भजन
दाविद का सुरीला गीत। निर्देशक के लिए हिदायत।
2 तू मेरा उठना-बैठना जानता है,+
तू मेरे विचारों को दूर से ही जान लेता है।+
5 तू मुझे आगे और पीछे से घेरे रहता है,
तू अपना हाथ मुझ पर रखता है।
8 अगर मैं ऊपर आकाश पर चढ़ जाऊँ, तो तू वहाँ रहेगा,
अगर मैं अपना बिस्तर नीचे कब्र में लगाऊँ, तो तू वहाँ भी रहेगा।+
9 अगर मैं भोर के पंख लगाकर उड़ जाऊँ
कि जाकर दूर समुंदर के पास बस जाऊँ,
10 तो वहाँ भी तू अपने हाथ से मेरी अगुवाई करेगा,
तेरा दायाँ हाथ मुझे थाम लेगा।+
11 अगर मैं कहूँ, “बेशक, अँधेरा मुझे छिपा लेगा!”
तो मेरे चारों ओर रात का अँधेरा उजाला हो जाएगा।
12 अँधेरा तेरे लिए अँधेरा नहीं होगा,
रात का अँधेरा तेरे लिए दिन की तेज़ रौशनी जैसा होगा,+
अँधेरा तेरे लिए उजाले के बराबर है।+
14 मैं तेरी तारीफ करता हूँ क्योंकि तूने मुझे लाजवाब तरीके से बनाया है,+
यह देखकर मैं विस्मय से भर जाता हूँ।
तेरे काम बेजोड़ हैं,+ यह मैं अच्छी तरह जानता हूँ।
15 जब मुझे गुप्त में बनाया जा रहा था,
मुझे मानो धरती की गहराइयों में बुना जा रहा था,
तब मेरी हड्डियाँ तुझसे छिपी न थीं।+
16 तेरी आँखों ने मुझे तभी देखा था जब मैं बस एक भ्रूण था,
इससे पहले कि उसके सारे अंग बनते,
उनके बारे में तेरी किताब में लिखा था
कि कब उनकी रचना होगी।
17 इसलिए तेरे विचार मेरे लिए क्या ही अनमोल हैं!+
हे परमेश्वर, तेरे विचार अनगिनत हैं!+
18 अगर मैं उन्हें गिनने की कोशिश करूँ, तो वे बालू के किनकों से ज़्यादा होंगे।+
जब मैं जाग उठता हूँ, तब भी तेरे संग होता हूँ।*+
19 हे परमेश्वर, काश तू दुष्टों को मार डालता!+
वे तेरे बैरी हैं जो तेरे नाम का गलत इस्तेमाल करते हैं।+
21 हे यहोवा, क्या मैं उनसे नफरत नहीं करता जो तुझसे नफरत करते हैं?+
क्या मैं उनसे घिन नहीं करता जो तुझसे बगावत करते हैं?+