ऐसे बलिदान चढ़ाओ जो परमेश्वर को प्रसन्न करते हैं
“इसलिए हम [यीशु मसीह] द्वारा स्तुतिरूपी बलिदान, अर्थात् उन होठों का फल जो उसके नाम का अंगीकार करते हैं, परमेश्वर के लिये सर्वदा चढ़ाया करें।”—इब्रानियों १३:१५.
१. यहोवाने पापी इस्राएलियों को क्या करने के लिए प्रोत्साहित किया?
यहोवा उन सभों का सहायक है जो उसके लिए सुग्राह्य बलिदान चढ़ाते हैं। इसलिए उसकी कृपा कभी उन इस्राएलियों पर थी जो पशु बलिदान चढ़ाते थे। लेकिन जब उन्होंने बार-बार पाप किया, तब क्या हुआ? भविष्यवक्ता होशे के द्वारा उन्हें उकसाया गया: “हे इस्राएल, अपने परमेश्वर यहोवा के पास लौट आ, क्योंकि तू ने अपने अधर्म के कारण ठोकर खाई है। बातें सीखकर और यहोवा की ओर फिरों। उस से कह, ‘सब अधर्म दूर कर; अनुग्रह से हम को ग्रहण कर; तब हम हमारे होठों से बलिदान चढ़ाएंगे।’”—होशे १४:१, २, न्यू. व.
२. ‘होंठों के बलिदान’ क्या हैं, और प्रेरित पतरस ने होशे की भविष्यवाणी की ओर संकेत कैसे किया?
२ तो इस तरह, परमेश्वर के प्राचीन लोगों को यहोवा परमेश्वर के लिए ‘उनके होंठों से बलिदान’ चढ़ाने के लिए प्रोत्साहित किया गया। ये क्या थे? ये तो निष्कपट स्तुति के बलिदान थे! इस भविष्यवाणी की ओर संकेत करते हुए प्रेरित पौलुस ने इब्रानी मसीहियों को “स्तुतिरूपी बलिदान, अर्थात उन होठों का फल जो उसके नाम का अंगीकार करते हैं, परमेश्वर के लिए सर्वदा चढ़ाते रहने” के लिए उकसाया। (इब्रानियों १३:१५) यहोवा के गवाहों को ऐसे बलिदान चढ़ाने में क्या मदद देगी?
“उन के विश्वास का अनुकरण करो”
३. सारांश में प्रेरित पौलुस ने इब्रानियों १३:७ में क्या कहा, जो किन प्रश्नों को उठाता है?
३ पौलुस ने इब्रानियों को जो सलाह दी, उसका विनियोग करना हमें हमारे महान सहायक, यहोवा परमेश्वर के लिए सुग्राह्य बलिदान चढ़ाने के लिए समर्थ करेगा। उदाहरणार्थ, प्रेरित ने लिखा: “जो तुम्हारे अगुवे थे, और जिन्होंने तुम्हें परमेश्वर का वचन सुनाया है, उन्हें स्मरण रखो; और ध्यान से उन के चाल-चलन का अन्त देखकर उन के विश्वास का अनुकरण करो।” (इब्रानियों १३:७) पौलुस ने किस की ओर संकेत किया जब उन्होंने कहा: “जो तुम्हारे अगुवे थे”, या “तुम्हारे शासक हैं”?—न्यू वल्ड ट्रान्सलेशन रेफरन्स बाइबल, फुटनोट।
४. (अ) यूनानी पाठ के अनुसार “अगुवे” क्या कर रहे हैं? (ब) यहोवा के गवाहों के बीच में ये “अगुवे” कौन हैं?
४ पौलुस ने उनके बारे में बात की जो “अगुवे” थे या जो शासन कर रहे थे। (७, १७, २४ आयात) अंग्रेजी शब्द गवन (शासन करना) लतीन से प्राप्त है जो ग्रीक शब्द कैबरनओ से पाया गया है, जिसका अर्थ है “जहाज़ चलाना, संचालन करना, शासन करना।” मसीही प्राचीन स्थानीय मण्डली में अगुआई और मार्गदर्शन प्रदान करने में उनकी “संचालन करने की कुशलताओं” (यूनानी, कैबरनेसीस) का उपयोग करने के द्वारा, शासन करते हैं। (१ कुरिन्थियों १२:२८) लेकिन सभी मण्डलियों के लिए मार्गदर्शन और परामर्श देने के लिए यरूशलेम में के प्रेरितों और अन्य प्राचीनों ने एक समिति के रूप में कार्य किया। (प्रेरित १५:१, २, २७-२९) इसलिए आज, प्राचीनों का एक शासीय निकाय विश्व भर में यहोवा के गवाहों के लिए आध्यात्मिक निरीक्षण प्रदान करते हैं।
५. क्यों और कैसे हमें मण्डली की प्राचीनों और शासीय निकाय के सदस्यों के लिए प्रार्थना करनी चाहिए?
५ स्थानीय प्राचीन और शासीय निकाय के सदस्य हमारे बीच में अगुआई करते हैं; इसलिए, हमें उनका आदर करना है और यह प्रार्थना करनी है कि परमेश्वर उन्हें वह विवेक प्रदान करें जो कि मण्डली का शासन करने में आवश्यक है। (इफिसियों १:१५-१७ से तुलना करें।) यह कितना उचित है कि हम उनका स्मरण करें जिन्होंने ‘हमें परमेश्वर का वचन सुनाया था’! तीमुथियूस को न केवल उसकी माँ और नानी ने सिखाया गया था बल्कि बाद में पौलुस और दूसरों द्वारा भी सिखाया गया था। (२ तीमुथियूस १:५, ६; ३:१४) इसलिए तीमुथियूस इस पर विचार कर सकता था कि उनका आचरण, जो अगुआई ले रहे थे, कैसे बन रहा था और उनके विश्वास का अनुकरण कर सकता था।
६. हमें किसके विश्वास का अनुकरण करना चाहिए, लेकिन हम किसका अनुपालन करते हैं?
६ व्यक्तियाँ जैसे कि, आबेल, नूह, इब्राहिम, सारा, राहाब, और मूसा ने विश्वास प्रकट किया। (इब्रानियों ११:१-४०) इस तरह, हम उनके विश्वास को बिना हिचकिचाहट अनुकरण कर सकते हैं, क्योंकि वे मरते समय तक परमेश्वर की ओर वफादार रहे। लेकिन हम उन वफादार पुरुषों का भी ‘विश्वास का अनुकरण’ कर सकते हैं जो अब हमारे बीच में अगुआई ले रहे हैं। अवश्य, हम असम्पूर्ण मानवों का अनुकरण नहीं करेंगे क्योंकि हम हमारी निगाहें मसीह पर लगाए हुए हैं। जैसे कि, बाइबल अनुवादक एडगार जे. गुड्स्पीड ने कहा: “पुराने समय के वीर एक विश्वासी के आदर्श नहीं है, क्योंकि मसीह उसके लिए एक बेहतर आदर्श है . . . मसीही धावक की आँखें यीशु पर लगाये रखनी चाहिए।” जी हाँ, ‘मसीह भी तुम्हारे लिए दुख उठाकर तुम्हें एक आदर्श दे गया है, कि तुम भी उसके चिन्ह पर चलो।’—१ पतरस २:२१; इब्रानियों १२:१-३.
७. यीशु मसीह की यातना की ओर हमारी मनोवृत्ति पर इब्रानियों १३:८ कैसे असर करनी चाहिए?
७ परमेश्वर के पुत्र पर ध्यान केंद्रित करते हुए, पौलुस ने आगे कहा: “यीशु मसीह कल और आज और युगानुयुग एकसा है।” (इब्रानियों १३:८) यीशु के दृढ़ उदाहरण का अनुकरण करते हुए, स्तेफानूस और याकूब जैसे वफादार गवाहों ने अटल खराई प्रदर्शित किया। (प्रेरित. ७:१-६०; १२:१, २) इसलिए कि वे मसीह के अनुयायियों के रूप में मरने के लिए भी तैयार थे, उनका विश्वास अनुकरण के योग्य है। अतीत में, वर्तमान समय में, और भविष्य में भी, दैवी लोग यीशु के शिष्यों के रूप में शहादत से बच निकलने की कोशिश नहीं करते।
गलत उपदेशों से दूर रहो
८. आप इब्रानियों १३:९ के पौलुस के शब्दों का भावानुवाद कैसे करेंगे?
८ यीशु के व्यक्तित्व और शिक्षणों की अपरिवर्तनशीलता हमें उस में लगाए रखना चाहिए, जो उसने और उसके शिष्यों ने सिखाया था। इब्रानियों से कहा गया था: “नाना प्रकार के और ऊपरी उपदेशों से न भरमाए जाओ, क्योंकि मन का अनुग्रह से दृढ़ रहना भला है, न कि उन खाने की वस्तुओं से जिन से काम रखनेवालों को कुछ लाभ न हुआ।”—इब्रानियों १३:९.
९. इब्रानी मसीहियों के लिए लिखी उस चिट्ठी में पौलुस ने किन अधिक महत्त्वपूर्ण बातों की ओर संकेत किया?
९ यहूदियों ने उन सब बातों की ओर संकेत किया, जैसे कि सीनाई पर्वत पर नियम का शानदार दिया जाना और दाउद का अन्तिम राजत्व। लेकिन पौलुस ने इब्रानी मसीहियों को दिखाया कि यद्यपि नियम वाचा का संस्थापन विस्मयकारी था, यहोवा ने चिन्हों, चमत्कारों, शक्तिशाली कार्यों, और पवित्र आत्मा के वितरण के द्वारा नए वाचा के प्रारम्भ करते समय प्रभावशाली रूप से अधिक गवाही दी है। (प्रेरित २:१-४; इब्रानियों २:२-४) मसीह का स्वर्गीय राज्य हिलाया नहीं जा सकता जैसे कि सामान्य युग पूर्व ६०७ में दाऊदी शासकों का सांसारिक राजत्व था। (इब्रानियों १:८, ९; १२:२८) इसके अतिरिक्त, यहोवा अभिषिक्त व्यक्तियों को सीनाई पर्वत पर के आश्चर्यजनक प्रदर्शन से कुछ कहीं अधिक विस्मयकारी बात के सामने एकत्रित कर रहे हैं, क्योंकि वे स्वर्गीय सीयोन पर्बत के निकट पहुँच रहे हैं।—इब्रानियों १२:१८-२७.
१०. इब्रानियों १३:९ के अनुसार किस के द्वारा दिल को दृढ़ता दी गयी?
१० इसलिए, इब्रानियों को यहूदीवादियों के “नाना प्रकार के और ऊपरी उपदेशों से न भरमाए” जाने की आवश्यकता थी। (गलतियों ५:१-६) ऐसे उपदेशों से नहीं बल्कि ‘परमेश्वर के अनुग्रह से हृदय को दृढ़ता दी जा सकती है’ ताकि सच्चाई में दृढ़ रह सका। प्रत्यक्षतः, कुछों ने भोजन वस्तुओं और बलिदानों के बारे में तर्क किया क्योंकि पौलुस ने हृदय को दृढ़ बनाना को कहा न कि किसी, “खाने की वस्तुओं से जिन से काम रखवालों को उन खाने की वस्तुओं से कुछ लाभ न हुआ।” आध्यात्मिक लाभ उस छुड़ौती-मूल्य की ओर ईश्वरीय भक्ति और कदर से उत्पन्न होता है, न कि कोई अमुक भोजन वस्तुओं के खाने और अमुक दिनों का मानने के बारे में अनावश्यक चिन्ता से। (रोमियों १४:५-९) इसके अलावा, मसीह के बलिदान ने लैवी बलिदानों को अप्रभावी बना दिया।—इब्रानियों ९:९-१४; १०:५-१०.
बलिदान जो परमेश्वर को प्रसन्न करते हैं
११. (अ) इब्रानियों १३:१०, ११ में के पौलुस के शब्दों का सारांश क्या है? (ब) मसीहियों को कौन-सी प्रतीकात्मक वेदी है?
११ लैवी पुरोहित बलि चढ़ाए हुए पशुओं का मास खाते थे, किन्तु पौलुस ने लिखा: “हमारी एक ऐसी वेदी है, जिस पर से खाने का अधिकार उन लोगों को नहीं, जो तम्बू [निवासस्थान] की सेवा करते हैं। क्योंकि,” उपवास के दिन, “जिन पशुओं का लोहू महा-याजक पाप-बलि के लिये पवित्र स्थान में ले जाता है, उन की देह छावनी के बाहर जलाई जाती है।” (इब्रानियों १३:१०, ११; लैव्यव्यवस्था १६:२७; १ कुरिन्थियों ९:१३) मसीहियों के सामने एक प्रतीकात्मक वेदी है जो मसीह के बलिदान के आधार पर परमेश्वर की ओर की पहुँच को सूचित करता है, जो पाप के लिए प्रायश्चित करता है और जिसका परिणाम यहोवा की क्षमा और अनन्त जीवन की ओर उद्धार है।
१२. इब्रानियों १३:१२-१४ में अभिषिक्त मसीहियों को क्या करने के लिए प्रोत्साहित किया गया था?
१२ पौलुस उपवास के दिन से अनुरूपता पर बल नहीं देता, फिर भी वह आगे कहता है: “इसी कारण, यीशु ने भी लोगों को अपने ही लोहू के द्वारा पवित्र करने के लिये (यरूशलेम के) फाटक के बाहर दुख उठाया।” वहाँ यीशु मर गया और वह सम्पूर्ण रीति से प्रभावकारी प्रायश्चित्तक बलिदाल प्रदान किया। (इब्रानियों १३:१२; यूहन्ना १९:१७; १ यूहन्ना २:१, २) प्रेरित पतरस ने सह अभिषिक्त मसीहियों को उकसाया: “सो आओ, उस की निन्दा अपने ऊपर लिए हुए छावनी के बाहर उसके [मसीह] पास निकल चलें। क्योंकि यहाँ हमारा कोई स्थिर रहनेवाला नगर नहीं, बरन हम एक आनेवाले नगर की खोज में हैं।” (इब्रानियों १३:१३, १४; लैव्यव्यवस्था १६:१०) यद्यपि यीशु के समान हमारी भी निन्दा की गयी है, हम यहोवा के गवाहों के रूप में दृढ़ रहते हैं। हम नयी दुनिया की ओर देखते हुए ‘अभक्ति और सांसारिक अभिलाषाओं से मन फेरकर इस युग में संयम और धर्म और भक्ति से जीवन बिताते’ हैं। (तीतूस २:११-१४; २ पतरस ३:१३; १ यूहन्ना २:१५-१७) और हमारे बीच के अभिषिक्त लोग उस “नगर”, स्वर्गीय राज्य, की गम्भीरता से प्रतीक्षा कर रहे हैं।—इब्रानियों १२:२२.
१३. वे बलिदान जो परमेश्वर को प्रसन्न करते हैं केवल किस बात से बनी नहीं?
१३ इसके बाद पौलुस ने, यह लिखते हुए, उन बलिदानों के बारे में बताया जो परमेश्वर को प्रसन्न करते हैं: “इसलिए हम उसके द्वारा स्तुतिरूपी बलिदान, अर्थात् उन होठों का फल जो उसके [यीशु] नाम का अंगीकार करते हैं, परमेश्वर के लिये सर्वदा चढ़ाया करें। पर भलाई करना, और उदारता न भूलो; क्योंकि परमेश्वर ऐसे बलिदानों से प्रसन्न होता है।” (इब्रानियों १३:१५, १६) मसीही बलिदान केवल मानवतावादी कार्यों से भरा हुआ नहीं है। सामान्यतः लोग यह करते हैं। उदाहरणार्थ, यह तब हुआ जब कई राष्ट्रों के लोग, १९८८ में अरमेनिया के भूकम्प पीड़ितों की सहायता के लिए आए थे।
१४. परमेश्वर के एक सुग्राह्य बलिदान चढ़ाना किस कार्य पर बल देता है?
१४ “परमेश्वरीय भक्ति और भय के साथ” हम जो पवित्र सेवा यहोवा के लिए करते हैं, वह यीशु द्वारा प्रदर्शित आत्मत्यगी प्रेम पर आधारित है। (इब्रानियों १२:२८; युहन्ना १३:३४; १५:१३) यह सेवा हमारे प्रचार कार्य पर बल देता है, क्योंकि मसीह के द्वारा, एक महा याजक के रूप में, ‘हम परमेश्वर के लिए एक स्तुति रूपी बलिदान चढ़ाते हैं, उसके नाम के लिए होंठों के फल, जो घोषणा करती हैं।’ (होशे १४:२; रोमियों १०:१०-१५; इब्रानियों ७:२६) निस्सन्देह, हम “सब के साथ भलाई करें और उदारता न भूलें,” जिन में वे भी शामिल है जो “विश्वासी भाई” नहीं है। (गलतियों ६:१०) विशेष रूप से जब सह मसीही संकट का अनुभव करते हैं या गरीब हैं या मुसीबत में हैं, हम शारीरिक या आध्यात्मिक रूप से प्रेममय मदद देते हैं। क्यों? क्योंकि हम एक दूसरे से प्रेम करते हैं। हम यह भी चाहते हैं कि वे उनकी प्रत्यशा की उद्घोषणा से, बिना हिचकते हुए, दृढ़ रूप से लगे रहे, क्योंकि “ऐसे बलिदानों से परमेश्वर प्रसन्न है”।—इब्रानियों १०:२३-२५; याकूब १:२७.
आज्ञाकारी बनो
१५. (अ) आप इब्रानियों १३:१७ के उपदेश का भावानुवाद कैसे करेंगे? (ब) उन्हें क्यों आदर दें जो हमारे बीच में अगुआई लेते हैं?
१५ सुग्राह्य बलिदान देने के लिए, हमें परमेश्वर की संस्था के साथ, और अधिक पूर्णता से सहयोग देना है। अधिकार की बात का उल्लेख न करते हुए, पौलुस ने लिखा: “अपने अगुवों की मानो; और उन के आधीन रहो, क्योंकि वे उन की नाई तुम्हारे प्राणों के लिये जागते रहते, जिन्हें लेखा देना पड़ेगा, कि वे यह काम आनन्द से करें, न कि ठंडी सांस ले लेकर, क्योंकि इस दशा में तुम्हें कुछ लाभ नहीं।” (इब्रानियों १३:१७) हमें, नियुक्त किए गए प्राचीनों का आदर करना चाहिए जो मण्डली में नेतृत्व ले रहे हैं, ताकि उन्हें हमारे सहयोग की कमी के कारण कष्ट में आहें भरनी न पड़े। आधीन रहने की हमारी असफलता, उन निरीक्षकों के लिए भारी हो सकता है और हमारी आध्यात्मिक हानि में परिणामित हो सकता है। एक सहायोगी भाव प्राचीनों को मदद देने में आसान कर देता है और राज्य प्रचार कार्य की एकता और प्रगति के लिए सहायक होता है।—भजन १३३:१-३.
१६. उनके आधीन रहना, जो हमारे बीच में अगुवाई ले रहे हैं, उचित क्यों है?
१६ यह कितना उचित होगा कि हम उन के आधीन हो जो नेतृत्व ले रहे हैं! वे हमें सभाओं में सिखाते हैं और हमें क्षेत्र सेवकाई में सहायता देते हैं। चरवाहों के रूप में, वे हमारे हित के बारे में सोचते हैं। (१ पतरस ५:२, ३) वे हमें परमेश्वर और मण्डली के साथ एक अच्छा सम्बन्ध बनाए रखने के लिए मदद देते हैं। (प्रेरित २०:२८-३०) विवेकी और प्रेममय निरीक्षण के आधीन होने के द्वारा, हम सर्वोच्च निरीक्षक, यहोवा परमेश्वर, के लिए और उसके उप-निरीक्षक यीशु मसीह, के लिए आदर दिखाएंगे।—१ पतरस २:२५; प्रकाशितवाक्य १:१; २:१-३:२२.
प्रार्थनाशील रहो
१७. पौलुस ने किन प्रार्थनाओं का निवेदन किया और उनके लिए अधिकारपूर्ण माँग कैसे कर सकता था?
१७ शायद उत्पीड़न के कारण, पौलुस और उसके साथियों को इब्रानियों से अलग किया गया था, उन्होंने कहा: “हमारे लिये प्रार्थना करते रहो, क्योंकि हमें भरोसा है, कि हमारा विवेक शुद्ध है; और हम सब बातों में अच्छी चाल चलना चाहते हैं। और इस के करने के लिये मैं तुम्हें और भी समझाता हूँ, कि मैं शीघ्र तुम्हारे पास फिर आ सकूँ।” (इब्रानियों १३:१८, १९) अगर पौलुस एक कपटी व्यक्ति होता जिसका एक कठोर अन्तःकरण था, तो उसे क्या अधिकार होता, कि वह इब्रानियों से प्रार्थना करने के लिए लिखता ताकि वह उनके साथ प्रार्थना में मिल सके? (नीतिवचन ३:३२; १ तीमुथियूस ४:१, २) निस्सन्देह, वह एक ईमानदार सेवक था, जो साफ अन्तःकरण के साथ यहूदीवादियों का सामना किया था। (प्रेरित २०:१७-२७) पौलुस इस बारे में भी निश्चित था कि वह इब्रानियों से मिल सकता था अगर, वे इस के लिए प्रार्थना करते।
१८. अगर हम दूसरों से हमारे लिए प्रार्थना करने की अपेक्षा रखते हैं, तो हमें अपने आप से कौन-से प्रश्न पूछना चाहिए?
१८ इब्रानियों से प्रार्थनाओं के लिए पौलुस का यह निवेदन दिखाता है कि मसीहियों में, एक दूसरे के लिए, नाम लेकर भी, प्रार्थना करना उचित है। (इफिसियों ६:१७-२० से तुलना करें।) लेकिन अगर हम दूसरों से हमारे लिए प्रार्थना करने की अपेक्षा करते हैं, तो क्या हमें उस प्रेरित के समान नहीं बनना है और यह निश्चित कर लेना है ‘कि हमारा विवेक शुद्ध है और हम अच्छी चाल चल रहे हैं’? क्या आप आपके सभी व्यवहारों में ईमानदार हैं? और क्या आपके पास प्रार्थना में वही विश्वास है जो पौलुस को था?—१ यूहन्ना ५:१४, १५.
अन्तिम शब्द और प्रबोधन
१९. (अ) इब्रानियो के लिए पौलुस की प्रार्थनामय इच्छा क्या थी? (ब) नया वाचा एक स्थायी वाचा क्यों है?
१९ इब्रानियों से प्रार्थनाओं की माँग करने के बाद, पौलुस ने एक प्रार्थनापूर्ण इच्छा व्यक्त की: “अब शान्तिदाता परमेश्वर जो हमारे प्रभु यीशु को जो भेड़ों का महान रखवाला है सनातन वाचा के लोहू के गुण से मरे हुओं में से जिलाकर ले आया। तुम्हें हर एक भली बात में सिद्ध करें, जिस से तूम उस की इच्छा पूरी करो, और जो कुछ उस को भाता है, उसे यीशु मसीह के द्वारा हम में उत्पन्न करें, जिस की बड़ाई युगानुयुग होती रहे। आमीन।” (इब्रानियों १३:२०, २१) एक शांतीमय पृथ्वि को मन में रखते हुए, “शांति का परमेश्वर” ने स्वर्ग में अनन्त जीवन के लिए मसीह का पुनरुत्थान किया, जहाँ यीशु ने उसके बहाये हुए लोहु के, जो नए वाचा को अभिपुष्ट किया, मूल्य को प्रस्तुत किया। (यशायाह ९:६, ७; लूका २२:२०) यह एक अनन्तकालीन वाचा है क्योंकि जो इस पृथ्वि में हैं, परमेश्वर के १,४४,००० आत्मिक पुत्रों की सेवाओं का हमेशा के लिए फायदें पाऐंगे जो कि स्वर्ग में यीशु के साथ राज करेंगे और जो इस नए वाचा में है। (प्रकाशितवाक्य १४:१-४; २०:४-६) यह मसीह के द्वारा है कि हमें परमेश्वर, जिसे हम महिमा देते हैं, ‘उस की इच्छा पूरा करने और हर भली बात करने के लिए और वह करने के लिए जो उसको भाता है’ सामर्थ देता है।
२०.इबानी मसीहियों के लिए पौलुस का अन्तिम प्रबोधन का आप कैसे भावानुवाद और वर्णन करेंगे?
२० यह निश्चित न होने पर कि इब्रानी लोग इस पत्र की ओर कैसी प्रतिक्रिया दिखाएंगे, पौलुस ने कहा: “हे भाइयों, मैं तुम से बिनती करता हूं, कि इन उपदेश [कि परमेश्वर के बेटे की सुने, ना कि यहूदीवादियों] की बातों को सह लेओ, क्योंकि मैं ने तुम्हें बहुत संक्षेप में लिखा है [उसके भारी विषय को ध्यान में रखते हुए]। तुम यह जान लो कि तीमुथियुस हमारा भाई छूट गया है [कैदखाने से], और यदि वह शीघ्र आ गया, तो मैं उसके साथ तुम से भेंट करूंगा।” प्रत्यक्षतः रोम से लिखते हुए, प्रेरित ने आशा की कि वह तीमुथियुस के साथ यरूशलेम में इब्रानियों से मिलेगा। फिर पौलुस ने कहा: “आपने सब अगुओं [परिश्रमी प्राचीनों के रूप में] और सब पवित्र लोगों [जिन्हें स्वर्गीय आशा है] को नमस्कार कहो। इतालियावाले तुम्हें नमस्कार कहते हैं। तुम सब पर अनुग्रह [परमेश्वर का] होता रहे।”—इब्रानियों १३:२२-२५.
स्थायी मुल्य की एक चिट्ठी
२१. इब्रानियों के लिए लिखी चिट्ठी हमें किन विशेष बातों को समझने मदद देती है?
२१ शायद पवित्र वचन की कोई भी अन्य किताब से अधिक, इब्रानियों के लिए लिखी गयी चिट्ठी में, नियम के अधीन चढ़ाए गए बलिदानों का अर्थ समझने के लिए मदद मिलती है। यह पत्र साफ रीति से दिखाता है कि केवल यीशु मसीह का बलिदान ही पापी मानवों के लिए आवश्यक वह छुड़ौती मूल्य देता है। और इस पत्र में पाया गया एक विचारणीय संदेश यह है कि परमेश्वर के बेटे की ओर ध्यान दो।
२२. इब्रानियों के लिए लिखी चिट्ठी के लिए हमें कृतज्ञ रहने के कुछ कारण क्या हैं?
२२ इसके अतिरिक्त, जैसे कि हमने दो पूर्वी लेखों मे देखा, हमारे पास इब्रानियों के लिए लिखी गयी दैवी रूप से प्रेरित चिट्ठी के लिए कृतज्ञता दिखाने के कई अन्य कारण हैं। यह हमें हमारी सेवकाई में थक न जाने में सहायता देती है और यह हममें साहस से भर देती है क्योंकि हम जानते हैं कि यहोवा हमारा सहायक है। इसके अतिरिक्त, यह हमें प्रोत्साहन देती है कि हम हमारे होंठों को और हमारी सभी योग्याताओं को निःस्वार्थ रूप से दिन रात पवित्र सेवा करने और निष्कपट बलिदान चढ़ाने के द्वारा हमारे स्तुति-योग्य और प्रेममय परमेश्वर, यहोवा, को प्रसन्न करने के लिए उपयोग करें।
आप कैसे जवाब देंगे?
◻इब्रानियों को लिखी चिट्ठी ने उन्हें झूठे उपदेशों से बचने के लिए कैसे मदद की?
◻वे बलिदान जो परमेश्वर को प्रसन्न करते हैं, किस महत्त्वपूर्ण कार्य पर केंद्रित है?
◻“तुम्हारे अगुवे” कौन है, और हमें उनके आधीन क्यों होना है?
◻इब्रानियों के लिए लिखी गयी चिट्ठी प्रार्थना पर विशेष बल कैसे देता है?
◻हम कैसे कह सकते हैं कि इब्रानियों के लिए लिखी गयी चिट्ठी स्थायी मूल्य की है?
[पेज 23 पर तसवीरें]
परमेश्वर को प्रसन्न करनेवाले बलिदानों में आम सेवकाई में भाग लेना और सह मसीहियों को सहायक सलाह देना शामिल है