क्या बाइबल अब भी आपकी ज़िंदगी सँवार रही है?
“अपने मन को नयी दिशा देने की वजह से तुम्हारी कायापलट होती जाए।”—रोमि. 12:2.
1-3. (क) बपतिस्मे के बाद कौन-से बदलाव करना हमारे लिए मुश्किल हो सकता है? (ख) जब हम उतनी तरक्की नहीं कर पाते जितनी हम उम्मीद करते हैं, तो हम शायद क्या सोचें? (लेख की शुरूआत में दी तसवीरें देखिए।)
सालों से केवन[1] बुरी आदतों का गुलाम था। वह खूब शराब पीता था, ड्रग्स लेता था, सिगरेट पीता था और जुआ खेलता था। लेकिन फिर उसने यहोवा के बारे में सीखा और वह उसका करीबी दोस्त बनना चाहता था। इसके लिए उसे ये बुरी आदतें छोड़नी थीं। और उसने ऐसा किया भी। यहोवा की मदद से और उसके वचन की ताकत से केवन ने अपनी ज़िंदगी में बदलाव किए।—इब्रा. 4:12.
2 बपतिस्मा लेने के बाद भी केवन को अपनी शख्सियत में बदलाव करने थे ताकि वह एक अच्छा मसीही बन सके। (इफि. 4:31, 32) जैसे, वह बहुत जल्दी गुस्सा हो जाता था। उसे इस बात पर बड़ा ताज्जुब हो रहा था कि अपने गुस्से पर काबू पाना कितना मुश्किल है। वह कहता है कि इतना मुश्किल तो बपतिस्मे से पहले बुरी आदतें छोड़ना भी नहीं था। फिर भी वह अपनी ज़िंदगी में ज़रूरी बदलाव कर पाया। कैसे? उसने गिड़गिड़ाकर यहोवा से मदद माँगी और गहराई से बाइबल का अध्ययन किया।
3 बपतिस्मा लेने से पहले, हममें से बहुत-से भाई-बहनों को अपनी ज़िंदगी में बड़े-बड़े बदलाव करने पड़े ताकि हम बाइबल के स्तरों के मुताबिक जी सकें। लेकिन हमें एहसास होता है कि हमें अब भी कई छोटे-छोटे बदलाव करने हैं जिससे कि हम और भी करीबी से परमेश्वर और मसीह की मिसाल पर चल सकें। (इफि. 5:1, 2; 1 पत. 2:21) उदाहरण के लिए, हमने शायद ध्यान दिया हो कि हम बहुत शिकायत करते हैं या अकसर दूसरों की बुराई करते हैं। या कभी-कभी शायद हम इस डर से सही काम न करते हों कि दूसरे क्या सोचेंगे या क्या कहेंगे। हो सकता है हम कई सालों से बदलने की कोशिश कर रहे हों, फिर भी बार-बार वही गलतियाँ करते हों। इसलिए आप शायद सोचें, ‘ये छोटे-छोटे बदलाव करना मेरे लिए क्यों इतना मुश्किल है? बाइबल की सलाह लागू करने के लिए मुझे क्या करना चाहिए, ताकि मेरी शख्सियत में निखार आता जाए?’
आप यहोवा को खुश कर सकते हैं
4. हम अपने हर काम से यहोवा को खुश क्यों नहीं कर पाते?
4 हम यहोवा से प्यार करते हैं और दिल से चाहते हैं कि उसे खुश करें। लेकिन अफसोस, असिद्ध होने की वजह से हम हर वक्त उसे खुश नहीं कर सकते। हम अकसर प्रेषित पौलुस की तरह महसूस करते हैं, जिसने कहा, “भला काम करने की इच्छा तो मेरे अंदर है, मगर भला काम मुझसे होता नहीं।”—रोमि. 7:18; याकू. 3:2.
5. बपतिस्मे से पहले हमने क्या बदलाव किए, फिर भी कौन-सी कमज़ोरियों से हम शायद अब भी जूझ रहे हों?
5 मसीही मंडली का हिस्सा बनने के लिए हमें वे काम छोड़ने पड़े, जिनसे यहोवा नफरत करता है। (1 कुरिं. 6:9, 10) लेकिन अब भी हम असिद्ध ही हैं। (कुलु. 3:9, 10) इसलिए आज भी हमसे गलतियाँ होती रहती हैं, फिर चाहे हमें बपतिस्मा लिए कितने भी साल हो गए हों। समय-समय पर हमारे अंदर शायद बुरी इच्छाएँ या भावनाएँ उठें या हमें अपनी किसी कमज़ोरी पर काबू पाना मुश्किल लगे। शायद हमें अपनी किसी कमज़ोरी से सालों तक जूझना पड़े।
6, 7. (क) किस वजह से यह मुमकिन है कि हम असिद्ध होते हुए भी यहोवा के दोस्त बने रह सकते हैं? (ख) हमें यहोवा से माफी माँगने से क्यों नहीं हिचकिचाना चाहिए?
6 असिद्ध होने के बावजूद हम यहोवा के दोस्त बने रह सकते हैं और उसकी सेवा करते रह सकते हैं। हमेशा याद रखिए कि आप कैसे यहोवा के दोस्त बने थे। उसने आपमें अच्छाई देखी और वह चाहता था कि आप उसे जानें। (यूह. 6:44) वह यह भी जानता था कि आपमें ऐब और कमज़ोरियाँ हैं और आपसे गलतियाँ होंगी। फिर भी यहोवा चाहता था कि आप उसके दोस्त बनें।
7 यहोवा ने हमसे इतना प्यार किया कि उसने हमें एक कीमती तोहफा दिया। उसने अपने बेटे यीशु को धरती पर भेजा ताकि वह हमारे पापों के लिए फिरौती के तौर पर अपनी ज़िंदगी कुरबान करे। (यूह. 3:16) जब हम कोई गलती करते हैं, तो हम यहोवा से माफी माँग सकते हैं। और फिरौती की वजह से हम यकीन रख सकते हैं कि वह हमें माफ कर देगा और हम उसके दोस्त बने रह पाएँगे। (रोमि. 7:24, 25; 1 यूह. 2:1, 2) याद रखिए, यीशु उनके लिए मरा जो सच्चे दिल से पश्चाताप करते हैं। इसलिए अगर हमें महसूस होता है कि हम पापी हैं, तब भी हमें यहोवा से माफी के लिए प्रार्थना करना नहीं छोड़ना चाहिए। अगर हम उससे माफी न माँगें, तो यह ऐसा होगा मानो हमारे हाथ गंदे हैं, फिर भी हम उन्हें धोना नहीं चाहते। हम कितने शुक्रगुज़ार हैं कि यहोवा ने यह मुमकिन किया कि हम असिद्ध होते हुए भी उसके दोस्त बन सकते हैं!—1 तीमुथियुस 1:15 पढ़िए।
8. हमें अपनी कमज़ोरियों को नज़रअंदाज़ क्यों नहीं करना चाहिए?
8 बेशक हम अपनी कमज़ोरियों को यूँ ही नज़रअंदाज़ नहीं कर सकते या उनका बहाना बनाते नहीं रह सकते। यहोवा ने हमें बताया है कि उसके दोस्तों को किस तरह का इंसान होना चाहिए। (भज. 15:1-5) इसलिए अगर हम उसके और करीब आना चाहते हैं, तो हमारी यही कोशिश रहनी चाहिए कि हम उसकी और उसके बेटे की मिसाल पर चलें। हमें अपनी बुरी इच्छाओं को भी काबू में रखने की कोशिश करनी चाहिए। शायद हम कुछ बुरी इच्छाओं को मन से निकाल भी पाएँ। जी हाँ, हमें अपनी शख्सियत में लगातार सुधार करते रहना चाहिए, फिर चाहे हमें बपतिस्मा लिए कितना भी समय हो गया हो।—2 कुरिं. 13:11.
9. हम कैसे जानते हैं कि हम नयी शख्सियत में सुधार करते रह सकते हैं?
9 प्रेषित पौलुस ने मसीहियों को याद दिलाया, “तुम्हें उस पुरानी शख्सियत को उतार देना चाहिए जो तुम्हारे पिछले चालचलन के मुताबिक है और जो उसकी गुमराह करनेवाली ख्वाहिशों के मुताबिक भ्रष्ट होती जा रही है। इसके बजाय, तुम्हें अपने मन को प्रेरित करनेवाली शक्ति को नया बनाते जाना चाहिए, और नयी शख्सियत को पहन लेना चाहिए, जो परमेश्वर की मरज़ी के मुताबिक रची गयी है और परमेश्वर की नज़र में सच्चाई, नेकी और वफादारी की माँगों के मुताबिक है।” (इफि. 4:22-24) “नया बनाते जाना” शब्दों से पता चलता है कि “नयी शख्सियत को पहन” लेने के लिए हमें लगातार मेहनत करनी होगी। इसलिए हम चाहे कितने ही समय से यहोवा की सेवा कर रहे हों, हम हमेशा उसके गुणों के बारे में कुछ-न-कुछ सीखते रह सकते हैं। और बाइबल की मदद से अपनी शख्सियत में सुधार कर सकते हैं और ज़्यादा-से-ज़्यादा यहोवा की तरह बन सकते हैं।
इतना मुश्किल क्यों?
10. (क) बाइबल की मदद से तरक्की करते रहने के लिए हमें क्या करना होगा? (ख) हम शायद क्या सवाल करें?
10 हम सब बाइबल की सलाह पर चलना चाहते हैं। लेकिन अपने अंदर लगातार बदलाव करने के लिए हमें मेहनत करनी होगी। मेहनत करना क्यों ज़रूरी है? क्या यहोवा हमारे लिए सही काम करना आसान नहीं बना सकता?
11-13. यहोवा हमसे यह उम्मीद क्यों करता है कि हम अपनी कमज़ोरियों पर काबू पाने में मेहनत करें?
11 जब हम विश्व और उसमें पायी जानेवाली चीज़ों के बारे में सोचते हैं, तो हमें कोई शक नहीं रहता कि यहोवा के पास इतनी ताकत है कि वह कुछ भी कर सकता है। उदाहरण के लिए, सूरज हर सेकंड में अपने अंदर के 50 लाख टन पदार्थ को ऊर्जा में बदलता है। और उस ऊर्जा की बस थोड़ी-सी मात्रा धरती पर पहुँचती है, फिर भी वह जीवन चलाने के लिए काफी होती है। (भज. 74:16; यशा. 40:26) यहोवा अपने सेवकों को भी ज़रूरी ताकत देता है। (यशा. 40:29) इससे पता चलता है कि यहोवा हमें भी इतनी ताकत दे सकता है कि हम आसानी से अपनी कमज़ोरियों पर काबू पा सकें और अपने दिलो-दिमाग में गलत इच्छाएँ आने से रोक सकें। तो फिर वह ऐसा क्यों नहीं करता?
12 यहोवा ने हमें आज़ाद मरज़ी दी है। उसने यह फैसला हम पर छोड़ा है कि हम उसकी आज्ञा मानेंगे या नहीं। जब हम उसकी आज्ञा मानते हैं और उसकी मरज़ी पूरी करने के लिए मेहनत करते हैं, तब हम दिखाते हैं कि हमें उससे प्यार है और हम उसे खुश करना चाहते हैं। शैतान कहता है कि यहोवा को हुकूमत करने का हक नहीं है। लेकिन जब हम यहोवा की आज्ञा मानते हैं, तो हम दिखाते हैं कि हम यहोवा को अपना राजा मानते हैं। और हम यकीन रख सकते हैं कि हम अपने प्यारे पिता की आज्ञा मानने के लिए जो भी करते हैं, उसकी वह कदर करता है। (अय्यू. 2:3-5; नीति. 27:11) हालाँकि अपनी कमज़ोरियों पर काबू पाना आसान नहीं है, फिर भी जब हम ऐसा करने के लिए खूब मेहनत करते हैं, तो हम यहोवा के लिए अपनी वफादारी दिखा रहे होते हैं और यह भी कि हम उसे अपना राजा मानते हैं।
13 यहोवा हमें बताता है कि हमें उसके जैसे गुण बढ़ाने के लिए बहुत मेहनत करनी होगी। (कुलु. 3:12; 2 पतरस 1:5-7 पढ़िए।) वह हमसे यह भी उम्मीद करता है कि हम अपनी सोच और भावनाओं पर काबू रखें। (रोमि. 8:5; 12:9) इसलिए जब भी हम कोई बदलाव करने के लिए कड़ी मेहनत करते हैं और उसमें कामयाब होते हैं, तो इससे हमें बहुत खुशी होती है।
परमेश्वर के वचन की मदद से बदलाव करते रहिए
14, 15. जो गुण यहोवा को पसंद हैं, वे गुण अपने अंदर बढ़ाने के लिए हम क्या कर सकते हैं? (“बाइबल और प्रार्थना से उनकी ज़िंदगी बदल गयी” बक्स देखिए।)
14 यहोवा को जो गुण पसंद हैं, उन्हें अपने अंदर बढ़ाने के लिए हमें क्या करना चाहिए? हमें खुद यह फैसला नहीं करना चाहिए कि हमें अपने अंदर क्या बदलाव करने हैं, बल्कि इस मामले में परमेश्वर से मार्गदर्शन लेना चाहिए। रोमियों 12:2 कहता है, “इस दुनिया की व्यवस्था के मुताबिक खुद को ढालना बंद करो, मगर अपने मन को नयी दिशा देने की वजह से तुम्हारी कायापलट होती जाए, ताकि तुम परखकर खुद के लिए मालूम करते रहो कि परमेश्वर की भली, उसे भानेवाली और उसकी सिद्ध इच्छा क्या है।” हम परमेश्वर के वचन बाइबल और पवित्र शक्ति की मदद से जान सकते हैं कि यहोवा की इच्छा क्या है। इसलिए हमें रोज़ बाइबल पढ़नी चाहिए, जो पढ़ते हैं उस पर मनन करना चाहिए और पवित्र शक्ति पाने के लिए यहोवा से प्रार्थना करनी चाहिए। (लूका 11:13; गला. 5:22, 23) इससे हम समझ पाएँगे कि यहोवा को क्या भाता है और उस तरह सोच पाएँगे, जैसे वह सोचता है। नतीजा हमारी सोच, हमारी बोली और हमारे काम ज़्यादातर ऐसे होंगे, जिनसे यहोवा खुश होता है। और हम सीख पाएँगे कि हम अपनी कमज़ोरियों पर कैसे काबू पा सकते हैं। इसके बावजूद हमें उनसे लड़ते रहना होगा।—नीति. 4:23.
15 हर दिन बाइबल पढ़ने के अलावा, हमें अपनी किताबों-पत्रिकाओं के ज़रिए भी बाइबल का अध्ययन करना चाहिए। जैसे, प्रहरीदुर्ग और सजग होइए! पत्रिकाएँ। इनमें दिए कई लेखों से हम सीख सकते हैं कि हम अपने अंदर यहोवा के जैसे गुण कैसे बढ़ा सकते हैं और अपनी कमज़ोरियों पर कैसे काबू पा सकते हैं। हो सकता है इनमें हमें कुछ ऐसे लेख या आयतें मिल जाएँ जो खासकर हमारे लिए फायदेमंद हैं। हम ये आयतें और लेख जमा कर सकते हैं, ताकि समय-समय पर हम इन्हें दोबारा पढ़ सकें।
16. अगर हम जल्दी तरक्की नहीं कर पा रहे हैं, तो हमें निराश क्यों नहीं होना चाहिए?
16 यहोवा के जैसे गुण पैदा करने में वक्त लगता है। इसलिए अगर आपको लगता है कि आप अपने अंदर जितने बदलाव करना चाहते हैं, उतने आप नहीं कर पाए हैं तो सब्र रखिए। हो सकता है बाइबल के मुताबिक काम करने के लिए शुरू में आपको अपने साथ सख्ती बरतनी पड़े। लेकिन जितना ज़्यादा आप उस तरह सोचेंगे और काम करेंगे जैसे यहोवा आपसे चाहता है, उतना ही आपके लिए उसकी तरह सोचना और सही काम करना आसान होता जाएगा।—भज. 37:31; नीति. 23:12; गला. 5:16, 17.
हमारे आगे जो शानदार भविष्य है उसके बारे में सोचिए
17. अगर हम यहोवा के वफादार रहें, तो हम किस शानदार भविष्य की आस लगा सकते हैं?
17 हम उस समय की आस लगाए हैं, जब हम सिद्ध हो जाएँगे और हमेशा-हमेशा यहोवा की सेवा करते रहेंगे। उस समय हमें किसी भी तरह की कमज़ोरी से जूझना नहीं पड़ेगा। हमारे लिए यहोवा की मिसाल पर चलना बहुत आसान हो जाएगा। लेकिन यहोवा ने तोहफे में जो फिरौती बलिदान दिया, उसकी वजह से हम आज भी उसकी उपासना कर पा रहे हैं। हालाँकि हम असिद्ध हैं, फिर भी अगर हम अपने अंदर बदलाव करने और बाइबल की शिक्षाओं के मुताबिक चलने की जी-तोड़ कोशिश करते रहें, तो हम उसे खुश कर सकते हैं।
18, 19. हम कैसे यकीन रख सकते हैं कि बाइबल की मदद से हम अपनी ज़िंदगी में बदलाव करते रह सकते हैं?
18 शुरू में ज़िक्र किए गए केवन ने गुस्से पर काबू पाने के लिए अपनी तरफ से पूरी कोशिश की। वह बाइबल से जो पढ़ता था उस पर उसने मनन किया और सीखी हुई बातें ज़िंदगी में लागू कीं। उसने भाई-बहनों की सलाह भी मानी। केवन को अपने अंदर सुधार करने में कुछ साल ज़रूर लगे, लेकिन उसकी मेहनत रंग लायी। कुछ समय बाद उसे सहायक सेवक के तौर पर सेवा करने का मौका मिला और पिछले 20 साल से वह प्राचीन के तौर पर सेवा कर रहा है। लेकिन उसे अब भी एहसास होता है कि अपनी कमज़ोरियों से उसकी जंग खत्म नहीं हुई। उसे इस मामले में लगातार काम करते रहना है।
19 केवन की तरह, हम भी अपनी ज़िंदगी में बाइबल की मदद से सुधार करते रह सकते हैं। अगर हम ऐसा करें, तो हम यहोवा के करीब आते रहेंगे। (याकू. 4:8) जब हम उसकी इच्छा के मुताबिक बदलाव करने की हर मुमकिन कोशिश करते हैं, तो वह हमारी मदद भी करता है। इससे हम यकीन रख सकते हैं कि बाइबल की मदद से हम अपनी ज़िंदगी में बदलाव करते रह सकते हैं।—भज. 34:8.
^ [1] (पैराग्राफ 1) नाम बदल दिया गया है।