अध्याय 18
“मेरे क्रोध की ज्वाला भड़क उठेगी”
अध्याय किस बारे में है: गोग के हमले से यहोवा का क्रोध कैसे भड़क उठेगा। हर-मगिदोन के दौरान यहोवा कैसे अपने लोगों को बचाएगा
1-3. (क) जब यहोवा के “क्रोध की ज्वाला” भड़क उठेगी, तो क्या होगा? (शुरूआती तसवीर देखें।) (ख) इस अध्याय में हम किस बारे में चर्चा करेंगे?
कल्पना कीजिए कि एक कमरे में कुछ भाई-बहन और बच्चे इकट्ठा हैं। वे सब मिलकर एक राज-गीत गाते हैं। गीत खत्म होने के बाद एक प्राचीन उन सबकी खातिर प्रार्थना करता है। वह यहोवा से गिड़गिड़ाकर मिन्नतें करता है कि वह उन सबकी जान बचाए। हालाँकि उन सबको पूरा यकीन है कि यहोवा उन्हें बचाए रखेगा मगर वे थोड़े घबराए हुए हैं। इस वक्त उन्हें बहुत हिम्मत की ज़रूरत है। बाहर से लोगों की चीख-पुकार सुनायी दे रही है और हर कहीं होहल्ला मचा हुआ है। आखिर हो क्या रहा है? हर-मगिदोन का युद्ध शुरू हो चुका है!—प्रका. 16:14, 16.
2 हर-मगिदोन में यहोवा बड़े “क्रोध” में आकर लोगों का नाश करेगा, न कि सिर्फ यूँ ही नाश करता जाएगा। (यहेजकेल 38:18 पढ़िए।) उसका क्रोध किसी एक सेना या राष्ट्र पर नहीं बल्कि दुनिया के कोने-कोने में रहनेवाले अनगिनत लोगों पर भड़क उठेगा। उस समय यहोवा के हाथों इतने सारे लोग मारे जाएँगे कि उनकी लाशें ‘धरती के एक कोने से दूसरे कोने तक पड़ी रहेंगी।’—यिर्म. 25:29, 33.
3 यहोवा तो सबसे प्यार करनेवाला परमेश्वर है, “दयालु और करुणा से भरा है” और ‘क्रोध करने में धीमा है,’ तो फिर क्यों उसके “क्रोध की ज्वाला” भड़क उठेगी? (निर्ग. 34:6; 1 यूह. 4:16) इस सवाल का जवाब जानने से हमें बहुत हिम्मत और दिलासा मिलेगा और प्रचार करने के लिए हमारा जोश बढ़ेगा। आइए देखें कैसे।
यहोवा के “क्रोध की ज्वाला” क्यों भड़क उठेगी?
4, 5. यहोवा के क्रोध और इंसानों के क्रोध में क्या फर्क है?
4 हमें पहले यह बात समझनी है कि यहोवा का क्रोध अपरिपूर्ण इंसानों के क्रोध जैसा नहीं होता। जब इंसान गुस्से से उबल पड़ता है, तो वह अपना आपा खो बैठता है और अपना गुस्सा उतारने के लिए कुछ भी कर बैठता है। कैन को ही लीजिए। वह यह देखकर “गुस्से से भर गया” था कि यहोवा ने उसका बलिदान ठुकरा दिया और हाबिल का मंज़ूर किया। अंजाम क्या हुआ? उसने अपने भाई हाबिल को मार डाला जो कि एक नेक इंसान था। (उत्प. 4:3-8; इब्रा. 11:4) दाविद को भी याद कीजिए। बाइबल कहती है कि वह यहोवा के दिल को भानेवाला इंसान था। (प्रेषि. 13:22) हालाँकि वह एक भला इंसान था मगर एक बार वह भी अपना आपा खो बैठा। जब उसने सुना कि नाबाल ने उसके बारे में और उसके आदमियों के बारे में बुरा-भला कहा है, तो उसने और उसके सैनिकों ने “अपनी-अपनी तलवार बाँध ली” और वे नाबाल के साथ-साथ उसके घराने के हर आदमी को मार डालने के लिए निकल पड़े। मगर फिर नाबाल की पत्नी अबीगैल ने दाविद और उसके आदमियों को किसी तरह मना लिया कि वे नाबाल से बदला न लें। (1 शमू. 25:9-14, 32, 33) अबीगैल अगर बीच-बचाव नहीं करती, तो दाविद के हाथों कितना बड़ा पाप हो जाता! इन वाकयों से पता चलता है कि इंसान के क्रोध का अकसर बुरा अंजाम होता है। इसीलिए यहोवा ने याकूब को यह लिखने के लिए प्रेरित किया, “इंसान के क्रोध का नतीजा परमेश्वर की नेकी नहीं होता।”—याकू. 1:20.
यहोवा हमेशा किसी वाजिब कारण से ही क्रोध करता है और उसे काबू में रखता है
5 लेकिन जहाँ तक यहोवा के क्रोध की बात है, वह हमेशा उसे काबू में रखता है और किसी वाजिब कारण से ही क्रोध करता है। यहाँ तक कि जब वह जलजलाहट से भर जाता है, तब भी वह सही काम करता है। अपने दुश्मनों का नाश करते समय भी वह “दुष्टों के साथ-साथ नेक लोगों को” नहीं मिटाता। (उत्प. 18:22-25) और यहोवा हमेशा सही कारणों से क्रोध करता है। आइए दो कारणों पर गौर करें और देखें कि इससे हम क्या सीख सकते हैं।
6. जब यहोवा के नाम की बदनामी होती है, तो वह क्या करता है?
6 कारण: जब यहोवा के नाम की बदनामी हो रही हो, तो उसका क्रोध भड़क उठता है। जो यहोवा के लोग होने का दावा करते हैं मगर दुष्ट कामों में लगे रहते हैं, वे उसके नाम की बदनामी करते हैं, इसलिए उन पर उसका गुस्सा भड़क उठता है और यह जायज़ भी है। (यहे. 36:23) जैसे हमने इस किताब के पिछले कुछ अध्यायों में सीखा था, इसराएल राष्ट्र ने बुरे काम करके यहोवा का नाम बदनाम कर दिया था। उस राष्ट्र के बुरे रवैए और दुष्ट कामों की वजह से यहोवा का गुस्सा भड़क उठा। मगर यहोवा ने कभी अपना संयम नहीं खोया। उसने अपने लोगों को उतनी ही सज़ा दी जितनी कि सही थी। (यिर्म. 30:11) और उन्हें सज़ा देने के बाद वह उनसे हमेशा नाराज़ नहीं रहा।—भज. 103:9.
7, 8. यहोवा इसराएलियों के साथ जिस तरह पेश आया, उससे हम क्या सीखते हैं?
7 सीख: यहोवा इसराएलियों के साथ जिस तरह पेश आया, उससे हमें एक कड़ी चेतावनी मिलती है। प्राचीन इसराएलियों की तरह हमें भी एक अनोखी आशीष मिली है। हम परमेश्वर के नाम से पहचाने जाते हैं। हम यहोवा के साक्षी हैं। (यशा. 43:10) इसलिए हमारी बोली और व्यवहार से या तो यहोवा के नाम की तारीफ होगी या बदनामी। हमें ध्यान रखना है कि हम जानबूझकर बुरे काम न करें, क्योंकि इससे यहोवा के नाम की बदनामी हो सकती है। अगर हम यहोवा के लोग होने का दावा करते हुए ऐसे काम करेंगे, तो यहोवा के क्रोध की चिंगारी ज़रूर भड़क उठेगी। वह आज नहीं तो कल अपने नाम की खातिर ज़रूर कार्रवाई करेगा।—इब्रा. 3:13, 15; 2 पत. 2:1, 2.
8 तो क्या हमें यह सोचकर यहोवा के करीब आने से डरना चाहिए कि उसके “क्रोध की ज्वाला” हम पर भड़क सकती है? जी नहीं, क्योंकि यहोवा सब्र रखता है और हमारी गलतियाँ माफ करता है। (यशा. 55:7; रोमि. 2:4) लेकिन ज़रूरत पड़ने पर वह सज़ा भी देता है। इन बातों पर ध्यान देने से यहोवा के लिए हमारे दिल में आदर बढ़ जाता है क्योंकि जो लोग ढीठ होकर पाप करते रहते हैं, उन पर उसका गुस्सा भड़क उठता है। वह ऐसे दुष्टों को अपने लोगों के बीच रहने की इजाज़त नहीं देता। (1 कुरिं. 5:11-13) यहोवा ने हमें साफ बताया है कि कौन-सी बातें उसे क्रोध दिलाती हैं। इसलिए हमें सावधान रहना है कि हम अपने अंदर ऐसा कोई रवैया पनपने न दें, न ही ऐसा कोई काम करें कि वह हम पर भड़क उठे।—यूह. 3:36; रोमि. 1:26-32; याकू. 4:8.
9, 10. (क) जब यहोवा के लोगों को खतरा हो, तो वह क्या करता है? (ख) यह बात किन घटनाओं से साबित होती है?
9 कारण: जब यहोवा के वफादार लोगों को खतरा हो, तो उसका क्रोध भड़क उठता है। यहोवा का क्रोध तब भी भड़क उठता है जब दुश्मन उसके लोगों पर हमला करते हैं। वह अपने लोगों को बचाना चाहता है जो उसके साए में पनाह लिए हुए हैं। याद कीजिए, जब इसराएली मिस्र से बाहर निकले, तो फिरौन और उसकी ताकतवर सेना उन पर हमला करने चली आयी थी। उन्हें लगा कि इसराएली लाल सागर के किनारे दुबके हुए हैं और एकदम लाचार हैं, इसलिए वे आराम से उन्हें अपने कब्ज़े में कर सकते हैं। लेकिन जैसे ही वे सागर के बीच सूखी ज़मीन पर इसराएलियों का पीछा करने लगे, यहोवा ने उनके रथों के पहिए उखाड़ दिए और उन्हें समुंदर में झटक दिया। उनमें से “एक भी ज़िंदा नहीं बचा।” (निर्ग. 14:25-28) यहोवा का गुस्सा मिस्रियों पर इसलिए भड़क उठा क्योंकि वह अपने लोगों से प्यार करता था। उसका ‘प्यार अटल’ था।—निर्गमन 15:9-13 पढ़िए।
10 हिजकियाह के दिनों में भी कुछ ऐसा ही हुआ। अश्शूरी सेना उस ज़माने की सबसे क्रूर और ताकतवर सेना थी। जब उन्होंने यरूशलेम को चारों तरफ से घेर लिया था, तो ऐसे हालात उठे कि यहोवा के सेवक तड़प-तड़पकर भयानक मौत मरते। (2 राजा 18:27) मगर यहोवा ने अपने लोगों को बचाने के लिए कदम उठाया। उसने सिर्फ एक स्वर्गदूत को भेजा जिसने एक ही रात में 1,85,000 अश्शूरी सैनिकों को मार डाला। (2 राजा 19:34, 35) कल्पना कीजिए कि अगली सुबह अश्शूरी सेना की छावनी में कैसा मंज़र रहा होगा। उनके भाले, उनकी ढालें और तलवारें यूँ की यूँ पड़ी हैं। सैनिकों को जगाने के लिए न तुरहियाँ फूँकी जाती हैं, न ही टुकड़ियों को कमान देने के लिए बिगुल बजाया जाता है। पूरी छावनी में एक अजीब-सा सन्नाटा छाया हुआ है और जहाँ देखो वहाँ लाशें पड़ी हैं।
11. बीते ज़माने की घटनाओं से हमें कैसे हिम्मत और दिलासा मिलता है?
11 सीख: इन घटनाओं से पता चलता है कि जब यहोवा के लोगों को कोई खतरा होता है, तो वह कैसे उन्हें बचाता है। यह हमारे दुश्मनों के लिए एक कड़ी चेतावनी है कि अगर वे यहोवा को गुस्सा दिलाएँ, तो उनका क्या हश्र होगा। “जीवित परमेश्वर के हाथों में पड़ना भयानक बात है।” (इब्रा. 10:31) लेकिन जहाँ तक हमारी बात है, इन घटनाओं से हमें दिलासा और हिम्मत मिलती है। हमें यह जानकर दिलासा मिलता है कि हमारा सबसे बड़ा दुश्मन शैतान कभी जीत नहीं पाएगा। उसके राज का जो “कम वक्त” बाकी रह गया है, वह बहुत जल्द खत्म हो जाएगा। (प्रका. 12:12) तब तक आइए हम हिम्मत से यहोवा की सेवा करते रहें और भरोसा रखें कि न कोई इंसान, न कोई संगठन, न ही कोई सरकार हमें यहोवा की इच्छा पूरी करने से रोक सकती है। (भजन 118:6-9 पढ़िए।) प्रेषित पौलुस को भी इस बात का यकीन था, इसलिए उसने ईश्वर-प्रेरणा से लिखा, “अगर परमेश्वर हमारी तरफ है, तो कौन हमारे खिलाफ होगा?”—रोमि. 8:31.
12. महा-संकट के दौरान यहोवा का क्रोध क्यों भड़क उठेगा?
12 आनेवाले महा-संकट में यहोवा हमें ज़रूर बचाएगा, ठीक जैसे उसने बीते ज़माने में अपने लोगों को बचाया था। जब इसराएलियों को पकड़ने के लिए मिस्री उनका पीछा करने लगे और इसराएली बुरी तरह फँस गए थे, तो यहोवा ने उनकी रक्षा की। बाद में जब अश्शूरियों ने यरूशलेम की घेराबंदी कर दी और शहर के अंदर लोग फँस गए, तो यहोवा ने उन्हें भी बचा लिया। उसी तरह जब हमारे दुश्मन हमें मिटाने की कोशिश करेंगे, तो यहोवा हमारी हिफाज़त करेगा, क्योंकि वह हमसे बहुत प्यार करता है। दुश्मनों पर उसके क्रोध की ज्वाला भड़क उठेगी। हम पर हमला करनेवाले एक तरह से यहोवा की आँख की पुतली को छू रहे होंगे। वे बहुत बड़ी बेवकूफी कर रहे होंगे, क्योंकि यहोवा फौरन कदम उठाएगा और उनका नाश कर देगा। (जक. 2:8, 9) उस वक्त इतने बड़े पैमाने पर कत्लेआम होगा जितना कि इतिहास में पहले कभी नहीं हुआ। लेकिन परमेश्वर की यह जलजलाहट देखकर दुश्मन यह नहीं कह पाएँगे कि उनके साथ ऐसा क्यों हो रहा है। वह क्यों?
यहोवा ने कैसी चेतावनियाँ दी हैं?
13. यहोवा ने कौन-सी चेतावनियाँ दी हैं?
13 यहोवा “क्रोध करने में धीमा” है, इसलिए जो लोग उसका विरोध करते हैं और उसके लोगों को मिटाने की कोशिश करते हैं, उन्हें उसने कई बार चेतावनी दी है कि वह उनका नाश कर देगा। (निर्ग. 34:6, 7) उसने अपने सेवकों के ज़रिए उन्हें आनेवाले महायुद्ध की चेतावनी दी है। जैसे भविष्यवक्ता यिर्मयाह, यहेजकेल, दानियेल और मसीह यीशु और प्रेषित पतरस, पौलुस और यूहन्ना के ज़रिए।—यह बक्स देखें: “यहोवा ने आनेवाले महायुद्ध की चेतावनी दी है।”
14, 15. यहोवा ने कौन-से काम करवाए हैं और क्यों?
14 यहोवा ने ये चेतावनियाँ बाइबल में दर्ज़ करवायी हैं। उसने इस बात का भी ध्यान रखा है कि बाइबल का ज़्यादा-से-ज़्यादा भाषाओं में अनुवाद किया जाए और यह लोगों में बाँटी जाए। दुनिया-भर में उसने अपने सेवकों की एक सेना खड़ी की है। वे खुद आगे बढ़कर लोगों को सिखाते हैं कि वे कैसे परमेश्वर से सुलह कर सकते हैं। वे ‘यहोवा के महान दिन’ की चेतावनी भी देते हैं। (सप. 1:14; भज. 2:10-12; 110:3) यहोवा ने यह काम करने के लिए अपने सेवकों को उभारा है। वे बाइबल की समझ देनेवाले प्रकाशनों का सैकड़ों भाषाओं में अनुवाद करते हैं और लोगों को यहोवा के वादों के बारे में बताने और अंत की चेतावनी देने में हर साल लाखों घंटे बिताते हैं।
15 यहोवा यह सारा काम इसलिए करवा रहा है “क्योंकि वह नहीं चाहता कि कोई भी नाश हो बल्कि यह कि सबको पश्चाताप करने का मौका मिले।” (2 पत. 3:9) यह हमारे लिए कितनी बड़ी बात है कि हम अपने परमेश्वर की तरफ से लोगों को सिखाते हैं जो सबसे प्यार करता है और सब्र रखता है। उसका संदेश दूर-दूर तक पहुँचाने में हम भी एक छोटी-सी भूमिका अदा करते हैं। लेकिन जो लोग आज समय रहते यहोवा की चेतावनियों पर ध्यान नहीं देते, उन्हें बाद में बदलने का और मौका नहीं मिलेगा।
यहोवा के क्रोध की ज्वाला कब “भड़क उठेगी”?
16, 17. क्या यहोवा ने महायुद्ध का दिन तय कर दिया है? समझाइए।
16 यहोवा ने तय कर दिया है कि हर-मगिदोन का महायुद्ध कब होगा। वह पहले से जानता है कि दुश्मन उसके लोगों पर कब हमला करेंगे। (मत्ती 24:36) वह कैसे जानता है?
17 जैसे हमने पिछले अध्याय में देखा था, यहोवा गोग से कहता है, ‘मैं तेरे जबड़ों में काँटे डालूँगा।’ वह घटनाओं का रुख इस तरह मोड़ेगा कि दुनिया के राष्ट्र उसके लोगों पर हमला करेंगे जिसके बाद हर-मगिदोन होगा। (यहे. 38:4) इसका यह मतलब नहीं कि यहोवा उन्हें हमला करने के लिए उकसाएगा या उनसे ज़बरदस्ती हमला करवाएगा। इससे हमें बस यह संकेत मिलता है कि यहोवा जानता है कि उसके दुश्मनों के मन में क्या चल रहा है और उस वक्त जो हालात होंगे उसमें वे क्या करेंगे।—भज. 94:11; यशा. 46:9, 10; यिर्म. 17:10.
18. इंसान सर्वशक्तिमान परमेश्वर से लड़ने का जोखिम क्यों उठाएँगे?
18 अगर यहोवा अपने विरोधियों को न हमला करने के लिए उकसाएगा, न ही उनसे ज़बरदस्ती हमला करवाएगा, तो फिर क्यों ये अदना इंसान जानबूझकर सर्वशक्तिमान परमेश्वर से लड़ने का जोखिम उठाएँगे? एक वजह यह है कि शायद उस समय तक परमेश्वर के विरोधी मान बैठेंगे कि कोई ईश्वर नहीं है और अगर है भी तो उसे इंसानों से कोई लेना-देना नहीं है। शायद वे इसलिए ऐसा सोचेंगे क्योंकि तब तक वे सभी झूठे धर्मों को मिटा चुके होंगे। वे शायद सोचेंगे कि अगर एक ईश्वर होता, तो वह ज़रूर इन धर्मों को मिटने से बचाता, क्योंकि इन धर्मों में ईश्वर को मानने का बढ़ावा दिया जाता था। वे समझ नहीं पाएँगे कि यहोवा ने ही उनके मन में यह बात डाली थी कि वे उन धर्मों को मिटा दें जो उसके नाम को बदनाम करते थे।—प्रका. 17:16, 17.
19. झूठे धर्मों के नाश के बाद क्या हो सकता है?
19 झूठे धर्मों के नाश के कुछ समय बाद यहोवा शायद अपने लोगों को एक कड़ा संदेश सुनाने के लिए कहेगा। प्रकाशितवाक्य में लिखा है कि यह संदेश ओलों की बारिश जैसा होगा जिसमें हर ओले का वज़न करीब 20 किलो है। (प्रका. 16:21, फु.) शायद यह ऐलान किया जाएगा कि राजनैतिक और व्यापार व्यवस्था का अंत होनेवाला है। दुश्मन इस संदेश को बरदाश्त नहीं कर पाएँगे, इसलिए वे परमेश्वर की निंदा करने लगेंगे। शायद यही संदेश राष्ट्रों को भड़काएगा और वे परमेश्वर के लोगों पर चौतरफा हमला करेंगे ताकि उनका मुँह हमेशा के लिए बंद कर दें। वे सोचेंगे कि हम लाचार और बेसहारा हैं, इसलिए वे चुटकियों में हमारा नामो-निशान मिटा सकते हैं। लेकिन यह उनकी बहुत बड़ी भूल होगी!
यहोवा अपना क्रोध कैसे प्रकट करेगा?
20, 21. (क) गोग कौन है? (ख) उसका क्या होगा?
20 हमने इस किताब के अध्याय 17 में देखा था कि यहेजकेल ने जिस “मागोग देश के गोग” की बात की, वह राष्ट्रों का एक गठबंधन होगा जो हम पर हमला करेगा। (यहे. 38:2) लेकिन इन राष्ट्रों की एकता बस नाम के वास्ते होगी। भले ही दिखने में उनका गठबंधन बहुत मज़बूत नज़र आएगा, मगर हमेशा की तरह उनमें होड़ की भावना, घमंड और अपने देश को ऊँचा उठाने का जुनून रहेगा। इसलिए यहोवा बड़ी आसानी से उन्हें एक-दूसरे के खिलाफ कर देगा। तब हर कोई “अपने ही भाई पर” तलवार चलाएगा यानी वे एक-दूसरे पर टूट पड़ेंगे। (यहे. 38:21) लेकिन राष्ट्रों का नाश इंसानों के हाथों नहीं होगा।
21 इससे पहले कि हमारे दुश्मनों का नाश हो, वे इंसान के बेटे की निशानी देखेंगे। (मत्ती 24:30) शायद इसका यह मतलब है कि वे यहोवा और यीशु की महा-शक्ति का एक ज़बरदस्त प्रदर्शन देखेंगे और यह नज़ारा उन्हें बुरी तरह हिलाकर रख देगा। जैसे यीशु ने कहा था, “धरती पर और क्या-क्या होगा, इस चिंता और डर के मारे लोगों के जी में जी न रहेगा।” (लूका 21:25-27) तब जाकर उनके होश ठिकाने आएँगे और उन्हें एहसास होगा कि उन्होंने यहोवा के लोगों पर हमला करके कितनी बड़ी गलती की है। उन्हें मानना पड़ेगा कि यहोवा ही सृष्टिकर्ता है। उन्हें जानना होगा कि वह सेनाओं का परमेश्वर है जिसकी कमान के नीचे स्वर्ग की विशाल सेना है। (भज. 46:6-11; यहे. 38:23) बेशक उस वक्त यहोवा स्वर्ग की सेना और प्राकृतिक शक्तियों का ऐसे इस्तेमाल करेगा कि उसके वफादार लोगों की जान बच जाए और दुश्मनों का सफाया हो जाए।—2 पतरस 2:9 पढ़िए।
22, 23. (क) परमेश्वर के लोगों को कौन बचाएगा? (ख) उन्हें बचानेवाले इस काम के बारे में कैसा महसूस करेंगे?
यहोवा के दिन के बारे में हमने जो जाना, उसे ध्यान में रखते हुए हमें क्या करना चाहिए?
22 ज़रा सोचिए, यीशु परमेश्वर के दुश्मनों का नाश करने और यहोवा के सेवकों को बचाने के लिए कितना बेसब्र होगा। यह भी सोचिए कि उस वक्त अभिषिक्त जन भी कितने जोश से भरे हुए होंगे। हर-मगिदोन शुरू होने से कुछ समय पहले, बचे हुए सभी अभिषिक्त जनों को स्वर्ग उठा लिया जाएगा ताकि सभी 1,44,000 जन यीशु के साथ हर-मगिदोन की लड़ाई लड़ सकें। (प्रका. 17:12-14) तब तक कई दूसरी भेड़ों के साथ अभिषिक्त जनों की गहरी दोस्ती हो चुकी होगी, क्योंकि उन्होंने इन आखिरी दिनों में साथ मिलकर परमेश्वर की सेवा की होगी। स्वर्ग में अभिषिक्त जनों के पास काफी अधिकार और शक्ति होगी, इसलिए वे उन लोगों को बचा पाएँगे जिन्होंने मुसीबतों में उनका साथ दिया होगा।—मत्ती 25:31-40.
23 यीशु की सेना में स्वर्गदूत भी होंगे। (2 थिस्स. 1:7; प्रका. 19:14) उन्होंने पहले ही शैतान और उसके दूतों को स्वर्ग से खदेड़ने में यीशु का साथ दिया है। (प्रका. 12:7-9) उन्होंने धरती पर उन लोगों को इकट्ठा करने में भी हाथ बँटाया है जो यहोवा की उपासना करना चाहते हैं। (प्रका. 14:6, 7) ज़ाहिर है कि यहोवा अपने वफादार लोगों की रक्षा करने के लिए इन स्वर्गदूतों को भेजेगा। यहोवा की पूरी सेना को फख्र महसूस होगा कि उन्हें उसके दुश्मनों का नाश करने और उसके नाम को बुलंद और पवित्र करने का मौका दिया गया है।—मत्ती 6:9, 10.
24. बड़ी भीड़ के लोग कैसा महसूस करेंगे?
24 जब ऐसी ताकतवर सेना पूरे जोश से परमेश्वर के लोगों को बचाने के लिए तैयार है, तो हमें घबराने की कोई ज़रूरत नहीं होगी। उस वक्त बड़ी भीड़ के लोग ‘सिर उठाकर सीधे खड़े होंगे, क्योंकि उनके छुटकारे का वक्त पास आ रहा होगा।’ (लूका 21:28) तो यह कितना ज़रूरी है कि यहोवा का दिन आने से पहले हम ज़्यादा-से-ज़्यादा लोगों को उसके बारे में सिखाएँ। तब वे भी हमारे पिता यहोवा के करीब आ सकेंगे जो बहुत दयालु है और अपने लोगों की रक्षा करता है।—सपन्याह 2:2, 3 पढ़िए।
25. अगले अध्याय में हम किस बारे में बात करेंगे?
25 इंसान जब भी आपस में युद्ध करते हैं, तो उसके बाद हर कहीं दुख और मातम का माहौल छा जाता है और सबकुछ अस्त-व्यस्त हो जाता है। लेकिन हर-मगिदोन के बाद हर कहीं अच्छी व्यवस्था और खुशहाली होगी। जब यहोवा का क्रोध शांत हो जाएगा, उसके योद्धा अपनी तलवारें वापस म्यान में रख लेंगे और महायुद्ध का शोरगुल थम जाएगा, तो धरती का नज़ारा कैसा होगा? अगले अध्याय में हम उस सुनहरे भविष्य के बारे में बात करेंगे।