अध्ययन करने से ढेरों आशीषें मिलती हैं
क्या आपने कभी लोगों को फल खरीदते देखा है? यह पता लगाने के लिए कि फल पक चुका है या नहीं, ज़्यादातर लोग उसके रंग और आकार को देखते हैं। कई उसे सूँघते हैं। कुछ लोग छूकर, तो कुछ दबाकर देखते हैं। और कई एक-एक फल को हाथों में लेकर अंदाज़ा लगाने की कोशिश करते हैं कि इनमें कौन-सा ज़्यादा वज़नदार और रस से भरा है। इस वक्त उन सभी के दिमाग में क्या चल रहा है? वे फलों के बारे में हर छोटी-छोटी बात की जाँच-परख कर रहे हैं। फलों के बीच फर्क देख रहे हैं, याद कर रहे हैं कि पिछली बार उन्होंने जो फल खरीदे थे, उसके मुकाबले ये कैसे हैं। उन्होंने ध्यान से चुनने और जाँचने-परखने में जो इतना वक्त लगाया है, इस मेहनत का फल ज़रूर मीठा निकलेगा।
मगर, परमेश्वर के वचन का अध्ययन करने में हम जो मेहनत करते हैं, उसके फायदे इस रस भरी दावत से भी कई गुना ज़्यादा हैं। जब बाइबल अध्ययन की हमारी ज़िंदगी में एक अहम जगह होती है, तो हमारा विश्वास मज़बूत होता है, हमारा प्यार और गहरा होता है, हम प्रचार में ज़्यादा निपुण होते हैं और हम जो फैसले करते हैं उनसे ज़ाहिर होता है कि हममें समझ और परमेश्वर की बुद्धि है। ये सारी आशीषें कितनी अनमोल हैं, इनके बारे में नीतिवचन 3:15 कहता है: “जितनी वस्तुओं की तू लालसा करता है, उन में से कोई भी उसके तुल्य न ठहरेगी।” आपको ये आशीषें मिल रही हैं या नहीं, यह काफी हद तक इस बात पर निर्भर करता है कि आप किस तरीके से अध्ययन करते हैं।—कुलु. 1:9, 10.
अध्ययन क्या होता है? अध्ययन का मतलब सिर्फ ऊपरी तौर पर पढ़ना नहीं है। अध्ययन का मतलब है, अपनी दिमागी शक्ति का इस्तेमाल करके किसी विषय को ध्यान से और वक्त लगाकर बहुत अच्छी तरह जाँचना। अध्ययन में यह भी शामिल है कि आप जो पढ़ रहे हैं, उसकी जाँच-परख करना और आप जो पहले से जानते हैं उसके साथ नयी जानकारी की तुलना करना। साथ ही, जो कहा गया है, उसके लिए दी गयी दलीलों या कारणों पर गौर करना। अध्ययन करते वक्त जब आपको ऐसे कुछ विचार मिलें जो आपके लिए नए हों, तो उन पर गहराई से सोचिए। इसके अलावा, यह भी गौर कीजिए कि आप बाइबल से दी गयी सलाह को और अच्छी तरह कैसे अमल में ला सकते हैं। यहोवा का एक साक्षी होने के नाते आप यह भी ध्यान रखेंगे कि दूसरों की मदद करने के लिए उस जानकारी का कब और कैसे इस्तेमाल कर सकते हैं। इसमें कोई शक नहीं कि बिना मनन के अध्ययन अधूरा है।
अपने मन को सही हालत में लाना
जब आप अध्ययन करने बैठते हैं, तब शायद आप बाइबल, संस्था की कुछ किताबें, पेन या पेंसिल यहाँ तक कि एक नोटबुक साथ रखकर तैयार होते हैं। लेकिन इनके साथ-साथ क्या आपने अपने हृदय को भी तैयार किया है? बाइबल बताती है कि एज्रा ने “यहोवा की व्यवस्था का अर्थ बूझ लेने, और उसके अनुसार चलने, और इस्राएल में विधि और नियम सिखाने के लिये अपना मन लगाया [“अपना हृदय तैयार किया,” NW] था।” (एज्रा 7:10) अपने हृदय को तैयार करने का क्या मतलब है?
जब हम अध्ययन शुरू करने से पहले प्रार्थना करते हैं, तो हम परमेश्वर के वचन का अध्ययन सही मन से शुरू करते हैं। हम चाहते हैं कि यहोवा जो भी हिदायतें दे, वे हमारे अंदर तक यानी हमारे दिल की गहराई तक समा जाएँ। इसलिए जब भी आप अध्ययन करने बैठें, सबसे पहले यहोवा की आत्मा के लिए बिनती कीजिए। (लूका 11:13) आप जिस जानकारी का अध्ययन करने जा रहे हैं, उसका मतलब क्या है? वह यहोवा के मकसद के बारे में क्या बताती है? उसकी मदद से आप भले-बुरे में कैसे फर्क कर सकते हैं? उसमें दिए गए उसूलों को आप अपनी ज़िंदगी में कैसे लागू कर सकते हैं? और उस जानकारी की मदद से यहोवा के साथ आपका रिश्ता कैसे और मज़बूत हो सकता है? इन सब बातों की समझ पाने के लिए यहोवा से गुज़ारिश कीजिए। (नीति. 9:10) अध्ययन करते वक्त ‘परमेश्वर से बुद्धि मांगते रहिए।’ (याकू. 1:5) खुद की जाँच कीजिए कि आपने अध्ययन में जो सीखा है, क्या आप सचमुच उसके मुताबिक चल रहे हैं? साथ ही, यहोवा से प्रार्थना कीजिए कि आपके मन से गलत विचारों या बुरी इच्छाओं को निकाल फेंकने में वह आपकी मदद करे। यहोवा आपको जो सिखाता है, उसके लिए हमेशा उसका “धन्यवाद” कीजिए। (भज. 147:7) इस तरह प्रार्थना में यहोवा की मदद माँगते हुए अध्ययन करने से हम उसके और भी करीब आएँगे, क्योंकि हम वही करते हैं जो यहोवा अपने वचन के ज़रिए हमें बताता है।—भज. 145:18.
यह एक बहुत बड़ा फर्क है कि यहोवा के लोग उसके वचन को स्वीकार करते हैं और उसके मुताबिक चलते हैं, जबकि दुनिया के लोग ऐसा नहीं करते। जिन लोगों में परमेश्वर के लिए भक्ति नहीं, उन्हें बाइबल की लिखी बातों पर शक करने और उसकी सच्चाई पर उँगली उठाने में बड़ा मज़ा आता है। लेकिन हम ऐसा नज़रिया नहीं रखते। हम यहोवा पर पूरा भरोसा रखते हैं। (नीति. 3:5-7) अगर हमें कोई बात समझ नहीं आती, तो हम उतावली में इस नतीजे पर नहीं पहुँच जाते कि ज़रूर यह बात गलत होगी। इसके बजाय हम उसके बारे में खोजबीन करते हैं, गहराई से अध्ययन करते हैं और जवाब पाने के लिए यहोवा के वक्त का इंतज़ार करते हैं। (मीका 7:7) एज्रा की तरह अध्ययन करने में हमारा भी यही मकसद है कि सीखी हुई बातें अपने जीवन में लागू करें और दूसरों को भी सिखाएँ। अगर हमारे मन में ऐसी भावना होगी, तो हम बेशक अपने अध्ययन से ढेरों आशीषें पाएँगे।
अध्ययन करने का तरीका
पहले पैराग्राफ से पढ़ते हुए सीधे आखिरी पैराग्राफ पर खत्म करने के बजाय, पहले पूरे लेख या अध्याय की एक झलक पाने के लिए उस पर एक सरसरी नज़र डालिए। लेख के शीर्षक पर गौर कीजिए। वह शीर्षक ही आपके अध्ययन का विषय होगा। फिर इसके बाद, लेख के उपशीर्षकों को ध्यान से देखिए कि विषय से उनका क्या ताल्लुक है। अगर लेख में समझाने के लिए कुछ तसवीरें, चार्ट या ‘आपने क्या सीखा’ जैसे बक्स दिए गए हैं, तो उन पर गौर कीजिए। फिर खुद से ये सवाल पूछिए: ‘अभी मैंने लेख का जो ऊपरी मुआयना किया, उसके आधार पर मैं इस लेख से क्या सीखने की उम्मीद कर सकता हूँ? यह जानकारी मेरे लिए किस तरह फायदेमंद होगी?’ इससे आपको पता चल जाएगा कि आप क्या सीखने जा रहे हैं।
अब लेख की करीब से जाँच कीजिए। प्रहरीदुर्ग के अध्ययन लेखों और संस्था की दूसरी कुछ किताबों में पैराग्राफ के लिए सवाल भी दिए जाते हैं। इसलिए हर पैराग्राफ को पढ़ने के साथ-साथ उसके जवाबों पर निशान लगाना अच्छा रहता है। जिन लेखों में सवाल नहीं दिए जाते, उनमें भी आप ऐसे खास मुद्दों पर निशान लगा सकते हैं, जिन्हें आप याद रखना चाहेंगे। अगर लेख में दिया कोई विचार आपके लिए नया है, तो उसे अच्छी तरह समझने के लिए उस पर थोड़ा ज़्यादा वक्त लगाइए। इस बात का ध्यान रखिए कि क्या लेख में कुछ ऐसे उदाहरण या ऐसी दलीलें पेश की गयी हैं, जिन्हें आप घर-घर के प्रचार में या अपने आनेवाले भाषण में बता सकते हैं। ऐसे लोगों के बारे में सोचिए जिन्हें आप अध्ययन से सीखी बातें बताकर उनका विश्वास मज़बूत कर सकते हैं। आप जो मुद्दे इस्तेमाल करना चाहते हैं, उन पर निशान लगाइए और अध्ययन खत्म करने के बाद, दोबारा उन पर गौर कीजिए।
लेख में बाइबल की आयतों के हवाले खोलकर पढ़िए। सोचिए कि हर आयत का पूरे पैराग्राफ के साथ क्या संबंध है।
हो सकता है कि अध्ययन करते वक्त आपको कुछ ऐसे मुद्दे मिलें जो फौरन समझ न आएँ, या फिर उनके बारे में और अच्छी तरह खोजबीन करने का आपका मन करे। ऐसे में, अध्ययन छोड़कर उन मुद्दों की खोजबीन में लग जाने के बजाय, उन्हें नोट कर लीजिए और बाद में ज़्यादा खोजबीन कीजिए। अकसर लेख में आगे जाकर उन्हीं मुद्दों को और अच्छी तरह समझाया जाता है। अगर नहीं, तो आप उनके बारे में खोजबीन कर सकते हैं। खोजबीन के लिए आप क्या कुछ नोट कर सकते हैं? जैसे कोई आयत, जो आपको ठीक-ठीक समझ ना आयी हो। या जैसे उस आयत का लेख के विषय से क्या संबंध है। या शायद आपको लगता है कि लेख में दिया विचार आपको समझ तो आया, मगर इतनी अच्छी तरह नहीं कि आप किसी दूसरे को समझा सकें। ऐसे मुद्दों को बस यूँ ही छोड़ देने के बजाय, अध्ययन पूरा होने के बाद उन पर खोजबीन करना अक्लमंदी का काम होगा।
जब प्रेरित पौलुस ने इब्रानी मसीहियों के नाम एक लंबी, ब्योरेवार पत्री लिखी, तब उसने आधे में रुककर लिखा: “मुख्य बात यह है।” (इब्रा. 8:1, NHT) क्या आप भी अध्ययन के दौरान बीच-बीच में खुद को याद दिलाते हैं कि ये-ये, लेख के मुख्य मुद्दे हैं? गौर कीजिए कि पौलुस ने ऐसा क्यों किया। दरअसल, ईश्वर-प्रेरणा से लिखी अपनी इस चिट्ठी के पिछले अध्यायों में ही उसने यह साबित कर दिया था कि मसीह, परमेश्वर का ठहराया श्रेष्ठ महायाजक है और इस हैसियत से वह स्वर्ग में प्रवेश कर चुका है। (इब्रा. 4:14–5:10; 6:20) अब फिर से, इस मुख्य मुद्दे को अध्याय 8 की शुरूआत में अलग से बताकर और उस पर ज़ोर देकर पौलुस चाहता था कि उसके पढ़नेवाले ध्यान दें कि इस मुद्दे का उनकी ज़िंदगी से गहरा ताल्लुक है। उसने बताया कि मसीह उनकी खातिर परमेश्वर के सामने प्रकट हो चुका है और उनके लिए स्वर्ग के “पवित्र स्थान” में प्रवेश करने का रास्ता खोल दिया है। (इब्रा. 9:24; 10:19-22) इस तरह पौलुस ने पहले उन्हें अपनी आशा का पक्का यकीन दिलाया ताकि वे आगे के अध्यायों में विश्वास, धीरज और मसीही चालचलन के बारे में दी जानेवाली सलाह को मानने के लिए तैयार हो सकें। उसी तरह अध्ययन के दौरान, मुख्य मुद्दों पर ध्यान देने से हमें यह समझ आएगा कि उनके ज़रिए मुख्य विषय को किस तरह समझाया गया है। साथ ही, जो हमने पढ़ा है उस पर हमें क्यों चलना चाहिए इसकी ठोस वजह भी हमारे दिमाग में अच्छी तरह बैठ जाएगी।
क्या आपका अध्ययन, आपको सीखी हुई बातों पर अमल करने के लिए उभारेगा? यह सवाल वाकई गंभीर है। इसलिए अध्ययन करते वक्त जब आप कुछ सीखते हैं, तब खुद से पूछिए: ‘मैंने जो सीखा है, उसके मुताबिक मुझे अपने सोच-विचार और ज़िंदगी के लक्ष्यों में क्या बदलाव करने चाहिए? मैं अपनी किसी समस्या का हल करने, कोई फैसला करने या कोई लक्ष्य हासिल करने के लिए इस जानकारी का इस्तेमाल कैसे कर सकता हूँ? मैं इस जानकारी को अपने परिवार में, सेवकाई में और कलीसिया में कैसे लागू कर सकता हूँ?’ परमेश्वर से मदद माँगते हुए इन सवालों पर विचार कीजिए और सोचिए कि आप ज़िंदगी के किन-किन मौकों पर इस जानकारी को काम में ला सकते हैं।
किसी अध्याय या लेख का अध्ययन पूरा कर लेने के बाद, कुछ देर के लिए उसकी खास बातों को मन-ही-मन दोहराइए। मुख्य मुद्दों और उन्हें समझाने के लिए दी गयी दलीलों को याद करने की कोशिश कीजिए। ऐसा करने से यह जानकारी आपकी याददाश्त में बस जाएगी और वह भविष्य में भी आपके काम आ सकेगी।
क्या अध्ययन करें
हम, यहोवा के लोगों के पास अध्ययन के लिए किताबों की कोई कमी नहीं है, हमारे पास इनका भंडार है। लेकिन शुरूआत कहाँ से करें? अच्छा होगा अगर हम रोज़ाना बाइबल वचनों पर ध्यान दीजिए में दी गयी आयत और उसकी टिप्पणी का हर रोज़ अध्ययन करें। हर हफ्ते होनेवाली कलीसिया की सभाओं की अगर हम पहले से तैयारी करेंगे, तो हमें सभाओं से काफी फायदा होगा। इन सबके अलावा, कुछ लोग संस्था के उन साहित्यों का भी अध्ययन करने के लिए समय निकालते हैं जो उनके सच्चाई सीखने से पहले प्रकाशित की गयी थीं। और कुछ लोग हफ्ते की अपनी बाइबल पढ़ाई में से कुछ आयतों को चुनकर, उन पर गहराई से अध्ययन करते हैं।
अगर अपने हालात की वजह से आप सभी सभाओं की अच्छी तैयारी नहीं कर पाते, तो आप क्या कर सकते हैं? ऐसे में, तैयारी के नाम पर सारी जानकारी फटाफट पढ़कर खत्म करने की गलती मत कीजिए। और यह सोचकर कि सभी भागों की तैयारी करना आपके लिए मुमकिन नहीं है, ऐसा भी न हो कि आप किसी भी सभा के लिए बिलकुल भी तैयारी न करें। इसलिए तय कीजिए कि आप किन-किन भागों की तैयारी कर सकते हैं और फिर उनका अच्छी तरह अध्ययन कीजिए। हर हफ्ते ऐसा करने की आदत डालिए। वक्त के गुज़रते, दूसरी सभाओं की तैयारी को भी अपने इस अध्ययन में शामिल करने की कोशिश कीजिए।
‘अपने घराने को मज़बूत कर’
यहोवा को मालूम है कि आपको यानी घर के मुखिया को अपने परिवार की ज़रूरतें पूरी करने के लिए कड़ी मेहनत करनी पड़ती है। इसीलिए नीतिवचन 24:27 (NW) में कहा गया है: “अपना बाहर का कामकाज ठीक करना, और अपना खेत तैयार करना।” लेकिन आपको अपने परिवार की आध्यात्मिक ज़रूरतों का भी ध्यान रखना है। इसलिए यह आयत आगे कहती है: “उसके बाद तुम्हें अपना घराना भी मज़बूत करना चाहिए।” परिवार के मुखिया इस सलाह पर कैसे अमल कर सकते हैं? नीतिवचन 24:3 (NW) जवाब देता है: “समझ से [घराना] स्थिर होगा।”
कैसे समझ, अपने घराने को मज़बूत करने में आपकी मदद कर सकती है? समझ का मतलब है, जो सामने नज़र आता सिर्फ उसी को नहीं, बल्कि उसके आगे देखने की दिमागी काबिलीयत। यह कहना बिलकुल सही होगा कि पारिवारिक अध्ययन को फायदेमंद बनाने के लिए आपको सबसे पहले अपने परिवार के सदस्यों का अध्ययन करना होगा यानी उनको अच्छी तरह समझना होगा। क्या आपके परिवार के सदस्य आध्यात्मिक बातों में तरक्की कर रहे हैं? उनके साथ बातचीत करते वक्त, उनकी बातें गौर से सुनिए। क्या उनमें शिकायत करने या नाराज़गी और गुस्से के लक्षण नज़र आ रहे हैं? क्या वे धन-दौलत और ऐशो-आराम की चीज़ों को ज़्यादा अहमियत देते हैं? अपने बच्चों के साथ प्रचार करते वक्त, देखिए कि जब वे अपने स्कूल या कॉलेज के साथियों से मिलते हैं, तब क्या वे बिना किसी संकोच के अपने साथियों को बताते हैं कि वे यहोवा के साक्षी हैं? जब आपका परिवार साथ मिलकर बाइबल पढ़ता और अध्ययन करता है, तो क्या सभी इसका आनंद लेते हैं? क्या वे सच्चे दिल से यहोवा के मार्गों पर चल रहे हैं? अगर ऐसी बातों पर आप नज़दीकी से ध्यान देंगे, तो परिवार के मुखिया होने के नाते आपको पता चलेगा कि आपको हर सदस्य में आध्यात्मिक गुण पैदा करने और उन्हें बढ़ाने के लिए क्या कदम उठाने होंगे।
इस तरह जायज़ा लेने के बाद प्रहरीदुर्ग और सजग होइए! में उन मामलों से जुड़े लेख ढूँढ़िए जिनमें आपके परिवार को सुधार करने की ज़रूरत है। फिर उन्हें बताइए कि अगले अध्ययन में पूरा परिवार किस विषय पर चर्चा करेगा, ताकि वे पहले से इस बारे में सोच सकें। अध्ययन के दौरान प्यार भरा माहौल बनाए रखिए। परिवार के किसी सदस्य को बिना डाँटे-फटकारे या उसे शर्मिंदा किए बगैर बताइए कि जिस विषय पर चर्चा की जा रही है, उसकी क्या अहमियत है और परिवार को इस मामले में क्या-क्या सुधार करने की ज़रूरत है। चर्चा में हर सदस्य को शामिल कीजिए। हरेक की यह समझने में मदद कीजिए कि किस तरह यहोवा का वचन “सिद्ध” है, और हरेक की ज़िंदगी में सही मार्गदर्शन देता है।—भज. 19:7, NHT.
मेहनत का फल पाना
आध्यात्मिक समझ के बिना जागरूक और होशियार लोग, विश्व-मंडल की, संसार की घटनाओं की, यहाँ तक कि खुद अपनी बारीकी से जाँच करके काफी जानकारी हासिल कर लेते हैं, मगर वे यह समझने से चूक जाते हैं कि इन सबको किस मकसद से बनाया गया था। दूसरी तरफ, जो लोग परमेश्वर के वचन का लगातार अध्ययन करते हैं, वे परमेश्वर की आत्मा की मदद से समझ पाते हैं कि विश्व-मंडल में यहोवा की हस्तकला नज़र आती है, संसार की घटनाएँ बाइबल की भविष्यवाणियाँ पूरी कर रही हैं और आज्ञा माननेवाले इंसानों के लिए परमेश्वर का मकसद पूरा हो रहा है।—मर. 13:4-29; रोमि. 1:20; प्रका. 12:12.
परमेश्वर के वचन का हर रोज़ अध्ययन करने से हमें जो फायदे मिलते हैं, वे वाकई लाजवाब हैं! लेकिन इसका मतलब यह नहीं कि हम घमंड से फूल जाएँगे बल्कि हमें हमेशा नम्र रहना चाहिए। (व्यव. 17:18-20) परमेश्वर के वचन का अध्ययन करने पर हम “पाप के छल” में फँसने से भी बचेंगे क्योंकि जब परमेश्वर का वचन हमारे दिलों में काम करेगा, तो काफी मुमकिन है कि पाप का विरोध करने का हमारा इरादा इतना मज़बूत होगा कि पाप में पड़ने की लालसा, इसे तोड़ नहीं पाएगी। (इब्रा. 2:1; 3:13; कुलु. 3:5-10) इस तरह हमारा ‘चाल-चलन यहोवा के योग्य होगा ताकि वह सब प्रकार से प्रसन्न हो, और हम में हर प्रकार के भले कामों का फल लगे।’ (कुलु. 1:10) इसी मकसद से हम परमेश्वर के वचन का अध्ययन करते हैं और बेशुमार आशीषें पाते हैं।