क्या परमेश्वर वास्तव में आपको जानता है?
“हे यहोवा, तू . . . मेरी पूरी चालचलन का भेद जानता है।” —भजन १३९:१, ३.
१. हम जिन चिन्ताओं, समस्याओं, और दबावों का सामना करते हैं उन्हें ‘अन्य लोग नहीं समझते हैं,’ यह भावना कितनी व्यापक है?
क्या कोई भी व्यक्ति वास्तव में उन चिन्ताओं, दबावों, और समस्याओं को समझता है जिनका आप सामना करते हैं? संसार भर में ऐसे लाखों युवा और वृद्ध लोग हैं जिनका कोई परिवार या रिश्तेदार नहीं जो उनकी परवाह करे कि उनको क्या होता है। परिवारों में भी, बहुत-सी पत्नियाँ—हाँ, और पति भी—महसूस करते हैं कि उनके विवाह-साथी उन दबावों को सही रीति से नहीं समझते हैं जिनके कारण वे उदास हैं। कभी-कभी, कुंठित होकर वे विरोध प्रकट करती हैं: “लेकिन आप समझते नहीं हैं!” और बहुत-से युवा लोगों ने यह निष्कर्ष निकाला है कि उन्हें भी कोई नहीं समझता। फिर भी, उन लोगों के बीच, जिन्होंने दूसरों से अधिक समझ की लालसा की, कुछ ऐसे लोग हैं जिनके जीवन बाद में अति अर्थपूर्ण बन गए हैं। यह कैसे संभव है?
२. कौन-सी बात यहोवा के सेवकों को पूर्ण रूप से संतुष्ट जीवन व्यतीत करने में समर्थ कर सकती है?
२ यह इसलिए क्योंकि, चाहे संगी मनुष्य उनकी भावनाओं को पूर्ण रीति से समझें या न समझें, उन्हें विश्वास है कि वे जो अनुभव कर रहे हैं उसे परमेश्वर समझता है और कि, उसके सेवक होने के नाते, उन्हें अपनी समस्याओं का सामना अकेले नहीं करना पड़ता है। (भजन ४६:१) इसके अतिरिक्त, परमेश्वर के वचन के साथ-साथ, विवेकी मसीही प्राचीनों की मदद उन्हें अपनी निजी समस्याओं से आगे देखने के लिए समर्थ करती है। शास्त्रवचन उन्हें इस बात का मूल्यांकन करने के लिए मदद करता है कि उनकी वफ़ादार सेवा परमेश्वर की नज़रों में बहुमूल्य है और कि उन लोगों के लिए एक सुरक्षित भविष्य है जो उस पर और यीशु मसीह के द्वारा किए गए उसके प्रबन्धों पर अपनी आस बाँधते हैं।—नीतिवचन २७:११; २ कुरिन्थियों ४:१७, १८.
३, ४. (क) “यहोवा ही परमेश्वर है” और उसी ने “हम को बनाया” है, इस तथ्य का मूल्यांकन करने से हमें उसकी सेवा में आनन्द प्राप्त करने के लिए कैसे मदद मिल सकती है? (ख) हमें क्यों यहोवा की प्रेममय देख-रेख पर पूरा भरोसा है?
३ आप शायद भजन १००:२ से परिचित हों, जो कहता है: “आनन्द से यहोवा की आराधना करो! जयजयकार के साथ उसके सम्मुख आओ!” कितने हैं जो वास्तव में इस प्रकार यहोवा की उपासना करते हैं? आयत ३ में ऐसा करने के लिए ठोस कारण दिए गए हैं, जो हमें याद दिलाता है: “निश्चय जानो, कि यहोवा ही परमेश्वर है! उसी ने हम को बनाया, और हम उसी के हैं; हम उसकी प्रजा, और उसकी चराई की भेड़ें हैं।” इब्रानी मूल-पाठ में, उसका ज़िक्र वहाँ पर इलोहिम (ʼElo·himʹ) के तौर पर किया गया है, और इस प्रकार ऐश्वर्य, प्रतिष्ठा, और उत्कृष्टता में उसकी महानता का संकेत किया है। केवल वही सच्चा परमेश्वर है। (व्यवस्थाविवरण ४:३९; ७:९; यूहन्ना १७:३) उसके सेवक उसके परमेश्वरत्व से परिचित होते हैं, न केवल उन्हें सिखाए गए एक तथ्य के तौर पर बल्कि एक ऐसी बात के तौर पर जिसका वे अनुभव करते हैं और जिसका प्रमाण वे आज्ञाकारिता, भरोसे, और भक्ति के द्वारा देते हैं।—१ इतिहास २८:९; रोमियों १:२०.
४ क्योंकि यहोवा ही जीवित परमेश्वर है, जो हमारे हृदय को भी देखने में समर्थ है, उसकी नज़रों से कुछ भी नहीं छिपा है। वह पूर्ण रीति से अवगत है कि हमारे जीवन में क्या हो रहा है। वह समझता है कि जिन समस्याओं का हम सामना करते हैं वे कैसे उत्पन्न होती हैं और साथ ही साथ वह उस मानसिक तथा भावात्मक हलचल को भी समझता है जो इन से परिणित होती है। सृष्टिकर्ता होने के नाते, वह हमें हम से अधिक जानता है। वह यह भी जानता है कि हमारी परिस्थिति का सामना करने के लिए कैसे हमारी मदद करे और कैसे स्थायी चैन प्रदान करे। प्रेमपूर्ण रीति से वह हमारी मदद करेगा—एक चरवाहे के समान जो मेमने को अपनी अंकवार में लेता है—जब हम अपने पूरे हृदय से उस पर भरोसा रखते हैं। (नीतिवचन ३:५, ६; यशायाह ४०:१०, ११) उस विश्वास को मज़बूत बनाने के लिए भजन १३९ का अध्ययन काफ़ी मदद कर सकता है।
वह व्यक्ति जो हमारे पूरे चालचलन को देखता है
५. यहोवा द्वारा हमें ‘जांचने’ का क्या अर्थ है, और यह क्यों वांछनीय है?
५ गहरे मूल्यांकन के साथ, भजनहार दाऊद ने लिखा: “हे यहोवा, तू ने मुझे जांचकर जान लिया है।” (भजन १३९:१) दाऊद विश्वस्त था कि उसके बारे में यहोवा का ज्ञान ऊपरी नहीं था। परमेश्वर ने दाऊद को मनुष्यों की नज़रों से नहीं देखा, जो शायद केवल उसके शारीरिक डीलडौल, उसकी वाक्पटुता, या वीणा बजाने में उसके कौशल को देखते। (१ शमूएल १६:७, १८) यहोवा ने दाऊद के अंतर्तम व्यक्तित्व को ‘जांचा’ था और ऐसा इसलिए किया क्योंकि उसे उसके आध्यात्मिक कल्याण के लिए प्रेममय चिन्ता थी। यदि आप यहोवा के आसक्त सेवकों में से एक हैं, तो वह आपको उतनी ही अच्छी तरह से जानता है जितना कि वह दाऊद को जानता था। क्या यह आपके अंदर कृतज्ञता और विस्मय की भावना नहीं जगाता?
६. भजन १३९:२, ३ कैसे दिखाता है कि हम जो कुछ भी करते हैं, यहाँ तक कि हमारे सभी विचारों को भी यहोवा जानता है?
६ दाऊद की सारी गतिविधियाँ यहोवा की नज़रों के सामने प्रकट थीं, और दाऊद इसके बारे में अवगत था। “तू मेरा उठना बैठना जानता है,” भजनहार ने लिखा। “और मेरे विचारों को दूर ही से समझ लेता है। मेरे चलने और लेटने की तू भली-भाँति छानबीन करता है, और मेरी पूरी चालचलन का भेद जानता है।” (भजन १३९:२, ३) इस तथ्य के बावजूद कि यहोवा पृथ्वी से अति दूर स्वर्ग में है, वह जानता था कि दाऊद क्या कर रहा था या वह क्या सोच रहा था। उसने दिन में और रात में भी, दाऊद की गतिविधियों की ‘भली-भाँति छानबीन की,’ अथवा ध्यानपूर्वक जाँच की, कि वह जान सके कि वे किस प्रकार की थीं।
७. (क) दाऊद के जीवन की कुछ घटनाओं को आधार के तौर पर प्रयोग करते हुए, हमारे जीवन की कुछ बातों पर टिप्पणी कीजिए जिनके विषय में परमेश्वर अवगत है। (ख) इस बात के ज्ञान से हम पर कैसा प्रभाव पड़ना चाहिए?
७ जब परमेश्वर के लिए प्रेम और उद्धार करने की उसकी शक्ति में विश्वास ने दाऊद को एक युवक के तौर पर पलिश्ती दानव गोलियात से लड़ने के लिए स्वयं को स्वेच्छापूर्वक पेश करने के लिए प्रेरित किया, यहोवा यह जानता था। (१ शमूएल १७:३२-३७, ४५-४७) बाद में, जब मनुष्यों की शत्रुता ने दाऊद के हृदय को अति पीड़ित किया, जब दबाव इतना अधिक था कि उसने रात के समय आँसू बहाए, तब उसे इस ज्ञान से सांत्वना मिली कि यहोवा ने उसकी विनती सुनी। (भजन ६:६, ९; ५५:२-५, २२) उसी प्रकार, जब कृतज्ञता से भरे हृदय ने दाऊद को एक अनिद्र रात के दौरान यहोवा के बारे में मनन करने के लिए प्रेरित किया, यहोवा इसके विषय में अच्छी तरह से अवगत था। (भजन ६३:६; साथ ही फिलिप्पियों ४:८, ९ से तुलना कीजिए.) एक शाम जब दाऊद एक पड़ोसी की पत्नी को नहाते हुए देख रहा था, यहोवा यह भी जानता था, और उसने देखा कि क्या हुआ जब दाऊद ने, थोड़े ही समय के लिए, पापमय लालसा के कारण परमेश्वर को अपने विचारों से ओझल होने दिया। (२ शमूएल ११:२-४) बाद में, जब भविष्यवक्ता नातान को दाऊद के पास भेजा गया कि उसके पाप की गम्भीरता उसे बताए, तब यहोवा ने न केवल दाऊद के मुँह से निकले शब्दों को सुना बल्कि उस पश्चातापी हृदय को भी जान लिया जिससे वे शब्द निकले। (२ शमूएल १२:१-१४; भजन ५१:१, १७) क्या इससे हमें इन बातों पर गम्भीरता से विचार करने के लिए प्रेरित नहीं होना चाहिए कि हम कहाँ जाते हैं, क्या करते हैं, और हमारे हृदय में क्या है?
८. (क) ‘हमारे मुंह की बातें’ किस तरह परमेश्वर के साथ हमारी स्थिति पर प्रभाव डालती हैं? (ख) ज़बान के प्रयोग में कमज़ोरियों पर कैसे विजय प्राप्त की जा सकती है? (मत्ती १५:१८; लूका ६:४५)
८ क्योंकि हम जो कुछ करते हैं वह सब परमेश्वर जानता है, हमें आश्चर्य नहीं होना चाहिए कि वह अवगत है कि हम शरीर के किसी भी अंग का कैसे प्रयोग करते हैं चाहे वह ज़बान जितना छोटा ही क्यों न हो। राजा दाऊद को इस बात का एहसास था, और उसने लिखा: “हे यहोवा, मेरे मुंह में ऐसी कोई बात नहीं जिसे तू पूरी रीति से न जानता हो।” (भजन १३९:४) दाऊद अच्छी तरह जानता था कि जिनका यहोवा के तम्बू में मेहमान के तौर पर स्वागत होता, ये वे लोग होते जिन्होंने दूसरों की निन्दा नहीं की और जिन्होंने किसी मित्र को बदनाम करनेवाली रसीली गप्प फैलाने के लिए अपनी ज़बान को प्रयोग करने से इन्कार किया था। यहोवा जिन्हें स्वीकृति दिखाता, ये वे लोग होते जो अपने हृदय में भी सच बोलते थे। (भजन १५:१-३; नीतिवचन ६:१६-१९) हम में से कोई भी व्यक्ति अपनी ज़बान को पूर्ण नियंत्रण में नहीं रख सकता है, लेकिन दाऊद ने निर्बलता से यह निष्कर्ष नहीं निकाल लिया कि वह अपनी स्थिति को सुधारने के लिए कुछ भी नहीं कर सकता था। उसने यहोवा की महिमा के लिए भजन रचने और गाने में काफ़ी समय बिताया। उसने मदद के लिए अपनी आवश्यकता को भी खुलकर स्वीकार किया और उसके लिए परमेश्वर से प्रार्थना की। (भजन १९:१२-१४) क्या हमें भी अपनी ज़बान के प्रयोग पर प्रार्थनापूर्वक ध्यान देने की आवश्यकता है?
९. (क) परमेश्वर हमारी स्थिति को कितनी पूर्ण रीति से जानता है इस सम्बन्ध में भजन १३९:५ का विवरण क्या संकेत देता है? (ख) यह हमें किस बात के विषय में विश्वस्त करता है?
९ यहोवा हमें या हमारी स्थिति को केवल एक सीमित दृष्टि से नहीं देखता है। उसे हर तरफ़ से पूर्ण दृश्य-चित्र प्राप्त है। सेना से घिरे हुए एक नगर को उदाहरण के तौर पर प्रयोग करते हुए, दाऊद ने लिखा: “तू ने मुझे आगे पीछे घेर रखा है।” दाऊद के मामले में, परमेश्वर घेरा डालनेवाला शत्रु नहीं था; बल्कि, वह एक सतर्क अभिरक्षक था। दाऊद ने आगे कहा, “तू . . . अपना हाथ मुझ पर रखे रहता है,” और इस प्रकार परमेश्वर के उस नियंत्रण तथा सुरक्षा का संकेत दिया जो वह उससे प्रेम रखनेवालों के स्थायी लाभ के लिए प्रयोग करता है। “यह ज्ञान मेरे लिये बहुत कठिन है; यह गम्भीर और मेरी समझ से बाहर है,” दाऊद ने स्वीकार किया। (भजन १३९:५, ६) अपने सेवकों के बारे में परमेश्वर का ज्ञान इतना सम्पूर्ण, इतना सुविस्तृत है, कि हम इसे पूर्ण रीति से समझ नहीं सकते हैं। लेकिन हम इतना जानते हैं कि इस बात पर विश्वस्त हो सकें कि यहोवा सचमुच हमें समझता है और जो मदद वह हमें प्रदान करता है वह सर्वोत्तम होगी।—यशायाह ४८:१७, १८.
हम जहाँ कहीं भी हों, परमेश्वर हमारी मदद कर सकता है
१०. भजन १३९:७-१२ में दिए गए सजीव विवरण द्वारा कौन-सी प्रोत्साहक सच्चाई ज़ाहिर होती है?
१० यहोवा की प्रेमपूर्ण परवाह को एक अन्य दृष्टिकोण से देखते हुए, भजनहार आगे कहता है: “मैं तेरे आत्मा से भागकर किधर जाऊं? वा तेरे साम्हने से किधर भागूं?” उसे यहोवा से दूर भागने की कोई इच्छा नहीं थी; इसके बजाय, वह जानता था कि वह जहाँ कहीं भी हो, यहोवा जान लेता और, पवित्र आत्मा के द्वारा, उसकी मदद कर सकता था। “यदि मैं आकाश पर चढूं,” उसने आगे कहा, “तो तू वहां है! यदि मैं अपना बिछौना अधोलोक में बिछाऊं तो वहां भी तू है! यदि मैं भोर की किरणों पर चढ़कर समुद्र के पार जा बसूं, तो वहां भी तू अपने हाथ से मेरी अगुवाई करेगा, और अपने दहिने हाथ से मुझे पकड़े रहेगा। यदि मैं कहूं कि अन्धकार में तो मैं छिप जाऊंगा, और मेरे चारों ओर का उजियाला रात का अन्धेरा हो जाएगा, तौभी अन्धकार तुझ से न छिपाएगा, रात तो दिन के तुल्य प्रकाश देगी; क्योंकि तेरे लिये अन्धियारा और उजियाला दोनों एक समान हैं।” (भजन १३९:७-१२) ऐसी कोई जगह नहीं जहाँ हम जाएं, कोई परिस्थिति नहीं जिसका हम सामना करें, जो हमें यहोवा की नज़रों से अथवा उसकी आत्मा की मदद की पहुँच के बाहर रखे।
११, १२. (क) जबकि योना कुछ समय के लिए इसे भूल गया था, योना के मामले में यहोवा की देखने और मदद करने की योग्यता कैसे प्रदर्शित की गई? (ख) योना के अनुभव से हमें कैसे लाभ पहुँचना चाहिए?
११ एक समय पर भविष्यवक्ता योना इस बात को भूल गया। यहोवा ने उसे नीनवे नगर के लोगों को प्रचार करने के लिए नियुक्त किया था। किसी कारण से उसे लगा कि वह इस कार्य-नियुक्ति को नहीं सम्भाल सकता। शायद अश्शूरियों की खूँख़ार विख्याति के कारण, नीनवे में सेवा करने के विचार से योना घबरा गया। सो उसने नज़र बचाने की कोशिश की। यापो की बन्दरगाह पर, उसने तर्शीश (जो नीनवे के पश्चिम में ३,५०० किलोमीटर की दूरी पर था, और जिसका सम्बन्ध सामान्यतः स्पेन के साथ जोड़ा जाता है) को जानेवाले एक जहाज़ पर पारण प्राप्त किया। फिर भी, यहोवा ने उसे जहाज़ पर चढ़ते हुए और जहाज़ के निचले भाग में सो जाते हुए देखा। परमेश्वर यह भी जानता था कि योना कहाँ था जब बाद में उसे समुद्र में फेंक दिया गया, और यहोवा ने योना की सुनी जब उसने बड़ी मछली के पेट में से प्रतिज्ञा की कि वह अपना वचन पूरा करेगा। बचकर सूखी भूमि पर दुबारा आने के बाद, योना को अपनी कार्य-नियुक्ति को पूरा करने के लिए फिर से एक अवसर दिया गया।—योना १:३, १७; २:१-३:४.
१२ यह कितना बेहतर होता यदि योना ने शुरू से ही अपनी कार्य-नियुक्ति को पूरा करने के लिए यहोवा की आत्मा की मदद पर भरोसा किया होता! लेकिन, बाद में योना ने विनम्रता के साथ अपने अनुभव को लिपिबद्ध किया, और तब से उस अभिलेख ने बहुतों को यहोवा में विश्वास प्रकट करने के लिए मदद दी है, जिस विश्वास को प्राप्त करना योना को इतना कठिन प्रतीत हुआ था।—रोमियों १५:४.
१३. (क) रानी ईज़ेबेल से दूर भागने से पहले एलिय्याह ने कौन-सी कार्य-नियुक्तियों को वफ़ादारी से पूरा किया था? (ख) यहोवा ने तब भी एलिय्याह की कैसे मदद की जब उसने इस्राएल क्षेत्र के बाहर छिपने की कोशिश की?
१३ एलिय्याह का अनुभव कुछ भिन्न था। उसने वफ़ादारी से यहोवा का निर्णय सुनाया था कि इस्राएल जाति अपने पापों के लिए दण्ड के तौर पर सूखे का कष्ट उठाएगी। (१ राजा १६:३०-३३; १७:१) उसने कर्म्मेल पर्वत पर यहोवा और बाल के बीच विवाद में सच्ची उपासना को बुलंद किया था। और उसने किशोन की वेगवती घाटी में बाल देवता के ४५० भविष्यवक्ताओं को प्राण-दण्ड देने के कार्य को पूरा किया था। लेकिन जब रानी ईज़ेबेल ने क्रोध में आकर एलिय्याह को मरवा डालने की शपथ खाई, तो एलिय्याह देश छोड़कर भाग गया। (१ राजा १८:१८-४०; १९:१-४) क्या यहोवा उस कठिन समय पर उसकी मदद करने के लिए वहाँ था? निश्चय ही था। यदि एलिय्याह एक ऊँचे पर्वत पर चढ़ गया होता, मानो आकाश पर; यदि वह पृथ्वी की गहराई में एक गुफ़ा में छिप गया होता, मानो अधोलोक में; यदि वह पृथ्वी पर फैल रही भोर की किरणों की गति के साथ किसी दूर टापू को भाग जाता—तो भी उसे बल और मार्गदर्शन देने के लिए यहोवा का हाथ वहाँ होता। (रोमियों ८:३८, ३९ से तुलना कीजिए.) और यहोवा ने एलिय्याह को न केवल उसकी यात्रा के लिए भोजन देने के द्वारा बल्कि अपनी सक्रिय शक्ति के अद्भुत प्रदर्शनों के द्वारा बल प्रदान किया। इस प्रकार मज़बूत किए जाने पर, एलिय्याह ने अपनी अगली भविष्यसूचक कार्य-नियुक्ति शुरू की।—१ राजा १९:५-१८.
१४. (क) यह निष्कर्ष निकालना क्यों ग़लत होगा कि परमेश्वर सर्वव्यापक है? (ख) यहोवा ने आधुनिक समयों में किन परिस्थितियों में अपने सेवकों को प्रेमपूर्ण रीति से कायम रखा है? (ग) यह कैसे कहा जा सकता है कि चाहे हम अधोलोक में भी क्यों न हों, तो भी परमेश्वर वहाँ होगा?
१४ भजन १३९:७-१२ के भविष्यसूचक शब्दों का यह अर्थ नहीं कि परमेश्वर सर्वव्यापक है, कि वह हर समय सभी जगहों पर व्यक्तिगत रूप से उपस्थित है। शास्त्रवचन स्पष्टतः इसका विपरीत दिखाता है। (व्यवस्थाविवरण २६:१५; इब्रानियों ९:२४) फिर भी, उसके सेवक कभी भी उसकी पहुँच के बाहर नहीं होते। यह उन लोगों के विषय में सच है जिनकी ईश्वरशासित कार्य-नियुक्तियाँ उन्हें दूर जगहों पर ले गई हैं। यह द्वितीय विश्व-युद्ध के दौरान नात्सी नज़रबन्दी शिविरों में निष्ठावान् गवाहों के विषय में सच था, और यह १९५८-१९६५ के दौरान चीन में एकान्त क़ैद में पड़े मिशनरियों के विषय में सच था। यह केंद्रीय अफ्रीका के एक देश में हमारे उन प्रिय भाई-बहनों के विषय में सच था जिन्हें बारम्बार अपने गाँवों से, यहाँ तक कि देश से भी भागना पड़ा। यदि ज़रूरत पड़े, तो यहोवा सीधे अधोलोक, अर्थात् सामान्य क़ब्र तक भी अपना हाथ बढ़ाकर वफ़ादार जनों को पुनरुत्थान के द्वारा वापस ला सकता है।—अय्यूब १४:१३-१५; लूका २०:३७, ३८.
वह व्यक्ति जो हमें सचमुच समझता है
१५. (क) यहोवा हमारे विकास को कितने समय पहले देख सकता था? (ख) भजनहार द्वारा गुर्दों के उल्लेख से हमारे बारे में परमेश्वर के ज्ञान के विस्तार का संकेत कैसे मिलता है?
१५ प्रेरणा के अधीन, भजनहार इस तथ्य की ओर ध्यान खींचता है कि हमारे जन्म के समय से भी पहले परमेश्वर को हमारा ज्ञान था, और उसने कहा: “मेरे मन का स्वामी तो तू है [तू ही ने मेरे गुर्दों को उत्पन्न किया, NW]; तू ने मुझे माता के गर्भ में रचा [छिपाए रखा, NW]। मैं तेरा धन्यवाद करूंगा, इसलिये कि मैं भयानक और अद्भुत रीति से रचा गया हूं। तेरे काम तो आश्चर्य के हैं, और मैं इसे भली भांति जानता हूं।” (भजन १३९:१३, १४) गर्भधारण के समय हमारे माता और पिता के जीन के संयोजन से वह नमूना उत्पन्न होता है जो हमारी शारीरिक तथा मानसिक क्षमता को गहरी रीति से प्रभावित करता है। परमेश्वर उस क्षमता को समझता है। इस भजन में गुर्दों का ख़ास ज़िक्र किया गया है, जिन्हें अकसर शास्त्रवचनों में व्यक्तित्व के अंतर्तम पहलुओं को चित्रित करने के लिए प्रयोग किया जाता है।a (भजन ७:९; यिर्मयाह १७:१०) यहोवा ने हमारे जन्म से पहले ही इन तफ़सीलों को जाना। वही है जिसने प्रेमपूर्ण चिन्ता के साथ मानव शरीर को इस प्रकार रचा ताकि माँ के गर्भ में एक निषेचित कोशिका, भ्रूण को ‘छिपाने’ और जैसे-जैसे वह विकसित हो उसे सुरक्षित रखने के लिए, एक संरक्षक आवास उत्पन्न करती है।
१६. (क) भजन १३९:१५, १६ किस तरीक़े से परमेश्वर की दृष्टि की भेदनेवाली शक्ति को विशिष्ट करता है? (ख) यह बात हमारे लिए क्यों प्रोत्साहक होनी चाहिए?
१६ फिर, परमेश्वर की दृष्टि की भेदनेवाली शक्ति पर ज़ोर देते हुए, भजनहार आगे कहता है: “जब मैं गुप्त में बनाया जाता, और पृथ्वी के नीचे स्थानों में रचा जाता था [स्पष्टतः यह उसके माँ के गर्भ का एक काव्यात्मक उल्लेख है लेकिन यह मिट्टी से आदम की सृष्टि की ओर भी संकेत करता है], तब मेरी हड्डियां तुझ से छिपी न थीं। तेरी आंखों ने मेरे बेडौल तत्व को देखा; और मेरे सब अंग जो दिन दिन बनते जाते थे वे [शरीर के अलग-अलग अंग] रचे जाने से पहिले तेरी पुस्तक में लिखे हुए थे।” (भजन १३९:१५, १६) इस में कोई शक नहीं—चाहे संगी मनुष्य हमें समझें या न समझें, यहोवा हमें समझता है। इससे हम पर क्या प्रभाव पड़ना चाहिए?
१७. जब हम परमेश्वर के कार्यों को अद्भुत समझते हैं, तो यह हमें क्या करने के लिए प्रेरित करता है?
१७ भजन १३९ का लेखक स्वीकार करता है कि परमेश्वर के जिन कार्यों के बारे में वह लिख रहा था, वे अद्भुत हैं। क्या आप भी वैसा ही महसूस करते हैं? किसी भी अद्भुत चीज़ को देखकर एक व्यक्ति गहरी रीति से विचार करने या पूर्ण ध्यान देने के लिए मजबूर हो जाता है। सम्भवतः आप यहोवा की भौतिक सृष्टि के कार्यों के प्रति ऐसी ही प्रतिक्रिया दिखाते हैं। (भजन ८:३, ४, ९ से तुलना कीजिए.) उसने मसीहाई राज्य को स्थापित करके क्या किया है, पूरी पृथ्वी में सुसमाचार का प्रचार करवाकर वह क्या कर रहा है, और किस तरीक़े से उसका वचन मनुष्यों के व्यक्तित्व को परिवर्तित करता है, इन बातों पर भी क्या आप इसी प्रकार विचार करते हैं?—१ पतरस १:१०-१२ से तुलना कीजिए.
१८. यदि हम परमेश्वर के कार्य को विस्मयप्रेरक पाते हैं, तो इससे हम पर क्या प्रभाव पड़ेगा?
१८ क्या आपका भी यही अनुभव है कि परमेश्वर के कार्यों पर चिंतन करना विस्मयप्रेरक है, कि यह आप में एक स्वास्थ्यकर भय उत्पन्न करता है, ऐसा भय जो शक्तिशाली रीति से प्रेरित करता है, जो आपके व्यक्तित्व पर और आपके जीवन व्यतीत करने के तरीक़े पर गहरा प्रभाव डालता है? (भजन ६६:५ से तुलना कीजिए.) यदि ऐसा है, तो आपका हृदय आपको प्रेरित करेगा कि आप यहोवा का गुण गान करें, उसकी प्रशंसा करें, दूसरों को उसके उद्देश्य और उन शानदार चीज़ों के बारे में बताने के लिए अवसर बनाएं जिन्हें उसने उस से प्रेम करनेवालों के लिए रख छोड़ा है।—भजन १४५:१-३.
[फुटनोट]
a वॉचटावर बाइबल एण्ड ट्रैक्ट सोसाइटी द्वारा प्रकाशित इन्साइट ऑन द स्क्रिप्चर्स्, खण्ड २, पृष्ठ १५० देखिए।
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▫ “यहोवा ही परमेश्वर है,” यह ज्ञान हमें आनन्द के साथ उसकी सेवा करने में कैसे मदद करता है?
▫ हम जो कुछ भी करते हैं वह परमेश्वर जानता है, इस बात से हमारे जीवन पर कैसा प्रभाव पड़ना चाहिए?
▫ यह तथ्य क्यों प्रोत्साहक है कि हम परमेश्वर की नज़रों से कभी दूर नहीं हैं?
▫ परमेश्वर हमें उन तरीक़ों से जानने में कैसे समर्थ है जिन तरीक़ों से कोई मनुष्य जान नहीं सकता?
▫ इस प्रकार के अध्ययन द्वारा हम में क्यों यहोवा का गुण गान करने की इच्छा उत्पन्न होती है?