अध्याय 31
“परमेश्वर के करीब आओ, और वह तुम्हारे करीब आएगा”
1-3. (क) माँ-बाप और बच्चा जिस तरह एक-दूसरे के साथ पेश आते हैं, उससे हम इंसान के स्वभाव के बारे में क्या सीख सकते हैं? (ख) जब हमें कोई प्यार दिखाता है तो खुद-ब-खुद हम क्या करने लगते हैं, और हम खुद से कौन-सा ज़रूरी सवाल पूछ सकते हैं?
अपने नन्हे-से बच्चे की मुसकान देखकर माता-पिता खुशी से फूले नहीं समाते। अपना चेहरा उसके पास लाकर वे उसे पुचकारते हैं, उससे मीठी-मीठी बातें करके हँसाने की कोशिश करते हैं। वे उसके होठों पर मुसकान देखना चाहते हैं। उन्हें ज़्यादा इंतज़ार नहीं करना पड़ता—पहले नन्हे-मुन्ने के गालों पर हल्के-से गड्ढे पड़ते हैं, धीरे-धीरे होठों के किनारे हलके से ऊपर की तरफ उठते हैं और एक प्यारी-सी मुसकान उसके चेहरे पर खिल उठती है। इस अनोखी मुसकान के साथ, वह अपने माता-पिता के प्यार का जवाब प्यार से देता है। छोटी-सी ही सही, यह उस प्यार की शुरूआत है जो एक बच्चा अपने माँ-बाप के लिए महसूस करता है।
2 एक बच्चे की मुसकान इंसान के स्वभाव के बारे में एक खास बात हमारे सामने लाती है और वह है कि इंसान प्यार के बदले में प्यार देता है। हमें इसी तरह बनाया गया है। (भजन 22:9) जैसे-जैसे हम बड़े होते हैं, प्यार करने की हमारी काबिलीयत भी बढ़ती जाती है। शायद आपको याद होगा कि आपके माँ-बाप, रिश्तेदार या दोस्त बचपन में आपसे कितना प्यार करते थे और आपके लिए क्या-क्या करते थे। आपके भी दिल में उनके लिए प्यार जड़ पकड़ता गया, बढ़ता गया और इस प्यार को आपने कई तरीकों से ज़ाहिर किया। क्या यहोवा के साथ आपका रिश्ता ऐसा ही है?
3 बाइबल कहती है: “हम इसलिये प्रेम करते हैं, कि पहिले उस ने हम से प्रेम किया।” (1 यूहन्ना 4:19) इस किताब के भाग 1 से लेकर भाग 3 तक हमें याद दिलाया गया है कि यहोवा अपनी शक्ति, न्याय और बुद्धि को प्यार के साथ इस तरह इस्तेमाल करता है जिससे हमें फायदा हो। और इसके चौथे भाग में आपने देखा कि उसने इंसानों के लिए और खासकर सीधे-सीधे आपके लिए कई तरीकों से अपना प्यार ज़ाहिर किया है। इससे एक सवाल उठता है। और एक तरह से, यह वह सबसे अहम सवाल है जो आप खुद से पूछ सकते हैं: ‘यहोवा के प्यार के बदले में मुझे क्या करना चाहिए?’
परमेश्वर से प्रेम करने का क्या मतलब है
4. परमेश्वर से प्रेम करने का क्या मतलब है, इसे लेकर लोग उलझन में क्यों हैं?
4 यहोवा, जिसने प्यार की शुरूआत की है, बहुत अच्छी तरह जानता है कि प्रेम में, दूसरे के अच्छे-से-अच्छे गुणों को बाहर लाने की ताकत है। इसलिए बार-बार विश्वासघाती इंसानों की बगावत सहने के बावजूद, यहोवा को पूरा यकीन रहा है कि कुछ इंसान ज़रूर उसके प्यार के बदले में उससे प्यार करेंगे। और सचमुच लाखों लोगों ने ऐसा किया भी है। मगर अफसोस, परमेश्वर से प्रेम करने का मतलब क्या है इस बारे में इस भ्रष्ट दुनिया के धर्मों ने लोगों को उलझन में डाल रखा है। अनगिनत लोग कहते तो हैं कि वे परमेश्वर से प्यार करते हैं, मगर वे सोचते हैं कि यह प्यार सिर्फ एक भावना है जिसे शब्दों में बयान कर देना काफी है। हो सकता है कि परमेश्वर के लिए प्यार की शुरूआत इसी तरह हो, वैसे ही जैसे माँ-बाप के लिए एक बच्चे का प्यार सबसे पहले उसकी मुसकान से ज़ाहिर होता है। लेकिन जैसे-जैसे इंसान बड़ा होता है, इस प्यार के मायने बदलने लगते हैं।
5. बाइबल परमेश्वर से प्रेम की क्या परिभाषा देती है, और इससे हमें क्यों अच्छा महसूस करना चाहिए?
5 यहोवा ने साफ-साफ बताया है कि उससे प्रेम करने का मतलब क्या है। उसका वचन कहता है: “परमेश्वर का प्रेम यह है, कि हम उस की आज्ञाओं को मानें।” इसका मतलब है कि परमेश्वर के लिए अपना प्यार, अपने कामों से दिखाना ज़रूरी है। माना कि कई लोग आज्ञा मानने की बात को पसंद नहीं करते। लेकिन यही आयत आगे बताती है: “और [परमेश्वर] की आज्ञाएं कठिन नहीं।” (1 यूहन्ना 5:3) यहोवा के नियम और सिद्धांत हमें फायदा पहुँचाने के लिए हैं, न कि हमें सताने के लिए। (यशायाह 48:17, 18) उसके वचन में ऐसे ढेरों सिद्धांत पाए जाते हैं जो हमें उसके करीब ला सकते हैं। कैसे? आइए हम परमेश्वर के साथ अपने रिश्ते के तीन पहलुओं पर चर्चा करें। इनमें हैं, उससे बातचीत, उसकी उपासना और उसके जैसा बनने की कोशिश।
परमेश्वर के साथ बातचीत करना
6-8. (क) हम यहोवा की बातें कैसे सुन सकते हैं? (ख) जब हम बाइबल पढ़ते हैं, तो इसे कैसे सजीव बना सकते हैं?
6 इस किताब का पहला अध्याय इस सवाल से शुरू हुआ था, “क्या आप कभी परमेश्वर से आमने-सामने बातचीत करने की सोच सकते हैं?” हमने देखा कि यह महज़ एक कल्पना करने की बात नहीं है। दरअसल, मूसा ने वाकई परमेश्वर से बातें की थीं। हमारे बारे में क्या? अब यहोवा, इंसानों से बातें करने के लिए अपने फरिश्ते नहीं भेजता। लेकिन आज हमारे साथ बातचीत करने का यहोवा के पास एक बेहतरीन ज़रिया है। हम, यहोवा की बातें कैसे सुन सकते हैं?
7 “हर एक पवित्रशास्त्र परमेश्वर की प्रेरणा से रचा गया है,” इसलिए जब हम उसका वचन बाइबल पढ़ते हैं, तो हम यहोवा की बातें सुन रहे होते हैं। (2 तीमुथियुस 3:16) भजनहार ने यहोवा के सेवकों से गुज़ारिश की कि वे “रात दिन” उसका वचन पढ़ें। (भजन 1:1, 2) इसके लिए हमें बहुत यत्न करने की ज़रूरत होगी। लेकिन हमारी मेहनत बेकार नहीं जाएगी। क्योंकि जैसा हमने अध्याय 18 में देखा था, बाइबल हमारे स्वर्गीय पिता की तरफ से एक अनमोल खत की तरह है। तो इसे पढ़ना सिर्फ एक खानापूर्ति नहीं होनी चाहिए। इसे पढ़ते वक्त हमें इसे सजीव बनाने की कोशिश करनी चाहिए। हम यह कैसे कर सकते हैं?
8 बाइबल की घटनाओं को पढ़ते वक्त कल्पना कीजिए कि आप खुद वहाँ मौजूद हैं। उसमें बताए किरदारों को देखने की कोशिश कीजिए। उनकी संस्कृति, उनके हालात, और उनके इरादों को समझने की कोशिश कीजिए। उसके बाद जो आपने पढ़ा है उस पर गहराई से सोचिए। खुद से ऐसे सवाल पूछिए: ‘यह घटना मुझे यहोवा के बारे में क्या सिखाती है? मैं उसके किस गुण को यहाँ देख सकता हूँ? यहोवा, कौन-सा सिद्धांत मुझे सिखाना चाहता है और मैं इसे अपनी ज़िंदगी में कैसे लागू कर सकता हूँ?’ पढ़िए, मनन कीजिए और उस पर अमल कीजिए। जब आप ऐसा करेंगे, तो परमेश्वर का वचन पढ़ने में और भी दिलचस्प लगेगा और उसमें जान आ जाएगी।—भजन 77:12; याकूब 1:23-25.
9. “विश्वासयोग्य और बुद्धिमान दास” कौन है, और हमें बड़े ध्यान से उस “दास” की बात क्यों सुननी चाहिए?
9 यहोवा “विश्वासयोग्य और बुद्धिमान दास” के ज़रिए भी हमसे बातें करता है। जैसे यीशु ने भविष्यवाणी की थी, संकट भरे इन अंतिम दिनों में, “समय पर . . भोजन” देने के लिए अभिषिक्त भाइयों से बना एक छोटा-सा समूह ठहराया गया है। (मत्ती 24:45-47) जब हम वे किताबें पढ़ते हैं जो हमें बाइबल का सही ज्ञान देने के लिए तैयार की जाती हैं और जब हम सभाओं और अधिवेशनों में हाज़िर होते हैं, तो हम इस समूह से आध्यात्मिक भोजन ले रहे होते हैं। ये समूह, मसीह का सेवक है, इसलिए बुद्धिमानी दिखाते हुए हम यीशु के शब्दों को ध्यान में रखेंगे: “चौकस रहो, कि तुम किस रीति से सुनते हो?” (तिरछे टाइप हमारे; लूका 8:18) हमें बड़े ध्यान से इस दास की बातें सुननी चाहिए, क्योंकि हम जानते हैं कि यह हमसे बात करने का यहोवा का एक ज़रिया है।
10-12. (क) प्रार्थना, यहोवा की तरफ से एक शानदार वरदान क्यों है? (ख) प्रार्थना करने का वह कौन-सा तरीका है जो यहोवा को प्रसन्न करता है, और हम क्यों यकीन रख सकते हैं कि वह हमारी प्रार्थनाओं की सचमुच कदर करता है?
10 लेकिन खुद परमेश्वर के साथ बातचीत करने के बारे में क्या? क्या हम यहोवा से सीधे-सीधे बात कर सकते हैं? यह विचार ही हमारे अंदर विस्मय और श्रद्धा की भावना भर देता है। मान लीजिए कि आप दुनिया के सबसे शक्तिशाली सम्राट के सामने जाकर उसे अपनी समस्याओं के बारे में बताना चाहते हैं, तो क्या उस तक पहुँचने में आप कामयाब हो सकेंगे? कई बार तो ऐसी कोशिश करना ही खतरे से खाली नहीं होता! एस्तेर और मोर्दकै के दिनों में अगर कोई इंसान फारस के सम्राट के सामने बिना इजाज़त पहुँच जाता, तो उसे अपनी जान से हाथ धोने पड़ सकते थे। (एस्तेर 4:10, 11) अब ज़रा सोचिए, आप इस पूरे जहान के महाराजाधिराज के सामने हाज़िर होते हैं, जिसके सामने दुनिया के सबसे शक्तिशाली लोग ‘टिड्डियों के तुल्य हैं।’ (यशायाह 40:22) क्या हमें उसके सामने जाने से खौफ खाना चाहिए? बिलकुल नहीं!
11 यहोवा ने हमें उस तक पहुँचने का एक ऐसा ज़रिया दिया है, जो सबके लिए खुला है और बेहद आसान है—प्रार्थना। यहाँ तक कि एक छोटा बच्चा भी यीशु के नाम से पूरे विश्वास के साथ यहोवा से प्रार्थना कर सकता है। (यूहन्ना 14:6; इब्रानियों 11:6) साथ ही हम प्रार्थना में अपने दिल की गहरी बातें बता सकते हैं, उन विचारों के बारे में भी जो हमें घायल कर रहे हैं और जिनका शब्दों में बयान करना मुश्किल होता है। (रोमियों 8:26) यहोवा से प्रार्थना करते वक्त लच्छेदार, आडंबरी भाषा का इस्तेमाल करने और लंबी-लंबी बातें करने से कोई फायदा नहीं। (मत्ती 6:7, 8) दूसरी तरफ, हम यहोवा से कितनी देर तक और कितनी बार प्रार्थना कर सकते हैं, इसके लिए उसने कोई हद नहीं बाँधी गयी है। उसका वचन हमें उससे “निरन्तर प्रार्थना” करने के लिए उकसाता है।—1 थिस्सलुनीकियों 5:17.
12 याद रखिए कि सिर्फ यहोवा को ‘प्रार्थनाओं का सुननेवाला’ कहा गया है और वह सच्ची हमदर्दी के साथ हमारी सुनता है। (भजन 65:2) क्या वह अपने वफादार सेवकों की प्रार्थनाओं को सिर्फ बरदाश्त करता है? जी नहीं, बल्कि वह उनकी प्रार्थनाओं से प्रसन्न होता है। उसका वचन ऐसी प्रार्थनाओं की तुलना उस सुगंधित धूप से करता है, जिसकी सुख-दायक, मनमोहक खुशबू धूँए के साथ आसमान की तरफ उठती है। (भजन 141:2; प्रकाशितवाक्य 5:8; 8:4) क्या यह जानकर हमें दिलासा नहीं मिलता कि हमारी प्रार्थनाएँ भी इस जहान के महाराजाधिराज के पास पहुँचती हैं और उसे सुख पहुँचाती हैं? इसलिए अगर आप यहोवा के करीब आना चाहते हैं, तो दीनता के साथ हर रोज़, कई बार उससे प्रार्थना कीजिए। उसके सामने अपना दिल खोल दीजिए; आपके मन में जो कुछ चल रहा है सब-का-सब उससे कह दीजिए, कुछ रख मत छोड़िए। (भजन 62:8) अपने स्वर्गीय पिता के साथ अपनी चिंताएँ, अपनी खुशियाँ बाँटिए, उसे धन्यवाद और स्तुति दीजिए। ऐसा करने से आप दोनों के बीच का रिश्ता और भी मज़बूत होता जाएगा।
यहोवा की उपासना करना
13, 14. यहोवा की उपासना करने का क्या मतलब है, और हमारा ऐसा करना क्यों सही है?
13 जब हम प्रार्थना में यहोवा से बात करते हैं, तो यह सिर्फ किसी दोस्त या रिश्तेदार के साथ बातचीत करने जैसा नहीं है। जब हम प्रार्थना करते हैं तो असल में हम यहोवा की उपासना कर रहे होते हैं और भक्ति के साथ उसे वह आदर दे रहे होते हैं जिसका वह पूरी तरह हकदार है। हमारी पूरी ज़िंदगी सच्ची उपासना है। सच्ची उपासना से ही हम यहोवा को अपने पूरे तन-मन से प्यार और भक्ति दिखा पाते हैं और यही वह माध्यम है जो यहोवा के सारे वफादार सेवकों को, चाहे वे स्वर्ग में हों या धरती पर, एक करता है। प्रेरित यूहन्ना ने दर्शन में एक स्वर्गदूत को यह आज्ञा देते सुना था: “उसी की उपासना करो जिसने स्वर्ग, पृथ्वी, समुद्र और जल के सोते बनाए” हैं।—प्रकाशितवाक्य 14:7, NHT.
14 हमें यहोवा की उपासना क्यों करनी चाहिए? उसके जिन गुणों के बारे में हमने चर्चा की उनके बारे में सोचिए, उसकी पवित्रता, शक्ति, आत्म-संयम, न्याय, साहस, दया, बुद्धि, नम्रता, प्रेम, करुणा, वफादारी और उसकी भलाई। हमने यह देख लिया है कि ऐसा हर अनमोल गुण, उसमें सर्वश्रेष्ठ स्तर और सर्वोत्तम रूप में वास करता है। जब हम उसके इन सारे गुणों को मिलाकर देखते हैं, तो यह जान पाते हैं वह महज़ ऐसी महान हस्ती नहीं जिसकी तारीफ की जानी चाहिए। वह हमसे अति महिमावान और इतना श्रेष्ठ है कि हम कल्पना भी नहीं कर सकते। (यशायाह 55:9) फिर इसमें कोई शक नहीं कि यहोवा सही मायनों में हमारा महाराजाधिराज है और हमसे उपासना पाने का हकदार है। लेकिन हमें उसकी उपासना कैसे करनी चाहिए?
15. हम “आत्मा और सच्चाई” से यहोवा की उपासना कैसे करते हैं, और मसीही सभाएँ हमें क्या मौके देती हैं?
15 यीशु ने कहा था: “परमेश्वर आत्मा है, और अवश्य है कि उसके भजन करनेवाले आत्मा और सच्चाई से भजन करें।” (यूहन्ना 4:24) “आत्मा” से यहोवा की उपासना करने के लिए हमें उसकी पवित्र शक्ति की और उसके बताए रास्ते पर चलने की ज़रूरत है। साथ ही, हमें उसके वचन में दी सच्चाई यानी सही ज्ञान के मुताबिक उसकी उपासना करने की ज़रूरत। इसका यह भी मतलब है कि उसके वचन में जो सच्चाई यानी सही ज्ञान पाया जाता है, हम उसके मुताबिक उसकी उपासना करें। हम जब भी अपने संगी भाई-बहनों के साथ इकट्ठा होते हैं, तब भी हमारे पास “आत्मा और सच्चाई” से उसकी उपासना करने के बेहतरीन मौके होते हैं। (इब्रानियों 10:24, 25) जब हम यहोवा की स्तुति में भजन गाते हैं, साथ मिलकर उससे प्रार्थना करते हैं, उसके वचन की चर्चा के दौरान ध्यान से सुनते हैं और जवाब देते हैं, तब हम शुद्ध उपासना करते हुए उसके लिए अपना प्यार दिखाते हैं।
मसीही सभाएँ यहोवा की उपासना करने के खुशियों भरे मौके हैं
16. सच्चे मसीहियों को कौन-सी एक बड़ी आज्ञा पूरी करने की ज़िम्मेदारी सौंपी गयी है, और इसे पूरा करने के लिए हम बाध्य क्यों महसूस करते हैं?
16 जब हम दूसरों को यहोवा के बारे में बताने के ज़रिए सरेआम उसकी स्तुति करते हैं, तब भी हम उसकी उपासना कर रहे होते हैं। (इब्रानियों 13:15) सचमुच, यहोवा के राज का ऐलान करने की आज्ञा, उन सबसे बड़ी आज्ञाओं में से एक है जिन्हें पूरा करने की ज़िम्मेदारी मसीहियों को सौंपी गयी है। (मत्ती 24:14) हम इस आज्ञा को उत्साह और जोश के साथ पूरा करते हैं, क्योंकि हम यहोवा से प्यार करते हैं। जब हम देखते हैं कि “इस संसार के ईश्वर” शैतान यानी इब्लीस ने यहोवा के बारे में कैसी ज़हरीली और झूठी बातें फैलाकर ‘अविश्वासियों की बुद्धि को अंधा’ कर दिया है, तो एक साक्षी होने के नाते, क्या हम अपने परमेश्वर के बारे में फैलायी उन अफवाहों को झूठा साबित करने के लिए बेचैन नहीं हो उठते? (2 कुरिन्थियों 4:4; यशायाह 43:10-12) और जब हम यहोवा के शानदार गुणों के बारे में सोचते हैं, तो क्या हमारे अंदर ऐसी भावना नहीं उमड़ती कि हम दूसरों को भी उसके बारे में बताएँ? जी हाँ, इससे बढ़कर और कोई सम्मान की बात नहीं होगी कि हम दूसरों को अपने स्वर्गीय पिता से उतना ही प्यार करना सिखा सकें जितना हम करते हैं, और वे उसे उतने ही करीब से जान सकें जितना हम जानते हैं।
17. यहोवा की उपासना में और क्या शामिल है, और हमें पूरी खराई से उसकी उपासना क्यों करनी चाहिए?
17 यहोवा की उपासना में इससे भी ज़्यादा शामिल है। इसमें हमारी ज़िंदगी का हर पहलू शामिल है। (कुलुस्सियों 3:23) अगर हम सचमुच यहोवा को अपना महाराजाधिराज मानते हैं, तो हम हर बात में उसकी मरज़ी पूरी करने की कोशिश करेंगे चाहे हमारा परिवार हो, हमारी नौकरी, दूसरों के साथ हमारा व्यवहार हो या फिर हमारा निजी समय। हम “खरे मन” से, जी हाँ खराई के साथ यहोवा की सेवा करने की कोशिश करेंगे। (1 इतिहास 28:9) ऐसी उपासना में दुचित्ते मन या दोहरी ज़िंदगी की कोई गुंजाइश नहीं होती यानी सिर्फ ऊपरी तौर पर हम यहोवा की सेवा करने का दिखावा करें और चोरी-छिपे गंभीर पाप करने में लगे रहें। खरा इंसान ऐसा कपट करने की सोच भी नहीं सकता; परमेश्वर के लिए प्रेम की वजह से ऐसा करने का विचार ही उसे घिनौना लगता है। परमेश्वर का भय भी हमारी मदद करेगा। बाइबल बताती है, यहोवा के लिए ऐसी श्रद्धा हमारे साथ उसके रिश्ते को और भी गहरा बनाती है।—भजन 25:14.
यहोवा जैसा बनना
18, 19. यह सोचना सही क्यों है कि असिद्ध इंसान यहोवा परमेश्वर के जैसे बन सकते हैं?
18 इस किताब के हर भाग के आखिर में दिया गया अध्याय हमें यह बताता है कि हम “प्रिय, बालकों की नाईं परमेश्वर के सदृश्य” कैसे बन सकते हैं। (इफिसियों 5:1) यह याद रखना बेहद ज़रूरी है कि भले ही हम असिद्ध हैं, लेकिन हम अपनी शक्ति का इस्तेमाल करने, न्याय करने, बुद्धि से काम लेने और प्रेम दिखाने में वाकई यहोवा जैसे बन सकते हैं, जो इन गुणों में सिद्ध है। हम कैसे जानते हैं कि सर्वशक्तिमान के जैसा बनना वाकई मुमकिन है? याद रखिए कि यहोवा के नाम का मतलब हमें यह सिखाता है कि अपना उद्देश्य पूरा करने के लिए उसे जो कुछ बनने की ज़रूरत है वह बन जाता है। हम उसकी ऐसी काबिलीयत देखकर श्रद्धा और विस्मय से भर जाते हैं, मगर क्या हमारे लिए उसके जैसा बनना नामुमकिन है? बिलकुल नहीं।
19 हमें परमेश्वर के स्वरूप में बनाया गया है। (उत्पत्ति 1:26) इसलिए इस धरती पर जितने प्राणी पाए जाते हैं, इंसान उन सबसे अलग है। हम अपनी सहज-वृत्ति, अपने जीन्स या वातावरण के चलाए नहीं चलते। यहोवा ने हमें एक नायाब तोहफा दिया है, यानी आज़ाद मरज़ी। अपनी सीमाओं और असिद्धताओं के बावजूद हम जो कुछ बनना चाहते हैं उसका चुनाव खुद कर सकते हैं। क्या आप ऐसा इंसान बनना पसंद करेंगे, जो प्यार करनेवाला, बुद्धिमान, न्यायप्रिय हो और जो अपनी शक्ति का सही इस्तेमाल करता हो? यहोवा की आत्मा की मदद से आप बिलकुल ऐसे ही इंसान बन सकते हैं! सोचिए ऐसे इंसान बनकर आप कितनी भलाई कर पाएँगे।
20. जब हम यहोवा जैसा बनने की कोशिश करते हैं, तो कौन-सा अच्छा काम करते हैं?
20 आप अपने स्वर्गीय पिता को प्रसन्न करेंगे, उसका दिल खुश करेंगे। (नीतिवचन 27:11) असल में आपके लिए यहोवा को “सब प्रकार से प्रसन्न” करना भी मुमकिन है, क्योंकि वह आपकी हदों को समझता है। (कुलुस्सियों 1:9, 10) और जब आप अपने प्यारे पिता के जैसे गुण अपने अंदर बढ़ाते जाएँगे, तब आपको एक बहुत बड़ा सम्मान मिलेगा। परमेश्वर से दूर, और घोर अंधकार से भरे इस संसार में आप ज्योति फैलानेवाले बनेंगे। (मत्ती 5:1, 2, 14) आप इस धरती पर, यहोवा की महान शख्सियत की रोशनी फैलाने में अपना भाग अदा कर रहे होंगे। यह क्या ही बड़ा सम्मान है!
“परमेश्वर के करीब आओ, और वह तुम्हारे करीब आएगा”
21, 22. यहोवा से प्यार करनेवाले सभी लोगों के सामने कौन-सा सफर है जो कभी खत्म न होगा?
21 याकूब 4:8 में जो साधारण-सी उलाहना दी गयी है, वह महज़ एक लक्ष्य नहीं है। यह एक सफर है। जब तक हम वफादार बने रहेंगे, यह सफर कभी खत्म नहीं होगा। यहोवा के करीब, और करीब आने की कोई सीमा नहीं। हकीकत तो यह है कि यहोवा के बारे में हमेशा कुछ-न-कुछ नया जानने के लिए होगा। हमें यह नहीं सोच लेना चाहिए कि इस किताब से हम यहोवा के बारे में सबकुछ जान गए हैं। सच पूछिए तो बाइबल में हमारे परमेश्वर के बारे में जो कुछ बताया गया है, यह किताब उसकी बस एक शुरूआत है। बाइबल में भी वे सारी बातें नहीं पायी जातीं, जो हम यहोवा के बारे में जान सकते हैं। प्रेरित यूहन्ना ने कहा था कि यीशु ने धरती पर रहकर जो कुछ किया, अगर वह लिखा जाता तो “पुस्तकें जो लिखी जातीं वे जगत में भी न समातीं।” (यूहन्ना 21:25) अगर बेटे के बारे में यह कहा जा सकता है, तो उसके पिता के बारे में यह बात उससे कहीं ज़्यादा सच होगी!
22 यहाँ तक कि अनंत जीवन भी यहोवा के बारे में सबकुछ जानने के लिए कम पड़ जाएगा। (सभोपदेशक 3:11) तो फिर, हमारे सामने जो आशा है उसके बारे में सोचिए। अब से सैकड़ों, हज़ारों, लाखों यहाँ तक कि अरबों साल जीने के बाद हम यहोवा के बारे में अब से कहीं ज़्यादा जान सकेंगे। लेकिन फिर हमें महसूस होगा कि अभी-भी ऐसी अनगिनत बातें हैं जिन्हें जानना बाकी है। हम और ज़्यादा जानने के लिए बेताब होंगे, क्योंकि हम और भी ज़्यादा वैसा महसूस करेंगे जैसा भजनहार ने किया था: “परमेश्वर के समीप [आना], यही मेरे लिये भला है।” (भजन 73:28) अनंत जीवन कितना शानदार होगा इसकी हम कल्पना भी नहीं कर सकते। हम जो कुछ कर पाएँगे उसका हम अंदाज़ा नहीं लगा सकते। लेकिन यहोवा के और करीब आते रहना, उस जीवन का सबसे बेहतरीन पहलू होगा।
23. आपको क्या करने के लिए उकसाया गया है?
23 हमारी दुआ है कि परमेश्वर के प्रेम के बदले में, आज आप भी अपने सारे मन, अपने सारे प्राण, अपनी सारी बुद्धि और अपनी सारी शक्ति से उससे प्यार करें। (मरकुस 12:29, 30) आपका प्यार सच्चा और अटल हो। आप ज़िंदगी में जो भी फैसले लें, चाहे छोटे चाहे बड़े, सभी में आपका यह एक ही उसूल नज़र आए कि आप हमेशा वही रास्ता चुनेंगे जिससे आपके स्वर्गीय पिता के साथ आपका रिश्ता और भी मज़बूत होता जाए। सबसे बढ़कर, हमारी दुआ है कि आप और ज़्यादा यहोवा के करीब आते जाएँ और वह भी आपके करीब आता जाए—अभी और हमेशा-हमेशा तक!