मसीही ज़िंदगी और सेवा सभा पुस्तिका के लिए हवाले
3-9 जून
पाएँ बाइबल का खज़ाना | गलातियों 4-6
“‘लाक्षणिक नाटक’ हमारे लिए क्या मायने रखता है?”
इंसाइट-1 पेज 1018 पै 2
हाजिरा
प्रेषित पौलुस ने जिस लाक्षणिक नाटक का ज़िक्र किया था, उसमें हाजिरा इसराएल देश को दर्शाती है जिसे यहोवा ने सीनै पहाड़ पर मूसा का कानून दिया था और जिसके साथ उसने करार किया था। यह करार “गुलामी करने के लिए बच्चे पैदा करता।” पापी होने की वजह से इसराएली इस करार की शर्तें पूरी नहीं कर पाए। इससे इसराएलियों को आज़ादी नहीं मिली, बल्कि उन्हें इस बात का एहसास हुआ कि वे पापी हैं और एक दिन मर जाएँगे। यही वजह है कि उन्हें गुलाम कहा गया। (यूह 8:34; रोम 8:1-3) हाजिरा पौलुस के ज़माने की यरूशलेम के समान है, क्योंकि यरूशलेम जो इसराएल देश की राजधानी थी, अपने बच्चों समेत गुलाम थी। लेकिन अभिषिक्त मसीही “ऊपर की यरूशलेम” यानी परमेश्वर की लाक्षणिक पत्नी के बच्चे हैं। यह यरूशलेम आज़ाद औरत सारा की तरह कभी गुलाम नहीं थी। लेकिन जैसे इसहाक पर इश्माएल ने ज़ुल्म ढाए, उसी तरह “ऊपर की यरूशलेम” के बच्चों पर, जिन्हें बेटे ने आज़ाद किया है, गुलामी में जी रहे यरूशलेम के बच्चों ने ज़ुल्म ढाए। लेकिन हाजिरा और उसके बेटे को घर से निकाल दिया गया, जो इस बात को दर्शाता है कि यहोवा इसराएल देश को त्याग देगा।—गल 4:21-31; कृपया यूह 8:31-40 भी देखें।
परमेश्वर के राज पर अटूट विश्वास रखिए
11 अब्राहम से किए गए करार में परमेश्वर ने जो वादे किए थे, वे पहली बार तब पूरे हुए जब अब्राहम के वंशज वादा-ए-मुल्क में दाखिल हुए। लेकिन बाइबल बताती है कि यह करार बड़े पैमाने पर भी पूरा होगा, जब यह इंसानों के लिए कई गुना ज़्यादा आशीषें लाएगा। (गला. 4:22-25) प्रेषित पौलुस ने समझाया कि इस बड़े पैमाने पर होनेवाली पूर्ती में, अब्राहम के वंश का मुख्य हिस्सा यीशु मसीह है और वंश का दूसरा हिस्सा 1,44,000 अभिषिक्त मसीही हैं। (गला. 3:16, 29; प्रका. 5:9, 10; 14:1, 4) अदन के बाग में किए गए वादे में बतायी स्त्री, यहोवा के संगठन के स्वर्गीय हिस्से को दर्शाती है। इस स्त्री को “ऊपर की यरूशलेम” कहा गया है और यह वफादार आत्मिक प्राणियों से बनी है। (गला. 4:26, 31) जैसे अब्राहम से किए गए करार में वादा किया गया था, स्त्री का वंश इंसानों को हमेशा की आशीषें देगा।
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प्र09 4/1 पेज 13, अँग्रेज़ी
क्या आप जानते थे?
यीशु ने प्रार्थना करते वक्त यहोवा को “हे अब्बा, हे पिता” क्यों कहा?
अरामी भाषा में शब्द अब्बा का मतलब “पिता” या “हे पिता” हो सकता है। शास्त्र में यह शब्द तीन बार आया है और हर बार यह शब्द प्रार्थना करते वक्त यहोवा के लिए इस्तेमाल हुआ है। इस शब्द के क्या मायने हैं?
दी इंटरनैशनल स्टैंडर्ड बाइबल इनसाइक्लोपीडिया के मुताबिक, यीशु के समय में बच्चे अपने पिता को अब्बा कहकर पुकारते थे। इस शब्द से प्यार और आदर झलकता था। यह उन शब्दों में से एक था जिन्हें बच्चे सबसे पहले सीखते थे। यीशु ने यह शब्द तब इस्तेमाल किया जब वह तहे दिल से अपने पिता से बिनती कर रहा था। अपनी मौत से कुछ घंटों पहले, गतसमनी के बाग में, यीशु ने यहोवा से प्रार्थना करते वक्त उसे “हे अब्बा, हे पिता” पुकारा।—मरकुस 14:36.
इस इनसाइक्लोपीडिया में यह भी बताया गया है कि यूनानी और रोमी हुकूमत के दौर में यहूदी साहित्य में आम तौर पर परमेश्वर के लिए अब्बा शब्द न के बराबर इस्तेमाल हुआ है। इसकी शायद यह वजह रही होगी कि उन्हें लगता था कि परमेश्वर को इस शब्द से पुकारना उसका अनादर करने के बराबर है। लेकिन जब यीशु ने प्रार्थना करते वक्त यह शब्द इस्तेमाल किया, तो यह इस बात की निशानी थी कि वह सच में परमेश्वर के बहुत करीब था, जैसा कि वह दावा करता था। शास्त्र में दो और जगहों पर अब्बा शब्द इस्तेमाल किया गया है। दोनों बार प्रेषित पौलुस ने अपने खत में इसका इस्तेमाल किया। इससे पता चलता है कि पहली सदी के मसीही भी प्रार्थना करते वक्त परमेश्वर को अब्बा पुकारते थे।—रोमियों 8:15; गलातियों 4:6.
प्र10 11/1 पेज 15, अँग्रेज़ी
क्या आप जानते थे?
जब प्रेषित पौलुस ने कहा कि वह अपने शरीर पर ‘वे दाग लिए फिरता है, जो यीशु के एक दास होने की निशानी हैं,’ तो उसका क्या मतलब था?—गलातियों 6:17.
▪ पौलुस के ये शब्द सुनकर पहली सदी के मसीहियों के मन में शायद कई बातें आयी होंगी। मिसाल के लिए, पुराने ज़माने में युद्ध के बंदियों, मंदिरों को लूटनेवालों और भागे हुए दासों की पहचान करने के लिए उन्हें गरम लोहे से दागा जाता था। जब इंसानों को इस तरह दागा जाता था, तो ये बहुत अनादर की बात समझी जाती थी।
लेकिन इस तरह का निशान होना हमेशा अनादर की बात नहीं होती थी। पुराने ज़माने में कई लोग अपने शरीर पर कोई निशान इसलिए दागते थे ताकि सब जान सकें कि वे किसी खास जाति के हैं या फलाँ धर्म को मानते हैं। थियॉलजिकल डिक्शनरी ऑफ द न्यू टेस्टामेंट के मुताबिक जब सीरिया के लोग खुद को हदद देवता या अटारगाटिस देवी को समर्पित करते थे, तो वे अपने गले या कलाई पर इसका एक निशान दाग देते थे। डायोनाइसस देवता के भक्त अपने शरीर पर आइवी पत्ते का निशान दागते थे।
आज के कई टीकाकारों का मानना है कि पौलुस उन निशानों की बात कर रहा था जो उसकी मिशनरी सेवा के दौरान उस पर ज़ुल्म ढाए जाने की वजह से लगे थे। (2 कुरिंथियों 11:23-27) लेकिन शायद पौलुस के कहने का यह मतलब था कि उसके जीने का तरीका, न कि उसके शरीर पर लगे दाग, उसके मसीही होने की पहचान थी।
10-16 जून
पाएँ बाइबल का खज़ाना | इफिसियों 1-3
“यहोवा का इंतज़ाम और उससे क्या हासिल होता है”
इंसाइट-2 पेज 837 पै 4
पवित्र रहस्य
मसीहा का राज। पौलुस ने अपनी चिट्ठियों में बताया कि मसीह के पवित्र रहस्य में क्या-क्या शामिल है। इफिसियों 1:9-11 में वह बताता है कि परमेश्वर अपनी मरज़ी के बारे में “पवित्र रहस्य” ज़ाहिर करता है। पौलुस कहता है, “उसने यह रहस्य अपनी मरज़ी के मुताबिक खुद ठहराया था कि तय वक्त के पूरा होने पर वह एक इंतज़ाम की शुरूआत करे ताकि सबकुछ फिर से मसीह में इकट्ठा करे, चाहे स्वर्ग की चीज़ें हों या धरती की। हाँ, मसीह में इकट्ठा करे जिसके साथ हम एकता में हैं और वारिस भी ठहराए गए हैं। क्योंकि परमेश्वर ने अपने मकसद के मुताबिक पहले से तय किया था कि वह हमें चुनेगा, हाँ उसी परमेश्वर ने जो अपनी मरज़ी के मुताबिक सब बातों को अंजाम देता है।” “पवित्र रहस्य” दरअसल एक सरकार के बारे में है, यानी मसीहा के राज के बारे में जिसका इंतज़ाम परमेश्वर ने किया। पौलुस ने जिन ‘स्वर्ग की चीज़ों’ की बात की, वे इस राज के वारिस हैं, जो मसीह के साथ स्वर्ग में राज करेंगे। ‘धरती की चीज़ें’ इस राज की प्रजा हैं, यानी वे लोग जो धरती पर रहेंगे। यीशु ने अपने चेलों पर ज़ाहिर किया था कि पवित्र रहस्य परमेश्वर के राज से जुड़ा है, जब उसने उनसे कहा, “परमेश्वर के राज के पवित्र रहस्य की समझ तुम्हें दी गयी है।”—मर 4:11.
‘यहोवा जो एक है,’ अपने परिवार को एक करता है
3 मूसा ने इसराएलियों से कहा था: “यहोवा हमारा परमेश्वर है, यहोवा एक ही है।” (व्यव. 6:4) यहोवा सभी काम अपने मकसद के हिसाब से करता है। इसलिए “तय वक्त के पूरा होने पर” परमेश्वर ने स्वर्ग और धरती पर रहनेवाले सभी को एकता के बंधन में बाँधने के लिए “एक इंतज़ाम” की शुरूआत की। (इफिसियों 1:8-10 पढ़िए।) इस इंतज़ाम के दो भाग हैं। पहले भाग में परमेश्वर, यीशु मसीह के अधीन स्वर्ग में काम करने के लिए लोगों को चुनता है और उन्हें इस काम के लिए तैयार करता है। इस भाग की शुरूआत ईसवी सन् 33 के पिन्तेकुस्त में हुई जब यहोवा ने स्वर्ग में राज करने के लिए लोगों का अभिषेक करना शुरू किया। (प्रेषि. 2:1-4) वह मसीह के फिरौती बलिदान के आधार पर अभिषिक्त जनों को जीवन पाने के लिए नेक ठहराता है। इसलिए अभिषिक्त जन कह पाते हैं कि उन्हें ‘परमेश्वर के बच्चों’ के नाते गोद लिया गया है।—रोमि. 3:23, 24; 5:1; 8:15-17.
4 इस इंतज़ाम के दूसरे भाग में यहोवा मसीहाई राज के अधीन, धरती पर फिरदौस में रहने के लिए लोगों को तैयार करता है। जो फिरदौस में रहेंगे उनमें पहले होंगे “बड़ी भीड़” के लोग। (प्रका. 7:9, 13-17; 21:1-5) हज़ार साल की हुकूमत के दौरान, इस बड़ी भीड़ के अलावा वे करोड़ों लोग भी फिरदौस में रहेंगे जिन्हें मरे हुओं में से जी उठाया जाएगा। (प्रका. 20:12, 13) ये जी उठाए गए लोग और बड़ी भीड़, दोनों ‘धरती की चीज़ें’ हैं। ज़रा सोचिए, पुनरुत्थान के बाद इंसानों को सच्ची एकता ज़ाहिर करने के कितने मौके मिलेंगे! हज़ार साल के अंत में इन पर आखिरी परीक्षा लायी जाएगी। जो इस परीक्षा में खरे उतरेंगे, उन्हें धरती पर ‘परमेश्वर के बच्चों’ के नाते गोद लिया जाएगा।—रोमि. 8:21; प्रका. 20:7, 8.
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कोई भी बात आपको महिमा पाने से रोक न सके
15 परमेश्वर से महिमा पाने में हम दूसरों की कैसे मदद कर सकते हैं? एक तरीका है, धीरज धरने में अच्छी मिसाल रखकर। इफिसुस की मंडली को पौलुस ने लिखा था: “मैं तुमसे कहता हूँ कि मेरी इन दुःख-तकलीफों की वजह से, जो मैं तुम्हारी खातिर सह रहा हूँ, तुम हिम्मत न हारना क्योंकि इनका मतलब तुम्हारी महिमा है।” (इफि. 3:13) पौलुस ने ऐसा क्यों कहा कि उसकी दुख-तकलीफों का मतलब इफिसुस के भाइयों की “महिमा” है? आज़माइशों के बावजूद अपने भाइयों की सेवा करते रहकर पौलुस ने दिखाया कि यहोवा की सेवा करना मसीहियों के लिए सबसे ज़्यादा अहमियत रखनी चाहिए। अगर पौलुस ने ऐसे में हार मान ली होती, तो इससे उसके भाइयों को लगता कि यहोवा की सेवा करना, उसके साथ उनका रिश्ता और उनकी आशा कोई खास अहमियत नहीं रखतीं। धीरज धरने में एक अच्छी मिसाल रखकर पौलुस ने अपने भाइयों को दिखाया कि मसीह का चेला होना किसी भी त्याग से कहीं बढ़कर है।
‘मसीह के प्रेम को जानो’
21 जिस यूनानी शब्द का अनुवाद “को जान” किया गया है, उसका मतलब है “व्यावहारिक तरीके से, अनुभव के ज़रिए” जानना। जब हम यीशु की तरह प्रेम करेंगे—दूसरों की भलाई करने में निःस्वार्थ भाव से खुद को लगा देंगे, करुणा दिखाकर उनकी ज़रूरतों के मुताबिक काम करेंगे, दिल से उन्हें माफ करेंगे—तब हम सही मायनों में उसकी भावनाओं को समझ सकेंगे। इस तरह, हम अनुभव से ‘के उस प्रेम को जान पाते हैं जो ज्ञान से परे है।’ और हाँ, हम यह कभी न भूलें कि हम जितना ज़्यादा मसीह के जैसे होते हैं, उतना ज़्यादा हम अपने प्रेमी परमेश्वर यहोवा के करीब आते हैं, क्योंकि मसीह हू-ब-हू अपने इस पिता के जैसा था।
17-23 जून
पाएँ बाइबल का खज़ाना | इफिसियों 4-6
“परमेश्वर के दिए सारे हथियार बाँध लो”
नौजवानो, शैतान का डटकर सामना करो
प्रेषित पौलुस ने मसीहियों की तुलना सैनिकों से की। लेकिन हमारी लड़ाई हाड़-माँस के इंसानों से नहीं बल्कि शैतान और उसके दुष्ट स्वर्गदूतों से है। ये दुश्मन हज़ारों सालों से युद्ध कर रहे हैं और लड़ाई में बहुत माहिर हैं। ऐसा लग सकता है कि उनसे जीतना नामुमकिन है खासकर नौजवानों के लिए! तो सवाल है कि क्या नौजवान इन ताकतवर दुश्मनों से जीत सकते हैं? बिलकुल! यहोवा की ताकत से बहुत-से नौजवान जीत हासिल कर रहे हैं। इसके अलावा, एक अच्छे योद्धा की तरह वे लड़ने के लिए “परमेश्वर के दिए सारे हथियार बाँध” लेते हैं।—इफिसियों 6:10-12 पढ़िए।
प्र18.05 पेज 28-29 पै 4, 7, 10
नौजवानो, शैतान का डटकर सामना करो
4 जिस तरह सैनिक का पट्टा उसकी हिफाज़त करता था, उसी तरह परमेश्वर के वचन में दी सच्चाइयाँ, झूठी शिक्षाओं से हमारी हिफाज़त करती हैं। (यूह. 8:31, 32; 1 यूह. 4:1) हम जितना ज़्यादा उन सच्चाइयों से लगाव रखेंगे, उतना ज़्यादा परमेश्वर के स्तरों पर चलना यानी अपना “कवच” पहनना आसान होगा। (भज. 111:7, 8; 1 यूह. 5:3) इसके अलावा, जब हम सच्चाइयों की बेहतर समझ हासिल करते हैं, तो हम पूरी हिम्मत के साथ उनकी पैरवी कर पाते हैं।—1 पत. 3:15.
7 उस कवच की तरह यहोवा के नेक स्तर भी हमारे “दिल” यानी अंदर के इंसान की हिफाज़त करते हैं। (नीति. 4:23) एक सैनिक कभी-भी लोहे का कवच उतारकर सस्ती धातु से बना कवच नहीं पहनेगा। उसी तरह, हम यहोवा के नेक स्तरों को छोड़कर अपने स्तरों के मुताबिक नहीं चलेंगे। हम अपनी बुद्धि से कभी अपने दिल की हिफाज़त नहीं कर सकते। (नीति. 3:5, 6) इसलिए हमें हर वक्त जाँचना चाहिए कि क्या हमारा “कवच” हमारे दिल की हिफाज़त कर रहा है।
10 हालाँकि जूते पहनकर रोमी सैनिक युद्ध के लिए निकलते थे, लेकिन मसीही, लाक्षणिक जूते पहनकर “शांति की खुशखबरी” सुनाने के लिए निकलते हैं। (यशा. 52:7; रोमि. 10:15) खुशखबरी सुनाने के लिए कभी-कभी हमें हिम्मत की बहुत ज़रूरत होती है। रोबर्टो जिसकी उम्र 20 साल है, कहता है, “मैं अपनी क्लास के साथियों को गवाही देने से घबराता था। शायद मुझे शर्म आती थी। अब जब मैं उस बारे में सोचता हूँ, तो मुझे लगता है कि इसमें शर्मिंदा होनेवाली क्या बात है। आज मैं खुशी-खुशी अपनी उम्र के लोगों को गवाही देता हूँ।”
प्र18.05 पेज 29-31 पै 13, 16, 20
नौजवानो, शैतान का डटकर सामना करो
13 शैतान आप नौजवानों पर कौन-से ‘जलते हुए तीर’ चलाता है? हो सकता है, वह यहोवा के बारे में कुछ झूठी बातें कहे। जैसे, यहोवा आपसे प्यार नहीं करता और उसे आपकी परवाह नहीं। उन्नीस साल की आइडा कहती है,“अकसर मुझे ऐसा लगता है कि यहोवा मेरे करीब नहीं और वह मेरा दोस्त नहीं बनना चाहता।” आइडा शैतान के इस हमले का सामना कैसे करती है? वह कहती है, “सभाओं से मेरा विश्वास मज़बूत होता है। पहले मैं सभाओं में चुपचाप बैठी रहती थी, कोई जवाब नहीं देती थी। मैं सोचती थी कि भला कौन मेरा जवाब सुनना चाहेगा। लेकिन अब मैं सभाओं की तैयारी करती हूँ और दो या तीन जवाब देने की कोशिश करती हूँ। मेरे लिए यह आसान नहीं, लेकिन ऐसा करने के बाद मुझे अच्छा महसूस होता है। भाई-बहन भी मेरा बहुत हौसला बढ़ाते हैं। हर सभा के बाद मुझे यकीन हो जाता है कि यहोवा सचमुच मुझसे प्यार करता है।”
16 जिस तरह एक टोप से सैनिक के सिर की रक्षा होती थी, उसी तरह “उद्धार की आशा का टोप” पहनने से हमारे सोच-विचारों की रक्षा होती है। (1 थिस्स. 5:8; नीति. 3:21) इसी आशा की वजह से हम परमेश्वर के वादों पर अपना ध्यान लगाए रख पाते हैं और मुश्किलों के दौरान निराश नहीं होते। (भज. 27:1, 14; प्रेषि. 24:15) हमें इस आशा पर पूरा यकीन होना चाहिए, तभी यह हमारी हिफाज़त कर सकती है। जी हाँ, हमें अपना “टोप” हमेशा पहने रखना चाहिए न कि इसे हाथ में पकड़े रहना चाहिए।
20 पौलुस ने परमेश्वर के वचन की तुलना एक तलवार से की। यहोवा ने हमें अपना वचन दिया है। लेकिन हमें इसका सही इस्तेमाल करना सीखना होगा ताकि हम अपने विश्वास की रक्षा कर सकें और अपनी सोच सुधार सकें। (2 कुरिं. 10:4, 5; 2 तीमु. 2:15) हम यह कैसे कर सकते हैं? इक्कीस साल का सेबास्टियन कहता है, “जब मैं बाइबल पढ़ता हूँ, तो हर अध्याय में से एक आयत लिख लेता हूँ। इस तरह मैंने अपनी मनपसंद आयतों की एक सूची तैयार की है।” सेबास्टियन को लगता है कि ऐसा करने से वह यहोवा की सोच को और अच्छी तरह समझ पाया है। डैनियल जिसका ज़िक्र पहले किया गया है, कहता है, “बाइबल पढ़ते वक्त मैं ऐसी आयतें चुनता हूँ जिनसे प्रचार में लोगों को फायदा हो सकता है। जब हम जोश के साथ बाइबल से आयतें दिखाते हैं और लोगों की मदद करने की कोशिश करते हैं, तो वे अच्छे से हमारी सुनते हैं।”
ढूँढ़ें अनमोल रत्न
इंसाइट-1 पेज 1128 पै 3
पवित्रता
पवित्र शक्ति। यहोवा की ज़ोरदार शक्ति जो पूरी तरह उसके काबू में है और जिसका इस्तेमाल करके वह अपना मकसद पूरा करता है। यह शक्ति शुद्ध, निष्कलंक और पवित्र है और परमेश्वर ने इसे भले काम करने के लिए अलग ठहराया है। तभी इसे “पवित्र शक्ति” या “पवित्र शक्ति की ताकत” कहा गया है। (भज 51:11; लूक 11:13; रोम 1:4; इफ 1:13) जब यह शक्ति किसी इंसान पर काम करती है, तो वह उसे पवित्र या शुद्ध रहने के लिए उभारती है। अगर कोई व्यक्ति अशुद्ध या गलत काम करता है, तो वह परमेश्वर की पवित्र शक्ति के खिलाफ काम कर रहा होता है या उसे “दुखी” कर रहा होता है। (इफ 4:30) हालाँकि पवित्र शक्ति कोई व्यक्ति नहीं है, फिर भी एक इंसान उसे “दुखी” कर सकता है। वह कैसे? पवित्र शक्ति हमेशा परमेश्वर की मरज़ी के मुताबिक काम करती है। अगर हम कोई ऐसा काम करें जो परमेश्वर की मरज़ी के खिलाफ हो, तो हम पवित्र शक्ति को दुखी कर रहे होंगे, क्योंकि पवित्र शक्ति का स्रोत यहोवा ऐसे कामों से दुखी होता है। जब एक व्यक्ति गलत काम करता है, तो वह “पवित्र शक्ति के ज़बरदस्त असर में रुकावट” डालता है। (1थि 5:19) लेकिन अगर वह गलत काम करने की आदत बना लेता है, तो वह परमेश्वर की पवित्र शक्ति को “दुखी” करता है। इस तरह बगावत करनेवाला वह इंसान परमेश्वर को अपना दुश्मन बना लेता है। (यश 63:10) जो इंसान परमेश्वर की पवित्र शक्ति को दुखी करता है, वह पवित्र शक्ति के खिलाफ निंदा की बातें भी करने लग सकता है। यीशु मसीह ने कहा था कि यह एक ऐसा पाप है जिसे न तो इस दुनिया में, न ही आनेवाली दुनिया में कभी माफ किया जाएगा।—मत 12:31, 32; मर 3:28-30.
इंसाइट-1 पेज 1006 पै 2
लालच
कामों से ज़ाहिर होता है। अगर एक इंसान लालची हो, तो वह उसके किसी-न-किसी काम से ज़ाहिर हो ही जाता है। उसके कामों से यह साफ पता चल जाता है कि उसमें कोई गलत इच्छा है। बाइबल के एक लेखक याकूब ने कहा कि गलत इच्छा जब गर्भवती होती है, तो वह पाप को जन्म देती है। (याकू 1:14, 15) तो एक इंसान के कामों से उसके अंदर छिपा लालच साफ नज़र आ जाता है। प्रेषित पौलुस ने कहा कि एक लालची इंसान मूर्तिपूजा करनेवाले के बराबर है। (इफ 5:5) एक लालची इंसान जिस चीज़ की इच्छा करता है, उसे वह मानो अपना भगवान बना लेता है और उसे सृष्टिकर्ता की उपासना और भक्ति से भी ऊँचा दर्जा देता है।—रोम 1:24, 25.
24-30 जून
पाएँ बाइबल का खज़ाना | फिलिप्पियों 1-4
“किसी भी बात को लेकर चिंता मत करो”
‘परमेश्वर की शांति समझ से परे है’
10 ‘किसी भी बात को लेकर चिंता न करने’ और ‘परमेश्वर की शांति’ पाने में क्या बात हमारी मदद कर सकती है? फिलिप्पी के भाइयों को लिखी चिट्ठी में पौलुस ने चिंता दूर करने का उपाय बताया। वह है, प्रार्थना करना। इसलिए जब हम किसी समस्या को लेकर बहुत परेशान होने लगते हैं तो हमें प्रार्थना करनी चाहिए। (1 पतरस 5:6, 7 पढ़िए।) जब आप यहोवा से प्रार्थना करते हैं तो पूरा यकीन रखिए कि वह आपकी परवाह करता है। यहोवा से मिली हर आशीष के लिए उसका धन्यवाद कीजिए। यह कभी मत भूलिए कि “हम उससे जो माँगते हैं या जितना सोच सकते हैं, वह उससे कहीं बढ़कर कर सकता है।”—इफि. 3:20.
‘परमेश्वर की शांति समझ से परे है’
7 जब फिलिप्पी के भाइयों ने पौलुस की चिट्ठी पढ़ी, तो उन्हें क्या बात याद आयी होगी? उन्हें ज़रूर वह घटना याद आयी होगी जब पौलुस और सीलास कैद में थे और यहोवा ने उन्हें अनोखे ढंग से छुड़ाया था। किसी ने भी उम्मीद नहीं की थी कि यहोवा इस तरह उनकी मदद करेगा। अपनी चिट्ठी के ज़रिए पौलुस इन भाइयों को क्या सीख दे रहा था? यही कि चिंता मत करो। प्रार्थना करो तब तुम्हें ‘परमेश्वर की वह शांति मिलेगी जो समझ से परे है।’ इन शब्दों का क्या मतलब है? कुछ बाइबलों में इन शब्दों का इस तरह अनुवाद किया गया है, “हमारी सारी कल्पनाओं से परे है” या “इंसान की सभी योजनाओं से कहीं बढ़कर है।” तो पौलुस के कहने का मतलब था कि “परमेश्वर की वह शांति” इतनी लाजवाब है कि इसे शब्दों में बयान नहीं किया जा सकता। यह सच है कि कभी-कभी हमें अपनी समस्याओं का हल नहीं पता होता लेकिन यहोवा उनका हल जानता है। वह कुछ ऐसा कर सकता है जिसकी हमने उम्मीद भी नहीं की थी।—2 पतरस 2:9 पढ़िए।
‘परमेश्वर की शांति समझ से परे है’
16 बाइबल बताती है कि जब हमें ‘परमेश्वर की शांति’ मिलती है, तो यह शांति हमारे दिलो-दिमाग की “हिफाज़त” करती है। (फिलि. 4:7) यहाँ हिफाज़त करने की जो बात की गयी है उससे मूल भाषा में, एक शहर की हिफाज़त करनेवाली सैनिक टुकड़ी की तसवीर मिलती है। फिलिप्पी ऐसा ही एक शहर था। वहाँ के लोग रात को चैन से सोते थे क्योंकि वे जानते थे कि सैनिक शहर की हिफाज़त कर रहे हैं। उसी तरह, जब हमें ‘परमेश्वर की शांति’ मिलती है, तो हम बहुत ज़्यादा चिंता नहीं करते और हमारे दिल और मन को चैन मिलता है क्योंकि हम जानते हैं कि यहोवा को हमारी परवाह है और वह हमारे साथ है। (1 पत. 5:10) यह एहसास हमें चिंता और निराशा में डूबने से बचाता है।
ढूँढ़ें अनमोल रत्न
इंसाइट-2 पेज 528 पै 5
चढ़ावे
अर्घ। अर्घ अकसर चढ़ावों के साथ दिया जाता था और ऐसा खासकर तब से होने लगा जब इसराएली वादा किए गए देश में बस गए। (गि 15:2, 5, 8-10) यह दाख-मदिरा का होता था और इसे वेदी पर उँडेला जाता था। (गि 28:7, 14; कृपया निर्ग 30:9; गि 15:10 से तुलना करें।) प्रेषित पौलुस ने फिलिप्पी में रहनेवाले मसीहियों को लिखा, “चाहे तुम्हारे उस बलिदान पर और तुम्हारी पवित्र सेवा पर जो तुम विश्वास की वजह से कर रहे हो, मुझे अर्घ की तरह उँडेला जा रहा है, तो भी मैं खुश होता हूँ।” पौलुस ने यहाँ अर्घ का इस्तेमाल लाक्षणिक तौर पर यह बताने के लिए किया कि वह किस तरह अपने मसीही भाई-बहनों की खातिर खुद को पूरी तरह देने के लिए तैयार है। (फिल 2:17) अपनी मौत से कुछ समय पहले उसने तीमुथियुस को लिखा, “मुझे अर्घ की तरह उँडेला जा रहा है और मेरी रिहाई का वक्त एकदम करीब है।”—2ती 4:6.
‘पहला पुनरुत्थान’ आज जारी है!
5 दूसरा है, “परमेश्वर के इस्राएल” के अभिषिक्त जनों का पुनरुत्थान। उन्हें प्रभु यीशु मसीह के साथ स्वर्गीय महिमा का भागीदार होना है, जिसके बाद वे ‘सदा उसके साथ रहेंगे।’ (गलतियों 6:16; 1 थिस्सलुनीकियों 4:17) इसे ‘पहला पुनरुत्थान’ कहा गया है। (प्रकाशितवाक्य 20:6) इस पुनरुत्थान के खत्म होने के बाद ही, धरती पर उन लाखों मरे हुओं का पुनरुत्थान शुरू होगा जिन्हें फिरदौस में हमेशा की ज़िंदगी पाने का मौका दिया जाएगा। इसलिए हमारी आशा चाहे स्वर्ग में जीने की हो या इसी धरती पर, हम सभी को ‘पहले पुनरुत्थान’ में गहरी दिलचस्पी है। मगर यह किस तरह का पुनरुत्थान है? और यह कब होता है?