यहोवा, उद्धार के लिए हमारी हिफाज़त करता है
“[तुम्हारी] हिफाज़त परमेश्वर अपनी शक्ति से कर रहा है, क्योंकि तुममें विश्वास है। परमेश्वर उस उद्धार के लिए तुम्हारी हिफाज़त करता है जो आखिरी वक्त में ज़ाहिर किया जाएगा।”—1 पत. 1:4, 5.
आप क्या जवाब देंगे?
हमें यहोवा ने किस तरह सच्ची उपासना की तरफ खींचा है?
हम कैसे यहोवा को अपना मार्गदर्शन करने दे सकते हैं?
यहोवा कैसे हमारी हिम्मत बँधाता है?
1, 2. (क) हम क्यों यकीन रख सकते हैं कि वफादार बने रहने में यहोवा हमारी मदद करेगा? (ख) यहोवा हममें से हरेक को कितनी अच्छी तरह जानता है?
“जो अंत तक धीरज धरता है, वही उद्धार पाएगा।” (मत्ती 24:13) यीशु के ये शब्द साफ दिखाते हैं कि शैतान की दुष्ट दुनिया के विनाश से अगर हम बचना चाहते हैं, तो हमें अंत तक यहोवा के वफादार बने रहना होगा। लेकिन यहोवा हमसे यह उम्मीद नहीं करता कि हम अपनी बुद्धि और ताकत के बल पर धीरज धरें। बाइबल हमें यकीन दिलाती है, “परमेश्वर विश्वासयोग्य है और वह तुम्हें ऐसी किसी भी परीक्षा में नहीं पड़ने देगा जो तुम्हारी बरदाश्त के बाहर हो, मगर परीक्षा के साथ-साथ वह उससे निकलने का रास्ता भी निकालेगा ताकि तुम इसे सहन कर सको।” (1 कुरिं. 10:13) इन शब्दों का क्या मतलब है?
2 अगर परमेश्वर हमें ऐसी किसी परीक्षा में नहीं पड़ने देगा जो हमारे बरदाश्त के बाहर हो, तो इसके लिए ज़रूरी है कि वह हमारे बारे में हर छोटी-से-छोटी बात जानता हो। जैसे, हम किन चुनौतियों का सामना करते हैं, हम कैसे इंसान हैं और बरदाश्त करने की हमारी हद क्या है। क्या परमेश्वर हमें इतनी अच्छी तरह जानता है? बेशक! बाइबल बताती है कि यहोवा हममें से हरेक के बारे में सबकुछ जानता है। हम हर दिन क्या करते हैं, हमारी आदतें क्या हैं। यही नहीं, वह हमारे दिल के विचारों और इरादों को भी बखूबी जानता है।—भजन 139:1-6 पढ़िए।
3, 4. (क) दाविद के अनुभव से कैसे पता चलता है कि यहोवा हममें दिलचस्पी लेता है? (ख) आज यहोवा कौन-सा हैरतअंगेज़ काम कर रहा है?
3 शायद हमें इस बात पर यकीन करना मुश्किल लगे कि सर्वशक्तिमान परमेश्वर हम मामूली इंसानों में दिलचस्पी लेता है। भजनहार दाविद ने इस बारे में काफी मनन किया था। इसलिए उसने यहोवा से कहा, “जब मैं आकाश को, जो तेरे हाथों का कार्य है, और चंद्रमा और तारागण को जो तू ने नियुक्त किए हैं, देखता हूं; तो फिर मनुष्य क्या है कि तू उसका स्मरण रखे?” (भज. 8:3, 4) दाविद ने यह सवाल शायद इसलिए किया क्योंकि उसने खुद अपनी ज़िंदगी में यहोवा की परवाह महसूस की थी। यिशै का यह सबसे छोटा बेटा छुटपन में भेड़-बकरियाँ चराया करता था, तब यहोवा ने गौर किया वह “उसके मन के अनुसार है।” फिर उसने उसे “इसराएल का प्रधान” ठहराया। (1 शमू. 13:14; 2 शमू. 7:8) ज़रा सोचिए कि दाविद को यह जानकर कितनी खुशी हुई होगी कि बचपन में चरवाही करते वक्त मन-ही-मन वह जो बातें सोचा करता था, वे सब पूरे जहान के मालिक को पता थीं!
4 आज यहोवा एक हैरतअंगेज़ काम कर रहा है जिससे पता चलता है कि वह हममें भी निजी दिलचस्पी दिखाता है। वह “सारी जातियों की मनभावनी वस्तुएं” सच्ची उपासना के लिए इकट्ठी कर रहा है। (हाग्गै 2:7) साथ ही, वह अपने सेवकों को वफादार बने रहने में मदद दे रहा है। यह वह कैसे कर रहा है? इसका जवाब जानने से पहले आइए देखें कि यहोवा सच्ची उपासना की तरफ लोगों को कैसे खींचता है।
परमेश्वर हमें अपनी तरफ खींचता है
5. परमेश्वर किस तरह लोगों को अपने बेटे के पास खींचता है? समझाइए।
5 यीशु ने कहा था, “कोई भी इंसान मेरे पास तब तक नहीं आ सकता जब तक कि पिता, जिसने मुझे भेजा है, उसे मेरे पास खींच न लाए।” (यूह. 6:44) इससे साफ ज़ाहिर है कि यहोवा की मदद से ही हम यीशु का चेला बन सकते हैं। यहोवा किस तरह भेड़ समान लोगों को अपने बेटे के पास खींचता है? खुशखबरी के प्रचार के ज़रिए और पवित्र शक्ति की मदद से। मिसाल के लिए, जब पौलुस और उसके मिशनरी साथी फिलिप्पी में थे, तो वे लुदिया नाम की एक स्त्री से मिले और उन्होंने उसे खुशखबरी सुनायी। परमेश्वर की प्रेरणा से लिखा ब्यौरा बताता है, “यहोवा ने उसके दिल के द्वार पूरी तरह खोल दिए कि वह पौलुस की कही बातों पर ध्यान दे।” जी हाँ, यहोवा ने पवित्र शक्ति के ज़रिए लुदिया को पौलुस की बातें समझने में मदद दी। नतीजा, लुदिया और उसके घराने ने बपतिस्मा लिया।—प्रेषि. 16:13-15.
6. हम सबको परमेश्वर ने किस तरह सच्ची उपासना की तरफ खींचा?
6 क्या सिर्फ लुदिया को ही परमेश्वर ने अपने बेटे के पास खींचा? जी नहीं। अगर आप एक समर्पित मसीही हैं, तो परमेश्वर ने आपको भी सच्ची उपासना की तरफ खींचा है। स्वर्ग में रहनेवाले हमारे पिता ने लुदिया के दिल में कुछ अच्छाई देखी थी, उसी तरह उसने आपमें भी कुछ अच्छाई पायी है। जब आपने खुशखबरी सुनी, तो इसे समझने के लिए यहोवा ने आपको भी पवित्र शक्ति की मदद दी। (1 कुरिं. 2:11, 12) जब आपने सीखी हुई बातों पर चलने की कोशिश की, तो यहोवा ने आपकी मेहनत पर आशीष दी ताकि आप उसकी मरज़ी पूरी कर सकें। और जब आपने उसे अपना जीवन समर्पित किया तो उसे बेहद खुशी हुई। तब से लेकर आज तक, जीवन की राह पर हर कदम यहोवा आपके साथ रहा है।
7. हम क्यों यकीन रख सकते हैं कि वफादार बने रहने में परमेश्वर हमारी मदद करेगा?
7 यहोवा की मदद से ही हमने सच्चाई की राह पर चलना शुरू किया और हम यकीन रख सकते हैं कि वफादार बने रहने में वह हमारी मदद करेगा। वह जानता है कि हम सच्चाई में खुद-ब-खुद नहीं आए और न ही अपने बूते सच्चाई में बने रह सकते हैं। अभिषिक्त मसीहियों को लिखते वक्त प्रेषित पतरस ने कहा: “तुम्हारे लिए जिनकी हिफाज़त परमेश्वर अपनी शक्ति से कर रहा है, क्योंकि तुममें विश्वास है। परमेश्वर उस उद्धार के लिए तुम्हारी हिफाज़त करता है जो आखिरी वक्त में ज़ाहिर किया जाएगा।” (1 पत. 1:4, 5) यह आयत एक मायने में सभी मसीहियों पर लागू होती है। तो फिर यहोवा आज कैसे हमारी हिफाज़त करता है? हमारे लिए इस सवाल का जवाब जानना ज़रूरी है। क्यों? क्योंकि वफादार बने रहने के लिए हम सबको परमेश्वर की मदद की ज़रूरत है।
परमेश्वर हमें गलत कदम उठाने से रोकता है
8. किस वजह से हम गलत कदम उठा सकते हैं?
8 ज़िंदगी की समस्याएँ और हमारी अपनी असिद्धता हम पर इस कदर हावी हो सकती है कि हम चीज़ों को परमेश्वर के नज़रिए से देखने से चूक जाएँ। हो सकता है, ऐसे में हम कोई गलत कदम उठा लें जिसका हमें एहसास भी न हो। (गलातियों 6:1 पढ़िए।) दाविद के साथ भी कुछ ऐसा ही हुआ था।
9, 10. यहोवा ने किस तरह दाविद को गलत कदम उठाने से रोका? और वह आज हमारी भी किस तरह मदद करता है?
9 राजा शाऊल जब दाविद की जान के पीछे पड़ा था, तब दाविद ने खुद पर काबू रखा और जलन से भरे शाऊल से कोई बदला नहीं लिया। (1 शमू. 24:2-7) लेकिन कुछ समय बाद एक ऐसा वाकया हुआ जिसमें दाविद की असिद्धता उस पर हावी हो गयी और दाविद खुद पर काबू नहीं रख पाया। एक बार उसे और उसके आदमियों को ज़बरदस्त भूख लगी। इसलिए उसने नाबाल नाम के एक इसराएली से बड़े प्यार और इज़्ज़त से खाने-पीने की कुछ चीज़ें माँगी। मगर नाबाल ने उसकी बेइज़्ज़ती की और उसे मदद देने से इनकार कर दिया। इस पर दाविद अपना आपा खो बैठा और नाबाल और उसके पूरे घराने से बदला लेने निकल पड़ा। उसे इस बात का एहसास ही नहीं रहा कि बेकसूरों का खून बहाकर वह परमेश्वर के सामने हत्यारा बन जाएगा। मगर नाबाल की पत्नी, अबीगैल ने आकर दाविद को यह गंभीर पाप करने से रोका। फिर जब दाविद को एहसास हुआ कि उसे रोकने में यहोवा का हाथ है, तब उसने अबीगैल से कहा, “इसराएल का परमेश्वर यहोवा धन्य है, जिस ने आज के दिन मुझ से भेंट करने के लिये तुझे भेजा है! और तेरा विवेक धन्य है, और तू आप भी धन्य है, कि तू ने मुझे आज के दिन खून करने और अपना पलटा आप लेने से रोक लिया है।”—1 शमू. 25:9-13, 21, 22, 32, 33.
10 इस ब्यौरे से हम क्या सबक सीखते हैं? यहोवा ने अबीगैल के ज़रिए दाविद को गलत कदम उठाने से रोका। यहोवा आज हमारी भी मदद करता है। मगर हमें यह उम्मीद नहीं करनी चाहिए कि जब भी हम कोई गलत कदम उठानेवाले होते हैं, तो परमेश्वर किसी को भेजकर हमें रोकेगा। इसके अलावा, हम यह भी नहीं जान सकते कि फलाँ हालात में परमेश्वर क्या करेगा या अपने मकसद को पूरा करने के लिए वह किन बातों को होने की इज़ाज़त देगा। (सभो. 11:5) जो भी हो, हम पूरा यकीन रख सकते हैं कि यहोवा हमारे हालात से बखूबी वाकिफ है और वफादार बने रहने में हमारी मदद ज़रूर करेगा। क्योंकि उसने हमसे वादा किया है, “मैं तुझे बुद्धि दूंगा, और जिस मार्ग में तुझे चलना होगा उस में तेरी अगुवाई करूंगा; मैं तुझ पर कृपादृष्टि रखूंगा और सम्मति दिया करूंगा।” (भज. 32:8) यहोवा हमें कैसे सम्मति या सलाह देता है? हम उसकी सलाह से कैसे फायदा पा सकते हैं? हम क्यों यकीन रख सकते हैं कि आज यहोवा अपने लोगों की अगुवाई कर रहा है? प्रकाशितवाक्य की किताब में इन सवालों के जवाब दिए गए हैं। आइए उन पर ध्यान दें।
सलाह मानने से हमारी हिफाज़त होती है
11. मसीही मंडलियों में क्या हो रहा है, यह बात यहोवा किस हद तक जानता है?
11 प्रकाशितवाक्य अध्याय 2 और 3 में बताए दर्शन में महिमा पाया यीशु मसीह, एशिया माइनर की सात मंडलियों का मुआयना करता है। इस दर्शन में यीशु ने मंडलियों का ऊपरी तौर पर जायज़ा नहीं लिया। इसके बजाय, उसने साफ-साफ बताया कि मंडलियों में क्या हो रहा है, यहाँ तक कि उसने कुछ लोगों के नाम का भी ज़िक्र किया। उसने मंडलियों को उनकी ज़रूरत के मुताबिक शाबाशी दी और सलाह भी। हमारे लिए इस दर्शन के क्या मायने हैं? इस दर्शन में बतायी सात मंडलियाँ, 1914 के बाद के अभिषिक्त मसीहियों को दर्शाती है। हालाँकि मसीह यीशु की दी सलाह खासकर अभिषिक्त मसीहियों के लिए थी, लेकिन आज दुनिया-भर में सारी मसीही मंडलियों के लिए यह फायदेमंद है। इसलिए हम यकीन के साथ कह सकते हैं कि आज यहोवा अपने बेटे के ज़रिए अपने लोगों की अगुवाई कर रहा है और उन्हें मार्गदर्शन दे रहा है। हम इस मार्गदर्शन से कैसे फायदा उठा सकते हैं?
12. हम कैसे यहोवा को अपना मार्गदर्शन करने दे सकते हैं?
12 यहोवा से मिलनेवाले मार्गदर्शन से फायदा उठाने का एक तरीका है, निजी बाइबल अध्ययन करना। विश्वासयोग्य और सूझ-बूझ से काम लेनेवाला दास जो साहित्य प्रकाशित करता है, उसके ज़रिए यहोवा हमें ढेरों सलाहें देता है। (मत्ती 24:45) इससे फायदा पाने के लिए हमें समय निकालकर इन साहित्यों का अध्ययन करना चाहिए और सीखी बातों पर अमल करना चाहिए। जब हम निजी अध्ययन करते हैं, तो हम यहोवा को मौका देते हैं कि वह हमें “गिरने से बचा” सके। (यहू. 24) क्या आपके साथ कभी ऐसा होता है कि आप साहित्य में कुछ पढ़ते हैं और आपको लगता है कि उसमें दी सलाह ठीक आपके लिए थी? अगर हाँ, तो उस सलाह को कबूल कीजिए क्योंकि वह यहोवा की तरफ से है। जिस तरह एक दोस्त आपका ध्यान खींचने के लिए अपने हाथों से आपके कंधे पर थपकी देता है उसी तरह, यहोवा अपनी पवित्र शक्ति की मदद से आपका ध्यान कुछ ऐसे चालचलन या कमियों की तरफ दिलाता है, जिसे सुधारने की ज़रूरत है। जब हम पवित्र शक्ति के निर्देशन पर चलते हैं, तो यहोवा हमारा मार्गदर्शन कर रहा होता है। (भजन 139:23, 24 पढ़िए।) तो क्यों न गौर करें कि हम निजी बाइबल अध्ययन में कितना समय बिताते और मेहनत करते हैं।
13. यह जाँचना क्यों ज़रूरी है कि हम निजी अध्ययन में कितना समय बिताते हैं?
13 अगर हम मनोरंजन में ज़रूरत से ज़्यादा वक्त बिताएँ, तो निजी बाइबल अध्ययन के लिए हमारे पास बहुत कम समय बचेगा। इस सिलसिले में एक भाई कहता है: “आज पहले से कहीं ज़्यादा मनोरंजन मौजूद है और वह भी बहुत सस्ते में। टीवी, कंप्यूटर, फोन कहीं पर भी हम मनोरंजन का मज़ा उठा सकते हैं। देखा जाए तो हम मनोरंजन से घिरे हुए हैं। ऐसे में बड़ी आसानी से हम निजी बाइबल अध्ययन नज़रअंदाज़ करने लग सकते हैं।” अगर हम सावधान न रहें तो धीरे-धीरे हमारा पूरा वक्त मनोरंजन में चला जाएगा और गहराई से निजी अध्ययन करने के लिए वक्त ही नहीं बचेगा। (इफि. 5:15-17) इसलिए हममें से हरेक को खुद से पूछना चाहिए, ‘मैं समय निकालकर कितनी बार परमेश्वर के वचन का गहराई से अध्ययन करता हूँ? क्या मैं तभी अध्ययन करता हूँ जब मुझे मंडली में कोई भाषण देना होता है या सभा में कोई भाग पेश करना होता है?’ अगर ऐसा है तो क्यों न आप पारिवारिक उपासना या निजी अध्ययन के लिए रखे गए वक्त पर बाइबल का गहराई से अध्ययन करें और खोजबीन करें ताकि यहोवा की बुद्धि-भरी बातें सीख सकें। इस तरह यहोवा, उद्धार के लिए हमारी हिफाज़त करता है।—नीति. 2:1-5.
हिम्मत बँधाकर हमें सँभालता है
14. बाइबल कैसे दिखाती है कि यहोवा हमारी भावनाओं पर ध्यान देता है?
14 दाविद को अपनी ज़िंदगी में बहुत से तनाव और दर्द-भरे हालात से गुज़रना पड़ा। (1 शमू. 30:3-6) परमेश्वर का प्रेरित वचन बताता है कि यहोवा उसकी भावनाओं को अच्छी तरह समझता था। (भजन 34:18; 56:8 पढ़िए।) यहोवा हमारी भावनाएँ भी जानता है। जब हमारा ‘मन टूट’ जाता है या हम अंदर से ‘पिसा हुआ’ महसूस करते हैं, तब वह हमारे करीब होता है। यह बात अपने आप में हमें कुछ हद तक दिलासा देती है। दाविद का भी यही अनुभव रहा। उसने एक गीत में कहा, “मैं तेरी करुणा से मगन और आनन्दित हूं, क्योंकि तू ने मेरे दुःख पर दृष्टि की है, मेरे कष्ट के समय तू ने मेरी सुधि ली है।” (भज. 31:7) मगर यहोवा हमारी दुख-तकलीफों पर सिर्फ गौर ही नहीं करता, बल्कि हमें दिलासा देकर और हमारी हिम्मत बँधाकर हमें सँभालता भी है। वह यह कैसे करता है? मसीही सभाओं के ज़रिए।
15. आसाप की मिसाल से हम क्या सबक सीखते हैं?
15 भजनहार आसाप का उदाहरण दिखाता है कि सभाओं में हाज़िर होने का एक फायदा क्या होता है। एक मुकाम पर आसाप यह सोचकर निराश हो गया कि नेक इंसान हमेशा तकलीफ उठाते हैं, जबकि दुष्ट लोग आराम-परस्त ज़िंदगी जीते हैं। उसे लगने लगा कि यहोवा की सेवा करने का कोई फायदा नहीं। उसने अपनी भावनाएँ ज़ाहिर करते हुए कहा, “मेरा मन तो चिड़चिड़ा हो गया, मेरा अन्तःकरण छिद गया।” नतीजा, वह यहोवा की सेवा बस छोड़ने ही वाला था। किस बात से आसाप को अपनी सोच सुधारने में मदद मिली? उसने कहा, “मैं . . . ईश्वर के पवित्रस्थान” में जाने लगा। जी हाँ, यहोवा के दूसरे उपासकों के साथ संगति करने से आसाप अपने नज़रिए को ठीक कर पाया। वह समझ पाया कि दुष्ट लोगों की कामयाबी सिर्फ पल-भर की है, और यहोवा उनका न्याय ज़रूर करेगा। (भज. 73:2, 13-22) जो आसाप के साथ हुआ, वैसा आज हमारे साथ भी हो सकता है। शैतान की दुनिया में हो रही नाइंसाफी को देखकर हम भी अंदर से टूट सकते हैं और हमारा हौसला कमज़ोर पड़ सकता है। लेकिन जब हम सभाओं में अपने भाई-बहनों से मिलते हैं, तो हमारी हिम्मत बँधती है और हमें खुशी से यहोवा की सेवा करते रहने में मदद मिलती है।
16. हन्ना के उदाहरण से हम क्या सीख सकते हैं?
16 लेकिन तब क्या जब मंडली में कुछ ऐसे हालात पैदा हो जाएँ, जिससे आपको सभाओं में जाना मुश्किल लगे? जैसे, शायद आपको मंडली में ज़िम्मेदारी का पद छोड़ना पड़ा है और आप शर्मिंदगी महसूस कर रहे हैं या किसी भाई या बहन से आपकी अनबन हो गयी है। ऐसे में हन्ना का उदाहरण आपकी मदद कर सकता है। (1 शमूएल 1:4-8 पढ़िए।) याद कीजिए उस पर क्या गुज़री थी। उसकी सौतन पनिन्ना ने उसका जीना दुश्वार कर रखा था। और हर साल जब पूरा परिवार यहोवा को बलिदान चढ़ाने शीलो जाता था, तब हन्ना को पनिन्ना के और भी ताने सुनने पड़ते थे। वह इस कदर हताश हो जाती थी कि “वह रोती और खाना न खाती थी।” इसके बावजूद, उसने यहोवा के भवन में जाकर उपासना करना नहीं छोड़ा। यहोवा ने उसकी वफादारी पर गौर किया और उसे आशीष भी दी।—1 शमू. 1:11, 20.
17, 18. (क) किस तरह मसीही सभाएँ हमारी हिम्मत बँधाती हैं? (ख) उद्धार के लिए यहोवा हमें जो प्यार और कोमलता दिखाता है, उस बारे में आप कैसा महसूस करते हैं?
17 आज मसीहियों को हन्ना की मिसाल पर चलते हुए लगातार सभाओं में हाज़िर होना चाहिए। जैसा हम जानते हैं, मसीही सभाएँ हमारी हिम्मत बँधाती हैं। (इब्रा. 10:24, 25) सभाओं में हम मसीही भाई-बहनों का प्यार महसूस कर पाते हैं, जिससे हमें दिलासा मिलता है। मिसाल के लिए, कभी-कभी हम भाषण में या किसी के जवाब में कुछ ऐसी बात सुनते हैं जो हमारे दिल को छू जाती है। मसीही भाई-बहनों से संगति करते वक्त जब कोई हमारी बात ध्यान से सुनता है या हौसला बढ़ानेवाली कोई बात कहता है, तब भी हमें सुकून मिलता है। (नीति. 15:23; 17:17) जब यहोवा की स्तुति में हम भाई-बहनों के साथ सुर में सुर मिलाकर राज गीत गाते हैं, तो हम जोश और उमंग से भर जाते हैं। सभाओं से मिलनेवाली हौसला-अफज़ाई की हमें तब और भी ज़रूरत होती है, जब हमारे “मन में बहुत सी चिन्ताएं होती हैं।” सभाओं में यहोवा की “दी हुई शान्ति” हमें धीरज धरने में और उसके वफादार बने रहने में मदद करती है।—भज. 94:18, 19.
18 यहोवा की प्यार-भरी परवाह में हम भी भजनहार आसाप की तरह सुरक्षित महसूस करते हैं, जिसने गाया: “तू ने मेरे दहिने हाथ को पकड़ रखा। तू सम्मति देता हुआ, मेरी अगुवाई करेगा।” (भज. 73:23, 24) वाकई हम यहोवा के एहसानमंद हैं कि उद्धार के लिए वह हमारी हिफाज़त करता है!
[पेज 28 पर तसवीर]
आपको भी यहोवा ने सच्ची उपासना की तरफ खींचा है
[पेज 30 पर तसवीरें]
परमेश्वर की दी सलाह मानने से हमारी हिफाज़त होती है
[पेज 31 पर तसवीर]
जब हमारी हिम्मत बँधायी जाती है तो हमें धीरज धरने में मदद मिलती है