उनके विश्वास की मिसाल पर चलिए
“देख, मैं प्रभु की दासी हूं”
मरियम ने अचरज भरी निगाह से उस परदेशी को देखा जो उसके घर आया था। उस परदेशी ने, मरियम से न तो उसके पिता के बारे में पूछा, ना ही उसकी माँ के बारे में। क्योंकि असल में, वह उसी से मिलने आया था। वह नासरत का रहनेवाला नहीं था, वरना मरियम उसे पहचान लेती। नासरत इतना छोटा शहर था कि वहाँ हर कोई एक-दूसरे को जानता था और नए आदमी झट पहचान लिए जाते थे। इसके अलावा, मरियम को जिस तरह से उसने पुकारा, वैसे पहले किसी ने उसे नहीं पुकारा था। उसने कहा: “आनन्द और जय तेरी हो, जिस पर ईश्वर का अनुग्रह हुआ है, प्रभु तेरे साथ है।”—लूका 1:28.
बाइबल हमें इस तरह गलील के नासरत शहर में रहनेवाले एली की बेटी, मरियम का परिचय देती है। इस वक्त मरियम एक तरह से ज़िंदगी की दोराहे पर खड़ी थी, क्योंकि उसे एक अहम फैसला करना था। उसकी सगाई यूसुफ नाम के आदमी से हो चुकी थी, जो एक बढ़ई था। वह अमीर तो नहीं था, मगर परमेश्वर में गहरी आस्था रखता था। मरियम को इस बात का एहसास था कि उसकी आनेवाली ज़िंदगी कैसी होगी। जी हाँ, यूसुफ के साथ अपना परिवार बसाकर और उसके सुख-दुख का साथी बनकर वह एक साधारण-सी ज़िंदगी गुज़ारने का सपना देख रही थी। मगर अब अचानक घर आए इस परदेशी ने, परमेश्वर की तरफ से उसे एक ऐसी ज़िम्मेदारी सौंपी, जो उसकी ज़िंदगी का रुख बदल देती।
आपको यह जानकर ताज्जुब होगा कि बाइबल मरियम के बारे में कुछ खास जानकारी नहीं देती। ना तो इस बारे में कि उसकी परवरिश कैसे माहौल में हुई, ना ही उसके स्वभाव के बारे में। और वह कैसी दिखती थी, इसके बारे में तो कुछ भी नहीं बताया गया। मगर परमेश्वर के वचन में मरियम की जो थोड़ी-बहुत जानकारी दी गयी है, उससे हमें उसके बारे में काफी हद तक समझ मिलती है।
लेकिन मरियम को अच्छी तरह जानने से पहले आइए हम उन धारणाओं को अपने दिमाग से निकाल बाहर करें, जो अलग-अलग धर्मों में हमें देखने-सुनने को मिलती हैं। लोग मरियम को तसवीरों, संगमरमर की तराशी या मिट्टी से ढाली हुई मूर्तियों के “रूप” में ही देखते हैं। आइए हम मरियम को इससे हटकर जानने की कोशिश करें। इस साधारण-सी औरत को धर्म-शास्त्रियों ने “परमेश्वर की माँ” और “स्वर्ग की रानी” जैसी बड़ी-बड़ी उपाधियों से नवाज़ा है, जो कि समझ से बिलकुल परे हैं, आइए उन्हें भी हम एक-तरफ रख दें। इसके बजाय, हम इस बात पर गौर करें कि बाइबल असल में मरियम के बारे में क्या बताती है। बाइबल हमें मरियम के विश्वास के बारे में गहरी समझ देती है, जिससे हमें उसकी मिसाल पर चलने में मदद मिलती है।
स्वर्गदूत का आना
आप जानते ही होंगे कि मरियम से मिलने आया वह परदेशी कोई इंसान नहीं बल्कि जिब्राईल नाम का स्वर्गदूत था। जब उसने मरियम से कहा कि तुझ पर “ईश्वर का अनुग्रह हुआ है,” तो वह “बहुत घबरा गई” और सोच में पड़ गयी कि यह कैसा अभिवदन है! (लूका 1:29) स्वर्गदूत ने मरियम से यहोवा परमेश्वर के अनुग्रह की बात कही, जो मरियम के लिए सचमुच बहुत अहमियत रखती थी। लेकिन यह सुनकर मरियम घमंड से नहीं भर गयी कि वह तो यहोवा का अनुग्रह पाने की हकदार है, बल्कि उसने नम्रता दिखायी। उसी तरह हमें भी यह मानकर नहीं चलना चाहिए कि हम पर तो यहोवा का अनुग्रह बना हुआ है, बल्कि हमें नम्र होकर यहोवा का अनुग्रह पाने की कोशिश करनी चाहिए। मरियम की तरह हमें भी इस बात को समझ लेना चाहिए कि परमेश्वर अभिमानियों का विरोध करता है, मगर दीन और नम्र लोगों से प्यार करता और उनका साथ देता है।—याकूब 4:6.
स्वर्गदूत ने मरियम के सामने एक ऐसी सुनहरी पेशकश की, जिसके बारे में दुनिया की कोई औरत ख्वाब में भी नहीं सोच सकती थी। इसलिए मरियम को ऐसी नम्रता दिखाना ज़रूरी भी था। जिब्राईल ने उसे बताया कि वह एक ऐसे बेटे को जन्म देगी जो इंसानों में सबसे महान कहलाएगा। उसने कहा: “प्रभु परमेश्वर उसके पिता दाऊद का सिंहासन उस को देगा। और वह याकूब के घराने पर सदा राज्य करेगा; और उसके राज्य का अन्त न होगा।” (लूका 1:32, 33) परमेश्वर ने दाऊद से एक हज़ार साल पहले ही वादा किया था कि उसका एक वंशज हमेशा तक राज्य करेगा। मरियम परमेश्वर के इस वादे के बारे में ज़रूर जानती होगी। (2 शमूएल 7:12, 13) इससे यह पता चलता है कि मरियम का होनेवाला बेटा, दाऊद के वंश से आनेवाला वही मसीहा था, जिसकी आस परमेश्वर के लोग सदियों से लगाए हुए थे!
इतना ही नहीं स्वर्गदूत ने उससे यह भी कहा कि उसका बेटा “परमप्रधान का पुत्र कहलाएगा।” लेकिन भला धरती पर रहनेवाली कोई औरत परमेश्वर के बेटे को जन्म कैसे दे सकती है? और जहाँ तक मरियम की बात है, उसके लिए तो यह नामुमकिन था। यूसुफ के साथ उसकी सिर्फ सगाई हुई थी, शादी नहीं। इसलिए उसने अपनी यह शंका खुलकर स्वर्गदूत को बतायी: “यह कैसे हो सकता है क्योंकि मैं तो कुंवारी ही हूँ?” (लूका 1:34, NHT) गौर कीजिए मरियम ने अपने कुँवारेपन की बात बिना किसी झिझक के कही। उसके लिए उसका कुँवारापन बहुत अनमोल था। आज देखा जाए तो कई लड़के-लड़कियाँ कुँवारेपन का कोई मोल नहीं समझते और शादी से पहले ही शारीरिक संबंध रखने के लिए आतुर रहते हैं। और जो ऐसा नहीं करते वे उनका मज़ाक उड़ाते हैं। बेशक यह दुनिया बहुत बदल गयी है। मगर यहोवा नहीं बदला है। (मलाकी 3:6) मरियम के दिनों की तरह यहोवा आज भी ऐसे लोगों की कदर करता है, जो उसके नैतिक स्तरों पर चलते हैं।—इब्रानियों 13:4.
एक और बात, भले ही मरियम परमेश्वर की एक वफादार सेवक थी, मगर वह असिद्ध थी। फिर वह परमेश्वर के सिद्ध बेटे को कैसे जन्म दे सकती थी? जिब्राईल ने समझाया: “पवित्र आत्मा [“पवित्र शक्ति,” NW] तुझ पर उतरेगा, और परमप्रधान की सामर्थ तुझ पर छाया करेगी इसलिए वह पवित्र जो उत्पन्न होनेवाला है, परमेश्वर का पुत्र कहलाएगा।” (लूका 1:35) पवित्र का मतलब है, “साफ,” “शुद्ध” और “पावन।” और जहाँ तक इंसानों की बात है, वे अपवित्र या असिद्ध हैं और अपने बच्चों को भी विरासत में यही असिद्धता देते हैं। मगर मरियम के मामले में यहोवा एक ऐसा चमत्कार करनेवाला था, जो कभी नहीं हुआ था। परमेश्वर स्वर्ग से अपने बेटे का जीवन मरियम के गर्भ में डाल देता। फिर उसकी पवित्र शक्ति मरियम के ऊपर “छाया” करती, जिसकी वजह से उसके बच्चे पर उसकी असिद्धता का कोई असर नहीं पड़ता। क्या मरियम ने स्वर्गदूत के वादे पर भरोसा किया? उसने क्या जवाब दिया?
मरियम का जवाब
कई लोगों को, यहाँ तक कि इसाईजगत के कुछ धर्म-शास्त्रियों को भी यह मानना मुश्किल लगता है कि एक लड़की बिना किसी के साथ शारीरिक संबंध बनाए कैसे गर्भवती हो सकती है। इतना सारा ज्ञान होते हुए भी, वे इस छोटी-सी सच्चाई को नहीं समझ पाए, जो जिब्राईल ने कही, “परमेश्वर के लिए कुछ भी असम्भव नहीं है।” (लूका 1:37, NHT) पर इस कुँवारी लड़की मरियम ने जिब्राईल की बातों पर ज़रा भी शक नहीं किया। उसे परमेश्वर पर मज़बूत विश्वास था। और हाँ, यह उसका अंधविश्वास नहीं था। किसी भी समझदार इंसान की तरह मरियम को भी अपने विश्वास के लिए पक्के सबूतों की ज़रूरत थी। और उसके विश्वास को बढ़ाने के लिए जिब्राईल उसे सबूत देने के लिए तैयार था। उसने मरियम को उसकी रिश्तेदार इलीशिबा के बारे में बताया, जो बाँझ थी। उसने कहा कि हालाँकि इलीशिबा बूढ़ी हो चली है, मगर परमेश्वर के चमत्कार से वह गर्भवती हो गयी है।
अब मरियम क्या करती? उसे एक बहुत बड़ी ज़िम्मेदारी उठानी थी। उसे जिब्राईल से सबूत भी मिल गया था कि परमेश्वर ने जो कुछ कहा, वह उसे ज़रूर पूरा करेगा। हालाँकि उसे इतना बड़ा सम्मान मिला था, मगर इसका मतलब यह नहीं था कि उसे किसी तरह की कोई चिंता नहीं थी या अब उस पर कोई मुसीबत नहीं आती। सबसे पहले तो वह अपने मंगेतर यूसुफ के बारे में ही सोचकर परेशान हुई होगी। उसे यह चिंता सता रही होगी कि जब यूसुफ को पता चलेगा कि वह पेट से है, तो क्या वह उससे शादी करने के लिए तैयार होगा? साथ ही, परमेश्वर की तरफ से मिली इस ज़िम्मेदारी को उठाना उसे आसान नहीं लगा होगा। उसे अपने गर्भ में एक ऐसी जिंदगी पालनी थी जो दुनिया में सबसे अनमोल थी, यानी परमेश्वर का अपना बेटा! और उस नन्ही-सी जान के पैदा होने पर उसे ही उसकी देखभाल करनी थी और इस बुरी दुनिया से उसकी हिफाज़त करनी थी। वाकई यह ज़िम्मेदारी चुनौतियों से भरी थी!
बाइबल बताती है कि मज़बूत विश्वास रखनेवाले पुरुष भी परमेश्वर से मिली भारी ज़िम्मेदारियों को कबूल करने से झिझके हैं। मूसा ने यह कहते हुए परमेश्वर का वक्ता बनने से मना कर दिया था कि उसके पास बोलने की अच्छी काबिलीयत नहीं है। (निर्गमन 4:10) यिर्मयाह ने आपत्ति उठायी कि “मैं लड़का ही हूं,” यानी उसे लगता था कि परमेश्वर का दिया काम करने के लिए वह अभी बहुत छोटा है। (यिर्मयाह 1:6) और योना तो परमेश्वर के दिए काम से पीछा छुड़ाकर भाग खड़ा हुआ! (योना 1:3) लेकिन मरियम के बारे में क्या कहा जा सकता है?
जिब्राईल से कहे शब्दों में मरियम की नम्रता और उसकी आज्ञा मानने की भावना साफ झलकती है, जो आज भी बहुत मायने रखती है। उसने जिब्राईल से कहा: “देख, मैं प्रभु की दासी हूं, मुझे तेरे वचन के अनुसार हो।” (लूका 1:38) पुराने ज़माने में, सेवकों में सबसे निचले स्तर पर दासी होती थी, जो पूरी तरह से अपने मालिक के रहमो-करम पर जीती थी। और ऐसा ही मरियम ने अपने मालिक यहोवा के लिए महसूस किया। वह जानती थी कि वह यहोवा के हाथों में महफूज़ है। और जो यहोवा के वफादार रहते हैं, यहोवा उन्हें कभी नहीं छोड़ता। साथ ही उसे पता था कि अगर वह जी-जान से इस चुनौति-भरी ज़िम्मेदारी को निभाती है तो यहोवा उसे ज़रूर आशीष देगा।—भजन 18:25.
कभी-कभी परमेश्वर हमसे ऐसा काम करने के लिए कहता है जो हमें मुश्किल, यहाँ तक कि नामुमकिन लग सकता है। लेकिन फिर भी अपने वचन, बाइबल में परमेश्वर ने उस पर पूरा भरोसा रखने के लिए बहुत-से कारण दिए हैं। इसलिए हम अपने आपको पूरी तरह से उसके हाथों में सौंप सकते हैं जैसा कि मरियम ने किया था। (नीतिवचन 3:5, 6) क्या हम ऐसा करेंगे? अगर हम ऐसा करते हैं तो हमें इसका इनाम मिलेगा और वह है कि परमेश्वर हमें उस पर भरोसा रखने के और भी कारण देगा।
इलीशिबा से मुलाकात
जिब्राईल ने इलीशिबा के बारे में जो बात कही वह मरियम के लिए बहुत मायने रखती थी। इलीशिबा के अलावा दुनिया में ऐसी कौन-सी औरत थी जो उसके हालात को समझ सकती? मरियम ने फौरन तैयारी की और यहूदा के पहाड़ी देश की ओर चल पड़ी जो कि तीन-चार दिन का लंबा सफर था। जैसे ही वह इलीशिबा और उसके पति जकरयाह के घर पहुँची, जो याजक था, यहोवा ने उसे एक और ज़बरदस्त सबूत दिया, जिससे उसका विश्वास और पुख्ता हो गया। मरियम की आवाज़ सुनते ही इलीशिबा के गर्भ में जो बच्चा था, वह खुशी से उछल पड़ा। इलीशिबा पवित्र शक्ति से भर गयी और उसने मरियम को “मेरे प्रभु की माता” कहा। परमेश्वर ने इलीशिबा पर ज़ाहिर किया कि मरियम का बेटा उसका प्रभु, यानी मसीहा बनेगा। इसके अलावा मरियम ने जिस तरह से परमेश्वर की आज्ञा मानी थी, उसकी तारीफ करते हुए इलीशिबा ने पवित्र शक्ति से भरकर कहा: “धन्य है, वह जिस ने विश्वास किया।” (लूका 1:39-45) जी हाँ, यहोवा ने मरियम से जो भी बातें कही थीं, उसका एक-एक शब्द पूरा होनेवाला था!
इसके बाद मरियम ने जो कहा, वह लूका 1:46-55 में दर्ज़ है। बाइबल में मरियम की कही यह सबसे लंबी बात है। इससे हमें मरियम के बारे में बहुत कुछ पता चलता है। यहोवा ने मरियम को मसीहा की माता बनने का जो सम्मान दिया था, उसके लिए उसने यहोवा की बड़ाई की, जिससे पता चलता है कि वह यहोवा की कितनी एहसानमंद थी! इससे हमें यह भी पता चलता है कि मरियम को परमेश्वर पर कितना गहरा विश्वास था, क्योंकि उसने कहा कि यहोवा घमंडियों और शक्तिशाली लोगों को नीचा करता है और नम्र और दीनों को उसकी सेवा करने के लिए मदद करता है। उसकी बात से उसके ज्ञान का भी अंदाज़ा मिलता है। एक अनुमान के मुताबिक, उसने इन आयतों में इब्रानी शास्त्र से 20 से भी ज़्यादा हवाले दिए!
इससे साफ ज़ाहिर है कि मरियम परमेश्वर के वचन पर मनन करती थी। तभी तो अपनी हालत बयान करने के लिए उसने अपने मन से कुछ नहीं कहा, बल्कि नम्र होकर उसने शास्त्र का सहारा लिया। उसके गर्भ में पल रहा बेटा भी आगे चलकर ऐसा ही रवैया दिखाता और कहता: “मेरा उपदेश मेरा नहीं, परन्तु मेरे भेजनेवाले का है।” (यूहन्ना 7:16) अच्छा होगा अगर हम अपने आपसे ये सवाल करें: ‘क्या मेरे दिल में परमेश्वर के वचन के लिए ऐसी गहरी श्रद्धा है? या फिर जो बातें और शिक्षाएँ मुझे पसंद हैं, मैं बस उन्हीं को मानता हूँ?’ इस मामले में मरियम का जवाब बिलकुल साफ था।
मरियम इलीशिबा के साथ तीन महीने तक रही। बेशक इस दौरान उन दोनों ने एक-दूसरे की काफी हिम्मत बँधायी होगी। (लूका 1:56) दोनों औरतों से हम सीखते हैं कि अच्छा दोस्त होना कितना ज़रूरी है। अगर हम ऐसे दोस्त बनाएँगे जो हमारे परमेश्वर यहोवा से सच्चा प्यार करते हैं, तो हम यकीनन यहोवा के करीब आएँगे और उसके साथ एक अच्छा रिश्ता बना पाएँगे। (नीतिवचन 13:20) तीन महीने इलीशिबा के साथ रहने के बाद, अब मरियम के घर लौटने की घड़ी आ गयी थी। वहाँ उसे यूसुफ का सामना करना था। जब यूसुफ को मरियम की हालत के बारे में पता चलता, तो वह क्या कहता?
मरियम और यूसुफ
मरियम गर्भ ठहरने की बात छिपाना नहीं चाहती थी। उसे हर हाल में यूसुफ से बात करनी थी। लेकिन इससे पहले, शायद वह असमंजस में रही हो कि परमेश्वर का भय माननेवाला यह सीधा-साधा इंसान ना जाने उसकी बात सुनकर कैसा रवैया दिखाए। फिर भी, वह यूसुफ के पास गयी और उसे अपना सारा हाल कह सुनाया। जैसा कि आप सोच सकते हैं, मरियम की बातें सुनकर यूसुफ बहुत ही दुःखी हो गया। वह अपनी इस प्यारी मंगेतर पर विश्वास करना चाहता था। मगर उसकी बात ही कुछ ऐसी थी, जिस पर विश्वास करना लगभग असंभव था। बाइबल यह नहीं बताती कि उस वक्त उसके दिमाग में कैसी उथल-पुथल मची होगी या उसने कैसे अपने दिल को समझाया होगा। लेकिन बाइबल इतना ज़रूर बताती है कि उसने मरियम को तलाक देने का फैसला किया क्योंकि उन दिनों जिनकी सगाई हो जाती थी, उन्हें शादी-शुदा जोड़े की तरह ही देखा जाता था। लेकिन वह सरेआम उसकी बेइज़्ज़ती करना या सज़ा देना नहीं चाहता था, इसलिए उसने चुपके से तलाक देने का फैसला किया। (मत्ती 1:18, 19) मरियम ने कभी नहीं सोचा था कि इस भले आदमी को ऐसी हालत से गुज़रना पड़ेगा। उसकी हालत देखकर मरियम का दिल छलनी हो गया होगा। लेकिन फिर भी मरियम को यूसुफ से कोई शिकायत नहीं थी।
यूसुफ को भले ही लगा हो कि उसने जो रास्ता इख्तियार किया है वह सही है, मगर यहोवा ने उसे ऐसा करने नहीं दिया। सपने में परमेश्वर के स्वर्गदूत ने उसे बताया कि मरियम परमेश्वर के चमत्कार से गर्भवती हुई है। यह बात सुनकर यूसुफ को क्या ही सुकून मिला होगा! और फिर यूसुफ ने वही किया जो मरियम शुरू से करती आयी थी, यानी अब वह भी परमेश्वर के निर्देशन के मुताबिक चलने लगा। उसने मरियम से शादी कर ली और यहोवा के बेटे की परवरिश करने की अनोखी ज़िम्मेदारी के लिए तैयार हो गया।—मत्ती 1:20-24.
शादी-शुदा जोड़े और जो लोग शादी करने की सोच रहे हैं अच्छा होगा अगर वे 2000 साल पहले के इस जवान जोड़े की मिसाल पर गौर करें। शादी के बाद यूसुफ ने देखा कि मरियम एक माँ की ज़िम्मेदारी को कितनी बखूबी निभा रही है। इसलिए यूसुफ स्वर्गदूत से मिले निर्देशन का बड़ा एहसानमंद था। उसने यह बात भी अच्छी तरह समझ ली होगी कि ज़िंदगी में बड़े-बड़े फैसले लेते वक्त यहोवा पर पूरा भरोसा रखना कितना ज़रूरी है। (भजन 37:5; नीतिवचन 18:13) इसमें शक नहीं कि आगे भी परिवार के मुखिया के तौर पर फैसला करते वक्त उसने बड़ी सावधानी और प्यार से काम लिया होगा।
जिस तरह मरियम यूसुफ से शादी करने के लिए राज़ी हो गयी थी, उससे हमें मरियम के बारे में क्या पता चलता है? हालाँकि पहले-पहल यूसुफ के लिए मरियम की बात पर यकीन करना मुश्किल रहा होगा लेकिन मरियम ने फिर भी उसका इंतज़ार किया। इससे मरियम ने सीखा कि धीरज से काम लेना कितना ज़रूरी है। यही बात मसीही स्त्रियों को भी सीखनी चाहिए। इसके अलावा इन घटनाओं से यूसुफ और मरियम ने सीखा कि एक-दूसरे से खुलकर बात करना बहुत ज़रूरी है।
मरियम और यूसुफ दोनों ही अपनी ज़िंदगी में जिसे सबसे ज़्यादा प्यार करते थे, वह था यहोवा परमेश्वर, और इसी वजह वे अपनी शादी की शुरूआत बेहतरीन तरीके से कर पाए। दोनों की यही तमन्ना थी कि वे एक ज़िम्मेदार और प्यार करनेवाले माता-पिता बनकर यहोवा का दिल खुश करें। इसमें कोई शक नहीं कि उन्हें आगे चलकर ढेरों आशीषें मिलनेवाली थीं, मगर साथ ही उनके सामने बड़ी-बड़ी चुनौतियाँ भी थीं। उन पर यीशु की परवरिश करने की ज़िम्मेदारी थी जो बड़ा होकर दुनिया का सबसे महान इंसान बनता। (w08 7/1)