अध्ययन लेख 23
“तेरा नाम पवित्र किया जाए”
“हे यहोवा, तेरा नाम सदा कायम रहता है।”—भज. 135:13.
गीत 10 यहोवा की जयजयकार करें!
लेख की एक झलकa
1-2. यहोवा के साक्षी किन दो बातों में गहरी दिलचस्पी रखते हैं?
हम यहोवा के साक्षी दो बातों में गहरी दिलचस्पी रखते हैं। एक यह कि पूरे विश्व पर हुकूमत करने का हक सिर्फ यहोवा को है। दूसरी बात यह कि उसका नाम पवित्र किया जाए। ये दोनों बहुत ज़रूरी बातें हैं।
2 हम सबने बाइबल से जाना है कि यहोवा के नाम को पवित्र करना यानी उस पर लगा कलंक मिटाना ज़रूरी है। हमने यह भी जाना कि यह साबित करना ज़रूरी है कि यहोवा के हुकूमत करने का तरीका ही सबसे बढ़िया है। मगर क्या यहोवा की हुकूमत को बुलंद करना और उसके नाम को पवित्र करना, दो अलग बातें हैं? जी नहीं। आइए जानें कि हम ऐसा क्यों कह सकते हैं।
3. यहोवा नाम से हमारे मन में कैसी तसवीर उभर आती है?
3 यहोवा सारे जहान का मालिक है। जब हम उसके नाम की बात करते हैं, तो हमारे मन में उसकी पूरी तसवीर उभर आती है। हमें न सिर्फ यह ध्यान में आता है कि वह कैसा परमेश्वर है, बल्कि यह भी कि वह कैसा राजा है। जब उसके नाम पर से कलंक मिटा दिया जाएगा, तो यह भी साबित हो जाएगा कि राज करने का उसका तरीका ही सबसे बेहतर है। तो हम कह सकते हैं कि यहोवा का नाम और उसकी हुकूमत, दोनों बातें एक-दूसरे से जुड़ी हुई हैं।—“एक अहम मसला, जिसमें और भी बातें शामिल हैं” नाम का बक्स पढ़ें।
4. (क) भजन 135:13 में परमेश्वर के नाम के बारे में क्या बताया गया है? (ख) इस लेख में हम किन सवालों के जवाब जानेंगे?
4 यहोवा नाम अपने आप में बेजोड़ है। (भजन 135:13 पढ़िए।) यह नाम क्यों इतना खास है? उस पर शुरू में कलंक कैसे लगाया गया? परमेश्वर कैसे उस कलंक को मिटाएगा? उसके नाम पर लगा कलंक मिटाने के लिए हम क्या कर सकते हैं? आइए इन सवालों के जवाब जानें।
नाम के मायने
5. परमेश्वर के नाम को पवित्र करने के बारे में कुछ लोग शायद क्या सोचें?
5 यीशु ने कहा कि परमेश्वर से प्रार्थना करते वक्त हमें सबसे पहले यह बिनती करनी चाहिए, “तेरा नाम पवित्र किया जाए।” (मत्ती 6:9) यीशु के कहने का क्या मतलब था? किसी चीज़ को पवित्र करने का मतलब है उसे शुद्ध करना। मगर कुछ लोग शायद सोचें, ‘परमेश्वर का नाम तो पहले से पवित्र और शुद्ध है। उसे पवित्र करने की क्या ज़रूरत है?’ इसका जवाब जानने के लिए एक पल के लिए सोचिए कि एक नाम के क्या मायने होते हैं।
6. एक इंसान का नाम क्यों इतना मायने रखता है?
6 एक नाम सिर्फ पुकारने के लिए या कागज़ पर लिखने के लिए नहीं होता। बाइबल कहती है, “एक अच्छा नाम बेशुमार दौलत से बढ़कर है।” (नीति. 22:1; सभो. 7:1) एक इंसान का नाम क्यों इतना मायने रखता है? वह इसलिए कि उसका नाम सुनते ही यह ध्यान में आता है कि उसने चार लोगों में कैसा नाम कमाया है। यह कोई मायने नहीं रखता कि एक इंसान का नाम कैसे लिखा जाता है या कैसे पुकारा जाता है बल्कि यह मायने रखता है कि उसका नाम सुनते ही लोग उसके बारे में क्या सोचते हैं।
7. लोग यहोवा का नाम कैसे बदनाम करते हैं?
7 अकसर लोग यहोवा के बारे में ऐसी बातें कहते हैं जो सच नहीं हैं। ऐसा करके वे असल में उसका नाम बदनाम करते हैं। सबसे पहले अदन बाग में यहोवा के नाम को बदनाम किया गया था। आइए देखें कि यह कैसे हुआ और इससे हमें क्या सीख मिलती है।
पहली बार परमेश्वर के नाम की बदनामी
8. (क) आदम और हव्वा क्या जानते थे? (ख) उनके बारे में क्या सवाल खड़े होते हैं?
8 आदम और हव्वा जानते थे कि परमेश्वर का नाम यहोवा है। वे यह भी जानते थे कि उसी ने सबकुछ बनाया है, उन्हें ज़िंदगी दी है, रहने के लिए खूबसूरत जगह दी है और एक-दूसरे के लिए बढ़िया जीवन-साथी दिया है। (उत्प. 1:26-28; 2:18) मगर क्या उन्होंने इस बारे में गहराई से सोचा कि यहोवा ने उनके लिए कितना कुछ किया है? क्या वे आगे भी यहोवा के एहसानमंद रहे? इन सवालों के जवाब जानने के लिए आइए देखें कि जब शैतान ने उन्हें फुसलाया, तो उन्होंने क्या किया।
9. (क) उत्पत्ति 2:16, 17 और 3:1-5 के मुताबिक यहोवा ने आदम और हव्वा से क्या कहा? (ख) शैतान ने सच्चाई को कैसे झूठ बना दिया?
9 उत्पत्ति 2:16, 17 और 3:1-5 पढ़िए। शैतान ने एक साँप के ज़रिए हव्वा से पूछा, “क्या यह सच है कि परमेश्वर ने तुमसे कहा है कि तुम इस बाग के किसी भी पेड़ का फल मत खाना?” इस सवाल में परमेश्वर के बारे में एक झूठ छिपा था। यह सवाल सुनकर हव्वा परमेश्वर के बारे में गलत सोचने लगी। वह कैसे? परमेश्वर ने तो उससे कहा था कि वे एक पेड़ को छोड़ बाकी सभी पेड़ों के फल खा सकते हैं। उस बाग में बेहिसाब किस्म के पेड़ थे। (उत्प. 2:9) यहोवा वाकई बहुत दरियादिल था। लेकिन इस सच्चाई को शैतान ने झूठ बना दिया। उसने हव्वा से सवाल करके यह जताया कि यहोवा दरियादिल नहीं है। उसकी बात सुनकर हव्वा के दिमाग में शक पैदा हो गया। उसने शायद सोचा होगा, ‘हो सकता है परमेश्वर हमें वह चीज़ नहीं देना चाहता जो हमारे लिए अच्छी है।’
10. (क) शैतान ने कैसे परमेश्वर के नाम पर सीधे-सीधे कलंक लगाया? (ख) इसका अंजाम क्या हुआ?
10 जब शैतान ने हव्वा से सवाल किया, तब तक हव्वा परमेश्वर की आज्ञा मान रही थी। उसने शैतान से वही कहा जो यहोवा ने बताया था। उसने यह भी कहा कि उस पेड़ को छूना तक मना है। हव्वा जानती थी कि यहोवा की आज्ञा तोड़ने से उन्हें मौत की सज़ा मिलेगी। मगर शैतान ने उससे कहा, “तुम हरगिज़ नहीं मरोगे।” (उत्प. 3:2-4) इस बार शैतान ने सीधे-सीधे झूठ बोल दिया। ऐसा करके उसने हव्वा के मन में यह बात डाल दी कि यहोवा झूठा है। इस तरह उसने परमेश्वर के नाम पर सीधे-सीधे कलंक लगाया। वह परमेश्वर को बदनाम करनेवाला बन गया। हव्वा ने शैतान की बात पर यकीन कर लिया और वह पूरी तरह उसके बहकावे में आ गयी। (1 तीमु. 2:14) उसने यहोवा से ज़्यादा शैतान पर भरोसा किया। इस भरोसे की वजह से उसने बहुत बड़ी गलती की। उसने यहोवा की आज्ञा तोड़ दी और मना किया गया फल खा लिया। बाद में उसने आदम को भी वह फल दिया।—उत्प. 3:6.
11. आदम और हव्वा क्या कर सकते थे? लेकिन उन्होंने असल में क्या किया?
11 अच्छा होता कि हव्वा शैतान से यह कहती, “मैं नहीं जानती तुम कौन हो। मैं बस यहोवा को जानती हूँ। वह मेरा पिता है और मुझे उस पर पूरा भरोसा है। मेरे और आदम के पास जो भी है वह सब उसी का दिया हुआ है। तुमने यहोवा के बारे में ऐसी बात कहने की जुर्रत कैसे की? चले जाओ यहाँ से!” काश हव्वा ऐसा कहती! यहोवा को यह देखकर कितना अच्छा लगता कि उसकी बेटी हव्वा उसकी तरफ से बोल रही है! (नीति. 27:11) मगर वह यहोवा की वफादार नहीं रही और न ही आदम वफादार रहा। उन दोनों को अपने पिता यहोवा से प्यार नहीं था। यही वजह है कि जब शैतान ने यहोवा के नाम पर कलंक लगाया, तो उन्होंने यहोवा के पक्ष में नहीं बोला।
12. (क) शैतान ने हव्वा के मन में शक के बीज कैसे बोए? (ख) आदम और हव्वा ने क्या नहीं किया?
12 जैसे हमने देखा, शैतान ने सबसे पहले हव्वा के मन में शक के बीज बोए। उसने उसके मन में यह बात डाल दी कि यहोवा एक अच्छा पिता नहीं है। इस तरह उसने यहोवा के नाम पर कलंक लगा दिया। आदम और हव्वा ने उस कलंक को मिटाने के लिए यहोवा के पक्ष में बात नहीं की। वे बस शैतान के बहकावे में आ गए और यहोवा के खिलाफ हो गए। शैतान आज भी यही तरीका आज़माता है। वह यहोवा के बारे में झूठी बातें फैलाता है। जो लोग उसकी बातों पर यकीन कर लेते हैं, वे यहोवा की हुकूमत ठुकरा देते हैं।
यहोवा अपने नाम को पवित्र करता है
13. यहेजकेल 36:23 के मुताबिक बाइबल का खास संदेश क्या है?
13 जब यहोवा के नाम पर कलंक लगाया गया, तो क्या वह चुपचाप देखता रहा? बिलकुल नहीं। पूरी बाइबल में यही बताया गया है कि यहोवा अपनी बदनामी दूर करने के लिए अब तक क्या-क्या करता आया है। (उत्प. 3:15) देखा जाए तो बाइबल का खास संदेश भी यही है कि यहोवा अपने बेटे के राज के ज़रिए अपने नाम को पवित्र करेगा और धरती पर दोबारा नेकी और शांति लाएगा। बाइबल से हम जान पाते हैं कि यहोवा कैसे अपने नाम को पवित्र करेगा।—यहेजकेल 36:23 पढ़िए।
14. (क) जब अदन में यहोवा से बगावत की गयी, तो उसने क्या किया? (ख) यहोवा ने जो किया उससे उसका नाम कैसे पवित्र हुआ?
14 शैतान हरगिज़ नहीं चाहता कि यहोवा का मकसद पूरा हो। इसे नाकाम करने की उसने लाख कोशिशें कीं, पर उसकी एक न चली। बाइबल से हम जान पाते हैं कि यहोवा ने अपना मकसद पूरा करने के लिए अब तक क्या किया है। उसके कामों से साबित होता है कि वह सबसे बढ़िया राजा है। यह सच है कि यहोवा को यह देखकर बहुत दुख हुआ कि शैतान ने उससे बगावत की और बहुत-से लोग उसकी तरफ हो गए। (भज. 78:40) जब उसके नाम पर कलंक लगाया गया, तो उसने मामले को बहुत अच्छी तरह सुलझाया। उसने सब्र रखा और बुद्धिमानी से काम लिया। उसने न्याय के स्तरों को माना और कई तरीकों से अपनी महाशक्ति भी दिखायी। सबसे खास बात यह है कि वह जो भी करता है उससे उसका प्यार झलकता है। (1 यूह. 4:8) जी हाँ, यहोवा ने अपने नाम को पवित्र करने के लिए बहुत कुछ किया है और वह अब भी कर रहा है।
15. (क) शैतान आज कैसे यहोवा को बदनाम कर रहा है? (ख) उसकी बातों पर यकीन करनेवाले क्या करते हैं?
15 शैतान आज भी यहोवा के नाम पर कलंक लगाता है। वह लोगों को यकीन दिलाने की कोशिश करता है कि परमेश्वर अन्यायी है, उसमें न शक्ति है न बुद्धि और वह हमसे प्यार नहीं करता। मिसाल के लिए, वह लोगों को यकीन दिलाता है कि कोई ईश्वर नहीं है। और जो लोग ईश्वर को मानते हैं, उन्हें यकीन दिलाता है कि ईश्वर के नियम बहुत सख्त हैं। वह लोगों को यह तक सिखाता है कि यहोवा बहुत कठोर है, इसलिए वह लोगों को नरक की आग में तड़पाता है। जब लोग ऐसी झूठी बातों पर यकीन कर लेते हैं, तो वे यहोवा को ठुकरा देते हैं। जब तक शैतान को नाश नहीं कर दिया जाता तब तक वह यहोवा को बदनाम करता रहेगा। वह आपको भी यहोवा से दूर ले जाने की कोशिश करेगा। क्या आप उसके बहकावे में आ जाएँगे?
आप किसका पक्ष लेंगे?
16. आदम और हव्वा ने जो नहीं किया, वह आप कैसे कर सकते हैं?
16 यहोवा ने अपरिपूर्ण इंसानों को भी यह मौका दिया है कि वे उसका नाम पवित्र करें। एक तरह से कहें तो आदम और हव्वा ने जो नहीं किया, वह आप कर सकते हैं। हालाँकि दुनिया ऐसे लोगों से भरी पड़ी है जो यहोवा को बदनाम करते हैं, मगर आप यहोवा के पक्ष में बोल सकते हैं। आप लोगों को बता सकते हैं कि वह पवित्र, नेक और भला परमेश्वर है और सबसे प्यार करता है। (यशा. 29:23) आप उसे अपना राजा मान सकते हैं। आप लोगों को बता सकते हैं कि उसके राज करने का तरीका ही सबसे सही है और सिर्फ उसी के राज में खुशी और शांति मिलेगी।—भज. 37:9, 37; 146:5, 6, 10.
17. दूसरों को अपने पिता का नाम बताने में यीशु ने कैसी मिसाल रखी?
17 जब हम परमेश्वर के नाम को पवित्र करते हैं, तो हम यीशु के नक्शे-कदम पर चल रहे होते हैं। (यूह. 17:26) यीशु ने न सिर्फ अपने पिता का नाम लिया बल्कि लोगों को यह भी बताया कि यहोवा किस तरह का परमेश्वर है। मिसाल के लिए, उसने फरीसियों को गलत ठहराया। फरीसियों ने लोगों को यहोवा के बारे में जो सिखाया, उससे लोगों को यही लगता था कि यहोवा कठोर है, हद-से-ज़्यादा की माँग करता है और हम कभी उसके करीब नहीं जा सकते। लेकिन इसके उलट यीशु ने सिखाया कि यहोवा हमसे उतना ही उम्मीद करता है जितना हम कर सकते हैं। उसने यह भी सिखाया कि वह सब्र रखता है, हमसे प्यार करता है और हमें माफ करता है। इतना ही नहीं, यीशु अपने पिता के जैसे गुण दर्शाता था और उसकी तरह लोगों के साथ पेश आता था। इससे लोग जान सके कि यहोवा असल में किस तरह का परमेश्वर है।—यूह. 14:9.
18. हम कैसे साबित कर सकते हैं कि शैतान ने यहोवा के बारे में जो भी बातें फैलायीं वे सब झूठ हैं?
18 यीशु की तरह हम भी लोगों को सिखा सकते हैं कि यहोवा कितना भला परमेश्वर है और वह हमसे कितना प्यार करता है। ऐसा करके हम साबित करते हैं कि शैतान ने यहोवा के बारे में जो भी बातें फैलायी हैं वे सब झूठ हैं। इस तरह परमेश्वर का नाम पवित्र होता है यानी लोगों के दिल में यहोवा के लिए आदर बढ़ता है। यही नहीं, भले ही हम अपरिपूर्ण हैं फिर भी हम यहोवा के गुण दर्शा सकते हैं। (इफि. 5:1, 2) हमारी बातों और हमारे व्यवहार से लोगों को यह साफ पता चलना चाहिए कि यहोवा असल में कैसा परमेश्वर है। ऐसा करने से यहोवा का नाम पवित्र होता है और लोगों के मन में उसके बारे में जो भी गलतफहमी है वह दूर हो जाती है। यहोवा के वफादार रहने से भी हम उसका नाम पवित्र करते हैं।—अय्यू. 27:5.
19. यशायाह 63:7 के मुताबिक लोगों को क्या सिखाना ज़्यादा ज़रूरी है?
19 यहोवा के नाम को पवित्र करने के लिए हम एक और काम कर सकते हैं। लोगों को सच्चाई सिखाते वक्त आम तौर पर हम इस बात पर ज़ोर देते हैं कि यहोवा को ही पूरे विश्व पर राज करने का हक है, इसलिए हमें उसके नियम मानने चाहिए। मगर इससे ज़्यादा यह सिखाना ज़रूरी है कि वे यहोवा से प्यार करें, उसे अपना पिता मानें और उसके वफादार रहें। यह हम कैसे कर सकते हैं? उन्हें सिखाते वक्त हम इस बात पर ज़ोर दे सकते हैं कि यहोवा में कितने मनभावने गुण हैं। हम उन्हें समझा सकते हैं कि जिस परमेश्वर का नाम यहोवा है वह असल में कैसा है। (यशायाह 63:7 पढ़िए।) जब लोग यहोवा के बारे में यह सब सीखेंगे, तो वे कभी यहोवा को नहीं छोड़ना चाहेंगे। वे उससे प्यार करेंगे और उसकी आज्ञा मानेंगे।
20. अगले लेख में क्या बताया जाएगा?
20 हमें इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि हम दूसरों को जो सिखाते हैं और खुद भी जो करते हैं, उससे यहोवा के नाम की महिमा हो और लोग उसकी तरफ खिंचे चले आएँ। हम यह कैसे कर सकते हैं? यह अगले लेख में बताया जाएगा।
गीत 2 यहोवा तेरा नाम
a इंसानों और स्वर्गदूतों के सामने कौन-सा अहम मसला है? यह मसला क्यों इतना अहम है? इस मसले को सुलझाने में हमारी क्या भूमिका है? इन सवालों के जवाब जानने से यहोवा के साथ हमारा रिश्ता मज़बूत होगा।
b तसवीर के बारे में: जब शैतान ने हव्वा से कहा कि परमेश्वर झूठा है, तो उसने परमेश्वर के नाम पर कलंक लगाया। सदियों से शैतान ने झूठी शिक्षाएँ फैलायी हैं। जैसे यह कि कोई परमेश्वर नहीं है और है भी, तो वह बहुत कठोर है।
c तसवीर के बारे में: एक भाई अध्ययन कराते समय यहोवा के गुणों पर ज़ोर दे रहा है।