अध्याय सत्रह
“देख! मैं तो यहोवा की दासी हूँ!”
1, 2. (क) मरियम के घर आए मेहमान ने उससे क्या कहा? (ख) मरियम कैसे ज़िंदगी के दोराहे पर खड़ी थी?
मरियम हैरत-भरी नज़रों से अपने घर आए मेहमान को देखती रही। उसने मरियम से न तो उसके पिता के बारे में पूछा, न ही उसकी माँ के बारे में क्योंकि वह उसी से मिलने आया था। वह नासरत का रहनेवाला नहीं था, वरना मरियम उसे पहचान लेती। नासरत इतना छोटा शहर था कि वहाँ हर कोई एक-दूसरे को जानता था और नए आदमी झट पहचान लिए जाते थे। और यह आदमी बहुत ही अलग दिख रहा था! इसके अलावा, उसने मरियम से ऐसी बात कही जो पहले कभी किसी ने नहीं कही थी। उसने कहा, “खुश रह! परमेश्वर की बड़ी आशीष तुझ पर है। यहोवा तेरे साथ है।”—लूका 1:26-28 पढ़िए।
2 बाइबल हमें इस तरह मरियम का परिचय देती है, जो गलील के नासरत के रहनेवाले एली की बेटी थी। इस वक्त मरियम एक तरह से ज़िंदगी के दोराहे पर खड़ी थी, क्योंकि उसे एक अहम फैसला करना था। उसकी मँगनी यूसुफ नाम के आदमी से हो चुकी थी जो एक बढ़ई था। वह अमीर तो नहीं था, मगर उसे परमेश्वर पर मज़बूत विश्वास था। मरियम को अंदाज़ा था कि उसकी आगे की ज़िंदगी कैसी होगी। यूसुफ के साथ अपना परिवार बसाकर और उसके सुख-दुख का साथी बनकर वह एक साधारण-सी ज़िंदगी गुज़ारती। मगर अचानक आए इस मेहमान ने परमेश्वर की तरफ से उसे एक ऐसी ज़िम्मेदारी दी जिससे उसकी ज़िंदगी बदल गयी।
3, 4. (क) मरियम को अच्छी तरह जानने के लिए हमें कौन-सी बातें भुलानी होंगी? (ख) हमें किस बात पर गौर करना होगा?
3 कई लोग यह जानकर ताज्जुब करते हैं कि बाइबल मरियम के बारे में ज़्यादा जानकारी नहीं देती। यह उसकी परवरिश और उसके स्वभाव के बारे में बहुत कम बताती है और उसके रंग-रूप के बारे में तो कुछ भी नहीं बताती। फिर भी यह मरियम के बारे में जितनी जानकारी देती है, उससे हम उसके बारे में बहुत कुछ जान सकते हैं।
4 लेकिन इसके लिए ज़रूरी है कि हम उन धारणाओं को अपने दिमाग से निकाल दें, जो धर्मों में उसके बारे में सिखायी जाती हैं। अकसर तसवीरों, संगमरमर की तराशी या मिट्टी से बनी मूर्तियों में मरियम को जिस तरह दिखाया जाता है, उसे हमें भुला देना होगा। हमें उन शिक्षाओं को भी भुलाना होगा जिनकी वजह से मरियम को “परमेश्वर की माता” और “स्वर्ग की रानी” जैसी बड़ी-बड़ी उपाधियाँ दी गयी हैं। तो आइए गौर करें कि बाइबल मरियम के बारे में असल में क्या बताती है। यह हमें मरियम के विश्वास के बारे में अनमोल जानकारी देती है और सिखाती है कि हम उसकी तरह विश्वास कैसे बढ़ा सकते हैं।
एक स्वर्गदूत मिलने आया
5. (क) जिब्राईल का नमस्कार सुनकर मरियम पर जो असर हुआ उससे हमें मरियम के बारे में क्या पता चलता है? (ख) हम मरियम से कौन-सी अहम बात सीखते हैं?
5 मरियम के घर आया मेहमान कोई इंसान नहीं बल्कि जिब्राईल स्वर्गदूत था। जब उसने मरियम से कहा कि “परमेश्वर की बड़ी आशीष तुझ पर है” तो “वह बहुत घबरा गयी” और सोचने लगी कि ऐसे नमस्कार का क्या मतलब हो सकता है! (लूका 1:29) स्वर्गदूत ने मरियम से यहोवा परमेश्वर की आशीष की बात कही, जो मरियम के लिए बहुत अहमियत रखती थी। उसने कभी घमंड से भरकर यह नहीं सोचा कि उस पर पहले से ही परमेश्वर की आशीष है। उसी तरह हमें भी यह मानकर नहीं चलना चाहिए कि हम पर तो पहले ही यहोवा की आशीष है बल्कि नम्रता से उसकी आशीष पाने के लिए मेहनत करनी चाहिए। परमेश्वर घमंडियों का विरोध करता है, मगर दीन और नम्र लोगों से प्यार करता और उनका साथ देता है।—याकू. 4:6.
मरियम ने घमंड से भरकर यह नहीं सोचा कि उस पर पहले ही परमेश्वर की आशीष है
6. स्वर्गदूत ने मरियम को किस सम्मान के बारे में बताया?
6 मरियम में ऐसी नम्रता होना ज़रूरी भी था क्योंकि स्वर्गदूत ने उसे मिलनेवाले एक ऐसे सम्मान के बारे में बताया जो उसने कभी सोचा भी नहीं होगा। जिब्राईल ने उसे बताया कि वह एक बेटे को जन्म देगी जो दुनिया का सबसे महान इंसान होगा। उसने कहा, “यहोवा परमेश्वर उसके पुरखे दाविद की राजगद्दी उसे देगा। वह राजा बनकर याकूब के घराने पर हमेशा तक राज करेगा और उसके राज का कभी अंत नहीं होगा।” (लूका 1:32, 33) परमेश्वर ने दाविद से 1,000 साल पहले वादा किया था कि उसका एक वंशज हमेशा तक राज करेगा। मरियम परमेश्वर के इस वादे के बारे में ज़रूर जानती होगी। (2 शमू. 7:12, 13) इससे पता चलता है कि मरियम का होनेवाला बेटा मसीहा होगा, जिसके लिए परमेश्वर के लोग सदियों से आस लगाए हुए थे!
7. (क) मरियम के सवाल से उसके बारे में क्या पता चलता है? (ख) जवान लोग मरियम से क्या सीख सकते हैं?
7 स्वर्गदूत ने यह भी कहा कि उसका बेटा “परम-प्रधान का बेटा कहलाएगा।” लेकिन भला धरती पर रहनेवाली एक औरत परमेश्वर के बेटे को कैसे जन्म दे सकती है? और मरियम के लिए तो एक बच्चे को जन्म देना ही नामुमकिन था क्योंकि यूसुफ के साथ उसकी सिर्फ मँगनी हुई थी, शादी नहीं। उसने स्वर्गदूत से साफ-साफ पूछा, “मुझे बच्चा कैसे हो सकता है, मैं तो कुँवारी हूँ?” (लूका 1:34) गौर कीजिए, मरियम को यह बताने में ज़रा भी शर्म नहीं महसूस हुई कि “मैंने किसी आदमी के साथ यौन-संबंध नहीं रखे हैं।” (फुटनोट) इसके बजाय, उसे गर्व था कि उसका चालचलन शुद्ध है। आज देखा जाए तो कई लड़के-लड़कियाँ शादी से पहले ही संबंध रखने के लिए आतुर रहते हैं और जो ऐसा नहीं करते वे उनका मज़ाक उड़ाते हैं। दुनिया वाकई बदल चुकी है। मगर यहोवा बदला नहीं है। (मला. 3:6) मरियम के दिनों की तरह यहोवा आज भी ऐसे लोगों की कदर करता है जो उसके स्तरों को मानकर शुद्ध चालचलन बनाए रखते हैं।—इब्रानियों 13:4 पढ़िए।
8. मरियम एक परिपूर्ण बच्चे को कैसे जन्म दे सकती थी?
8 एक और बात, भले ही मरियम परमेश्वर की एक वफादार सेवक थी मगर वह परिपूर्ण नहीं थी। फिर वह परमेश्वर के परिपूर्ण बेटे को कैसे जन्म दे सकती थी? जिब्राईल ने समझाया, “परमेश्वर की पवित्र शक्ति तुझ पर आएगी और परम-प्रधान की शक्ति तुझ पर छा जाएगी। इसलिए जो पैदा होगा वह पवित्र और परमेश्वर का बेटा कहलाएगा।” (लूका 1:35) पवित्र का मतलब है, “साफ,” “शुद्ध” और “पावन।” जहाँ तक इंसानों की बात है, वे अपवित्र या पापी हैं और अपने बच्चों को भी विरासत में यही पाप देते हैं। मगर इस मामले में यहोवा एक अनोखा चमत्कार करनेवाला था। वह स्वर्ग से अपने बेटे का जीवन मरियम के गर्भ में डाल देता और फिर उसकी पवित्र शक्ति मरियम के ऊपर “छा” जाती ताकि उसके पाप का बच्चे पर कोई असर न पड़े। क्या मरियम ने स्वर्गदूत के वादे पर भरोसा किया? उसने क्या जवाब दिया?
मरियम का जवाब
9. (क) मरियम के साथ जो हुआ उस पर शक करना क्यों सही नहीं है? (ख) जिब्राईल ने कैसे मरियम का विश्वास मज़बूत किया?
9 कई लोगों को, यहाँ तक कि ईसाईजगत के कुछ धर्म-शास्त्रियों को भी यह मानना मुश्किल लगता है कि एक लड़की बिना किसी के साथ संबंध रखे कैसे गर्भवती हो सकती है। इतना सारा ज्ञान पाने के बाद भी वे इस छोटी-सी सच्चाई को नहीं समझ पाते जो जिब्राईल ने कही, “परमेश्वर के मुँह से निकली कोई भी बात नामुमकिन नहीं हो सकती।” (लूका 1:37) कुँवारी लड़की मरियम ने जिब्राईल की बातों पर ज़रा भी शक नहीं किया, क्योंकि उसे परमेश्वर पर मज़बूत विश्वास था। मगर इसका यह मतलब नहीं कि उसने आँख मूँदकर उसकी बात पर यकीन कर लिया। किसी भी समझदार इंसान की तरह मरियम को भी पक्के सबूतों की ज़रूरत थी। और उसके विश्वास को बढ़ाने के लिए जिब्राईल उसे और भी सबूत देने को तैयार था। उसने मरियम को उसकी बुज़ुर्ग रिश्तेदार इलीशिबा के बारे में बताया जो एक बाँझ थी। उसने बताया कि परमेश्वर के चमत्कार से वह गर्भवती हो गयी है।
10. हमें यह क्यों नहीं सोचना चाहिए कि मरियम को जो सम्मान मिला था उसे स्वीकार करना आसान था?
10 अब मरियम क्या करती? उसे एक ज़िम्मेदारी मिली थी और उसे सबूत भी मिला था कि जिब्राईल ने जो-जो कहा है वह सब परमेश्वर करनेवाला है। हालाँकि उसे इतना बड़ा सम्मान मिला था, मगर इसका मतलब यह नहीं कि उसे कोई चिंता नहीं हुई होगी या मुश्किलों का सामना नहीं करना पड़ा होगा। सबसे पहले अपने मँगेतर यूसुफ के बारे में सोचकर उसे चिंता हुई होगी। जब उसे पता चलेगा कि वह पेट से है तो क्या वह उससे शादी करने के लिए तैयार होगा? उसने यह भी सोचा होगा कि वह इतनी बड़ी ज़िम्मेदारी कैसे निभाएगी। आखिर उसके गर्भ में जो पलनेवाला है वह परमेश्वर का सबसे प्यारा बेटा है! परमेश्वर की सारी सृष्टि में सबसे अनमोल ज़िंदगी उसी बेटे की है। जब वह पैदा होगा तो उसे इस बुरी दुनिया में उस नन्ही-सी जान की देखभाल करनी होगी और उसे खतरों से बचाए रखना होगा। वाकई, यह ज़िम्मेदारी चुनौतियों से भरी थी!
11, 12. (क) मज़बूत विश्वास रखनेवाले आदमी भी परमेश्वर की दी हुई ज़िम्मेदारियाँ कबूल करने से क्यों झिझके थे? (ख) जिब्राईल से कही बातों से मरियम के बारे में क्या पता चलता है?
11 बाइबल बताती है कि मज़बूत विश्वास रखनेवाले आदमी भी परमेश्वर से मिली भारी ज़िम्मेदारियों को कबूल करने से झिझके थे। मिसाल के लिए, मूसा ने परमेश्वर की तरफ से बोलने का काम करने से इनकार कर दिया था क्योंकि उसने कहा कि वह बोलने में निपुण नहीं है। (निर्ग. 4:10) यिर्मयाह ने कहा कि “मैं बस एक लड़का हूँ,” यानी उसे लगा कि परमेश्वर का दिया काम करने के लिए वह अभी बहुत छोटा है। (यिर्म. 1:6) और योना तो परमेश्वर के दिए काम से पीछा छुड़ाकर भाग गया था! (योना 1:3) लेकिन मरियम ने क्या किया?
12 उसने जिब्राईल से कहा, “देख! मैं तो यहोवा की दासी हूँ! तूने जैसा कहा है, वैसा ही मेरे साथ हो।” (लूका 1:38) इससे पता चलता है कि वह कितनी नम्र थी और आज्ञा मानने को तैयार थी। मरियम की यह बात आज तक वफादार लोग जानते हैं। गौर कीजिए कि उसने कहा कि वह यहोवा की दासी है। पुराने ज़माने में सेवकों में सबसे निचले स्तर पर दासी होती थी, जो सारी ज़िंदगी अपने मालिक पर निर्भर रहती थी। मरियम ने अपने मालिक यहोवा के बारे में ऐसा ही महसूस किया। उसे पूरा भरोसा था कि वह उसे सँभालेगा क्योंकि जो यहोवा के वफादार रहते हैं उनके साथ वह वफादारी निभाता है। (भज. 18:25) उसे यह भी यकीन था कि अगर वह जी-जान से इस चुनौती-भरी ज़िम्मेदारी को निभाएगी तो यहोवा उसे ज़रूर आशीष देगा।
मरियम को भरोसा था कि उसका वफादार परमेश्वर यहोवा उसे सँभालेगा
13. अगर परमेश्वर से मिला कोई काम हमें मुश्किल या नामुमकिन लगे तो हम मरियम से क्या सीख सकते हैं?
13 कभी-कभी परमेश्वर का दिया कोई काम शायद हमें मुश्किल लगे, यहाँ तक कि नामुमकिन लगे। फिर भी वह अपने वचन बाइबल के ज़रिए हमें उस पर पूरा भरोसा रखने के बहुत-से कारण देता है। इसलिए हम खुद को उसके हाथों में सौंप सकते हैं जैसे मरियम ने किया था। (नीति. 3:5, 6) अगर हम ऐसा करेंगे तो वह हमें आशीष देगा और उस पर हमारा विश्वास और भी मज़बूत होगा।
इलीशिबा से मुलाकात
14, 15. (क) जब मरियम इलीशिबा और जकरयाह के घर गयी तो यहोवा ने उसे क्या आशीष दी? (ख) लूका 1:46-55 में दर्ज़ मरियम की बातों से उसके बारे में क्या पता चलता है?
14 जिब्राईल ने इलीशिबा के बारे में जो कहा उससे मरियम को बहुत मदद मिली। इलीशिबा के अलावा दुनिया में ऐसी कौन-सी औरत थी जो उसके हालात को समझ सकती? मरियम ने फौरन तैयारी की और यहूदा के पहाड़ी प्रदेश की तरफ चल पड़ी जो शायद तीन-चार दिन का सफर था। जब वह इलीशिबा और उसके पति जकरयाह के घर पहुँची, जो एक याजक था, तो यहोवा ने उसे एक और ज़बरदस्त सबूत दिया जिससे उसका विश्वास मज़बूत हुआ। जैसे ही इलीशिबा ने मरियम का नमस्कार सुना उसके पेट में बच्चा खुशी से उछल पड़ा। इलीशिबा पवित्र शक्ति से भर गयी और उसने मरियम को “मेरे प्रभु की माँ” कहा। परमेश्वर ने इलीशिबा पर ज़ाहिर किया था कि मरियम का बेटा उसका प्रभु यानी मसीहा बनेगा। इसके अलावा मरियम ने जिस तरह से परमेश्वर की आज्ञा मानी थी, उसकी तारीफ करते हुए इलीशिबा ने पवित्र शक्ति से भरकर कहा, “तू इसलिए भी धन्य है कि तूने यकीन किया।” (लूका 1:39-45) जी हाँ, यहोवा ने मरियम से जो-जो कहा था वह सब पूरा होनेवाला था!
15 इसके बाद मरियम ने जो कहा वह परमेश्वर के वचन में दर्ज़ है। (लूका 1:46-55 पढ़िए।) उसके कहे जितने शब्द बाइबल में दर्ज़ हैं उनमें से सबसे ज़्यादा शब्द इन आयतों में पाए जाते हैं। इससे हम मरियम के बारे में काफी कुछ जान सकते हैं। वह यहोवा की एहसानमंद थी, इसलिए उसने यहोवा की बड़ाई की कि उसने उसे मसीहा की माँ बनने का सम्मान दिया। इससे यह भी पता चलता है कि मरियम को परमेश्वर पर गहरा विश्वास था क्योंकि उसने कहा कि यहोवा घमंडियों और शक्तिशाली लोगों को नीचा करता है और उन नम्र और दीन लोगों की मदद करता है जो उसकी सेवा करना चाहते हैं। उसकी बातों से अंदाज़ा मिलता है कि उसे शास्त्र का कितना ज्ञान था। अनुमान लगाया गया है कि उसने इन आयतों में इब्रानी शास्त्र से 20 से भी ज़्यादा हवाले दिए!a
16, 17. (क) मरियम और उसके बेटे ने कैसा रवैया दिखाया जो हमें भी दिखाना चाहिए? (ख) मरियम और इलीशिबा से हम किस आशीष के बारे में सीखते हैं?
16 इससे साफ है कि मरियम परमेश्वर के वचन की बातों पर गहराई से सोचती थी। उसने अपने मन के विचार बताने के बजाय नम्रता से शास्त्र में लिखी बातें कहीं। उसके गर्भ में पल रहा बेटा भी उसकी तरह नम्र होता और कहता, “जो मैं सिखाता हूँ वह मेरी तरफ से नहीं बल्कि उसकी तरफ से है जिसने मुझे भेजा है।” (यूह. 7:16) हमें खुद से पूछना चाहिए, ‘क्या मैं परमेश्वर के वचन का इसी तरह आदर करता हूँ? या मैं अपने विचारों को मानना पसंद करता हूँ?’ इस मामले में मरियम का रवैया बिलकुल सही था।
17 मरियम इलीशिबा के साथ करीब तीन महीने रही। इस दौरान उन दोनों ने एक-दूसरे की काफी हिम्मत बँधायी होगी। (लूका 1:56) दोनों औरतों से हम सीखते हैं कि अच्छे दोस्त होना कितनी बड़ी आशीष है। अगर हम ऐसे लोगों से दोस्ती करेंगे जो यहोवा से सच्चा प्यार करते हैं, तो उनकी मदद से हम यहोवा के और भी करीब आएँगे। (नीति. 13:20) तीन महीने बाद, अब मरियम के घर लौटने की घड़ी आ गयी। जब यूसुफ को मरियम के बारे में पता चलेगा तो वह क्या कहेगा?
मरियम और यूसुफ
18. मरियम ने यूसुफ को क्या बताया और यूसुफ ने क्या किया?
18 मरियम ने ऐसा नहीं सोचा कि जब उसका पेट दिखने लगेगा तब वह यूसुफ को बताएगी कि वह गर्भवती है। इसके बजाय वह जल्द-से-जल्द यूसुफ को बताना चाहती थी। मगर उससे मिलने से पहले मरियम को थोड़ी चिंता हुई होगी कि यह सीधा-सादा इंसान, जो परमेश्वर का डर मानता है, उसकी बात सुनकर क्या करेगा। फिर भी वह यूसुफ के पास गयी और उसे अपना सारा हाल कह सुनाया। जैसा कि आप सोच सकते हैं, मरियम की बातें सुनकर यूसुफ परेशान हो गया। एक तरफ वह अपनी प्यारी मँगेतर पर भरोसा करना चाहता था, मगर दूसरी तरफ ऐसा लग रहा था कि मरियम ने उसके साथ विश्वासघात किया है। बाइबल यह नहीं बताती कि उस वक्त उसके मन में कैसे-कैसे खयाल आए होंगे या उसने खुद को कैसे समझाया होगा। लेकिन यह इतना ज़रूर बताती है कि उसने मरियम को तलाक देने का फैसला किया, क्योंकि उन दिनों जिनकी सगाई हो जाती उन्हें शादीशुदा माना जाता था। लेकिन वह सबके सामने उसका तमाशा नहीं बनाना चाहता था, इसलिए उसने चुपके से उसे तलाक देने की सोची। (मत्ती 1:18, 19) यूसुफ को इस तरह परेशान देखकर मरियम को दुख हुआ होगा। फिर भी जब यूसुफ ने उस पर यकीन नहीं किया तो वह उससे गुस्सा नहीं हुई।
19. यहोवा ने कैसे यूसुफ को सही फैसला करने में मदद दी?
19 यहोवा ने प्यार से यूसुफ की मदद की ताकि वह सही फैसला करे। सपने में एक स्वर्गदूत ने उसे बताया कि मरियम वाकई चमत्कार से गर्भवती हुई है। यह जानकर यूसुफ को कितनी राहत मिली होगी! फिर उसने वही किया जो मरियम शुरू से करती आयी थी, यानी उसने परमेश्वर के निर्देशों के मुताबिक काम किया। उसने मरियम से शादी कर ली और वह यहोवा के बेटे की परवरिश करने की अनोखी ज़िम्मेदारी निभाने के लिए तैयार हो गया।—मत्ती 1:20-24.
20, 21. जो शादीशुदा हैं और जो शादी करने की सोच रहे हैं, वे मरियम और यूसुफ से क्या सीख सकते हैं?
20 जो शादीशुदा हैं और जो शादी करने की सोच रहे हैं, वे 2,000 साल पहले के इस जवान जोड़े की मिसाल से बहुत कुछ सीख सकते हैं। शादी के बाद जब यूसुफ ने देखा कि मरियम कैसे एक माँ की ज़िम्मेदारी बखूबी निभा रही है, तो वह ज़रूर इस बात का एहसानमंद रहा होगा कि यहोवा ने अपने स्वर्गदूत के ज़रिए उसे सही हिदायत दी थी। उसने सीखा होगा कि ज़िंदगी के बड़े-बड़े फैसले लेते वक्त यहोवा पर भरोसा करना कितना ज़रूरी है। (भज. 37:5; नीति. 18:13) बेशक उसने आगे भी परिवार के मुखिया के नाते हर फैसला सोच-समझकर लिया होगा ताकि परिवार का भला हो।
21 हम मरियम से क्या सीख सकते हैं? हालाँकि यूसुफ ने शुरू में मरियम पर शक किया, फिर भी मरियम ने बुरा नहीं माना। इसके बजाय उसने यूसुफ के फैसले का इंतज़ार किया और उस पर भरोसा रखा, क्योंकि वही आगे चलकर उसके परिवार का मुखिया होता। इस तरह उसने सीखा कि सब्र रखना बहुत ज़रूरी है। यही बात मसीही बहनों को भी सीखनी चाहिए। इसके अलावा, इन घटनाओं से यूसुफ और मरियम ने सीखा कि एक-दूसरे से खुलकर बात करना और सबकुछ सच-सच बताना कितना ज़रूरी है।—नीतिवचन 15:22 पढ़िए।
22. (क) मरियम और यूसुफ की शादीशुदा ज़िंदगी की बुनियाद क्या थी? (ख) उन्हें आगे चलकर क्या ज़िम्मेदारी निभानी थी?
22 मरियम और यूसुफ की शादीशुदा ज़िंदगी की बुनियाद बहुत पक्की थी। वे दोनों दुनिया में सबसे ज़्यादा यहोवा से प्यार करते थे और चाहते थे कि माता-पिता होने की ज़िम्मेदारी अच्छी तरह निभाकर उसे खुश करें। इसमें कोई शक नहीं कि उन्हें आगे चलकर ढेरों आशीषें मिलनेवाली थीं, मगर उनके सामने बड़ी-बड़ी चुनौतियाँ भी थीं। उन पर यीशु की परवरिश करने की ज़िम्मेदारी थी, जो बड़ा होकर दुनिया का सबसे महान इंसान बनता।
a ऐसा लगता है कि मरियम ने वफादार हन्ना की बातों का भी हवाला दिया, जिसे यहोवा की आशीष से एक बच्चा हुआ था।—अध्याय 6 का यह बक्स देखें, “दो बेहतरीन प्रार्थनाएँ।”