गीत 35
परमेश्वर के सब्र के लिए एहसानमंद
1. दे-खे जब तू बु-रा-ई जग में
दिल ते-रा रो-ए और तड़-पे।
जब भी चा-हे तू कर सक-ता
नाश एक पल में सब दुष्-टों का
लो-गों की जान है प्या-री तु-झे
ये इक व-जह तू धी-रज ध-रे।
पर तू क-रे न्याय है य-क़ीं
याह उम्-मी-दें हैं तुझ पे ल-गी।
2. पाप का घ-ड़ा भ-रा ही जा-ए
देर तू क-रे इं-साँ सो-चे।
पर साल ह-ज़ार ते-रे लि-ए
जै-से बी-ता एक दिन पल में।
पा-पि-यों को अब मौ-क़ा मि-ले
फे-रें वो मन, ब-दी से ट-लें।
दिल ते-रा याह तब ख़ुश हो-ता
मान-ते हैं खूब ये फल स-ब्र का!
(लूका 15:7; 2 पत. 3:8, 9 भी देखिए।)