए अपनी जान का जोखिम उठाया।—प्रेषि. 14:19-23.
9 इन घटनाओं से हम क्या सीखते हैं? हर परिवार के मुखिया को खुद फैसला करना चाहिए कि क्या वह और उसका परिवार दूसरी जगह जाकर बसेगा। कोई फैसला लेने से पहले उसे यहोवा से प्रार्थना करनी चाहिए और अपने परिवार के हालात पर ध्यान देना चाहिए। उसे यह भी सोचना चाहिए कि अगर उसका परिवार दूसरी जगह जाता है, तो इसका उन पर क्या अच्छा या बुरा असर हो सकता है। इस मामले में हर मसीही को “अपना बोझ खुद” उठाना होगा। (गला. 6:5) ऐसे में वह जो भी फैसला लेता है, उस आधार पर हमें कोई राय कायम नहीं करनी चाहिए।
रोक लगने पर भी उपासना जारी कैसे रखें?
10. शाखा दफ्तर और प्राचीन क्या निर्देश और हिदायतें देंगे?
10 जब साक्षियों के काम पर रोक लगा दी जाए, तब भी आप यहोवा की उपासना कैसे जारी रख सकते हैं? शाखा दफ्तर प्राचीनों को निर्देश और कुछ सुझाव देंगे कि मंडली के भाई-बहन कैसे अपना विश्वास मज़बूत रख सकते हैं, उपासना के लिए इकट्ठा हो सकते हैं और लोगों को खुशखबरी सुना सकते हैं। अगर शाखा दफ्तर मंडली के प्राचीनों से संपर्क नहीं कर पाता, तो प्राचीन बाइबल और हमारे प्रकाशनों के आधार पर भाई-बहनों को कुछ हिदायतें देंगे, ताकि वे यहोवा की उपासना जारी रख सकें।—मत्ती 28:19, 20; प्रेषि. 5:29; इब्रा. 10:24, 25.
11. (क) आप क्यों यकीन रख सकते हैं कि अपना विश्वास मज़बूत रखने के लिए आपको जो चाहिए, वह ज़रूर मिलेगा? (ख) रोक लगने पर आप अपनी बाइबल और दूसरे प्रकाशनों का क्या करेंगे?
11 यहोवा ने वादा किया है कि उसके सेवकों को अपना विश्वास मज़बूत रखने के लिए जो चाहिए, वह सब भरपूर मात्रा में मिलेगा। (यशा. 65:13, 14; लूका 12:42-44) इस वजह से आप यकीन रख सकते हैं कि यहोवा के वफादार रहने के लिए आपको जो जानकारी और हिदायतें चाहिए, संगठन वह सब देने की पूरी कोशिश करेगा। आप क्या कर सकते हैं? अगर आपके यहाँ सरकार रोक लगा दे, तो कोई ऐसी सुरक्षित जगह देखिए, जहाँ आप अपनी बाइबल और दूसरे प्रकाशन छिपा सकें। ध्यान रखिए कि आप ये अनमोल चीज़ें ऐसी जगह न छोड़ें, जहाँ लोग आसानी से इन्हें ढूँढ़ सकते हैं, फिर चाहे ये किताबें-पत्रिकाएँ हों या इलेक्ट्रॉनिक रूप में। इन हालात में अपना विश्वास मज़बूत रखने के लिए हम जो कुछ कर सकते हैं, वह हमें करना चाहिए।
12. लोगों का ध्यान बेवजह हम पर न जाए, इसके लिए प्राचीन सभाओं का इंतज़ाम किस तरह कर सकते हैं?
12 हर हफ्ते होनेवाली हमारी सभाओं का क्या होगा? प्राचीन सभाओं का इस तरह इंतज़ाम करेंगे, ताकि बेवजह विरोधियों का ध्यान हम पर न जाए। शायद प्राचीन, भाई-बहनों को छोटे-छोटे समूहों में इकट्ठा होने की हिदायत दें। हो सकता है, वे सभाओं का समय और जगह बदलते रहें। सभाओं में आते-जाते समय धीमी आवाज़ में बात करना अच्छा रहेगा। इससे आप भाई-बहनों को बेवजह मुसीबत में पड़ने से बचाएँगे। शायद आपको ऐसे कपड़े पहनने पड़ें, जिनसे किसी को शक न हो कि आप सभाओं के लिए जा रहे हैं।
13. भूतपूर्व सोवियत संघ के भाइयों से हम क्या सीख सकते हैं?
13 जहाँ तक प्रचार की बात है, तो हर जगह के हालात अलग-अलग हो सकते हैं। लेकिन एक बात तय है, हम सब यहोवा से प्यार करते हैं और हमें उसके राज के बारे में लोगों को बताना अच्छा लगता है। इस वजह से लोगों को गवाही देने का हम कोई-न-कोई रास्ता ढूँढ़ ही लेंगे। (लूका 8:1; प्रेषि. 4:29) भूतपूर्व सोवियत संघ में यहोवा के साक्षियों के प्रचार काम के बारे में एक इतिहासकार एमली बी. बैरन का कहना है, “जब सरकार ने साक्षियों के प्रचार काम पर रोक लगा दी, तो वे अपने पड़ोसियों, साथ काम करनेवालों और दोस्तों से अपने विश्वास के बारे में बात करने लगे। फिर जब इस वजह से उन्हें शिविरों में डाल दिया गया, तो वे अपने साथी कैदियों को गवाही देने लगे।” हालाँकि भूतपूर्व सोवियत संघ में हमारे काम पर रोक लगा दी गयी थी, फिर भी वहाँ के भाइयों ने प्रचार करना बंद नहीं किया। अगर कभी आपके देश में ऐसे हालात खड़े हो जाएँ, तो आप भी ठान लें कि आप प्रचार करना कभी बंद नहीं करेंगे!
किन बातों से खबरदार रहें?
14. भजन 39:1 में हमें किस बात से खबरदार किया गया है?
14 लोगों को जानकारी देने के मामले में सावधान रहिए। जब हमारे काम पर रोक लगा दी जाती है, तो हमें पहचानना होगा कि किन हालात में ‘चुप रहना’ ही सही है। (सभो. 3:7) हमें किसी को ऐसी जानकारी नहीं देनी चाहिए जिसे गुप्त रखना है, जैसे हमारे भाई-बहनों के नाम, हमारे मिलने की जगह, हम कैसे प्रचार करते हैं और हमें प्रकाशन कैसे मिलते हैं। हम ऐसी जानकारी अधिकारियों को नहीं बताएँगे, न ही अपने देश में या दूसरे देशों में रहनेवाले दोस्तों या रिश्तेदारों को बताएँगे, फिर चाहे उन्हें हमारी कितनी ही फिक्र हो। अगर हम इस बारे में खबरदार न रहें, तो हम अपने भाई-बहनों को खतरे में डाल रहे होंगे।—भजन 39:1 पढ़िए।
15. शैतान क्या करने की कोशिश करता है और हम उसके फंदे से कैसे बच सकते हैं?
15 छोटी-मोटी बातों की वजह से फूट पड़ने मत दीजिए। शैतान अच्छी तरह जानता है कि अगर किसी घर में फूट पड़ जाए, तो वह टिक नहीं सकता। (मर. 3:24, 25) वह लगातार कुछ ऐसा करने की कोशिश करता है, जिस वजह से हममें फूट पड़ जाए। वह चाहता है कि हम उससे लड़ने के बजाय एक-दूसरे से ही लड़ने लगें।
16. बहन गर्टरुड पोट्ज़िंगर ने क्या अच्छी मिसाल रखी?
16 प्रौढ़ मसीहियों को भी सावधान रहना चाहिए कि वे शैतान के इस फंदे में न फँस जाएँ। ज़रा दो अभिषिक्त बहनों गर्टरुड पोट्ज़िंगर और एल्फ्रीडे लॉर के उदाहरण पर ध्यान दीजिए। वे दूसरी मसीही बहनों के साथ नात्ज़ियों के एक यातना शिविर में कैद थीं। बहन एल्फ्रीडे शिविर में दूसरी बहनों के सामने हौसला बढ़ानेवाले भाषण देती थीं। यह देखकर बहन गर्टरुड को जलन होने लगी। बाद में बहन गर्टरुड को खुद पर शर्म आयी और उन्होंने गिड़गिड़ाकर यहोवा से मदद माँगी। बहन का कहना है, “हम इस बात से इनकार नहीं कर सकते कि कई बार दूसरों में हमसे बढ़कर काबिलीयतें होती हैं या उनके पास हमसे ज़्यादा ज़िम्मेदारियाँ होती हैं।” बहन ने जलन की भावना पर काबू पाने के लिए क्या किया? उन्होंने बहन एल्फ्रीडे के अच्छे गुणों और उनके मिलनसार स्वभाव पर ध्यान दिया। इस तरह उनका आपसी रिश्ता फिर से अच्छा हो गया। वे दोनों अभिषिक्त बहनें यातना शिविर में धीरज रख पायीं और उन्होंने मरते दम तक वफादारी से यहोवा की सेवा की। अगर हम आपसी मनमुटाव दूर करने की पूरी कोशिश करें, तो हम अपने बीच फूट पड़ने नहीं देंगे।—कुलु. 3:13, 14.
17. हमें यहोवा के संगठन से मिलनेवाले निर्देश क्यों मानने चाहिए?
17 हमेशा निर्देश मानिए। अगर हम भरोसेमंद और ज़िम्मेदार भाइयों से मिलनेवाले निर्देश मानें, तो हम समस्याओं में पड़ने से बच सकते हैं। (1 पत. 5:5) उदाहरण के लिए, एक देश में हमारे काम पर रोक लगी थी। ज़िम्मेदार भाइयों ने प्रचारकों को निर्देश दिया कि वे मौके देखकर गवाही दें मगर लोगों को कोई प्रकाशन न दें। लेकिन एक पायनियर भाई इस निर्देश से सहमत नहीं था और उसने लोगों को प्रकाशन दिए। नतीजा क्या हुआ? जब वह और कुछ दूसरे भाई-बहन प्रचार करके लौट रहे थे, तो पुलिसवालों ने उनसे पूछताछ की। ऐसा मालूम होता है कि वे प्रचारकों का पीछा कर रहे थे और उनके हाथ वे प्रकाशन लग गए थे, जो भाइयों ने लोगों को दिए थे। इस अनुभव से हम क्या सीखते हैं? हमें हर हाल में संगठन से मिलनेवाले निर्देश मानने चाहिए, तब भी जब हम उनसे सहमत न हों। यहोवा ने जिन भाइयों को हमारी अगुवाई करने का ज़िम्मा सौंपा है, उन्हें सहयोग देकर हम उसे खुश करते हैं।—इब्रा. 13:7, 17.
18. हमें अपने भाइयों के लिए बेवजह नियम क्यों नहीं बनाने चाहिए?
18 बेवजह नियम मत बनाइए। अगर प्राचीन बेवजह नियम बनाएँ, तो वे दूसरों के लिए और भी मुश्किलें खड़ी कर सकते हैं। भाई यूराई कौमिन-स्की बताते हैं कि जब भूतपूर्व चेकोस्लोवाकिया में साक्षियों के काम पर रोक लगी थी, तब क्या हुआ। भाई कहते हैं, “जब बहुत-से प्राचीनों को गिरफतार कर लिया गया, तो सर्किट और मंडलियों की अगुवाई करने के लिए जो भाई रह गए थे, वे प्रचारकों के लिए नियम बनाने लगे कि उन्हें क्या करना चाहिए और क्या नहीं।” यहोवा ने हमें यह अधिकार नहीं दिया कि हम निजी मामलों में भाइयों के लिए नियम बनाएँ। ऐसा करनेवाला अपने भाई की हिफाज़त नहीं कर रहा होता, बल्कि उसके विश्वास का मालिक बनने की कोशिश कर रहा होता है।—2 कुरिं. 1:24.
यहोवा की उपासना करना कभी बंद मत कीजिए
19. शैतान की कोशिशों के बावजूद हमें 2 इतिहास 32:7, 8 से क्या भरोसा मिलता है?
19 हमारा सबसे बड़ा दुश्मन शैतान यहोवा के सेवकों पर ज़ुल्म ढाना बंद नहीं करेगा। (1 पत. 5:8; प्रका. 2:10) शैतान और उसका साथ देनेवाले हमारी उपासना पर रोक लगाने की कोशिश करेंगे। लेकिन हम डरकर यहोवा की सेवा करना बंद नहीं करेंगे। (व्यव. 7:21) यहोवा हमारी तरफ है और अगर हमारे काम पर रोक लगा दी जाए, तब भी वह हमारा साथ नहीं छोड़ेगा।—2 इतिहास 32:7, 8 पढ़िए।
20. आपने क्या पक्का इरादा किया है?
20 आइए हम वैसा ही पक्का इरादा कर लें, जैसा पहली सदी के भाइयों का था। उन्होंने अपने समय के अधिकारियों से कहा, “क्या परमेश्वर की नज़र में यह सही होगा कि हम उसकी बात मानने के बजाय तुम्हारी सुनें, तुम खुद फैसला करो। मगर जहाँ तक हमारी बात है, हम उन बातों के बारे में बोलना नहीं छोड़ सकते जो हमने देखी और सुनी हैं।”—प्रेषि. 4:19, 20.
गीत 73 हमें निडरता का वरदान दे!
a अगर सरकार यहोवा की उपासना करने पर रोक लगा दे, तो हम क्या करेंगे? इस लेख में कुछ बढ़िया सुझाव दिए जाएँगे कि ऐसे में हमें क्या करना चाहिए और क्या नहीं, ताकि हम बिना रुके यहोवा की उपासना कर सकें।
b तसवीर के बारे में: सभी तसवीरें उन देशों के हालात दर्शाती हैं, जहाँ हमारे काम पर पाबंदियाँ लगी हैं। एक छोटा समूह सभा के लिए एक भाई के घर पर इकट्ठा है, सभा उस कमरे में रखी गयी है, जहाँ भाई घर का सामान रखता है।
c तसवीर के बारे में: एक मसीही बहन (जो बायीं तरफ बैठी है) एक औरत से आम विषयों पर बात कर रही है, इस बीच वह उसे यहोवा के बारे में बताने की कोशिश कर रही है।
d तसवीर के बारे में: पुलिसवाले एक भाई से पूछताछ कर रहे हैं, मगर भाई उन्हें मंडली के बारे में जानकारी देने से इनकार कर रहा है।