बुज़ुर्ग जन—जवानों के लिए एक आशीष
“हे परमेश्वर जब मैं बूढ़ा हो जाऊं, और मेरे बाल पक जाएं, तब भी तू मुझे न छोड़, जब तक मैं आनेवाली पीढ़ी के लोगों को तेरा बाहुबल और सब उत्पन्न होनेवालों को तेरा पराक्रम सुनाऊं।”—भजन 71:18.
1, 2. परमेश्वर के बुज़ुर्ग सेवकों को किस बात का एहसास होना चाहिए, और अब हम क्या गौर करेंगे?
पश्चिम अफ्रीका में, एक मसीही प्राचीन एक बुज़ुर्ग अभिषिक्त भाई से मिलने गया। प्राचीन ने उस भाई से पूछा: “कैसे हैं आप?” अभिषिक्त भाई ने पूरे हाव-भाव के साथ जवाब दिया: “मैं दौड़ सकता हूँ, कूद सकता हूँ, छलाँग मार सकता हूँ और एक पैर पर फुदक भी सकता हूँ। मगर, मैं उड़ नहीं सकता।” प्राचीन उस भाई की बात को फौरन समझ गया। अभिषिक्त भाई के कहने का मतलब था: ‘जो मैं कर सकता हूँ, उसे मैं खुशी-खुशी करता हूँ। लेकिन जो काम मेरे बस में नहीं, उसे मैं नहीं करता।’ आज, वह मसीही प्राचीन 80 की उम्र पार कर चुका है और जब भी वह उस अभिषिक्त भाई को याद करता है, तो उसे उसका मज़ाकिया अंदाज़ और उसकी वफादारी याद आती है।
2 यह अनुभव साफ दिखाता है कि जब कोई बुज़ुर्ग, परमेश्वर के जैसे गुण ज़ाहिर करता है, तो यह बात दूसरों के दिलों पर गहरी छाप छोड़ जाती है। मगर उम्र बढ़ने के साथ-साथ, एक मसीही की बुद्धि अपने आप नहीं बढ़ती है और ना ही वह खुद-ब-खुद मसीह के जैसे गुण दिखाने लगता है। (सभोपदेशक 4:13) इसके बजाय, बाइबल कहती है: “पक्के बाल शोभायमान मुकुट ठहरते हैं; वे धर्म के मार्ग पर चलने से प्राप्त होते हैं।” (नीतिवचन 16:31) अगर आप एक बुज़ुर्ग मसीही हैं, तो क्या आपको एहसास है कि आपकी बातों और कामों से दूसरों को कितना फायदा पहुँच सकता है? आइए बाइबल की कुछ मिसालों पर गौर करें, जो दिखाती हैं कि बुज़ुर्ग लोग कैसे जवानों के लिए एक सच्ची आशीष साबित हो सकते हैं।
विश्वास जिसका बड़े पैमाने पर असर
3. नूह की वफादारी से आज जीनेवालों को क्या फायदा हुआ है?
3 नूह ने जो विश्वास और दृढ़ता दिखायी, उससे इतने बढ़िया नतीजे निकले कि आज तक इंसानों को उनसे फायदा हो रहा है। नूह करीब 600 साल का था, जब उसने जहाज़ बनाया, जानवरों को इकट्ठा किया और अपने पड़ोसियों को प्रचार किया। (उत्पत्ति 7:6; 2 पतरस 2:5) वह परमेश्वर का भय मानता था, इसलिए वह और उसका परिवार महा-जलप्रलय से बच गया और वे, आज धरती पर जीनेवाले सभी लोगों के पूर्वज बन गए। यह सच है कि नूह के दिनों में सभी लोग काफी लंबी उम्र जीते थे। मगर ज़रूरी बात तो यह है कि जब नूह बहुत बूढ़ा हो चुका था, तब भी वह परमेश्वर का वफादार बना रहा। नतीजा, उसे ढेरों आशीषें मिलीं। वह कैसे?
4. नूह की दृढ़ता से, आज परमेश्वर के सेवकों को क्या फायदा पहुँचा है?
4 नूह करीब 800 साल का था, जब निम्रोद ने बाबुल का गुम्मट बनवाना शुरू किया। ऐसा करके निम्रोद ने यहोवा की यह आज्ञा तोड़ी: “पृथ्वी में भर जाओ।” (उत्पत्ति 9:1; 11:1-9) मगर इस बगावत में नूह ने निम्रोद का साथ नहीं दिया। इसलिए ज़ाहिर है कि जब बागी लोगों की भाषा में गड़बड़ी पैदा हुई, तब नूह की भाषा नहीं बदली। लेकिन नूह ने सिर्फ बुढ़ापे में ही नहीं बल्कि ज़िंदगी-भर विश्वास और दृढ़ता दिखायी। इसलिए आज, हर उम्र के मसीहियों को उसकी मिसाल पर चलना चाहिए।—इब्रानियों 11:7.
परिवारवालों पर असर
5, 6. (क) जब इब्राहीम 75 साल का था, तब यहोवा ने उससे क्या करने को कहा? (ख) परमेश्वर से आज्ञा मिलने पर इब्राहीम ने क्या किया?
5 बुज़ुर्ग जन, अपने परिवारवालों के विश्वास पर गहरा असर कर सकते हैं, यह बात नूह के बाद जीनेवाले कुलपिताओं की मिसालों से देखी जा सकती है। उनमें से एक था, इब्राहीम। इब्राहीम करीब 75 साल का था जब परमेश्वर ने उससे कहा: “अपने देश, और अपनी जन्मभूमि, और अपने पिता के घर को छोड़कर उस देश में चला जा जो मैं तुझे दिखाऊंगा। और मैं तुझ से एक बड़ी जाति बनाऊंगा, और तुझे आशीष दूंगा।”—उत्पत्ति 12:1, 2.
6 मान लीजिए, आपसे कहा जाता है कि आप अपना वतन, अपना घर, अपना बड़ा-सा परिवार और उससे मिलनेवाली सुरक्षा को, साथ ही अपने दोस्तों को छोड़कर एक अनजान देश में चले जाएँ। ऐसे में आप क्या करेंगे? इब्राहीम ने क्या किया था? उसने ‘यहोवा के वचन के अनुसार’ काम किया और अपनी बाकी ज़िंदगी एक परदेशी की तरह तंबुओं में बितायी। वह कनान देश में, जगह-जगह सफर करता रहा। (उत्पत्ति 12:4; इब्रानियों 11:8, 9) हालाँकि यहोवा ने इब्राहीम से कहा था कि वह उससे “एक बड़ी जाति” बनाएगा, मगर उसके मरने के अरसों बाद जाकर उसके वंशजों की गिनती बेशुमार हुई। उसके जीते-जी उसकी पत्नी, सारा ने सिर्फ एक ही बेटे, इसहाक को जन्म दिया और वह भी उस वक्त जब इब्राहीम को वादा किए गए देश में रहते 25 साल हो चुके थे। (उत्पत्ति 21:2, 5) फिर भी, इब्राहीम थक-हारकर वापस अपने शहर नहीं लौट गया। है ना, वह विश्वास और धीरज की एक बढ़िया मिसाल!
7. इब्राहीम के धीरज का उसके बेटे, इसहाक पर क्या असर हुआ, और इससे पूरी मानवजाति को क्या फायदा पहुँचा?
7 इब्राहीम ने जिस तरह धीरज धरा, उसका उसके बेटे, इसहाक पर इतना ज़बरदस्त असर हुआ कि उसने अपनी सारी ज़िंदगी, यानी 180 साल, कनान देश में परदेशियों की तरह गुज़ार दिए। इसहाक धीरज इसलिए धर सका क्योंकि उसे परमेश्वर के वादे पर पूरा विश्वास था। यह विश्वास उसके बुज़ुर्ग माता-पिता ने उसमें बचपन से ही पैदा किया था। और बाद में, जब खुद यहोवा ने उससे बात की तो उसका यह विश्वास और भी मज़बूत हो गया। (उत्पत्ति 26:2-5) इसहाक की दृढ़ता ने यहोवा के इस वादे के पूरे होने में एक अहम भूमिका निभायी कि इब्राहीम के घराने से एक “वंश” आएगा, जिसके ज़रिए सारी मानवजाति को आशीष मिलेगी। इसहाक से किए वादे के सैकड़ों साल बाद, “वंश” का मुख्य भाग यानी यीशु मसीह प्रकट हुआ। यीशु ने उस पर विश्वास करनेवालों के लिए रास्ता खोल दिया ताकि वे परमेश्वर के साथ मेल-मिलाप कर सकें और हमेशा की ज़िंदगी का लुत्फ उठा सकें।—गलतियों 3:16; यूहन्ना 3:16.
8. याकूब ने अपना मज़बूत विश्वास कैसे दिखाया, और इसका नतीजा क्या हुआ?
8 अपने पिता की तरह, इसहाक ने भी अपने बेटे याकूब को मज़बूत विश्वास पैदा करने में मदद दी। इसी मज़बूत विश्वास ने याकूब को उसके बुढ़ापे में भी सँभाले रखा। इसलिए जब वह 97 साल था, तो उसने आशीष पाने के लिए पूरी रात एक स्वर्गदूत से कुश्ती लड़ी। (उत्पत्ति 32:24-28) इतना ही नहीं, 147 साल की उम्र में अपनी मौत से पहले, उसने ताकत जुटायी और अपने 12 पुत्रों में से हरेक को आशीष दी। (उत्पत्ति 47:28) आशीष देते वक्त उसने जो भविष्यवाणियाँ कीं, वे उत्पत्ति 49:1-28 में दर्ज़ हैं। ये भविष्यवाणियाँ प्राचीन समय में पूरी हुई थीं और आज भी पूरी हो रही हैं।
9. आध्यात्मिक मायने में प्रौढ़, बुज़ुर्ग मसीही अपने घरवालों पर कैसा असर डाल सकते हैं?
9 इन सारी मिसालों से साफ ज़ाहिर होता है कि परमेश्वर के बुज़ुर्ग और वफादार सेवक अपने घरवालों पर बढ़िया असर डाल सकते हैं। अगर वे बाइबल से हिदायत दें, साथ ही अपने तजुरबे से बढ़िया सलाह भी दें और धीरज धरने की एक मिसाल कायम करें, तो इनसे एक नौजवान को उम्र बढ़ने के साथ-साथ अपने विश्वास को मज़बूत करते जाने में बड़ी मदद मिल सकती है। (नीतिवचन 22:6) इसलिए बुज़ुर्ग अपने परिवारवालों पर जो ज़बरदस्त असर डाल सकते हैं, उसे उन्हें कभी कम नहीं आँकना चाहिए।
साथी उपासकों पर असर
10. यूसुफ ने “अपनी हड्डियों के विषय में” क्या “आज्ञा दी,” और इसका क्या असर हुआ?
10 बुज़ुर्ग अपने साथी उपासकों पर भी अच्छा असर डाल सकते हैं। याकूब के बेटे, यूसुफ की मिसाल लीजिए। वह जब 110 साल का था, तब उसने “अपनी हड्डियों के विषय में आज्ञा दी।” उसने कहा कि आखिरकार जब इस्राएली मिस्र देश छोड़कर जाएँगे, तो उन्हें उसकी हड्डियों को अपने साथ ले जाना है। (इब्रानियों 11:22; उत्पत्ति 50:25) अपने बुढ़ापे में यह छोटी-सी बात कहकर उसने अपना विश्वास दिखाया। नतीजा, इसका उन लाखों सच्चे उपासकों पर गहरा असर हुआ जो उसके बाद जीए। वह कैसे? दरअसल, उसकी मौत के बाद, मिस्र के लोगों ने इस्राएलियों को अपना गुलाम बना लिया और उनसे कई सालों तक कड़ी मेहनत करवाते रहे। उस दौरान, यूसुफ की दी आज्ञा उम्मीद की किरण बनकर उन्हें भरोसा दिलाती रही कि उनका छुटकारा ज़रूर होगा।
11. बुज़ुर्ग मूसा का यहोशू पर क्या असर हुआ होगा?
11 यूसुफ के विश्वास से जिन लोगों को हौसला मिला, उनमें से एक था मूसा। मूसा 80 साल का था जब उसे यूसुफ की हड्डियों को मिस्र देश से बाहर ले जाने का बड़ा सम्मान मिला। (निर्गमन 13:19) करीब उसी दौरान, मूसा की मुलाकात यहोशू से हुई जो उम्र में उससे काफी छोटा था। इसके बाद, अगले 40 साल तक यहोशू ने मूसा का टहलुआ बनकर उसकी सेवा की। (गिनती 11:28) वह मूसा के साथ सीनै पर्वत पर गया और कुछ दूरी पर रुककर उसका इंतज़ार करने लगा। और जब मूसा साक्षी की तख्तियाँ लेकर वापस आया, तो यहोशू वहीं उससे मिलने के लिए तैयार खड़ा था। (निर्गमन 24:12-18; 32:15-17) वाकई बुज़ुर्ग मूसा, यहोशू के लिए ज़रूर बढ़िया सलाहों और बुद्धि का सोता साबित हुआ होगा!
12. यहोशू ने कैसे मरते दम तक इस्राएल जाति पर अच्छा असर डाला?
12 यहोशू भी मरते दम तक इस्राएल जाति की हौसला-अफज़ाई करता रहा। न्यायियों 2:7 कहता है: “यहोशू के जीवन भर, और उन वृद्ध लोगों के जीवन भर जो यहोशू के मरने के बाद जीवित रहे और देख चुके थे कि यहोवा ने इस्राएल के लिये कैसे कैसे बड़े काम किए हैं, इस्राएली लोग यहोवा की सेवा करते रहे।” लेकिन यहोशू और दूसरे बुज़ुर्ग लोगों की मौत के बाद, एक ऐसा दौर शुरू हुआ जिसमें इस्राएली, सच्ची और झूठी उपासना के बीच डोलने लगे। यह दौर 300 साल तक चला, जिसके बाद भविष्यवक्ता शमूएल के दिन शुरू हुए।
शमूएल ने “धार्मिकता के कार्य किए”
13. शमूएल ने कैसे “धार्मिकता के कार्य किए”?
13 बाइबल यह नहीं बताती है कि शमूएल की मौत किस उम्र में हुई। मगर हम इतना ज़रूर जानते हैं कि पहला शमूएल किताब में करीब 102 साल के दौरान हुई घटनाएँ दर्ज़ हैं और शमूएल इनमें से ज़्यादातर घटनाओं का चश्मदीद गवाह था। इब्रानियों 11:32, 33 (NHT) बताता है कि सीधाई के मार्ग पर चलनेवाले न्यायियों और भविष्यवक्ताओं ने “धार्मिकता के कार्य किए” थे। जी हाँ, भविष्यवक्ता शमूएल का उसके ज़माने के लोगों पर इतना अच्छा असर पड़ा कि उनमें से कुछ ने खुद को गलत कामों से दूर रखा और कुछ जो ऐसे काम कर रहे थे, उन्होंने वे काम करने छोड़ दिए। (1 शमूएल 7:2-4) शमूएल ने कैसे उन पर असर डाला? वह जीवन-भर यहोवा का वफादार बना रहा। (1 शमूएल 12:2-5) वह दूसरों को, यहाँ तक कि राजा को कड़ी सलाह देने से ज़रा भी नहीं झिझका। (1 शमूएल 15:16-29) इसके अलावा, जब वह “बूढ़ा” हो चुका था और ‘उसके बाल पक चुके’ (NHT) थे, तो उसने दूसरों की खातिर प्रार्थना करके एक बेहतरीन मिसाल कायम की। उसने कहा: “यह मुझ से दूर हो कि मैं तुम्हारे लिये [यानी, अपने संगी इस्राएलियों के लिए] प्रार्थना करना छोड़कर यहोवा के विरुद्ध पापी ठहरूं।”—1 शमूएल 12:2, 23.
14, 15. आज बुज़ुर्ग जन प्रार्थना के मामले में, शमूएल की मिसाल पर कैसे चल सकते हैं?
14 शमूएल की मिसाल दिखाती है कि बुज़ुर्ग लोग एक अहम तरीके से यहोवा के दूसरे सेवकों पर अच्छा असर डाल सकते हैं। वह है, दूसरों की खातिर प्रार्थना करने के ज़रिए। एक बुज़ुर्ग इंसान शायद खराब सेहत या दूसरे हालात की वजह से ज़्यादा कुछ न कर पाए, मगर वह दूसरों के लिए प्रार्थना ज़रूर कर सकता है। बुज़ुर्ग भाई-बहनो, क्या आप जानते हैं कि आपकी प्रार्थनाओं से कलीसिया को कितना फायदा हो सकता है? आपने मसीह के बहाए गए लहू पर अपना विश्वास ज़ाहिर किया है, इस वजह से आप पर यहोवा का अनुग्रह है। यही नहीं, आपने धीरज धरने में एक बढ़िया रिकॉर्ड कायम किया, जिससे ज़ाहिर है कि आपका विश्वास ‘परखा’ हुआ है। (याकूब 1:3; 1 पतरस 1:7) इसलिए यह कभी मत भूलिए: “धर्मी जन की प्रार्थना के प्रभाव से बहुत कुछ हो सकता है।”—याकूब 5:16.
15 प्रचार के काम को आगे बढ़ाने और कलीसिया का अच्छी तरह काम करते रहने के लिए, आपको प्रार्थना करने की ज़रूरत है। हमारे कुछ भाई अपनी मसीही निष्पक्षता बनाए रखने की वजह से सलाखों के पीछे हैं। दूसरे कुदरती आफतों, युद्ध और दंगे-फसादों के शिकार हुए हैं। और-तो-और, हमारी खुद की कलीसिया में ऐसे भाई-बहन हैं जो किसी आज़माइश से गुज़र रहे हैं या फिर विरोध का सामना कर रहे हैं। (मत्ती 10:35, 36) इसके अलावा, जो भाई प्रचार काम में अगुवाई लेते और कलीसिया की निगरानी करते हैं, उन्हें भी लगातार आपकी प्रार्थनाओं की ज़रूरत है। (इफिसियों 6:18, 19; कुलुस्सियों 4:2, 3) इसलिए यह कितनी अच्छी बात है कि आप इपफ्रास की तरह, इन सभी भाई-बहनों को अपनी प्रार्थनाओं में याद करते हैं!—कुलुस्सियों 4:12.
आनेवाली पीढ़ी के लोगों को सिखाना
16, 17. भजन 71:18 में क्या भविष्यवाणी की गयी है, और यह कैसे पूरी हुई है?
16 “छोटे झुण्ड” के वफादार जनों (जिन्हें स्वर्गीय बुलाहट मिली है) के साथ संगति करने के ज़रिए, ‘अन्य भेड़’ के लोगों ने (जिन्हें इसी धरती पर हमेशा जीने की आशा है) ज़रूरी तालीम हासिल की है। (लूका 12:32; यूहन्ना 10:16, NW) इसकी भविष्यवाणी भजन 71:18 में की गयी थी, जहाँ हम पढ़ते हैं: “हे परमेश्वर जब मैं बूढ़ा हो जाऊं, और मेरे बाल पक जाएं, तब भी तू मुझे न छोड़, जब तक मैं आनेवाली पीढ़ी के लोगों को तेरा बाहुबल और सब उत्पन्न होनेवालों को तेरा पराक्रम सुनाऊं।” आत्मा से अभिषिक्त जन अपने साथी, यानी अन्य भेड़ के लोगों को तालीम देने के लिए बेताब रहे हैं। क्यों? क्योंकि वे स्वर्ग जाने से पहले, जहाँ वे यीशु मसीह के साथ महिमा से भरपूर होंगे, अन्य भेड़ के लोगों को और भी ज़िम्मेदारी सौंपना चाहते हैं।
17 भजन 71:18 में “आनेवाली पीढ़ी के लोगों” को सिखाने का जो सिद्धांत दिया गया है, वह अन्य भेड़ के लोगों पर भी लागू होता है। वह कैसे? अन्य भेड़ के जिन बुज़ुर्गों ने परमेश्वर के अभिषिक्त जनों से तालीम हासिल की है, यहोवा ने उन्हें यह सम्मान दिया है कि वे सच्ची उपासना अपनानेवाले नए लोगों को उसके बारे में गवाही दें। (योएल 1:2, 3) जी हाँ, अन्य भेड़ के लोगों के लिए यह एक बड़ी आशीष है कि उन्हें अभिषिक्त मसीहियों से बाइबल की शिक्षा मिली है। और अब वे इसे उन लोगों के साथ बाँटना अपना फर्ज़ मानते हैं, जो यहोवा की सेवा करने की तमन्ना रखते हैं।—प्रकाशितवाक्य 7:9, 10.
18, 19. (क) यहोवा के बहुत-से बुज़ुर्ग सेवक कौन-सी अनमोल जानकारी दूसरों के साथ बाँट सकते हैं? (ख) बुज़ुर्ग मसीहियों को किस बात का यकीन रखना चाहिए?
18 यहोवा के बुज़ुर्ग सेवक चाहे अभिषिक्त हों या अन्य भेड़ में से, वे यहोवा के साक्षियों के इतिहास में घटी अहम घटनाओं की जीती-जागती कड़ी हैं। इनमें से कुछ बुज़ुर्ग उस वक्त मौजूद थे जब शुरू-शुरू में “फोटो ड्रामा ऑफ क्रिएशन” दिखाया गया था। कुछ तो अगुवाई लेनेवाले उन भाइयों को करीबी से जानते हैं, जिन्हें सन् 1918 में कैद किया गया था। दूसरे ऐसे हैं जो वॉचटावर रेडियो स्टेशन डब्ल्यू.बी.बी.आर. में बाइबल पर भाषण प्रसारित करने में हिस्सा लेते थे। कई उस समय के बारे में बता सकते हैं, जब यहोवा के साक्षियों को अपना धर्म मानने की आज़ादी दिलाने के लिए, ऊँची अदालतों में कई मुकदमे लड़े गए थे। यही नहीं, कुछ अपने अनुभव बता सकते हैं कि वे कैसे तानाशाह सरकारों के अधीन रहते हुए भी सच्ची उपासना पर अटल बने रहे। इसके अलावा, बुज़ुर्ग यह बता सकते हैं कि कैसे सच्चाई के बारे में धीरे-धीरे और भी ज़्यादा समझ दी गयी। बाइबल हमें बढ़ावा देती है कि हम बरसों के इन तजुरबों से सीखें और फायदा पाएँ।—व्यवस्थाविवरण 32:7.
19 बुज़ुर्ग मसीहियों से गुज़ारिश की जाती है कि वे नौजवानों के लिए एक बढ़िया मिसाल रखें। (तीतुस 2:2-4) आज आप शायद यह न देख पाएँ कि आपके धीरज, प्रार्थनाओं और सलाहों का दूसरों पर कितना असर हो रहा है। नूह, इब्राहीम, यूसुफ और मूसा जैसे लोगों को भी शायद यह मालूम नहीं था कि उनकी वफादारी का आनेवाली पीढ़ी के लोगों पर कितना असर होगा। मगर सच तो यह है कि उनके विश्वास और खराई की जो विरासत, पीढ़ी-दर-पीढ़ी से आज हम तक पहुँचायी गयी है, उसका हम पर बहुत ही ज़बरदस्त असर हुआ है। उसी तरह, यकीन रखिए कि आपकी मिसाल का भी जवान लोगों पर ज़रूर गहरा असर होगा।
20. जो लोग अंत तक अपनी आशा पक्की बनाए रखेंगे, उन्हें क्या-क्या आशीषें मिलेंगी?
20 चाहे आप “भारी क्लेश” से बचकर निकलें या पुनरुत्थान में वापस आएँ, एक बात तय है कि जब आपको “सत्य जीवन” मिलेगा तो आपकी खुशी का कोई ठिकाना ना रहेगा! (मत्ती 24:21; 1 तीमुथियुस 6:19) ज़रा सोचिए, मसीह के हज़ार साल की हुकूमत के दौरान जब यहोवा, बुढ़ापे के अंजाम को पलट देगा तब हम कैसा महसूस करेंगे। धीरे-धीरे हमारा शरीर कमज़ोर नहीं बल्कि और भी चुस्त-दुरुस्त होता जाएगा। हर सुबह जब हम जागेंगे तो हममें और भी दमखम होगा, हमारी नज़रें और भी तेज़ होंगी, हमें और भी साफ सुनायी देगा और हमारा रूप भी निखर आएगा! (अय्यूब 33:25; यशायाह 35:5, 6) जिन लोगों को परमेश्वर की नयी दुनिया में जीने की आशीष मिलेगी, वे अनंत जीवन की तुलना में हमेशा जवान रहेंगे। (यशायाह 65:22) इसलिए आइए, हम अपनी आशा को अंत तक पक्की बनाए रखें और तन-मन से यहोवा की सेवा करते रहें। हम पूरा यकीन रख सकते हैं कि यहोवा अपने सारे वादों को ज़रूर पूरा करेगा और वह भी इतने बढ़िया तरीके से, जिसकी हम कभी उम्मीद भी नहीं कर सकते।—भजन 37:4; 145:16. (w07 6/1)
आप क्या जवाब देंगे?
• बुज़ुर्ग नूह की दृढ़ता से सारी मानवजाति को क्या आशीषें मिलीं?
• कुलपिताओं के विश्वास से उनकी संतानों पर क्या असर हुआ?
• यूसुफ, मूसा, यहोशू और शमूएल ने ढलती उम्र में कैसे अपने साथी उपासकों का विश्वास मज़बूत किया?
• बुज़ुर्ग जन दूसरों को विरासत में क्या दे सकते हैं?
[पेज 27 पर तसवीर]
इब्राहीम ने जिस तरह धीरज धरा, उसका इसहाक पर ज़बरदस्त असर हुआ
[पेज 29 पर तसवीर]
आप दूसरों की खातिर जो प्रार्थना करते हैं, उससे बहुत कुछ हो सकता है
[पेज 30 पर तसवीर]
नौजवानो, वफादार बुज़ुर्गों की सुनिए और फायदा पाइए