अपने बच्चों में मसीही व्यक्तित्व का निर्माण करना
वॉन्डा की मां ने, जिसके पति ने उसे छोड़ दिया था, अपनी बेटी में मसीही गुणों को विकसित करने के लिए कठिन परिश्रम किया। जब वॉन्डा १२ वर्ष की थी, इस प्रशिक्षण की परीक्षा हुई। उस समय, वॉन्डा, और साथ ही उसके छोटे भाई और बहन को अपनी मां छोड़कर कुछ समय तक अपने पिता के साथ रहने के लिए विवश किया गया। उसका पिता विश्वासी नहीं था, अतः जब उसकी मां वहां देखने के लिए नहीं थी, तब वॉन्डा कैसे कार्य करती?
सभी मसीही माता-पिताओं को एक ऐसे समय का सामना करना पड़ता है जब उनके बच्चों को स्वयं अपने निर्णय लेने पड़ते हैं, जिस से स्वयं उनके विश्वास की परीक्षा होती है। बच्चे अपने मसीही माता-पिता से शायद अलग होंगे, जैसे वॉन्डा थी। वे स्कूल में ग़लत काम करने के लिए शायद हम-उम्रों के दबाव का सामना करेंगे। या वे शायद प्रभावशाली प्रलोभनों का सामना करेंगे। मसीही माता-पिता आशा और प्रार्थना करते हैं कि जब ऐसा समय आएगा, तब उनके बच्चों में मसीही व्यक्तित्व इतना शक्तिशाली होगा कि वे परीक्षा का सामना कर सकेंगे।
माता-पिता अपने बच्चों में शक्तिशाली मसीही गुणों का निर्माण कैसे कर सकते हैं? वॉन्डा के साथ क्या हुआ, यह जानने से पहले, आइए, हम देखें कि कैसे बाइबल इस प्रश्न का उत्तर देने में हमारी सहायता करती है। इस उत्तर का आधार कुरिन्थुस के मसीहियों को प्रेरित पौलुस के लिखे इन वचनों में मिलता है: “क्योंकि उस नेव को छोड़ जो पड़ी है, और वह यीशु मसीह है: कोई दूसरी नेव नहीं डाल सकता। और यदि कोई इस नेव पर सोना या चान्दी या बहुमोल पत्थर या काठ या घास या फूस का रद्दा रखे। तो हर एक का काम प्रकट हो जाएगा; क्योंकि वह दिन उसे बताएगा; इसलिए कि आग के साथ प्रगट होगा: और वह आग हर एक का काम परखेगी कि कैसा है?”—१ कुरिन्थियों ३:११-१३.
वह नींव
पौलुस ने इन वचनों को क्यों लिखा था? उसने कुरिन्थुस में मसीही व्यक्तित्व का निर्माण करने की योजना शुरू की थी, पर वह योजना समस्याओं का सामना कर रही थी। निश्चय ही, पौलुस की योजना में उसके अपने सगे बच्चे शामिल नहीं थे। इस में वे लोग शामिल थे जो उसके प्रचार के द्वारा मसीही बने थे। पर वह उन्हें आध्यात्मिक सन्तान समझता था, और जो कुछ उसने कहा वह माता-पिता के लिए भी बहुमूल्य है।—१ कुरिन्थियों ४:१५.
पौलुस कुछ समय पहले कुरिन्थुस आया था और उसने वहां एक मसीही मण्डली स्थापित की थी। जिन्होंने उसके प्रचार पर अनुकूल प्रतिक्रिया दिखाई थी, उन्होंने अपने व्यक्तित्व में बहुत परिवर्तन किए थे। कुछ लोग पहले अनैतिक, चोर, मूर्त्तिपूजक, और मतवाले रहे थे। (१ कुरिन्थियों ६:९-११) पर वे मसीही विचारणा पाने तक परिवर्तन कर सके थे इसलिए कि पौलुस ने मानो एक अच्छी नींव डाली थी। वह नींव क्या थी? “उस नेव को छोड़ जो पड़ी है, और वह यीशु मसीह है; कोई दूसरी नेव नहीं डाल सकता।”— १ कुरिन्थियों ३:११.
पौलुस ने कुरिन्थुस में नये विश्वासियों को सिखलाते समय यह नींव कैसे डाली थी? वह हमें बताता है: “हे भाइयो, जब मैं परमेश्वर का भेद सुनाता हुआ तुम्हारे पास आया, तो वचन या ज्ञान की उत्तमता के साथ नहीं आया। क्योंकि मैं ने यह ठान लिया था, कि तुम्हारे बीच यीशु मसीह, बरन क्रूस पर चढ़ाए हुए मसीह को छोड़ और किसी बात को न जानूं।” (१ कुरिन्थियों २:१, २; प्रेरितों १८:५) उसने स्वयं पर ध्यान आकृष्ट नहीं किया और ना ही सत्य को सजाया ताकि उसे एक ऊपरी बौद्धिक आकर्षण मिले। उलटा, उसने यीशु मसीह की तरफ़ और, परमेश्वर द्वारा जिस रीति से उसे काम में लाया गया था, के तरफ़ ध्यान आकृष्ट किया।
यथार्थ में, मसीही निर्माण के लिए यीशु शानदार रूप से एक मज़बूत नींव है। उसने छुड़ौती का बलिदान दिया था। वह अब एक स्वर्गीय राजा है और इस रूप में वह शीघ्र ही आरमागेडोन में परमेश्वर के शत्रुओं को नाश करेगा। उसके पश्चात् वह एक हज़ार वर्ष के शासनकाल में परमेश्वर की धार्मिकता को लागू करेगा, और परमेश्वर के महायाजक के रूप में, वह धीरे-धीरे मानव-जाति को परिपूर्णता की ओर उठाएगा। कोई व्यक्ति कौनसी दूसरी नींव की इच्छा रख सकता है?
इसलिए, अपने बच्चों में मसीही व्यक्तित्व का निर्माण करने में, हम पौलुस का अनुकरण करके और इस बात के बारे में निश्चित होकर, कि वे इन अत्यावश्यक तथ्यों का मूल्यांकन करते हैं, भली-भाँति करते हैं। उनके बचपन से ही, हमें अपने बच्चों को यीशु ने हमारे लिए जो कुछ किया है और अब भी कर रहा है, उसके लिए प्रेम दिखाने की शिक्षा देनी चाहिए।—१ पतरस १:८.
वह इमारत
बहरहाल, जब कि पौलुस ने यह बढ़िया नींव डाली थी, उसके चले जाने के बाद निर्माण कार्य में कुछ बाधाएँ आयीं। (१ कुरिन्थियों ३:१०) उस समय की समस्या आज के अनेक माता-पिता द्वारा अनुभव की जानेवाली समस्या से ज़्यादा भिन्न नहीं थी। वे अपने बच्चों को मसीही विश्वास सिखाकर बड़ा करते हैं और उन्हें इस बात का यक़ीन होता है कि उनके बच्चे समझते हैं कि सच्चाई क्या है। पर जब वे ज़रा बड़े होते हैं, तब बच्चे धीरे-धीरे दूर हो जाते हैं या विश्वास को त्याग देते हैं। ऐसा क्यों है? बहुधा ऐसा इस्तेमाल की जानेवाली निर्माण सामग्री के कारण होता है।
पौलुस ने कहा कि व्यक्तित्व क़ीमती सामग्री से निर्माण किए जा सकते हैं: सोना, चांदी, और बहुमूल्य पत्थर। या वे सस्ती वस्तुओं से निर्माण किए जा सकते हैं: लकड़ी, सूखी घास, और खूंटी। (१ कुरिन्थियों ३:१२) अब, यदि एक निर्माता सोने, चांदी, और क़ीमती पत्थरों का उपयोग करता है, तब वह ज़रूर एक उच्च कोटि की इमारत का निर्माण करता होगा, जिसका असाधारण मूल्य हो। पर जो निर्माता लकड़ी, सूखी घास, और खूंटी का उपयोग करता है, वह सिर्फ़ ऐसी इमारत बना रहा है जो कामचलाऊ, अस्थायी, और सस्ती होती है।
ऐसा लगता है कि कुरिन्थुस में कच्चे आध्यात्मिक सामग्री को उपयोग में लाया जा रहा था। कुछ लोग, जिन्होंने प्रेरित पौलुस द्वारा डाली गयी नींव पर निर्माण किया था, मज़बूत, और टिकने वाली इमारतों का निर्माण करने के बजाय सस्ते रूप से निर्माण कर रहे थे। कुरिन्थियों ने मनुष्यों की ओर ध्यान देना शुरू किया था, और उनके मध्य फूट, ईर्ष्या और संघर्ष थी। (१ कुरिन्थियों १:१०-१२; ३:१-४) इसे कैसे रोका जा सकता था? उनका बेहतर दर्जे की और टिकाऊ सामग्री इस्तेमाल करने के द्वारा।
ये उन क़ीमती विशेषताओं को चित्रित करते हैं जो एक मसीही के व्यक्तित्व का आवश्यक अंग हैं। कौनसी विशेषताएं? प्रेरित पतरस ने एक का उल्लेख किया था: “तुम्हारा परखा हुआ विश्वास, जो आग से ताए हुए नाशमान सोने से भी कहीं अधिक बहुमूल्य है।” (१ पतरस १:६, ७) राजा सुलैमान ने दो और विशेषताओं का ज़िक्र किया: बुद्धि और समझ, जिनकी प्राप्ति “चांदी की प्राप्ति से बड़ी” है। (नीतिवचन ३:१३-१५) और राजा दाऊद ने हमें याद दिलाया कि यहोवा का भय और उसकी आज्ञाओं के लिए मूल्याकंन “सोने से . . . बढ़कर मनोहर है।”—भजन १९:९, १०.
हमारे बच्चों को परीक्षाओं का सफलतापूर्वक सामना करने की मदद के लिए मसीही व्यक्तित्व के निर्माण में इनका और अन्य बहुमूल्य सामग्री का उपयोग किया जा सकता है। तथापि, हम किस तरह निश्चित हो सकते हैं कि हम ने ऐसी सामग्री से निर्माण किया है? हमारे बच्चों के और हमारे अपने हृदय की ओर ध्यान देकर।
एक सफल निर्माण कार्य
इस निर्माण कार्य में एक माता या पिता के हृदय की भूमिका प्राचीन इस्राएल की जाति में माता-पिताओं को यहोवा द्वारा दी गयी आज्ञा में देखी जाती है: “ये आज्ञाएं जो मैं आज तुझ को सुनाता हूं वे तेरे मन में बनी रहें।” फिर उन्होंने आगे बताया: “और तू इन्हें अपने बाल-बच्चों को समझाकर सिखाया करना।” (व्यवस्थाविवरण ६:६, ७) इसलिए, इससे पहले कि हम दूसरों की उन्नति के लिए काम करें, हमें स्वयं की उन्नति के लिए काम करना है। हम जो कुछ कहते या करते हैं, उन में हमारे बच्चों को देख सकना चाहिए कि हमारा व्यक्तित्व ठीक सामग्री से बना है।—कुलुस्सियों ३:९, १०.
फिर हमारी शिक्षा को उनके हृदय तक पहुंचना है। यीशु, जो मसीही व्यक्तित्वों का सबसे सफल निर्माता था, दृष्टान्तों और प्रश्नों का उपयोग करने के द्वारा हृदयों तक पहुंचता था। (मत्ती १७:२४-२७; मरकुस १३:३४) माता-पिता पाते हैं कि यही शिक्षण प्रणालियाँ बहुत ही प्रभावशाली हैं। वे दृष्टान्तों का उपयोग करते हैं ताकि अपने छोटे बच्चों के हृदय को मसीही सच्चाइयाँ आकर्षक लगे और वे अच्छी तरह सोचे गए प्रश्नों का उपयोग करते हैं, यह पहचानने के लिए कि वास्तव में उनके बड़े बच्चे क्या सोच रहे हैं, वे अपने हृदयों में किस तरह तर्क कर रहे हैं।—नीतिवचन २०:५.
जब मूसा ने इस्राएलियों में विश्वस्त बने रहने की इच्छा निर्मित करने की कोशिश की थी, उसने कहा: “यहोवा की जो जो आज्ञा और विधि है . . . उनको ग्रहण करे, जिस से तेरा भला हो।” (व्यवस्थाविवरण १०:१३) इसी प्रकार, माता-पिता अपने बच्चों को स्पष्ट रीति से न केवल यह बताकर भली-भाँति करते हैं कि परमेश्वर के स्तर क्या हैं परन्तु प्रत्ययकारी रीति से यह भी बताकर अच्छा करते हैं कि क्यों ईमानदारी, नैतिक स्वच्छता, और अच्छी संगति जैसी बातें उनके भले के लिए हैं।
अन्त में, यीशु ने बताया: “अनन्त जीवन यह है, कि वे तुझ अद्वैत सच्चे परमेश्वर को और यीशु मसीह को, जो तू ने भेजा है, जाने।” (यूहन्ना १७:३) जब बच्चे कम उम्र में ही व्यक्तिगत रीति से यहोवा से परिचित होते हैं, अपनी समस्याओं के बारे उससे बातचीत करना सीखते हैं, और उन्हें अपनी प्रार्थनाओं का उत्तर पाने का अनुभव होता है, तब वे मसीही व्यक्तित्व का अत्यन्त विशेष भाग, अपने सृष्टिकर्ता के साथ एक व्यक्तिगत सम्बन्ध विकसित करते हैं।
आग
पौलुस ने पाया कि जब कुरिन्थुस में निर्माण कार्य ठीक ढंग से नहीं किया गया था, सांसारिक विशेषताएँ, जैसे साम्प्रदायिकता और मतभेद ने जड़ें जमा लीं। यह ख़तरनाक बात थी क्योंकि, जैसा कि उसने बताया, “वह आग हर एक का काम परखेगी कि कैसा है।”—१ कुरिन्थियों ३:१३.
वह आग क्या है? यह कोई भी परीक्षा हो सकती है जो शैतान एक मसीही पर लाता है। यह हम-उम्रों का दबाव, शारीरिक प्रलोभन, भौतिकवाद, उत्पीड़न, यहां तक कि सन्देहों का क्षयकारी प्रभाव भी हो सकता है। ऐसी परीक्षाएं निश्चय ही आने वाली हैं। “हर एक का काम प्रगट हो जाएगा; क्योंकि वह दिन उसे बताएगा; इसलिए कि आग के साथ प्रगट होगा।” बुद्धिमान माता-पिता इस प्रत्याशा से अपने बच्चों के व्यक्तित्वों का निर्माण करते हैं कि बच्चों की परीक्षा ज़रूर होगी। पर उन्हें भरोसा है कि यहोवा की सहायता से उनके बच्चे परीक्षा में से सफल निकल सकते हैं। यदि माता-पिता ऐसी मनोवृत्ति रखेंगे, उन्हें बहुत आशिषें मिलेंगी।
इनाम
पौलुस ने बताया: “जिस का काम उस पर बना हुआ स्थिर रहेगा, वह मज़दूरी पाएगा।” (१ कुरिन्थियों ३:१४) प्रेरित पौलुस को इनाम मिला था। थिस्सलुनीका शहर के मसीहियों को, जिस जगह में भी उसने निर्माण कार्य किया था, उसने लिखा: “भला हमारी आशा, या आनन्द या बड़ाई का मुकुट क्या है? क्या हमारे प्रभु यीशु के सम्मुख उसके आने के समय तुम ही न होगे? हमारी बड़ाई और आनन्द तुम ही हो।”—१ थिस्सलुनीकियों २:१९, २०.
वॉन्डा की मां को यह इनाम मिला। जब १२ वर्षीय वॉन्डा ने स्वयं को अपनी मां से अलग पाया, पहले-पहले वह रोते-रोते सो पड़ती थी। फिर उसे अपनी मां की सलाह याद आयी कि प्रार्थना के ज़रिए यहोवा के साथ अपनी समस्याओं के बारे में बातचीत करें। उसने प्रार्थना की और शीघ्र ही उसे टेलिफोन पुस्तक में देखने का विचार आया कि क्या आस-पास कोई यहोवा के गवाह रहते हैं या नहीं। उसने उनसे सम्पर्क किया और पाया कि एक परिवार उसके पिता के घर वाले रास्ते पर ही रहता था। वॉन्डा कहती है, “मैं कितनी खुश हुई!”
इस परिवार से प्रोत्साहन पाने पर, वॉन्डा ने अपने छोटे भाई और बहन को मसीही गतिविधियों में फिर से शुरू होने के लिए सुव्यवस्थित किया। वह कहती है, “सभाओं के लिए उन्हें तैयार करने का उत्तरदायित्व मुझ पर था। मुझे हम लोगों के वस्त्र धोने थे, हमारे बालों की कंघी करनी थी, और यह निश्चित करना था कि क्या हम स्वच्छ और उपस्थित होने लाएक थे या नहीं।” एक छोटी लड़की के लिए यह करना कठिन था, परन्तु उसने कर दिखाया। एक बार उसके पिता ने उन्हें सभाओं में उपस्थित होने से रोकने की कोशिश की, पर बच्चों ने उन से निवेदन किया, और उन्होंने उन्हें जाने दिया।
बाद में, बच्चे दोबारा अपनी मां से मिला दिए गए। जब वॉन्डा १५ वर्ष की हुई, वह एक बपतिस्मा प्राप्त मसीही बन गयी, और अन्त में उसने एक मिश्नरी बनने की अभिलाषा व्यक्त की। हां, वॉन्डा की मां के कार्य को उस परीक्षा में विजय मिला। उसे अपनी बेटी को स्वयं सत्य में दृढ़ रहते देखने के इनाम का आनन्द मिला। सभी माता-पिताओं को ऐसी ही सफलता मिले जैसे-जैसे वे अपने बच्चों में मसीही व्यक्तित्व का निर्माण करने के लिए परिश्रम करते हैं।
[पेज 30 पर बक्स]
जबकि, जैसा यह लेख दिखाता है, माता-पिता अपने बच्चों में मसीही व्यक्तित्त्व का निर्माण करने की बहुत कोशिश करते हैं, खुद बच्चों में भी उत्तरदायित्त्व होना चाहिए। सभी मसीहियों के समान, उन्हें स्वयं में निर्माण कार्य करना चाहिए। (इफिसियों ४:२२-२४) यद्यपि इस सम्बन्ध में माता-पिता के पास सहायता करने का बढ़िया मौक़ा प्राप्त है, अन्त में प्रत्येक व्यक्ति को यहोवा की सेवकाई करने के लिए स्वयं का निर्णय करना पड़ता है।