परमेश्वर के साथ-साथ चलते रहिए
“आत्मा के अनुसार चलो, तो तुम शरीर की लालसा किसी रीति से पूरी न करोगे।”—गलतियों ५:१६.
१. (क) किन परिस्थितियों में और कब तक हनोक परमेश्वर के साथ-साथ चला? (ख) नूह कब तक परमेश्वर के साथ-साथ चला, और उस पर कौन-सी बड़ी-बड़ी ज़िम्मेदारियाँ थीं?
बाइबल हमें बताती है कि हनोक “[सच्चे] परमेश्वर के साथ साथ चलता था।” उसके इर्द-गिर्द लोगों की घटिया बोली और विधर्मी आचरण के बावजूद, वह अपने जीवन के अंत तक, यानी ३६५ साल की उम्र तक परमेश्वर के साथ-साथ चलता रहा। (उत्पत्ति ५:२३, २४; यहूदा १४, १५) नूह भी “[सच्चे] परमेश्वर . . . के साथ साथ चलता रहा।” अपने परिवार का पालन-पोषण करते वक़्त, विद्रोही स्वर्गदूतों और उनकी हिंसक संतान से प्रभावित संसार का सामना करते वक़्त, और प्राचीन समय के किसी समुद्री जहाज़ से कहीं बड़े जहाज़ के निर्माण की सभी बारीक़ियों का ध्यान रखते वक़्त नूह ऐसा करता रहा। जलप्रलय के बाद वह परमेश्वर के साथ-साथ तब भी चलता रहा जब बाबॆल में यहोवा के विरुद्ध विद्रोह का फिर से जन्म हुआ। सचमुच, ९५० साल की उम्र में अपनी मृत्यु तक नूह परमेश्वर के साथ-साथ चलता रहा।—उत्पत्ति ६:९; ९:२९.
२. ‘परमेश्वर के साथ-साथ चलने’ का क्या अर्थ है?
२ यह कहते वक़्त कि विश्वास रखनेवाले ये व्यक्ति परमेश्वर के साथ-साथ ‘चलते रहे,’ बाइबल इस शब्द को लाक्षणिक अर्थ में इस्तेमाल कर रही है। इसका अर्थ है कि हनोक और नूह के व्यवहार का तरीक़ा ऐसा था जिससे परमेश्वर में मज़बूत विश्वास का सबूत मिला। यहोवा ने जो आज्ञा दी उन्होंने वही किया। मानवजाति के साथ परमेश्वर के व्यवहार से उन्होंने उसके बारे में जो जानकारी पायी थी उसी के अनुसार उन्होंने अपने जीवन में फेर-बदल किए। (२ इतिहास ७:१७ से तुलना कीजिए।) परमेश्वर ने जो कहा और किया उससे वे सिर्फ़ दिमाग़ी तौर पर ही सहमत नहीं हुए, बल्कि उन्होंने उसकी हर माँग पूरी की—सिर्फ़ कुछ ही नहीं बल्कि सभी पूरी कीं, जितना अपरिपूर्ण मनुष्यों के नाते उनके लिए संभव था। इस तरह, नूह परमेश्वर की आज्ञा के अनुसार ठीक वैसा ही करने की एक मिसाल था। (उत्पत्ति ६:२२) नूह को जो कहा गया था उससे वह आगे नहीं गया, न ही वह लापरवाही बरतकर पीछे रहा। एक ऐसे व्यक्ति के नाते जिसने यहोवा के साथ आत्मीयता का आनंद उठाया, परमेश्वर से प्रार्थना करने में संकोच महसूस नहीं किया और ईश्वरीय निर्देशन की क़दर की, वह परमेश्वर के साथ-साथ चल रहा था। क्या आप ऐसा कर रहे हैं?
नियमित जीवनक्रम
३. परमेश्वर के सभी समर्पित और बपतिस्मा पाए हुए सेवकों के लिए क्या बात निहायत ज़रूरी है?
३ लोगों को परमेश्वर के साथ चलना शुरू करते देख दिल ख़ुश हो जाता है। जब वे यहोवा की इच्छा के अनुसार सकारात्मक क़दम उठाते हैं, वे ऐसे विश्वास का सबूत देते हैं, जिसके बिना कोई परमेश्वर को प्रसन्न नहीं कर सकता। (इब्रानियों ११:६) हमें कितनी ख़ुशी होती है कि पिछले पाँच सालों से, हर साल औसतन ३,३०,००० से ज़्यादा व्यक्तियों ने खुद को यहोवा को समर्पित किया है और पानी के बपतिस्मे के लिए खुद को पेश किया है! परंतु उनके लिए और हम सभी के लिए यह भी ज़रूरी है कि परमेश्वर के साथ-साथ चलते रहें।—मत्ती २४:१३; प्रकाशितवाक्य २:१०.
४. हालाँकि उन्होंने थोड़ा-बहुत विश्वास दिखाया, मिस्र को छोड़नेवाले ज़्यादातर इस्राएली प्रतिज्ञात देश में क्यों नहीं गए?
४ मूसा के दिनों में, एक इस्राएली परिवार के लिए मिस्र में फसह का पर्व मनाने के लिए और अपने घर के द्वार के अलंगों और चौखट के सिरे पर लहू छिड़कने के लिए विश्वास की ज़रूरत थी। (निर्गमन १२:१-२८) लेकिन, अनेक लोग विश्वास से विचलित हो गए जब उन्होंने लाल समुद्र के पास फ़िरौन की सेना को अपने पीछे और बहुत ही पास देखा। (निर्गमन १४:९-१२) भजन १०६:१२ दिखाता है कि जब वे समुद्र की सूखी भूमि को सुरक्षित पार कर चुके थे और जब उन्होंने उमड़ते पानी को मिस्री सेना का ख़ातमा करते देखा था, तो उन्होंने फिर से “[यहोवा] के वचनों का विश्वास किया।” लेकिन, थोड़े ही समय बाद वीराने में इस्राएली पीने के पानी, भोजन और उनका निरीक्षण करनेवालों के बारे में शिकायत करने लगे। प्रतिज्ञात देश से लौटनेवाले १२ जासूसों में से १० की बुरी रिपोर्ट से वे डर गए। उन परिस्थितियों में, जैसे भजन १०६:२४ (NHT) कहता है, उन्होंने “[परमेश्वर] के वचन पर विश्वास नहीं किया।” वे मिस्र को लौट जाना चाहते थे। (गिनती १४:१-४) जो थोड़ा-बहुत विश्वास उनको था, वह सिर्फ़ तब उजागर होता जब वे ईश्वरीय शक्ति के कुछ असाधारण प्रदर्शन देखते। वे परमेश्वर के साथ-साथ चलते नहीं रहे। इसका परिणाम यह था कि वे इस्राएली प्रतिज्ञात देश में नहीं गए।—भजन ९५:१०, ११.
५. दूसरा कुरिन्थियों १३:५ और नीतिवचन ३:५, ६ कैसे परमेश्वर के साथ-साथ चलने से संबंधित हैं?
५ बाइबल हमें सलाह देती है: “अपने आप को परखो, कि विश्वास में हो कि नहीं; अपने आप को जांचो।” (२ कुरिन्थियों १३:५) “विश्वास में” होने का अर्थ है सभी मसीही विश्वासों को मानना। अगर हमें अपने पूरे जीवन में परमेश्वर के साथ-साथ चलने में सफलता पानी है तो यह बहुत ज़रूरी है। परमेश्वर के साथ-साथ चलने के लिए, हमें विश्वास का गुण भी दिखाना चाहिए, यहोवा पर पूरा भरोसा रखना चाहिए। (नीतिवचन ३:५, ६) जो लोग ऐसा नहीं करते उनको जोखिम में डालने के लिए अनेक फँदे और ख़तरे हैं। इनमें से कुछ फँदे कौन-से हैं?
आत्म-विश्वास के फँदे से दूर रहिए
६. व्यभिचार और परस्त्रीगमन के बारे में सभी मसीही क्या जानते हैं, और वे इन पापों के बारे में कैसा महसूस करते हैं?
६ ऐसा हर व्यक्ति जिसने बाइबल का अध्ययन किया है, यहोवा को अपना जीवन समर्पित किया है और बपतिस्मा लिया है, वह जानता है कि परमेश्वर का वचन व्यभिचार और परस्त्रीगमन की निंदा करता है। (१ थिस्सलुनीकियों ४:१-३; इब्रानियों १३:४) ऐसे व्यक्ति मानते हैं कि यह बात सही है। वे उसके अनुसार जीने की मंशा रखते हैं। फिर भी, लैंगिक अनैतिकता अब भी शैतान के सबसे प्रभावकारी फँदों में से एक है। क्यों?
७. मोआब के मैदानों में, इस्राएली पुरुष कैसे ऐसा व्यवहार करने लगे जो वे जानते थे कि ग़लत है?
७ शुरूआत में, जो ऐसे अनैतिक आचरण में पड़ जाते हैं वे शायद ऐसा करने के बारे में पहले से नहीं सोच रहे होते। शायद यही बात मोआब के मैदानों में इस्राएलियों के बारे में भी सच थी। वीराने की ज़िंदगी से थक चुके इस्राएली पुरुषों को, उन्हें लुभानेवाली मोआब और मिद्यान की स्त्रियाँ पहले शायद मिलनसार और सत्कारशील लगी हों। लेकिन तब क्या हुआ जब इस्राएलियों ने ऐसे लोगों के साथ मिलने-जुलने का बुलावा स्वीकार किया जो यहोवा की नहीं बाल की सेवा करते थे, जो अपनी बेटियों को (प्रतिष्ठित परिवारों की भी) ऐसे पुरुषों से मैथुनिक संबंध रखने की इजाज़त देते थे जिनके साथ उनका ब्याह नहीं हुआ था? जब इस्राएल की छावनी के पुरुष ऐसे मेल-मिलाप को अच्छा समझने लगे, तो उन्होंने प्रलोभन में आकर ऐसे काम किए जिन्हें वे जानते थे कि ग़लत हैं, और इसकी क़ीमत उन्हें अपनी जान देकर चुकानी पड़ी।—गिनती २२:१; २५:१-१५; ३१:१६; प्रकाशितवाक्य २:१४.
८. हमारे समय में, कौन-सी बात एक मसीही को लैंगिक अनैतिकता की ओर ले जा सकती है?
८ हमारे समय में किस बात के कारण एक व्यक्ति ऐसे ही फँदे में फँस सकता है? हालाँकि वह लैंगिक अनैतिकता की गंभीरता को शायद जानता हो, लेकिन अगर वह आत्म-विश्वास के ख़तरे को नहीं समझता, तो वह खुद को ऐसी स्थिति में ला सकता है, जहाँ ग़लत काम करने का प्रलोभन उसकी विचार-शक्ति पर हावी हो जाता है।—नीतिवचन ७:६-९, २१, २२; १४:१६.
९. कौन-सी शास्त्रीय चेतावनियाँ हमें अनैतिकता से सुरक्षित रख सकती हैं?
९ परमेश्वर का वचन साफ़ शब्दों में हमें चेतावनी देता है कि इस सोच-विचार से न भरमाए जाएँ कि हम इतने मज़बूत हैं कि बुरी संगति हमें दूषित नहीं करेगी। इसमें ऐसे टी.वी. कार्यक्रम देखना शामिल है जो अनैतिक लोगों का जीवन दिखाते हैं और ऐसी पत्रिकाएँ देखना शामिल है जो अनैतिक अभिलाषाएँ जगाती हैं। (१ कुरिन्थियों १०:११, १२; १५:३३) यहाँ तक कि ग़लत हालात में संगी विश्वासियों के साथ मिलना-जुलना भी गंभीर समस्याएँ खड़ी कर सकता है। स्त्री और पुरुष के बीच का आकर्षण बहुत ज़्यादा है। इसलिए यहोवा के संगठन ने प्रेम भरी परवाह के साथ चेतावनी दी है कि विपरीत लिंग के किसी व्यक्ति के साथ, जिससे हमारा विवाह नहीं हुआ या जो हमारे परिवार का एक सदस्य नहीं है, अकेले और लोगों की नज़र से दूर न रहें। परमेश्वर के साथ-साथ चलते रहने के लिए, हमें आत्म-विश्वास के फँदे से दूर रहने और उस चेतावनी भरी सलाह को मानने की ज़रूरत है जो वह हमें देता है।—भजन ८५:८.
मनुष्य के भय के वश में न आएँ
१०. “मनुष्य का भय खाना” कैसे एक फँदा हो जाता है?
१० एक और ख़तरा नीतिवचन २९:२५ में बताया गया है, जो कहता है: “मनुष्य का भय खाना फन्दा हो जाता है।” शिकारी के फँदे में अकसर एक पाश होता है जो गर्दन को कसकर खींचता है या ऐसी रस्सियाँ होती हैं जिनमें जानवर के पैर फँस जाते हैं। (अय्यूब १८:८-११) उसी तरह एक व्यक्ति की खुलकर बोलने और परमेश्वर को प्रसन्न करनेवाला व्यवहार रखने की योग्यता, मनुष्य का भय खाने से घुटकर ख़त्म हो सकती है। दूसरों को ख़ुश करने की इच्छा सामान्य है, और दूसरे क्या सोचते हैं इसकी कोई परवाह न करना, मसीही तरीक़ा नहीं है। लेकिन संतुलन की ज़रूरत है। दूसरे मनुष्यों की संभव प्रतिक्रिया की चिंता में अगर कोई व्यक्ति वह काम करता है जिसकी परमेश्वर मनाही करता है या वह काम नहीं करता जिसकी आज्ञा परमेश्वर का वचन देता है, तो वह व्यक्ति फँदे में फँस चुका है।
११. (क) मनुष्य के भय के वश में आने के विरुद्ध कौन-सी बात सुरक्षा का काम करती है? (ख) यहोवा ने मनुष्य के भय से संघर्ष करनेवाले अपने सेवकों को कैसे मदद दी है?
११ ऐसे फँदे से सुरक्षा, अपने सहज स्वभाव से नहीं मिलती, बल्कि “यहोवा पर भरोसा” करने से मिलती है। (नीतिवचन २९:२५ख) परमेश्वर पर भरोसा करके, ऐसा व्यक्ति भी जो स्वभाव से शर्मीला है, साहसी और दृढ़निश्चयी साबित हो सकता है। जब तक हम इस शैतानी रीति-व्यवस्था के दबावों से घिरे हुए हैं, हमें मनुष्य के भय के फँदे से सतर्क रहने की ज़रूरत है। हालाँकि भविष्यवक्ता एलिय्याह ने साहसी सेवा में अच्छा रिकार्ड क़ायम किया था, फिर भी जब ईज़ेबेल ने उसे मार डालने की धमकी दी, तो वह डरकर भाग निकला। (१ राजा १९:२-१८) दबाव में आकर, प्रेरित पतरस ने डर के मारे यीशु मसीह को जानने से इनकार कर दिया, और सालों बाद उसने डर के कारण इस तरीक़े से व्यवहार किया जो विश्वास के विरुद्ध था। (मरकुस १४:६६-७१; गलतियों २:११, १२) लेकिन, एलिय्याह और पतरस दोनों ने आध्यात्मिक मदद स्वीकार की और यहोवा पर भरोसे के साथ परमेश्वर की सेवा स्वीकारयोग्य तरीक़े से करना जारी रखा।
१२. आज के कौन-से उदाहरण दिखाते हैं कि भय के कारण परमेश्वर को प्रसन्न करने से पीछे न हटने के लिए व्यक्तियों की कैसे मदद की गयी है?
१२ हमारे समय में भी यहोवा के अनेक सेवकों ने यह जाना है कि कैसे भय के फँदे पर जय पाएँ। गयाना की एक किशोर साक्षी ने हामी भरी: “स्कूल में समकक्ष दबाव का विरोध करने की लड़ाई बड़ी ज़ोरदार है।” लेकिन उसने आगे कहा: “उतना ही मज़बूत यहोवा में मेरा विश्वास है।” जब शिक्षक ने उसके विश्वास के कारण सारी कक्षा के सामने उसका मज़ाक उड़ाया, तो उसने चुपचाप यहोवा से प्रार्थना की। बाद में उसने अकेले में उस शिक्षक को कुशलतापूर्वक साक्षी दी। एक युवक जो यहोवा की माँगों के बारे में सीख रहा था, बॆनिन में अपने गृहनगर गया। उसने निश्चय किया कि वह उस मूर्ति से छुटकारा पाएगा जो उसके पिता ने उसके लिए बनायी थी। वह युवक जानता था कि उस मूर्ति में जान नहीं है, और वह उससे डरता नहीं था, लेकिन वह यह भी जानता था कि ग़ुस्सा हुए गाँववाले उसे मारने की कोशिश कर सकते हैं। उसने यहोवा से प्रार्थना की और फिर रात के समय उस मूर्ति को वह जंगल में ले गया और उसे नष्ट कर दिया। (न्यायियों ६:२७-३१ से तुलना कीजिए।) डॉमिनिकन गणराज्य में जब एक स्त्री यहोवा की सेवा करने लगी, तो उसके पति ने उससे माँग की कि वह उसके और यहोवा के बीच किसी एक का चुनाव कर ले। उस पुरुष ने उसे तलाक़ की धमकी दी। क्या वह डर के कारण अपना विश्वास त्याग देती? उसने जवाब दिया: “अगर बेवफ़ाई की बात होती, तो मैं शर्मिंदा होती, लेकिन यहोवा परमेश्वर की सेवा करने के लिए मैं शर्मिंदा नहीं हूँ!” वह परमेश्वर के साथ-साथ चलती रही, और कुछ समय बाद उसका पति यहोवा की इच्छा पूरी करने में उसके साथ हो लिया। अपने स्वर्गीय पिता पर पूरे भरोसे के साथ हम भी ऐसा कर सकते हैं। जो काम हम जानते हैं यहोवा को प्रसन्न करेगा, उसमें हम मनुष्य के भय को रुकावट बनने नहीं देंगे।
सलाह को तुच्छ न समझिए
१३. पहला तीमुथियुस ६:९ में हमें किस फँदे के बारे में चेतावनी दी गयी है?
१३ हालाँकि शिकारियों के कुछ फँदे इस तरह बनाए जाते हैं कि कोई भी जानवर जो यूँ ही उस जगह से गुज़रता है तो पकड़ा जाता है, फिर भी दूसरे फँदों में जानवरों को भ्रम पैदा करनेवाले आकर्षक चारे से फँसाया जाता है। अनेक मनुष्यों के लिए धन यही काम करता है। (मत्ती १३:२२) पहला तीमुथियुस ६:८, ९ में, बाइबल हमें प्रोत्साहित करती है कि अगर हमारे पास खाने और पहिनने को है, तो इन्हीं से संतोष करना चाहिए। उसके बाद यह चेतावनी देती है: “जो धनी होना चाहते हैं, वे ऐसी परीक्षा, और फंदे और बहुतेरे व्यर्थ और हानिकारक लालसाओं में फंसते हैं, जो मनुष्यों को बिगाड़ देती हैं और विनाश के समुद्र में डूबा देती हैं।”
१४. (क) कौन-सी बात एक व्यक्ति को खाने और पहिनने से संतोष करने की सलाह पर चलने से रोक सकती है? (ख) धन की ग़लत समझ के कारण कैसे एक व्यक्ति १ तीमुथियुस ६:९ में दी गयी चेतावनी को तुच्छ समझ सकता है? (ग) किस तरीक़े से “आंखों की अभिलाषा” शायद कुछ लोगों को आगे रखे फँदे के प्रति अंधा कर दे?
१४ इस चेतावनी के बावजूद, अनेक जन फँदे में फँस जाते हैं क्योंकि वे इस सलाह को खुद पर लागू नहीं करते। क्यों? क्या ऐसा है कि घमंड उन्हें ऐसी जीवन-शैली बनाए रखने की ज़िद्द करने पर मजबूर करता है जिसमें “खाने और पहिनने” से कहीं ज़्यादा शामिल है, जबकि बाइबल हमें इनसे संतोष करने का आग्रह करती है? क्या ऐसा हो सकता है कि वे बाइबल की चेतावनी को तुच्छ समझ रहे हैं क्योंकि वे बहुत ज़्यादा अमीर लोगों की संपत्ति को ही धन समझते हैं? बाइबल साफ़-साफ़ दिखाती है कि धनी होने का संकल्प, खाने और पहनने से संतुष्ट होने की बात के विपरीत है। (इब्रानियों १३:५ से तुलना कीजिए।) क्या “आंखों की अभिलाषा” के कारण—जो चीज़ें वे देखते हैं उन्हें पाने की अभिलाषा, चाहे फिर आध्यात्मिक लक्ष्यों की ही आहूति क्यों न देनी पड़े—वे सच्ची उपासना को पीछे छोड़ देते हैं? (१ यूहन्ना २:१५-१७; हाग्गै १:२-८) ऐसे लोग कितने ज़्यादा ख़ुश हैं जो सचमुच बाइबल की सलाह पर चलते हैं और यहोवा की सेवा को अपने जीवन का मुख्य मक़सद बनाकर परमेश्वर के साथ-साथ चलते हैं!
जीवन की चिंताओं का सफलता से सामना करना
१५. कौन-सी स्थितियाँ स्वाभाविक ही यहोवा के अनेक लोगों के लिए चिंता का कारण बनती हैं, और जब हम ऐसे दबाव में होते हैं तब हमें किस फँदे से सावधान रहना चाहिए?
१५ धनी होने के संकल्प से ज़्यादा आम है जीवन की आवश्यकताएँ पाने के लिए चिंतित रहना। यहोवा के अनेक सेवक बस कम-से-कम संपत्ति के साथ जी रहे हैं। वे घंटों कड़ी मेहनत करते हैं ताकि तन ढकने के लिए कपड़ा, रात के वक़्त अपने परिवार के सिर पर छत, और दिन के लिए कम-से-कम थोड़ा-सा खाना जुटा पाएँ। दूसरे अपने या अपने परिवार के सदस्यों के रोग या बुढ़ापे के कारण आयी समस्याओं से जूझ रहे हैं। जीवन की ऐसी परिस्थितियों में अपने आध्यात्मिक हितों का गला घोंट देना कितना आसान होता है!—मत्ती १३:२२.
१६. जीवन के दबावों का सामना करने में यहोवा कैसे हमारी मदद करता है?
१६ प्रेमपूर्वक, यहोवा हमें उस राहत के बारे में बताता है जो मसीहाई राज्य के अधीन अनुभव की जाएगी। (भजन ७२:१-४, १६; यशायाह २५:७, ८) अपनी प्राथमिकताओं को सही कैसे रखें इस बारे में हमें सलाह देकर, यहोवा आज जीवन के दबावों का सामना करने में भी हमारी मदद करता है। (मत्ती ४:४; ६:२५-३४) अतीत में यहोवा ने अपने सेवकों की कैसे मदद की, इसके अभिलेख के ज़रिए वह हमें बार-बार आश्वासन देता है। (यिर्मयाह ३७:२१; याकूब ५:११) वह हमें इस विचार से मज़बूत करता है कि चाहे कोई भी मुसीबत हम पर आ पड़े, उसके निष्ठावान सेवकों के लिए उसका प्रेम वैसा ही रहता है। (रोमियों ८:३५-३९) उन लोगों के लिए जो अपना भरोसा यहोवा पर रखते हैं, वह कहता है: “मैं तुझे कभी न छोड़ूंगा, और न कभी तुझे त्यागूंगा।”—इब्रानियों १३:५.
१७. इसके उदाहरण दीजिए कि कैसे कुछ व्यक्ति बड़ी मुसीबत से गुज़रते समय भी परमेश्वर के साथ-साथ चलते रहने में कामयाब रहे हैं।
१७ इस विचार को जानकर और इससे मज़बूती पाकर, सच्चे मसीही संसार के तरीक़ों की ओर फिरने के बजाय परमेश्वर के साथ-साथ चलते रहते हैं। अनेक देशों के ग़रीबों का एक आम सांसारिक फ़लसफ़ा है कि जिस व्यक्ति के पास बहुत है उससे लेकर आप अगर अपने परिवार को खिलाते हैं तो यह चोरी नहीं है। लेकिन वे जो विश्वास से चलते हैं इस विचार को ठुकराते हैं। वे परमेश्वर की स्वीकृति को बाक़ी सब बातों से ज़्यादा महत्त्व देते हैं और अपनी ईमानदारी के प्रतिफल के लिए उसकी ओर देखते हैं। (नीतिवचन ३०:८, ९; १ कुरिन्थियों १०:१३; इब्रानियों १३:१८) भारत में एक विधवा ने पाया कि काम करने की इच्छा के साथ-साथ उपायकुशलता ने उसे स्थिति का सामना करने में मदद दी। जीवन में अपनी स्थिति को लेकर कुढ़ने के बजाय, वह इस बात को जानती थी कि अगर उसने परमेश्वर के राज्य और उसकी धार्मिकता को अपने जीवन में पहला स्थान दिया, तो अपने लिए और अपने बेटे के लिए जीविका कमाने के उसके प्रयासों पर यहोवा आशीष देगा। (मत्ती ६:३३, ३४) सारी पृथ्वी में हज़ारों लोग यह कर दिखाते हैं कि चाहे उन पर कोई भी मुसीबत क्यों न आए, यहोवा उनका शरणस्थान और दृढ़ गढ़ है। (भजन ९१:२) क्या आपके बारे में यह सच है?
१८. शैतान के संसार के फँदों से दूर रहने की कुंजी क्या है?
१८ जब तक हम इस वर्तमान रीति-व्यवस्था में जीते हैं, ऐसे फँदे रहेंगे जिनसे हमें दूर रहना है। (१ यूहन्ना ५:१९) बाइबल इन फँदों की पहचान कराती है और हमें दिखाती है कि इनसे कैसे दूर रहा जाए। जो सचमुच यहोवा से प्रेम करते हैं और उसे अप्रसन्न करने का हितकर भय रखते हैं, ऐसे फँदों से सफलता से निपट सकते हैं। अगर वे ‘आत्मा के अनुसार चलते’ रहें, तो वे संसार के तौर-तरीक़ों के वश में नहीं आ जाएँगे। (गलतियों ५:१६-२५) ऐसे सभी लोगों के सामने, जो हर घड़ी यहोवा के साथ अपने रिश्ते को याद रखकर अपना जीवन जीते हैं, परमेश्वर के साथ-साथ चलने की और सदा के लिए उसकी आत्मीयता का आनंद उठाने की महान आशा है।—भजन २५:१४.
आपकी टिप्पणी क्या है?
◻ आत्म-विश्वास कैसे एक फँदा हो सकता है?
◻ मनुष्य के भय के वश में आने के विरुद्ध हमें कौन-सी बात सुरक्षित रख सकती है?
◻ धन के पीछे भागने के ख़तरे पर सलाह को लागू न करने का क्या कारण हो सकता है?
◻ जीवन की चिंताओं के फँदे में न फँसने के लिए कौन-सी बात हमारी मदद कर सकती है?
[पेज 16, 17 पर तसवीर]
अनेक लोग जीवन भर परमेश्वर के साथ-साथ चलते रहते हैं