बाइबल की किताब नंबर 19—भजन संहिता
लेखक: दाऊद और दूसरे लेखक
लिखने की जगह: तय नहीं है
लिखना पूरा हुआ: लगभग सा.यु.पू. 460
भजन की किताब, प्राचीनकाल के यहोवा के सच्चे उपासकों की ईश्वर-प्रेरित गीतपुस्तक थी। इसमें 150 पवित्र गीत या भजन थे, जिन्हें संगीत की धुनों पर तैयार किया गया था ताकि यरूशलेम में यहोवा परमेश्वर के मंदिर में जब लोग उपासना के लिए इकट्ठे हों तो ये गीत गाएँ। ये भजन यहोवा की महिमा करनेवाले गीत हैं। यही नहीं, इन गीतों में ऐसी प्रार्थनाएँ भी हैं जिनमें परमेश्वर से दया और मदद की बिनती की गयी है और यहोवा पर भरोसा और विश्वास भी ज़ाहिर किया गया है। बहुत-से गीतों में परमेश्वर के उपकारों के लिए एहसान जताया गया है और उसकी जयजयकार की गयी है। जी हाँ, इनमें हर्षोल्लास के साथ पुकार-पुकारकर यहोवा की महिमा की गयी है। कई भजन ऐसे हैं जिनमें बीती घटनाओं का इतिहास दोहराया गया है, जिससे यहोवा की निरंतर प्रेम-कृपा और उसके महान कामों पर ध्यान देने का मौका मिलता है। इनमें ढेरों भविष्यवाणियाँ भी हैं, जिनमें से ज़्यादातर बड़े अद्भुत तरीके से पूरी भी हो चुकी हैं। भजनों में ऐसी बहुत सारी हिदायतें हैं जो हमारे लिए फायदेमंद हैं और हमारी हिम्मत बढ़ाती हैं। इनकी भाषा बहुत ही गौरवशाली है और इनके ज़रिए ऐसी तसवीर खींची गयी है कि पढ़नेवाले को अंदर तक झंझोड़ दे। भजन की किताब हमारे लिए आध्यात्मिक मायने में एक बढ़िया दावत है। इसमें हर किस्म का खाना बड़ी नफासत के साथ तैयार किया गया है और बड़े ही लुभावने अंदाज़ में पेश किया गया है।
2 इस किताब के शीर्षक का मतलब क्या है और इन भजनों की रचना किसने की थी? इब्रानी भाषा की बाइबल में इस किताब को सेफर तहीलीम कहा जाता है, जिसका मतलब है “स्तुतिगान की किताब” या सिर्फ तहीलीम यानी “स्तुतिगान।” शब्द तहीलीम, एकवचन तहीला यानी “स्तुति” या “स्तुति-भजन” का बहुवचन रूप है। भजन 145 के उपरिलेख में भी तहीला या “स्तुति” लिखा है। इस किताब के लिए यह नाम “स्तुतिगान” बिलकुल मुनासिब है क्योंकि इस किताब का खास मकसद यहोवा की स्तुति करना ही है। इस किताब का नाम “भजन संहिता” मसीही यूनानी शास्त्र में भी कई बार आता है जैसे लूका 20:42 और प्रेरितों 1:20. भजन का मतलब है ऐसा पवित्र गीत या काव्य जो परमेश्वर की स्तुति और उपासना में गाया जाता है।
3 ज़्यादातर भजनों के शीर्षक या उपरिलेख हैं और इनमें अकसर भजन के रचयिता का नाम होता है। तिहत्तर शीर्षकों में दाऊद का नाम है जो “इस्राएल का मधुर भजन गानेवाला” था। (2 शमू. 23:1) बेशक भजन 2, 72 और 95 भी दाऊद की ही रचनाएँ थीं। (प्रेरितों 4:25; भजन 72:20 और इब्रानियों 4:7 देखिए।) इसके अलावा, ऐसा मालूम होता है कि भजन 9 के आगे का भाग भजन 10 में है और भजन 70 का बाकी भाग 71 में। इसलिए शायद इन भजनों को भी दाऊद ने ही लिखा होगा। बारह भजनों के उपरिलेख दिखाते हैं कि वे आसाप के हैं। यहाँ आसाप का मतलब उसका घराना हो सकता है क्योंकि इन बारह भजनों में से कुछ में ऐसी घटनाओं का ज़िक्र है जो आसाप के ज़माने के बाद घटी थीं। (भज. 79; 80; 1 इति. 16:4, 5, 7; एज्रा 2:41) ग्यारह भजनों को लिखने का श्रेय कोरह के बेटों को दिया गया है। (1 इति. 6:31-38) भजन 43 के बारे में मालूम होता है कि यह 42वें भजन का ही दूसरा भाग है, इसलिए कहा जा सकता है कि 42वें भजन की तरह इसे भी कोरह के बेटों ने लिखा था। भजन 88 के शीर्षक में “कोरहवंशियों” के अलावा हेमान का भी नाम आता है और भजन 89 में लेखक का नाम एतान बताया गया है। कहा जाता है कि भजन 90 का रचयिता मूसा था और मुमकिन है कि भजन 91 भी उसी ने रचा था। भजन 127 सुलैमान का है। इस तरह हम पाते हैं कि भजन के दो-तिहाई हिस्से के लिए अलग-अलग लेखकों के नाम दिए गए हैं।
4 भजनों की किताब बाइबल की सबसे बड़ी किताब है। भजन 90, 126 और 137 इस बात का सबूत है कि इसे लिखने में काफी लंबा समय लगा। शुरूआत मूसा के लिखने के समय (सा.यु.पू. 1513-1473) से हुई और इस्राएलियों के बाबुल की बंधुआई से छूटकर अपने देश में बहाल होने और शायद एज्रा के दिनों (सा.यु.पू. 537-लगभग 460) तक इस किताब की लिखाई चलती रही। इस तरह, इसे लिखने में लगभग एक हज़ार साल लगे। लेकिन, इसमें दी गयी जानकारी हज़ार साल से भी लंबे अरसे की है। सृष्टि के वक्त से लेकर, आखिरी भजन की रचना के वक्त तक यहोवा ने अपने सेवकों के साथ जो व्यवहार किया, इतिहास की उन सारी घटनाओं का निचोड़ इस किताब में पाया जाता है।
5 भजनों की किताब में अच्छी व्यवस्था की झलक मिलती है। दाऊद खुद ‘पवित्र स्थान में, अपने परमेश्वर, अपने राजा की शोभा यात्राओं’ का वर्णन यूँ करता है: ‘गायक आगे हैं, वादक पीछे, उनके मध्य कन्याएं डफ बजा रही हैं: महासभाओं में परमेश्वर को धन्य कहो।’ (नयी हिन्दी बाइबिल) (भज. 68:24-26) इससे पता चलता है कि भजन के शीर्षकों में क्यों अकसर ये शब्द लिखे होते हैं: “प्रधान बजानेवाले के लिये” जिसका मतलब है “संगीत निर्देशक के लिए” और क्यों इनमें संगीत और कविता से जुड़े कई शब्द लिखे हैं। कुछ शीर्षकों में लिखा है कि आगे दिया भजन किस मौके पर या किस मकसद से गाया जाता था या फिर संगीत के बारे में हिदायतें दी गयी हैं। (भजन 6, 30, 38, 60, 88, 102 और 120 के उपरिलेख या शीर्षक देखिए।) दाऊद के कम-से-कम 13 भजनों के शीर्षक चंद शब्दों में बताते हैं कि किन घटनाओं ने उसे इनकी रचना करने के लिए उभारा था। भजन 18 और 51 इसकी दो मिसालें हैं। चौंतीस भजन ऐसे हैं जिनका कोई शीर्षक नहीं है। “सेला,” यह छोटा-सा शब्द इस किताब के मुख्य पाठ में 71 बार आता है। इसका सही-सही मतलब कोई नहीं जानता, फिर भी आम तौर पर यही माना जाता है कि यह संगीत बजाने या गाने के बारे में एक संकेत-चिन्ह है। कुछ लोगों की राय है कि गाते वक्त या फिर गाने के साथ-साथ साज़ बजाते वक्त, यह कुछ देर रुकने और चुपचाप मनन करने का इशारा करता है। इसलिए भजन पढ़ते वक्त “सेला” को ज़ोर से पढ़ने की ज़रूरत नहीं है।
6 प्राचीनकाल से भजनों की किताब को पाँच अलग-अलग किताबों या हिस्सों में बाँटा गया है। ये हिस्से हैं: (1) भजन 1-41; (2) भजन 42-72; (3) भजन 73-89; (4) भजन 90-106; (5) भजन 107-150. ऐसा मालूम होता है कि इन भजनों का संग्रह पहली बार दाऊद ने तैयार किया था। ज़ाहिर है कि इन भजनों का सिलसिला बिठाने और इस किताब को अंतिम रूप देने के लिए, यहोवा ने याजक एज्रा का इस्तेमाल किया जो ‘मूसा की व्यवस्था का निपुण शास्त्री था।’—एज्रा 7:6.
7 जैसे-जैसे भजनों की रचना की जाती थी, वैसे-वैसे इनका एक समूह बनाकर इन्हें लिख लिया जाता था। नए भजनों के साथ एकाध पुराना भजन भी जोड़ा जाता था, इसलिए कई भजन ऐसे हैं जो अलग-अलग भागों में दोबारा दिए गए हैं। जैसे भजन 14 और 53; 40:13-17 और 70; 57:7-11 और 108:1-5. भजन के पाँचों हिस्सों में से हरेक के आखिर में यहोवा को धन्य कहा गया है, यानी उसकी स्तुति की गयी है। इनमें से पहले चार हिस्सों के आखिर में स्तुति के ये बोल लोग कहते थे और पाँचवें हिस्से के आखिर में तो पूरा 150वाँ भजन ही परमेश्वर की स्तुति का गीत है।—भज. 41:13, NW, फुटनोट।
8 नौ भजनों को बहुत ही अनोखे अंदाज़ में रचा गया है; ये ऐसी अक्षरबद्ध कविताएँ हैं जिनके पद इब्रानी भाषा की वर्णमाला के एक-एक अक्षर से शुरू होते हैं। (भजन 9, 10, 25, 34, 37, 111, 112, 119 और 145) इन भजनों में पहले पद की पहली आयत या आयतें, इब्रानी वर्णमाला के पहले अक्षर, आलेफ(א) से शुरू होती हैं, दूसरा पद, वर्णमाला के दूसरे अक्षर बेथ(ב) से शुरू होता है और इस तरह इब्रानी वर्णमाला के लगभग सारे अक्षरों से एक-एक पद शुरू होता है। इससे लोगों के लिए भजन याद रखना आसान होता होगा। क्योंकि अगर मंदिर के गायकों को भजन 119 ज़बानी याद करना होता, तो सोचिए वे इतने लंबे भजन को कैसे याद करते! गौर करने लायक बात है कि भजन 96:11 में यहोवा के नाम का इब्रानी रूप पाया जाता है। इब्रानी भाषा में, इस आयत के पहले हिस्से में चार शब्द ऐसे हैं जिनके पहले अक्षर दाएँ से बाएँ पढ़ने पर, इब्रानी भाषा के वे चार व्यंजन बनते हैं जो परमेश्वर के नाम य, ह, व, ह (יהוה) में आते हैं।
9 हालाँकि इब्रानी भाषा के इन पवित्र गीतों के बोल लयबद्ध नहीं हैं, मगर इन्हें लिखने की शैली लाजवाब है और विचारों का तालमेल बड़े ही लयबद्ध और सुंदर ढंग से बिठाया गया है। इनके बोल हमारे मन को झंझोड़कर रख देते हैं और दिल की गहराइयों में उतर जाते हैं। ये गीत जीती-जागती तसवीरें पेश करते हैं। इनमें तरह-तरह की घटनाओं और जज़्बातों को जितनी गहरायी और समझ के साथ पेश किया गया है, वह काबिले-तारीफ है। इसकी वजह कुछ हद तक दाऊद की आपबीती है। दाऊद तरह-तरह के अनोखे हालात से गुज़रा था, और इन्हीं हालात ने उसे इन भजनों की रचना करने को उभारा था। दाऊद जैसे बहुत कम लोग होंगे जिनकी ज़िंदगी में इतने उतार-चढ़ाव आए हों। वह लड़कपन में एक चरवाहा था, फिर एक योद्धा बना और गोलियत जैसे दानव से अकेले टक्कर ली, राजा के दरबार में साज़ बजाया करता था, भगोड़ा बनकर कभी वफादार दोस्तों के बीच रहा तो कभी गद्दारों के बीच, फिर राजा बना और दुश्मनों पर जीत हासिल की। वह अपने बाल-बच्चों से प्यार करनेवाला पिता था, परिवार में पड़ी फूट ने उसका कलेजा चीरकर रख दिया, दो बार उसने गंभीर पाप किए और बहुत ही कड़वे अंजाम भुगते, फिर भी मरते दम तक यहोवा की उपासना के लिए उसका जोश कभी ठंडा नहीं पड़ा, और यहोवा के कानूनों से वह प्यार करता रहा। इन हालात को मद्देनज़र रखते हुए, कोई ताज्जुब नहीं कि भजन की किताब में इंसान की भावनाओं का हर रंग, हर रूप दिखायी देता है! इब्रानी कविताओं में एक-जैसी दो बातें या एक-दूसरे से बिलकुल उलट बातें कहने की जो खूबी है, उससे इन भजनों में और ज़्यादा निखार आ जाता है और पढ़नेवाले पर ज़बरदस्त असर होता है।—भज. 1:6; 22:20; 42:1; 121:3, 4.
10 यहोवा की स्तुति में गाए जानेवाले इन सबसे प्राचीन गीतों की सच्चाई का सबसे बड़ा सबूत यही है कि ये पवित्र शास्त्र के बाकी हिस्से से पूरी तरह मेल खाते हैं। मसीही यूनानी शास्त्र के लेखकों ने भजनों की किताब का बहुत बार हवाला दिया है। (भज. 5:9 [रोमि. 3:13]; भज. 10:7 [रोमि. 3:14]; भज. 24:1; [1 कुरि. 10:26]; भज. 50:14 [मत्ती 5:33]; भज. 78:24 [यूह. 6:31]; भज. 102:25-27 [इब्रा. 1:10-12]; भज. 112:9 [2 कुरि. 9:9]) दाऊद ने खुद अपने आखिरी गीत में कहा: “यहोवा का आत्मा मुझ में होकर बोला, और उसी का वचन मेरे मुंह में आया।” यही वह आत्मा थी जो दाऊद पर उस दिन से काम करने लगी थी, जिस दिन शमूएल ने उसका अभिषेक किया था। (2 शमू. 23:2; 1 शमू. 16:13) इसके अलावा, यीशु के प्रेरितों ने भी भजनों की किताब के हवाले दिए। पतरस ने ‘पवित्र शास्त्र के उस लेख’ का हवाला दिया ‘जो पवित्र आत्मा ने दाऊद के मुख से कहा था।’ और इब्रानियों की पत्री के लेखक ने भजनों के कई हवाले देते वक्त उन्हें परमेश्वर के वचन कहा या उनका परिचय इन शब्दों में दिया, “जैसा पवित्र आत्मा कहता है।”—प्रेरि. 1:16; 4:25; इब्रा. 1:5-14; 3:7; 5:5, 6.
11 भजनों की किताब सच्ची है इसका सबसे बड़ा सबूत है कि मरे हुओं में से जी उठनेवाले प्रभु यीशु ने खुद अपने चेलों से यह कहा: “ये मेरी वे बातें हैं, जो मैं ने . . . तुम से कही थीं, कि अवश्य है, कि जितनी बातें मूसा की व्यवस्था और भविष्यद्वक्ताओं और भजनों की पुस्तकों में, मेरे विषय में लिखी हैं, सब पूरी हों।” इस तरह यीशु ने भी पूरे इब्रानी शास्त्र का बँटवारा उसी तरह किया जैसे यहूदी किया करते थे और जिससे वे अच्छी तरह वाकिफ थे। यहाँ यीशु ने भजनों की पुस्तकों कहकर शास्त्र के तीसरे समूह की उन तमाम किताबों को भी शामिल किया जिन्हें हगियोग्राफा (या पवित्र लेख) कहा जाता था। इस समूह की पहली किताब भजन संहिता थी। इस बात को पुख्ता करने के लिए गौर कीजिए कि यीशु ने कुछ घंटे पहले इम्माउस जानेवाले दो चेलों से क्या कहा था। बाइबल कहती है कि उस मौके पर यीशु ने “सारे पवित्र शास्त्रों में से, अपने विषय में की बातों का अर्थ, उन्हें समझा दिया।”—लूका 24:27, 44.
क्यों फायदेमंद है
23 बाइबल की भजनों की किताब की शैली इतनी खूबसूरत है कि दुनिया की किसी भी भाषा के साहित्य में ये भजन बेहतरीन रचनाओं का खिताब पाने के हकदार हैं। लेकिन ये भजन सिर्फ अच्छा साहित्य नहीं हैं। ये पूरे जहान के महाराजाधिराज और मालिक, यहोवा परमेश्वर की तरफ से एक जीता-जागता संदेश हैं। इनसे बाइबल की बुनियादी शिक्षाओं की अंदरूनी समझ हासिल होती है। सबसे पहले ये हमें बाइबल के रचयिता यहोवा परमेश्वर के बारे में बताते हैं। इन भजनों में साफ दिखाया गया है कि यहोवा ही इस विश्व का और इसमें पायी जानेवाली हर चीज़ का सिरजनहार है। (8:3-9; 90:1, 2; 100:3; 104:1-5, 24; 139:14) भजनों की किताब में यहोवा नाम की वाकई महिमा की गयी है, इसमें यह नाम लगभग 700 बार आता है। इसके अलावा, इस नाम का छोटा रूप “याह” 38 बार आता है। तो कुल मिलाकर परमेश्वर का नाम हर भजन में औसतन 5 बार आता है। इसके अलावा, यहोवा को करीब 350 बार एलोहिम या परमेश्वर कहा गया है। कई भजनों में उसे “प्रभु” या “महाराजाधिराज” (NW) कहकर दिखाया गया है कि यहोवा से महान राजा और कोई नहीं।—68:20; 69:6; 71:5; 73:28; 140:7; 141:8.
24 भजनों में दिखाया गया है कि सनातन परमेश्वर यहोवा और नश्वर इंसान के बीच कितना बड़ा फर्क है। इंसान पाप में पैदा होता है और उसे एक छुड़ानेवाले की ज़रूरत होती है, उसके कदम मौत की तरफ बढ़ते हैं, आखिरकार वह “चूर” हो जाता है और उस कब्र में चला जाता है जहाँ सभी इंसान मरने के बाद जाते हैं। (6:4, 5; 49:7-20; 51:5, 7; 89:48; 90:1-5; 115:17; 146:4) भजनों की किताब परमेश्वर के कानूनों को मानने और यहोवा पर भरोसा रखने की अहमियत समझाती है। (1:1, 2; 62:8; 65:5; 77:12; 115:11; 118:8; 119:97, 105, 165) अपनी मर्यादा लाँघने और ‘गुप्त पाप’ करने के खिलाफ खबरदार करती है (19:12-14; 131:1) और ईमानदार रहने और अच्छे लोगों की संगति करने का बढ़ावा देती है। (15:1-5; 26:5; 101:5) यह दिखाती है कि सही चालचलन से हमें यहोवा की मंज़ूरी मिलती है। (34:13-15; 97:10) भजनों की किताब यह कहकर हमें भविष्य के लिए एक सुनहरी आशा देती है कि “उद्धार यहोवा ही की ओर से होता है” और जो उसका भय मानते हैं वह ‘उनके प्राण को मृत्यु से बचाएगा।’ (3:8; 33:19) अब आइए हम इस किताब में दर्ज़ ऐसी कुछ भविष्यवाणियों पर ध्यान दें।
25 भजनों की किताब में “दाऊद की सन्तान,” यीशु मसीह की ओर इशारा करनेवाली बेहिसाब भविष्यवाणियाँ हैं। इनमें बताया गया है कि यहोवा के अभिषिक्त जन और राजा के रूप में वह क्या भूमिका निभाएगा।a (मत्ती 1:1) जब सा.यु. 33 में पिन्तेकुस्त के दिन मसीही कलीसिया की शुरूआत हुई, तब से पवित्र आत्मा ने प्रेरितों को यह ज्ञान देना शुरू किया कि ये भविष्यवाणियाँ कैसे पूरी हुईं। उसी दिन, पतरस ने अपने मशहूर भाषण का विषय खोलकर समझाने के लिए भजनों की किताब से बार-बार हवाले दिए। ये हवाले एक जन के बारे में थे और वह था, “यीशु नासरी।” पतरस ने अपने भाषण के आखिरी हिस्से में तो सिर्फ भजनों का ही हवाला देकर साबित किया कि मसीह यीशु महान दाऊद है और उसके बारे में भविष्यवाणी कहती है कि यहोवा उसके प्राण को अधोलोक (या हेडिज़) में नहीं छोड़ेगा बल्कि उसे मरे हुओं में से जी उठाएगा। जी हाँ, “दाऊद तो स्वर्ग पर नहीं चढ़ा,” मगर जैसे उसने भजन 110:1 में भविष्यवाणी की थी, उसका प्रभु स्वर्ग पर चढ़ा। दाऊद का प्रभु कौन है? पतरस अपने भाषण को इन महान शब्दों से समाप्त करते हुए यह ज़बरदस्त जवाब देता है: ‘वही यीशु जिसे तुम ने क्रूस पर चढ़ाया’!—प्रेरि. 2:14-36; भज. 16:8-11; 132:11.
26 भजनों की किताब का हवाला देकर पतरस ने जो भाषण दिया, क्या उससे कुछ फायदा हुआ? सिर्फ इतना कहना काफी होगा कि उसी दिन करीब 3,000 हज़ार लोग बपतिस्मा लेकर मसीही कलीसिया का हिस्सा बन गए।—प्रेरि. 2:41.
27 कुछ ही समय बाद, जब चेले एक खास मकसद से इकट्ठा हुए तो उन्होंने अपनी प्रार्थना में भजन 2:1, 2 का हवाला दिया। उन्होंने बताया कि जब दुनिया के राजा एक-साथ मिलकर परमेश्वर के “सेवक यीशु के विरोध में” खड़े हो गए “जिसे [परमेश्वर] ने अभिषेक किया” है, तब यह भविष्यवाणी पूरी हुई। बाइबल आगे कहती है कि इस मौके पर चेलों में “सब पवित्र आत्मा से परिपूर्ण हो गए।”—प्रेरि. 4:23-31.
28 अब ज़रा इब्रानियों की पत्री पर नज़र डालिए। इसके पहले दो अध्यायों में हमें भजनों की किताब के कई हवाले मिलते हैं। ये हवाले यीशु की महानता के बारे में हैं कि परमेश्वर ने अब उसे स्वर्गदूतों से भी ऊँचे पद पर ठहराया है। भजन 22:22 और दूसरे भजनों का हवाला देकर पौलुस दिखाता है कि यीशु के “भाइयों” की एक कलीसिया है, जो इब्राहीम के वंश का हिस्सा हैं और “स्वर्गीय बुलाहट में भागी” हैं। (इब्रा. 2:10-13, 16; 3:1) फिर इब्रानियों 6:20 से अध्याय 7 तक, प्रेरित पौलुस यीशु के एक और ओहदे के बारे में ब्यौरेदार जानकारी देता है। यह ओहदा है, “मलिकिसिदक की रीति पर सदा काल का महायाजक।” पौलुस भजन 110:4 का बार-बार हवाला देकर कहता है कि यीशु का याजकपद हारून के याजकपद से श्रेष्ठ है। वह कहता है कि यीशु को याजकपद देने की शपथ परमेश्वर ने ली थी, जैसे भजन 110:4 में बताया गया है। पौलुस समझाता है कि यीशु मसीह, यहोवा की शपथ से एक याजक बना, मगर वह धरती पर नहीं बल्कि स्वर्ग में “सदा के लिए याजक बना रहता है।” इसलिए उसके याजकपद से मिलनेवाले फायदे सदा तक कायम रहेंगे।—इब्रा. 7:3, 15-17, 23-28.
29 यही नहीं, इब्रानियों 10:5-10 में बताया गया है कि परमेश्वर की मरज़ी थी कि यीशु त्याग की ज़िंदगी जीए और आखिरकार अपनी ज़िंदगी बलिदान करे। यीशु ने परमेश्वर की इस मरज़ी को दिल से कबूल किया और ठान लिया कि वह हर हाल में इसे पूरा करेगा। यीशु के बारे में यह बात भजन 40:6-8 में दर्ज़ दाऊद के शब्दों की बिना पर कही गयी है। अगर हम परमेश्वर की मंज़ूरी पाना चाहते हैं, तो हमें भक्ति दिखाने में यीशु की इस मिसाल पर ध्यान देना चाहिए और अपने अंदर भी ऐसी भावना पैदा करनी चाहिए।—भजन 116:14-19 भी देखिए।
30 भजन की किताब में ऐसी कुछ बातों के बारे में बहुत ब्यौरेदार भविष्यवाणियाँ दी गयी हैं कि यीशु कौन-सा रास्ता इख्तियार करेगा और आखिर में उसे किस तरह सूली पर बड़ी दर्दनाक मौत मारा जाएगा। इनमें से कुछ भविष्यवाणियाँ हैं: उसे पीने के लिए सिरका दिया जाता, उसके बाहरी वस्त्रों के लिए चिट्ठियाँ डाली जातीं, उसके हाथों और पैरों पर बड़ी बेरहमी से कीलें ठोंकी जातीं, उसका मज़ाक उड़ाया जाता और वह तड़पकर यह दर्द-भरी पुकार लगाता: “हे मेरे परमेश्वर, हे मेरे परमेश्वर, तू ने मुझे क्यों छोड़ दिया?” (मत्ती 27:34, 35, 43, 46; भज. 22:1, 7, 8, 14-18; 69:20, 21) जैसा यूहन्ना 19:23-30 से पता चलता है उस आखिरी वक्त में भी, यीशु को भजनों की किताब से बहुत दिलासा और मदद मिली होगी, क्योंकि वह जानता था कि इन वचनों में लिखी एक-एक बात का पूरा होना ज़रूरी है। यीशु को यह भी पता था कि भजनों की किताब में उसके पुनरुत्थान और महिमा पाने की भी भविष्यवाणी लिखी है। शायद उसके मन में यही सब बातें घूम रही थीं, जब वह अपनी मौत से पहलेवाली रात को अपने प्रेरितों के साथ ‘भजन गाने’ में अगुवाई कर रहा था।—मत्ती 26:30.
31 इस तरह, भजनों की किताब में साफ-साफ बताया गया है कि मसीह यीशु ही “दाऊद की सन्तान” और वह वंश है जो राज करेगा। आज इस वंश को स्वर्गीय सिय्योन में राजा और याजक का पद देकर ऊँचा किया गया है। मसीही यूनानी शास्त्र में, भजनों में दर्ज़ ढेरों भविष्यवाणियों का हवाला देकर बताया गया है कि ये यहोवा के इस अभिषिक्त जन पर कैसे पूरी हुईं। जगह की कमी की वजह से हम उन तमाम भविष्यवाणियों की ब्यौरेदार जानकारी नहीं दे सकते। फिर भी, कुछ और मिसालें यहाँ दी गयी हैं: भज. 78:2—मत्ती 13:31-35; भज. 69:4—यूह. 15:25; भज. 118:22, 23—मर. 12:10, 11 और प्रेरि. 4:11; भज. 34:20—यूह. 19:33, 36; भज. 45:6, 7—इब्रा. 1:8, 9. यीशु के अलावा, उसके सच्चे चेलों की कलीसिया के बारे में भी भजनों की किताब में भविष्यवाणी की गयी है। मगर ये भविष्यवाणियाँ एक-एक चेले के बारे में नहीं, बल्कि उनके पूरे समूह के बारे में हैं जिन्हें सभी जातियों से इकट्ठा करके परमेश्वर के अनुग्रह में लाया गया है ताकि वे यहोवा के नाम की स्तुति करने में हिस्सा लें।—भज. 117:1—रोमि. 15:11; भज. 68:18—इफि. 4:8-11; भज. 95:7-11—इब्रा. 3:7, 8; 4:7.
32 भजनों की किताब का अध्ययन करने पर यहोवा की हुकूमत के लिए हमारी कदरदानी और बढ़ जाती है। इस हुकूमत को वह अपने वादा किए हुए वंश और राज्य के वारिस के ज़रिए चलाता है और यही हुकूमत यहोवा की महिमा ज़ाहिर करेगी और उस पर लगाए हर झूठे कलंक को मिटा देगी। ऐसा हो कि हम भी उन वफादार जनों में गिने जाएँ जो ‘यहोवा के ऐश्वर्य की महिमा के प्रताप’ को देखकर खुशी से फूले नहीं समाते और जिनके बारे में भजन 145 कहता है: “वे तेरे राज्य की महिमा की चर्चा करेंगे, और तेरे पराक्रम के विषय में बातें करेंगे; कि वे आदमियों पर तेरे पराक्रम के काम और तेरे राज्य के प्रताप की महिमा प्रगट करें। तेरा राज्य युग युग का और तेरी प्रभुता सब पीढ़ियों तक बनी रहेगी।” (भज. 145:5, 11-13) इस 145वें भजन को “स्तुति। दाऊद का भजन” कहा जाता है। ठीक जैसे इस भजन में भविष्यवाणी की गयी थी, परमेश्वर ने मसीह को जिस राज्य का राजा ठहराया है, उसका प्रताप अभी से सभी देशों के लोगों को बताया जा रहा है। इस राज्य और इसके राजा के लिए हमें परमेश्वर का कितना एहसानमंद होना चाहिए! भजनों के आखिरी शब्द वाकई कितने सही हैं: “जितने प्राणी हैं सब के सब याह की स्तुति करें! याह की स्तुति करो!”—150:6.
[फुटनोट]
a इंसाइट ऑन द स्क्रिप्चर्स्, भाग 2, पेज 710-11.